शनिवार, 6 जून 2009

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों ?

बात शुरू करूं उससे पहले ये जान लीजिये कि ये आलेख किसी एक नौकरशाह को लक्ष्य करके नहीं लिखा गया है ! मेरे लिए पूरी की पूरी नौकरशाही अपने आप में सुसंगठित गिरोह है , ( आप व्यवस्था कह लें ) जो गणतंत्र में गणों की बेहतरी और चाकरी के नाम से भले ही तैनात किया गया हो पर वास्तव में ऐसा है नहीं ! विकास और क्रियान्वयन की एजेंसी बतौर स्थापित किए जाने के फ़ौरन बाद नौकरशाही अपनी पोजीशंस को राजशाही और गणतंत्र के आम नागरिकों को दोयम दर्जा प्रजा के रूप में विकसित करने की कोशिशों में लग गई थी और आश्चर्यजनक रूप से उदीयमान गणतंत्र के कमजोर गणप्रतिनिधि अपनी कमजोरियों और स्वार्थपरकता के चलते इस प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगा सके ! ज़ाहिर है देश की बागडोर गणप्रतिनिधियों के बजाये नौकरशाही के हाथों में अधिकाधिक केंद्रित प्रतीत होती है !
नौकरशाही जनकल्याण के नाम पर बनाई गई योजनाओं पर किस तरह से काम करती है और गणप्रतिनिधियों के प्रति उसके रवैय्ये के बहुत छोटे छोटे तथा स्थानीयकृत नमूने पेश हैं :
(१) भले ही वो जुगाड़ से प्रमोटी अधिकारी था, किंतु महिला महापौर को उससे मिलने के लिए घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी !
(२) एक उच्च शिक्षा संस्थान के लिए एक सौ सात एकड़ जमीन दी गई ,बेचारी संस्था विकसित भी नहीं हो पाई थी कि उसी जमीन के अनेकों टुकड़े दूसरी संस्थाओं को आबंटित कर डाले !
(३) सैकडों एकड़ में वृक्षारोपण किया , पौधे जवान होने को ही थे कि स्टेडियम और शासकीय आवास बनाने के नाम पर उन्हें काट डाला ! लाखों खर्च हो चुकने के बाद स्टेडियम बन भी नहीं पाया था कि उसी जमीन को किसी अन्य संस्थान को दे दिया इस संस्थान नें स्टेडियम में पूर्व निर्मित ट्रेक वगैरह तोड़कर बिल्डिंग बनाई ही थी और ठेकेदार काम पूरा करके भवन , संस्थान को सौंपने की तैय्यारी में था कि उस संस्थान का बोरिया बिस्तर बाँध दिया गया अब वहां कोई दूसरी संस्था अनाधिकृत रूप से काबिज है !
पता नहीं ठेकेदार कागज पर भवन किसे सौंपेगा ?
कहने के लिए ये उदाहरण छोटे और स्थानीय स्तर के हैं पर जरा गौर करें क्या उदाहरण नंबर एक नौकरशाही के घमंड और उदाहरण नंबर दो और तीन अस्थिर चित्त तथा अनियोजित विकास योजना का नमूना नहीं है ! जनता के पैसे का जनकल्याण की योजनाओं के नाम पर ऐसा सदुपयोग ?
सोचता हूँ किसका विकास ? देश का ? या ...?

2 टिप्‍पणियां: