मुद्दतों पहले कश्मीर में सोडा राम अपनी
पत्नि के साथ रहता था जिसने उसकी ज़िंदगी
नरक बना दी थी । पत्नि बात बात पर झगड़ा करती, वो बेहद अशालीन और घटिया लहजे में
बात करती जिसकी वजह से सोडा राम लगभग अवसाद ग्रस्त हो चला था पर उसके पास पत्नि से मुक्ति का कोई
मार्ग नहीं था । दूसरी तरफ पत्नि उससे, हमेशा असन्तुष्ट बनी रहती । एक दिन उसने सोडा
राम से कहा जाओ, राजा से दया की याचना करो और भिक्षा मांग कर लाओ । सोडा राम के
लिए पत्नि की ये बात कुछ दिनों के लिए ही सही पर आजादी का द्वार खोलने जैसी लगी ।
वो फौरन लंबी यात्रा के लिए घर से बाहर निकल गया । मीलों पैदल चलने के बाद थोड़ा आराम
करने के ख्याल से वो एक झरने के पास के पेड़ की छाया में आराम करने लगा । तभी उसे
एक जहरीला सांप दिखाई दिया, जिसे पकड़ कर उसने अपने थैले में डाल लिया और एक कुटिल
विचार के साथ वापस अपने घर की तरफ चल दिया । उसने सोचा कि अगर ये सांप पत्नि को डस
लेगा तो उसे, उसके दुखों से हमेशा के लिए निजात मिल जाएगी ।
घर पर वापस आते ही उसने पत्नि से कहा,
तुम्हारे लिए एक शानदार तोहफा लाया हूँ । उसे पूरी उम्मीद थी कि पत्नि जैसे ही
थैले में हाथ डालेगी सांप का जहर उसे परलोक पहुंचा देगा । लेकिन पत्नि ने जैसे ही
थैले में हाथ डाला, वहाँ एक सुंदर बच्चा मुस्करा रहा था । सोडा राम हैरान था पर
उसके पास आँखन देखी पर विश्वास के सिवा कोई और विकल्प शेष नहीं था । उसने बच्चे का
नाम, नाग राय रखा जो जल्द ही उनके परिवार में सुख और समृद्धि की वजह बन गया । एक रोज बच्चे ने जिद की कि वो उस झरने में
नहाना चाहता है जहां से पालक पिता उसे
लेकर आया था । सोडा राम ना चाहते हुए भी उसे उसी झरने के पास ले आया । असल में यह
झरना राजकुमारी हीमल का था जहां वो स्वयं भी स्नान किया करती थी । बालक नाग राय, सांप बन कर झरने की दरार के अंदर
दाखिल हुआ और नहा कर वापस आ गया । लेकिन
ये सिलसिला यहाँ पर रुका नहीं युवा होने तक नाग राय लगभग हरेक दिन नहाने के लिए उस
झरने का इस्तेमाल करने लगा जोकि राजकुमारी हीमल का निजी स्नानागार था ।
हीमल को यह अंदाज हो गया था कि कोई
व्यक्ति उसके झरने का इस्तेमाल कर रहा है । उसने झरने की निगरानी बढ़ा दी और एक दिन
उसने नाग राय को ऐसा करते हुए देख लिया, उसने पाया कि वो एक बांका सजीला नौजवान है
। उसे पहली ही नजर में नाग राय से इश्क हो गया । उसने नाग राय से कहा कि तुम मुझसे
ब्याह कर लो । नाग राय ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया और फिर धूम धाम से
उनकी शादी हो गई । उन दोनों के लिए झरने के करीब ही एक शानदार महल बनवाया गया जहां
वे लोग सुख से रहने लगे । उधर पाताल लोक में नाग राय की नाग पत्नियाँ, नाग राय को
ढूंढती फिर रही थीं । एक दिन उन्होंने नाग राय और हीमल को एक साथ रहते देखा । वो
ईर्ष्या और क्रोध से भर गईं । उन्होंने इस गठबंधन को तोड़ने के लिए भोली भाली हीमल के मन में शक के बीज बोना शुरू कर दिये ।
