गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

धुन के राही...!

उस दिन आदि देव अपनी गुफा के मुहाने पर लगे दरख़्त की छाया में बैठा था, जबकि अनेकों वर्ण के लोग उसके सामने हाज़िर हुए, उसने रक्त वर्ण लोगों से पूछा, मुझे अपना नज़रिया / दृष्टिकोण बताओ ? रक्त वर्ण लोगों ने कहा, हम केवल अपने बुजुर्गों द्वारा बताये गये तरीके से ही प्रार्थना करते हैं, हमारे लिये, उनकी विरासत, उनका नज़रिया, उनका तरीका ही महत्वपूर्ण है ! रक्त वर्ण लोगों का उत्तर सुनकर आदि देव ने गहरी सांस ली, हूंsss...फिर उसने कृष्ण वर्ण लोगों से भी यही सवाल किया, कृष्ण वर्ण  लोगों ने कहा कि, हमारी माताओं ने हमें जिन जिन भवनों में आने जाने के लिये जैसे जैसे तरीके समझाये और हमारे पिताओं ने जिस विधि से झुकना और प्रार्थना करना सिखाया, हमारे लिये केवल उसका ही अनुसरण करना महत्वपूर्ण है और हम यही करते हैं,  कृष्ण वर्ण लोगों के उत्तर को सुनकर आदि देव ने पुनः गहरी सांस ली, हूंsss...

इसके बाद उसने, पीत वर्ण लोगों से कहा कि तुम लोग, मुझे अपना नज़रिया / दृष्टिकोण बताओ ? पीत वर्ण लोगों ने कहा, कि हमारे पूर्वजों / शिक्षकों ने उठने बैठने, बात चीत करने तथा पूजा के जो तौर तरीके बताये हैं,हमारे लिये केवल वे ही महत्वपूर्ण हैं ! आदि देव ने यह उत्तर सुनकर फिर से गहरी सांस ली, हूंsss... फिर उसने श्वेत वर्ण लोगों से भी यही सवाल दोहराया ! श्वेत वर्ण लोगों ने कहा कि, अपने नित्य जीवन व्यवहार और प्रार्थनाओं के लिये, हमारी किताबों में जो जो लिखा है और जैसा भी लिखा है, हम केवल उसका ही पालन करते हैं, यही हमारे लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है ! श्वेत वर्ण लोगों के उत्तर को सुनकर आदि देव ने एक बार फिर से गहरी सांस ली, हूंsss...! भिन्न वर्ण के लोगों से संवाद के बाद आदि देव ने धरती से पूछा, क्या तुमने इन सब लोगों को कोई नज़रिया / कोई दृष्टिकोण नहीं दिया ?

धरती ने कहा, हां दिया, इन सभी को एक विशेष उपहार की तरह से, पर...ये सब अपने अपने पूर्वजों के तरीकों को सर्वश्रेष्ठ ठहराने की कवायद में ही लगे रहे और इन्होने मेरे उपहार की तरफ ध्यान ही नहीं दिया ! अब आदि देव ने यही सवाल, पानी, आग, हवा, पशु, पक्षी, कीट पतंगों, आकाश, चंद्रमा, सूर्य और तारों, यहाँ तक कि, अन्य सभी आत्माओं से भी पूछा, उन सभी ने वो ही जबाब दिया, जोकि धरती ने दिया था, मनुष्यों के इस व्यवहार के बारे में सुनकर आदि देव को बेहद दुःख हुआ ! उसने रक्त वर्ण, कृष्ण वर्ण, पीत वर्ण, श्वेत वर्ण, के लोगों से कहा, तुम लोग अपने बुजुर्गों, माता पिताओं, शिक्षकों और उनकी किताबों का अनुसरण करते हो, सम्मान करते हो, उनकी विधियों को अच्छा मानते हो, ये तो ठीक है, पर...स्मरण रहे कि अब वे सब इस धरती पर जीवित नहीं हैं, उनके तरीके उनके लिये, उनके समय के लिये, सर्वश्रेष्ठ रहे होंगे, लेकिन...!

