गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

मैंने रखा है मुहब्बत...3

औरों की तरह उसे भी इश्क हो गया था, इससे कब्ल, भले ही उसके ताल्लुकात अपनी ही बिरादरी की ढ़ेरों ज़नानियों से रहे होंगे पर ये पहला मौक़ा था कि उसका इश्क खूबसूरत मानुष सुकन्या से वाबस्ता था । बहरहाल इश्क में जोर जबरदस्ती से काम लेने के बजाये उसने सुकन्या के माता पिता से विधिवत सुकन्या का हाथ मांग लिया । इस दफा वो परम्परा अनुसार और मय रीति रिवाज़ के पत्नि हासिल करना चाहता था क्योंकि उसे सुकन्या से सच्ची मुहब्बत थी । बहरहाल मुश्किल ये थी कि लड़की के वालदैन गैर बिरादरी में अपनी लड़की का ब्याह करने के लिए राज़ी नहीं थे, उसपे तुर्रा ये कि याची के हिंसक स्वभाव में उन्हें अपनी लडकी का मुस्तकबिल स्याह नज़र आ रहा था, सो उन्होंने विवाहोत्सुक वनाधिराज को नाराज़ किये बिना अपनी बात कही ।

उन्होंने कहा महामहिम, आपका प्रस्ताव पाकर हम गौरवान्वित हुए, लेकिन हमारी कुछ समस्यायें हैं, जिनकी तरफ आपका ध्यान आकर्षित कराना ज़रूरी है । हमारी लड़की अभी कमसिन है, सो मुमकिन है कि आपके इश्क की शिद्दत की ताब ना ला सके । हमें लगता है कि आपके नुकीले दांतों से वो घायल हो सकती है । इसके अलावा आपके पंजो के पैने नाखून भी उसे, जिस्मानी तौर पर नुकसान पहुंचा सकते हैं । इसलिए हम आपसे, बा-अदब ये अर्ज़ करते हैं कि आप अपने पैने नाखून हटवा दें और नुकीले दांत भी । अगर यह मुमकिन हो पाया तो हम आपके प्रस्ताव पर, सहर्ष पुनर्विचार कर सकते हैं ।

चूंकि शेर बेहद इश्कियाया हुआ था, सो उसने आगा पीछा सोचे बिना अपने नाखून और दांत निकलवा दिए और फिर से सुकन्या के माता पिता के पास जा पहुंचा । नख दंतहीन शेर को देख कर लड़की के अभिभावक हंसने लगे। उनके लिए शेर, अब किसी काम का नहीं था । बेबस और लाचार, जो किसी को भी नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं था । कहते हैं कि इश्क, हिंसक, पशुवत और भयंकर को भी पालतू बना सकता है ।
यूं तो ये कहानी, शेर के नाम से कही गई है, जिसे आदमजाद सुकन्या से इश्क हो गया है और वो अपनी जिस्मानी हरारत, अपनी शक्तिमत्ता के दम पर उतारने के बजाये सामाजिक तौर तरीकों से शांत करने का इच्छुक है । या ये मान लिया जाए कि शेर को उस लड़की का इश्क, बलपूर्वक हासिल करने की ख्वाहिश नहीं थी । इसलिए उसने बाकायदा लड़की का हाथ, लड़की के माता पिता से मांगा । यहां कथा में निहित हास्य संकेत ये कि शेरों के माता पिता, सात फेरों / निकाह के कायल नहीं होते, बल्कि उन्हें गन्धर्व विवाह या लिविंग इन जैसी नव-विवाही परम्पराओं के निर्वहन का अभ्यास / शौक होता है । कुल मिलाकर विवाहोत्सुक शेर के वालदैन या तो शेर का साथ देने के लिए मौजूद नहीं थे या फिर उन्हें गैर बिरादरी में शेर का ब्याह पसंद नहीं था, सो विरोध स्वरुप, उन्होंने इस पहल का बायकाट / बहिष्कार किया ।
बहरहाल शेर के हवाले से कही गई इस कथा को इस नज़रिये से भी देखा जा सकता है कि शेर वास्तव में वनाधिराज होने के बजाये, गली का कोई गुंडा, मवाली, कोई बाहुबलि, डॉन माफिया, दस्यु सम्राट, आपराधिक प्रवृत्ति का मनुष्य रहा होगा जोकि लड़की की जाति से अलग जाति में जन्मा होगा और उसकी कुख्याति के चलते, लड़की के अभिभावकों ने उसे असामाजिक जीवन शैली छोड़कर सज्जनता पूर्वक जीवन यापन की सलाह दे दी होगी, जिसमें आत्मसमर्पण और गुनाहों की सजा भुगतना भी शामिल हो सकता है । प्रतीत यही होता है कि जंगल का राजा एक प्रतीक है जिसे दुस्साहस और राजतान्त्रिक / तानाशाही पूर्ण निर्णयों से जोड़ कर देखा जा सकता है, इसलिए शेर के हवाले से कही गई यह कथा निश्चित रूप से इंसानी बस्तियों की ही कथा रही होगी, जिसमें सुकन्या के अभिभावकों ने सुकन्या के हित में जो उचित जान पड़ा, वो निर्णय लिया ।
कथा सार ये कि इश्क बड़े बड़ों के चूल्हे ठंडे कर देता है । सेनापति को प्यादा और महामहिमों को हक़ीर कर देता है । मुमकिन है कि ये सारी बातें इसके उलट भी कही जा सकें । पर ये कथा...