उन्होंने कहा तुम्हारा पति पहले से शादी
शुदा है और तुम्हारे लिए वफादार नहीं है । इतना ही नहीं उसके दूसरी युवतियों से भी
नाजायज रिश्ते हैं । उन्होंने सुझाव दिया कि हीमल, नाग राय कि परीक्षा ले । उसे
दूध से भरे कुंड में डुबकी लगाने कहे अगर वो चरित्रवान ब्राह्मण पुत्र होगा तो कुंड
में डूबने लगेगा वरना तैर कर बाहर भागेगा ।
हीमल ने ऐसा ही किया, नाग राय इस साजिश को
समझ गया लेकिन हीमल उसकी ना नुकुर से संतुष्ट नहीं हुई । मजबूरी में नाग राय जैसे
ही दूधिया कुंड में उतरा उसकी नाग पत्नियों ने उसे घुटनों तक दूध कुंड में खींच
लिया । नाग राय ने हीमल से कहा क्या वो संतुष्ट
है ? हीमल संतुष्ट नहीं थी । वो खामोश रही इसके बाद नाग राय की जांघे, सीना
और चेहरा भी डूबता गया और जब तक हीमल कुछ समझ पाती वो सशरीर दूध के कुंड में डूब
गया । यह देख कर हीमल विलाप करने लगी ।
उसने अपनी पूरी सुख सुविधाओं का परित्याग
कर दिया और हर दिन नाग राय की प्रतीक्षा करने लगी । एक रोज एक बूढ़े ने उसे बताया
कि झरने में एक युवक नहाने आता है जो असल में सांप है । हीमल ने सुबह से शाम तक इंतजार किया और शाम को नाग
राय को देखते ही उसके कदमों से लिपट गई । उसने कहा तुम जहां भी रहते हो मुझे अपने
साथ ले चलों । नाग राय उसे प्रेम करता था, तो कंकड़ बनाकर पाताल लोक ले गया लेकिन
उसकी नाग पत्नियाँ समझ गईं कि ये हीमल है । उन्होंने हीमल को प्रताड़ित करते हुए
अपने बच्चों की हत्या करने का आरोप लगाया और मार डाला ।
हीमल की मौत के बाद नाग राय शोक संतप्त
होकर पागलों की तरह से व्यवहार करने लगा । वो हीमल की चिता नहीं जलाना चाहता था ।
वो उसके जिस्म को पाताल लोक से बाहर, झरने की दुनिया में लेकर आया और उसके जिस्म
को जादुई लेप से संरक्षित करते हुए एक दरख्त के नीचे रख दिया । वो हर एक दिन हीमल
के शव के पास आता और शोक मनाता । एक रोज हीमल का जिस्म उस पेड़ के नीचे नहीं मिला
तो वो उसे ढूँढने लगा । असल में हीमल को एक साधु ने फिर से जिंदा कर दिया था।बेचैन
नाग राय उसे ढूँढता रहा, एक रोज वो सांप बनकर हीमल को ढूंढ रहा था तो साधु के बेटे
ने उसे इस आशंका से मार डाला कि वो हीमल को डस ना ले । उधर हीमल साधु के संरक्षण
में चैन से सो रही थी और जब वो नींद से जागी तब तक नाग राय की मौत हो चुकी थी ।
घटनाक्रम से दु:खी होकर हीमल ने नाग राय की चिता में ही जौहर कर लिया ।
यह मिथक प्रथम दृष्टया सतही तौर पर नागों और इंसानों की
सर्वथा भिन्न प्रजातियों, देहों के मध्य प्रेम के पलने, पनपने और अपनी सुविधा के
अनुसार काया बदल सकने की क्षमताओं के होने का कथन
करता है । इसे बांचते हुए जहरीले और गैर जहरीले जिस्मों के सहज सहअस्तित्व के
संकेत मिलते हैं । अन्य भारतीय आख्यानों की तरह इंसानों का भूलोक में रहवास और
नागों का पाताल लोक निवासी होना सामाजिक जीवन और विभाजन के कम-ओ-बेश दैवीयता और
दानवीयता जैसे उच्च और निम्न स्तरीय विभाजन का प्रातीतिक कथन करता है । यह कथन
