शुक्रवार, 29 मई 2009

अच्छा हुआ उस भूत को मैंने देख लिया !

पृष्ठभूमि :
उन दिनों गांव में करीब करीब हर दिन कोई न कोई नई कहानी फ़िजाओं में तैरती रहती ! किसी को रात में श्वेत वसन / श्वेत केश बुजुर्ग घोडे पर बैठ कर गांव की गलियों में घूमते दिखाई देते और कोई इस बात की तस्दीक करता कि बाबा साहब की सवारी अपने मज़ार के इर्द गिर्द घूमती रहती है ! किसी बन्दे को घोडे की नाल के निशान भी दिखाई दे जाते ! वहां तालाब के किनारे मरघट था और उस घाट पर भूतों के कूद कूद कर नहाने के किस्से भी कम नहीं थे ! इतना ही नहीं मस्जिदों में नमाजियों के साथ जिन्नातों नें नमाज पढ़ी जैसे किस्सों के चश्मदीदों की भी कोई कमीं नहीं थी ! मंदिरों और समाधियों से जुड़े ऐसे अनगिनत किस्से भी कम नहीं थे ! सच कहूं तो अशरीरी आत्माओं / अदृश्य शक्तियों और पारलौकिक जगत के किस्सों में कोई धार्मिक भेदभाव नहीं था क्या हिंदू क्या मुसलमान सभी के सभी इस मुद्दे पर एकमत/ एकजुट/सहमत और केवल सहमत ही हुआ करते थे ! मज़ाल है कि कोई एक किसी दूसरे के किस्से का खंडन कर दे ! मुझे तो लगता है कि हम सभी हिन्दोस्तानियों की एकता और सौहार्द्यपूर्ण संबंधो का इससे बड़ा कोई दूसरा उदाहरण शायद ही हो !
अब समझदारी कहें या नासमझी , मित्र मण्डली हर रात किसी न किसी किस्से की शल्य क्रिया की कोशिश करती ! हर उस स्थान में भटकती जहां से पारलौकिकता के सबूत दस्तयाब हो सकें मगर हासिल शून्य रहता ! लोग कहते बुजुर्ग /संत आत्मायें तुम जैसे लोगों को पसंद नहीं करतीं इस लिए तुम्हें दर्शन नहीं देंगीं ! सुनकर कोफ़्त होती मगर कोई चारा भी तो ना था ! बाद में हम लोगों नें , खुन्नस में ही सही , अशरीरी आत्माओं की पसंद के , ऐसे कुछ लोगों को कम्बल /घडे/ टिन/बांस /पत्थरों और अंधकार की मदद से प्रेतात्माओं के दर्शन भी करवाये ! पता नहीं उन दिनों हमें अपनी ये हरकत ग़लत /अनैतिक नहीं लगी ! पर आज हमें इस बात का दुःख है कि हमने उन लोगों के ग़लत विश्वास को और भी पुख्ता करने का काम किया !
घटना :
गांव छूटने के वर्षों बाद एक दिन जगदलपुर में अपने चिकित्सक मित्र से गपशप करते हुए रात के ग्यारह बजा दिये ! देर हो चुकी थी इसलिए धरमपुरा लौटने के लिए रिक्शा मिलनें की कोई गुंजायश नहीं थी कारण ये कि एक तो बरसात के दिन ऊपर से धरमपुरा रोड में होने वाली लूटपाट के डर से कोई भी रिक्शा वाला उस रोड में जाने की हिम्मत नहीं करता था ! सोचा पैदल ही जाना है तो मेन रोड से जाने के बजाये तालाब वाला शार्टकट पकड़ा जाए ! तालाब यानि दलपत सागर लबालब भरा हुआ था ! तेज हवा में लहरें तटबंध से टकराती हुई ! घनघोर अंधेरा और बीच बीच में कौंधती बिजली ! ...लहरों से तटबंध टूट जाने या फ़िर बिजली गिर जाने का भय अलग से ! कुल मिलाकर माहौल बेहद डरावना था ! लगभग ढाई किलोमीटर लंबे इस रास्ते में से बमुश्किल एक किलोमीटर ही तय कर पाया था कि मूसलाधार बारिश भी शुरू हो गई ! अपने शार्टकट रास्ते वाले फार्मूले पर पछता तो रहा था मगर हरहराते हुए पानी , कौंधती बिजली , और बारिश के दरम्यान अकेलेपन का अहसास लेकर वापस लौट भी तो नहीं सकता था ! जैसे तैसे धरमपुरा के करीब पहुँच रहा था एक आशंका और भी सताने लगी थी कि इमली के घने दरख्तों और उसके पास के मरघट से कैसे गुजरूंगा ! और हुआ भी यही दरख्तों के करीब पहुँचते ही अचानक मेरी ऑंखें खुली की खुली रह गईं तटबंध और पानी के बिल्कुल करीब एक दम झक्क सफ़ेद भूत बार बार दसों फ़ुट ऊपर उठता और फ़िर नीचे झुक जाता ! मेरा रोम रोम खड़ा हो गया ! घने अंधकार में भी मुझे सब कुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था ! कुछ सेकंड्स के लिए मैं जड़वत /स्तब्ध खड़ा रह गया ! सोचा वापस लौटूं ? फ़िर ..... लगा मेहनत अकारथ जायेगी और भीगते हुए दोगुना सफर तय करना पड़ेगा ! ....सोचा देखा जाएगा , आगे बढ़ता हूँ !
अब सोचता हूँ अच्छा किया जो वापस नहीं लौटा और बहुत बहुत ...अच्छा हुआ जो उस भूत को मैंने देख लिया वर्ना .........?
धड़कते दिल और उबलती हुई सांसें लिए इमली के दरख्तों तक पहुँचने के बाद मैं रुका और मैंने भूत को घूर कर देखा ! फ़िर जोर से हंसा तो भूत सहम गया और मैं आगे चल दिया चल दिया !
दरअसल उस दिन मछेरों नें तटबंध पर लगे बेशर्मों और झाडियों पर अपने जाल सुखाये हुए थे जो तेज हवा में उठती गिरती हुई झाडियों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे ! नायलोन के सफ़ेद चमकते हुए जाल !

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर. भूत आखित पकडा ही गया. सुना है आजकल वो रास्ता पक्का हो गया है? पहले केवल मेड हुआ करती थी. धरमपुरा गाँव से दाहिनी और मुड़ते हुए पदमूर पड़ता है जहाँ इन्द्रावती नदी मिलती है

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  2. जब भी भूत पकड़ा जाता है, वह कुछ और निकलता है।

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  3. तुम्हारे, अनुभवों को व्यक्त करने के कौशल का कायल हूं . भूत तुम्हारे इशारों पर नाच रहे हैं.

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  4. नायलोनी भूत देखने वाले शायद आप पहले ही होंगे। किस्सा मजेदार लगा।
    घुघूती बासूती

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