इन सबमें तुम्हारा अपना नज़रिया / अपना दृष्टिकोण कहाँ है ? तुम्हारा अपना नज़रिया, जोकि तुम्हारे समय में तुम्हारे लिये सर्वश्रेष्ठ हो, उचित हो ! सच तो ये है कि तुम सब अपना नज़रिया भूल चुके हो, अतः बेहतर है कि तुम सब अपने नज़रिये के लिये प्रयत्न करो ! पूर्वजों / अतीत की तुलना में तुम्हारे अपने वर्तमान का अपना नज़रिया ही, तुम्हारे लिये सर्व श्रेष्ठ होगा ! यह कठिन ज़रूर है, पर यही तुम्हारे लिये बेहतर है ! तुम अपने पूर्वजों को दिल में रखो, उन्हें सम्मान दो, उनके अनुभवों, उनके तरीकों को दिल से चाहो पर...आज के लिये, तुम्हारे अपने लिये, तुम्हारा अपना स्वयं का नज़रिया होना ही चाहिये !

इस लोक आख्यान को बांचते हुए, प्रजातीय / दैहिक लाक्षणिकता के आधार पर भिन्न दिखाई दे रहे लोगों में एक अदभुत व्यवहार  साम्य दिखाई देता है कि, उनमें से किसी के भी पास, वर्तमान समय का अपना स्वयं का कोई विजन / नज़रिया मौजूद नहीं है, वे सभी अतीत के पदचिन्हों पर जस का तस चलने वाले यात्री हैं, पूर्वजों के समय की आनुभाविकता को विचारहीन तरीके से अनुसरित करने वाले / यथास्थितिवादी लोग हैं, कमोबेश सबके सब ‘स्टीरियो टायप’ अतीत की धुन के राही हैं ! इस लोक आख्यान में अतीत के तरीकों को स्मृत रखने तथा हृदय से सम्मान देते रहने की नसीहत के साथ ही वर्तमान के अनुकूल, स्वयं की वैचारिक / बौद्धिक धार को तेज करने का आह्वान ‘असाधारण’ है ! ये कथा सभी वर्ण के लोगों पर अतीत का अनुसर्ता होने तथा दैहिक गोलबन्दियों पर आधारित पूर्वजों की सीख की श्रेष्ठता की अवांछित बहस में लिप्त बने रहने का आरोप लगाती है !   

प्रतीत होता है कि इस आख्यान में उल्लिखित आदि देव, ईश्वर होने की बजाये उक्त काल खंड का सबसे अनुभवी तथा आदरणीय बुज़ुर्ग व्यक्ति है, जो सभी वर्णों, भिन्न जनसँख्या समूहों के लिये समादृत है !  वो एक गुफा में निवास करता है और अपने ही आंगन में पारस्परिक संवाद के लिये चौपाल लगाता है, किसी एक दिन की चर्चा के दौरान भिन्न प्रजातीय समूहों ने उसे इस आशय में निराश कर दिया है कि उन सबके पास अपना स्वयं का विजन नहीं है और वे सभी अपने अतीत की कथित श्रेष्ठता का अंधानुकरण करने में लगे हुए हैं ! आदि देव धरती, पानी, आग, हवा, पशु, पक्षी, कीट पतंगों, आकाश, चंद्रमा, सूर्य और तारों, यहाँ तक कि, अन्य सभी आत्माओं से संवाद करने की सांकेतिकता के आधार पर यह स्पष्ट संकेत देता है कि भिन्न वर्ण के लोगों ने अपनी प्रकृति का पर्यवेक्षण, स्वयं करने की अपनी क्षमता, अपने कौशल, अपने बौद्धिक सामर्थ्य का विकास करना आवश्यक नहीं समझा है ! 

आदि देव से संवाद करते हुए प्रकृति के अंश धरती, हवा, पानी वगैरह वगैरह ,मनुष्य को नैसर्गिक तौर पर एक उपहार देने की बात कहते है, इसका आशय स्पष्टत: मनुष्य की बौद्धिक क्षमता से है, जिसे कि वह लेश मात्र भी इस्तेमाल / परिमार्जित किये बिना, पूर्वजों की पूजा करने और उनकी सिखाई हुई विधियों का अंधा अनुसरण करने में लगा हुआ है, आख्यान में आश्चर्यजनक रूप से भिन्न वर्ण के लोगों को अपने अपने समुदाय की अतीत कालिक श्रेष्ठता को स्थापित करने की पारस्परिक बहसों में लिप्त तथा व्यर्थ में समय नष्ट करने वाला बताया गया है ! ये लोग प्रकृति प्रदत्त क्षमताओं का परिष्कार किये बिना उच्चता और हीनता के ‘युद्ध’ में संलग्न हैं ! आदि देव भिन्न वर्णीय लोगों को समय के साथ चलने की नसीहत देता है किन्तु सावधानी ये कि वो उन्हें अतीत के अनुभवों को स्मृत बनाये रखने का सुझाव भी देता है, उसकी कोशिश, अंधानुकरण मुक्त सजग समाज की स्थापना की !