किसी ज्ञानी, ऋषि की भिन्न पत्नियों के सौतेले भाइयों के अभिजात्य और अधम होने के
निरंतर संघर्ष के दृष्टान्तों के मध्य यदा कदा पनपने वाले परम प्रेम, वैवाहिक संबंधों की अनुभूति कराता है ।
मसलन अर्जुन और नाग कन्या उलूपी , भीम और असुर हिडिंबा के किस्सों के उलट नाग राय और हीमल ।
आख्यान की शुरुआत पत्नि पीड़ित सोडा राम के व्यथा कथन से
होती है । सोडा राम का दु:ख चरम पर है और वो अपनी पत्नि की मृत्यु अथवा उससे येन
केन प्रकारेण मुक्ति के सिवा कोई दूसरी बात सोचता ही नहीं है । वर्ण व्यवस्था के
मानकों के अंतर्गत वो एक ब्राह्मण है और उसे ज्ञानी होना चाहिए पर कथा उसके धर्म
और जातीयता से इतर उसकी निर्धनता, दम घोंटू दाम्पत्य जीवन और नि:सन्तानता पर विशेष
रूप से मुखरित होती है । कहने का तात्पर्य यह है कि वर्ण, धर्म और जातीयता, स्त्री
पुरुष के सहज रहवास, सहवास, संतति की अपरिहार्यता और आर्थिक विपन्नता के मुकाबिले
में पिछड़ जाती है , कदाचित हाशिये मे चली जाती है । बहरहाल आर्थिक विपन्नता को दूर
करने के लिए धन, वैभव सम्पन्न वर्ग से याचना का सुझाव पत्नि देती है और पति इसे
सामयिक राहत का संकेत मानकर प्रसन्न है कि कम से कम यात्रा की अवधि में वो, अपनी
पत्नि के असहज और क्रूर व्यवहार से मुक्ति पा लेगा ।
सोडा राम की लंबी और थकाऊ पैदल यात्रा के दौरान झरने का
किनारा और दरख्त की छाया विश्राम करने के लिए सर्वथा उपयुक्त स्थल है पर यह आख्यान,
इस स्थल का प्रातीतिक उपयोग जहरीले नाग के बसेरे की तरह से करता है। जिसे सोडा राम
अपने सुखद, सहज भावी जीवन लिए सुअवसर की तरह से इस्तेमाल करना चाहता है । कथनाशय
यह है कि सोडा राम, अपनी पत्नि से आकंठ पीड़ित है और उससे शत्रुता की सीमा तक घृणा
करता है । वो दरार से प्रकटित हुए नाग को पकड़ लेता है और झोले मे डाल कर पत्नि की
जहरीली किन्तु नैसर्गिक दिखने वाली मृत्यु की कामना करता है । यानि कि वो चाहता है
कि समाज यह मान ले कि नाग के दंश से होने वाली मृत्यु एक प्राकृतिक दुर्योग मात्र
है जिसके लिए सोडा राम या उसके द्वारा की गई, कोई मार पीट कदापि उत्तरदाई नहीं है ।
सच कहें तो कथा का ये संकेत बेहद दिलचस्प है जहां हत्या के प्रयास से पहले, स्वयं
के उत्तरदायी नहीं होने का तर्क गढ़ा जाता है ।
सोडा राम, धन की याचना के उद्देश्य को तिलांजलि देकर वापस
घर लौट आता है । उसकी प्राथमिकता स्पष्ट है । वो
भिक्षा में मिले धन की तुलना में पीड़ा देने वाली पत्नि की मृत्यु अर्थात असहज
रहवास, सहवास से मुक्ति का मार्ग पहले चुनता है । बहरहाल आख्यान कहता है कि सोडा
राम को वधिक होने से पहले पिता होने की आवश्यकता है । क्या यह संभव नहीं कि सोडा राम
अपनी पत्नि की नाग दंश से होने वाली मृत्यु की कामना के बजाए, संयोगवश रास्ते मे मिली एक संतान का उपहार लेकर लौटा हो जिससे
उसकी पत्नि का मातृत्व भाव जागृत हो और स्वभाव की कटुता में कमी आए ? वो नाग पुत्र जो उनके परिवार में संपन्नता भी लाता है ।
मिथक में नाग के शिशु अथवा युवा हो जाने और फिर से नाग या मनुष्य होते रहने की
कायिक बारंबारता स्पष्ट परिलक्षित है किन्तु इसे सीधे सपाट शाब्दिक अर्थों के बजाए
समाज विज्ञानियों और नृतत्ववेत्ताओं के दृष्ठिकोणों से भी समझा जाना चाहिए ।
सोडा राम का ब्राह्मण होना, वर्ण कुलीनता के आशय में और नाग
राय का नागवंशी होना नाग टोटम, नाग गण चिन्ह से जोड़ कर देखें तो नाग राय, विशुद्ध रूप
से रंगने वाला नाग नहीं बल्कि नाग गोत्र, नाग समाज का शिशु या युवा माना जाएगा ।
इसे ऋषि कश्यप की अनेकों पत्नियों मे से अदिति के देव पुत्रों और दिती के दानव पुत्रों
के स्वभाव, खान पान, वेशभूषा, राज्य सत्ता, संपन्नता के अंतर की तरह से पेश नहीं
किया जा सकता । अदिति और दिती एक ही पिता
की संतान होने के नाते परस्पर बहने थीं और देवता तथा दानव माने गए सभी पुत्र एक ही
पिता की संतान थे । उनकी संपन्नता और विपन्नता के साथ ही साथ स्वभावगत सज्जनता और
दुष्टता के गलेमराइज्ड और चित्रमय
प्रदर्शन से यह खाई भले ही गहरी प्रतीत होती हो पर उनकी स्वजनता, बंधुत्व
के सूत्र एक ही हैं । बस यही संकेत, नाग राय और राजकुमारी हीमल को मनुष्य होने की
श्रेणी में रखता है उनमे से कोई भी रेंगने वाला जीव नहीं है । इस संकेत के आधार पर
नाग सदृश्य मुकुट और स्वर्ण मुकुट मात्र वेशभूषा के अंतर माने जाने चाहिए ।
गोत्रज भिन्नता और सामाजिक रहवास, प्रेम और विवाह के अनुकूल
अथवा प्रतिकूल भी हो सकते है किन्तु यह निश्चित है कि कथा कालीन समाज बहुविवाही
समाज था । हीमल से पहले नाग राय की एकाधिक पत्नियां थीं और वे उसके अपने नाग गोत्र
या समाज की सदस्य थीं यानि कि सजातीय पत्नियाँ । हीमल के स्नानागार में चुपके से
स्नान करना नाग राय का प्रणय प्रयास माना जा सकता है । उसकी सजातीय पत्नियाँ उसकी
पारिवारिक अनुपस्थति से असहज होकर उसे ढूंढ रही थीं और खोज की सफलता के उपरांत, उसके
विजातीय नव दांपत्य जीवन से क्रुद्ध और ईर्ष्यालु हो गईं थीं, जिसकी परिणति नाग राय
की मृत्यु और अंततः हीमल के जौहर पर हो जाती है । कथा कहती है कि नाग राय की
पत्नियाँ हीमल को मार डालती हैं । संभव है यह बेसुध होने से उपजी मृत्यु जैसा भ्रम
हो जिसकी पुनरावृत्ति ज्ञानी साधु के हस्तक्षेप से होती है । इसी प्रकार से यह भी संभव
है कि नाग राय की मृत्यु उसकी नागोचित वेश भूषा के कारण हुई हो ?
इस कथा के अनुसार राजकुमारी हीमल, नाग राय से स्वयं ही प्रणय निवेदन करती है यानि कि उक्त समाज में स्त्रियाँ प्रणय निवेदन की पहल का अधिकार रखती थीं । आवासीय दृष्टि से नाग राय का खंदक, खोह, दरार, पाताल निवासी होना गरीबों के झोंपड़ों, निचली बस्तियों से, साम्य रखता है और हीमल का महल, धनाढ्य पूंजीवादी अट्टालिकाओं जैसा, पर प्रेम के आगे धन का कोई मोल नहीं । इससे आगे ये भी कि इश्क़ ना पुच्छे दीन धरम नू, इश्क़ ना पुच्छे जातां इश्क़ दे हाथों गरम लहू विच, डुबियां लख बरातां, के जैसा...