यूं तो बुदरू खेतिहर मजदूर है पर गांव में खासा लोकप्रिय है इसलिए उसे कई बार ट्रक में बैठने और शहर आने का सौभाग्य भी मिल चुका है ! इतना ही नहीं उसकी वज़ह से गांव के दूसरे लोग भी यह सब कर पाये हैं ! पिछले महीने उसे इस काम के बदले कुछ पैसा भी मिला था और भैय्या जी नें वादा किया था कि चुनाव के बाद पंचायत में सचिव बनवा देंगे ! उसे भैय्या जी पर भरोसा है ! ...और इंतजार है ! ... कौन जाने ये इंतजार कब ख़त्म होगा ?
मैं चूंकि शहर में ही रहता हूं इसलिए भैय्या जी नें मुझे ट्रक में बैठने का सौभाग्य कभी भी प्राप्त होने नहीं दिया और न ही शहर की म्यूनिस्पिल काउन्सिल में किसी पद के लिए कोई आफर भी !
उधर चुनाव परिणाम आ चुके हैं , मैं सोच रहा हूं ... प्रधानमंत्री रिपीट , नेता प्रतिपक्ष रिपीट ,बहुतेरे चेहरे फ़िर वही चेहरे ... कई कई तो चौथी पांचवीं बार ! सारे दल/दलों के दागीदार ... रिपीट ! सारे युवराज ...रिपीट !
आज़ादी के बाद के सालों में इस कदर रिपिटेशन ? हे ईश्वर ...इस गणतंत्र में बेचारे मैं और बुदरू ?
हमारा नंबर कब आयेगा ?
टिपण्णी के लिए हमें अक्सर कोई गीत याद आ जाता है "इंतज़ार और अभी और अभी और अभी" और एक दूसरा "वो सुबह जरूर आएगी, सुबह का इंतज़ार कर"
जवाब देंहटाएंअली साहब,
जवाब देंहटाएंआदतन थोडा कड़वी जुबान बोलता हूँ इसलिए कुछ बुरा लगे तो क्षमा करना !
आपने निसंदेह एक अबोध प्रश्न उठाया है , लेकिन उसमे मेरा जबाब भी उतना ही अबोध है कि इस गणतंत्र में आपका और बुदरू का नंबर कभी नहीं आयेगा !
उसका भी कारण है, उसका कारण यह है कि आपने और बुदरू ने आजादी के बाद से ही, चाहे अपनी मजबूरियों की वजह से कह लो या फिर अपने संकुचित दृष्टिकोण की वजह से या फिर किसी स्वार्थी तत्व के बरगलाने पर इस गणतंत्र की खेती में एक ऐसा बीज बो दिया है, जो पेड़ बनकर अब ऐसे फल देता है जिसको कि सिर्फ एक ख़ास वर्ग विशेष का ही प्राणी खा और पचा पाता है, आम आदमी के बस की बात नहीं ! इसलिए आप भूल जाइए ख्वाब देखना !