बुधवार, 3 जून 2009

बड़े भाई मैं ...?

हाल में सबसे पीछे हम जूनियर्स की कुर्सियां और हमसे आगे की पंक्तियों में सीनियर्स के बैठने की व्यवस्था की गई थी ! हम सभी के ठीक सामने प्रोफेसर साहबान बैठे हुए थे ! डायस पर राकेश भाई अनाउन्समेंट कर रहे थे ! वो जिसे बुलाते डरते सहमते स्टेज तक जाता और ग्लास बाउल में रखी हुई पर्ची उठाता , उसे पढता और पर्ची में दर्ज़ निर्देशों के अनुसार नृत्य, गायन, मिमिक्री वगैरह वगैरह,करने की बाध्यता का पालन करता ! इस दौरान सीनियर्स की जबरदस्त हूटिंग और ऊटपटांग सवाल ! कुल मिलकर जूनियर्स की फटेहाल खिंचाई का माहौल था ! तिस पर मजाल है कि कोई जूनियर उफ़ भी कर पाता ! दिप्पू ,प्रभात और मैं भी सिर झुकाये अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे ! बेहद नर्वस /अनजाने/असहज कृत्य के परिपालन की आशंका में, अपने साथियों के शर्म से लाल चेहरे देखते हुए ! हमारी सांसे लोहार की धौंकनी सी तेज रफ्तार ! परन्तु वहां से भागने का कोई रास्ता भी तो नहीं था ! मोटे तौर पर इसे रैगिंग ही कहा जाएगा पर इस पूरी प्रक्रिया को सीनियर्स नें एक शालीन नाम दे रखा था 'वेलकम पार्टी '!... ज़ाहिर है इस शालीन सी 'वेलकम पार्टी' के अशालीन और ज़लालत भरे परिणाम हमें भुगतना ही थे ! आज का दिन सारे जूनियर्स की अखंड बेइज्जती का दिन था ! सारे के सारे रुआंसे...हलाकान...परेशान !
देखते देखते प्रभात और दिप्पू से पहले मेरा नंबर आ पहुंचा ! कांपते हाथों से बाउल की पर्ची उठाई, पढ़कर लगा रूह फ़ना होने में बस कुछ लम्हें बचे होंगे ! ऐसा तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था ! स्तब्ध खड़ा का खड़ा रह गया ! लेकिन होनी तो होना ही थी ! राकेश भाई साहब गरज़े, चुप क्या खड़ा है बे, पर्ची में क्या लिखा है, जोर जोर से पढ़कर सबको सुना फ़िर करके दिखा उसे ! सीनियर चिल्ला रहे थे ज़ल्दी पढो, ज़ल्दी पढो ! मैंने पीछे की पंक्तियों में बैठे हुए उदास चेहरे देखे और सीनियर्स के चेहरों पर विजयी मुस्कान, कुछ कुछ ऐसे जैसे कई कई सिकंदरों ने  अकेले पोरस को घेर लिया हो ! युद्ध का मैदान , माफ़ कीजिये... हाल गूंज रहा था ! जल्दी ...जल्दी ! ...बट थैंक्स टू पोरस ! पोरस देशज स्वाभिमान का प्रतीक पोरस ! उसके स्मरण ने मुझे रास्ता सुझा दिया ! मैंने सीनियर्स की तरफ़ देखा और कहा इस पर्ची को पढने से पहले मुझे आप सीनियर्स से कुछ पूछना है ! कुछ मार्गदर्शन प्राप्त करना है ! सारे चिल्लाये, ठीक है,जल्दी पूछो ! मैंने पूछा जूनियर्स को सीनियर्स का और छोटों को बड़ों का सम्मान करना चाहिए कि नहीं ? ...वो एक स्वर में बोले लाजिमी है ! ज़रूर करना चाहिए ! मैंने कहा "बड़े भाई मैं आपका सम्मान करता हूं इसलिए मैं आपकी आवाज की कापी नहीं कर सकता " और पर्ची पढ़ते हुए मैंने हाल के बाहर दौड़ लगा दी ! अब... हॉल में सामने की कुर्सियों में सन्नाटा और पीछे की कुर्सियों से हर्षोन्माद के सुर पसर गए थे ! सारे पोरस ,सारे के सारे पोरस एक दूसरे की बाहों में झूल रहे थे ! पराजितों के इस विजय जुलूस में पर्ची कहीं पीछे छूट गई ! जिस पर लिखा था गधे की आवाज निकालिये !

3 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा आप भी छुपे रुस्तम निकले बहुत खूब शुभकामनायें

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  2. आप जीवित हैं और लिख रहे हैं इससे सिद्ध होता है कि या आप अति भाग्यवान थे या आपके सीनियर्स कम दुष्ट थे। जो भी हो किस्सा बहुत मजेदार है।
    घुघूती बासूती

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