रविवार, 25 जनवरी 2009

मैं प्रेम पर .....

मैं प्रेम पर बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ ,पिछले ही दिनों मैंने रोबोट से प्रेम सम्बन्ध बनाने की इंसानी कोशिशों के बारे में लिखा था ! अपनी पत्नियों में रोबोटिक प्रेमिका जैसे गुण तलाश कर रहे कई मित्रों नें दूरभाष पर मुझसे अपनी भावनाये शेयर कीं , किंतु वे प्रेम की इस सम्भावना पर मेरे ख्यालात के १/२ हिस्से से ही सहमत हैं ! उनकी पूरी दिलचस्पी रोबोटिक प्रेमिका और उससे जुड़े रोमानी ख्याल तक ही महदूद है और वे मेरे इस ख्याल से असहमत हैं कि आगे चल कर स्त्रियाँ भी अपने लिए रोबोटिक प्रेमी बना लेंगी ! मुमकिन है कि रूमानियत नें उन्हें शुतुरमुर्ग की तरह से 'सच' देखने के लिए मजबूर किया हो ! इसीलिए वे मर्दों के लिए रोबोटिक प्रेमिका के ख्याल से रोमांचित और स्त्रियों के लिए रोबोटिक प्रेमी के ख्याल से असहमत बने हुए हैं !
मेरे पिछले आलेख पर टिप्पणी करते हुए नमिरा नें , सम्भावना के नए आयाम खोले ! उन्होंने लिखा कि चूँकि रोबोटिक प्रेमी और रोबोटिक प्रेमिका स्थायी रूप से युवा और सुंदर बने रहेंगे इसलिए वे अपने अपने काउंटर पार्ट में झलकते बुढापे से विरक्त होकर ,बागी (मानवीय नियंत्रण से मुक्त ) हो जायेंगे और तब उनकी अलग दुनिया होगी ! इन हालात में स्त्री और पुरूष फ़िर से एक दूसरे का साथ देने के लिए मजबूर हो जायेंगे ! शायद नमिरा इसे पुनः 'मूषको भव' जैसी स्थिति में देख रही हैं ! खैर ....
मैं कह रहा था कि मैं प्रेम पर बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ और मैं ये भी जानता हूँ कि दुनिया का हर इन्सान ,क्या स्त्री और क्या पुरूष , सभी के सभी प्रेम पर बहुत कुछ लिखना चाहते होंगे ! वे भी सुंदर स्त्रियों , नटखट बच्चों , ...और सारी की सारी कायनात में सिर्फ़ प्रेम के रंग बिखेरना चाहते होंगे , अपनी बांहें फैला कर प्रेम को अपने सीने में समेट लेना चाहते होंगे , शिशु की तरह किलकारियां मारते हुए प्रेम की गोद में दुबक जाना चाहते होंगे और कभी कभी मंदिरों ,मस्जिदों , गुरुद्वारों ,चर्चों के गोल गुम्बदों के नीचे , कभी कभी इन सब से बहुत दूर कहीं एकांत में प्रेम को अनुभवना चाहते होंगे ! हो सकता है वे सभी गहरे नीले समन्दरों ,श्वेत शुभ्र बर्फ से ढंके पहाडों और हरियाली से लदे फंदे मैदानों में ऐसा कर भी पाते होंगे !
मैं भी ........औरों की तरह से प्रेम को अनुभव करना चाहता हूँ !............ लेकिन माह की सोलहवीं तारीख से चावल ,दाल और दवाईयों का चक्रव्यूह !
..........जरूरतें /खर्चे और उधारियां मेरे रूमानी ज़ज्बात को मातमी ख्यालात में तब्दील कर देती हैं !
शायद .........एक दिन मैं जरूर कुछ .....लिखूंगा !

2 टिप्‍पणियां: