बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

कुहासा...!

उसके जीवन में दुखों के पहाड़ टूट पड़े थे और कोई राह भी नहीं सूझती थी ! कमसिनी में ही अपनी आखिरी उम्मीद, अपने पति को खो चुकने के बाद उस लावण्यमयी युवती के सामने एक ही रास्ता शेष था सो उसने अपनी नाउम्मीदी के इस दौर में, एक दिन अपनी छोटी से किश्ती, नदी की धार में छोड़ दी और आहिस्ता आहिस्ता मृत्यु गीत गाते हुए ,चप्पू चलाने लगी ! वह झरने के ऐन नीचे जाना चाहती थी ताकि उसके त्रासद जीवन का अंत हो जाये,उसकी किश्ती धीरे धीरे प्रचंड / उत्ताल, अगाध लहरों की आगोश में पहुंच चुकी थी और उसका संतुलन बिगड़ने लगा था ! युवती पानी में गिरने ही वाली थी कि उसे गर्जन के देवता हेनो ने आहिस्ता से अपनी बांहों में उठा लिया और गरजते झरने की ओट में ले गये, उनका घर वहीं था !

देवता हेनो और उनके युवा पुत्र ने उस युवती की सुश्रुषा की और समय के साथ उसके हृदय के घाव भरने लगे ! युवती को सामान्य होते देख कर देवता के पुत्र ने युवती के प्रति अपनी आसक्ति के भाव प्रकट किये और फिर उन दोनों ने देवता हेनो को प्रसन्न करने के ख्याल से शादी कर ली !  कालांतर में उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ जो अपने दादा के आगे पीछे घूमता फिरता ताकि वह यह समझ और सीख सके कि गर्जन के देवता होने का मतलब क्या है और उसके दायित्व क्या हैं ? जीवन में दोबारा लौटी खुशियों के दरम्यान उस युवती के मन में अब एक ही ख्वाहिश / एक ही रंज शेष था कि वह कम से कम एक बार अपने बिछड़े परिजनों को फिर से  देख पाये !  संयोगवश उसकी ये लालसा एक दिन नितान्त अप्रत्याशित और अवांछित ढंग से पूरी हुई !

उस दिन एक शक्तिशाली तथा महाकाय सांप नदी में उतरा और उसने , युवती के ग्राम्य परिजनों के लिये उपलब्ध पेय जल के एकमात्र स्रोत , पूरी की पूरी नदी को विषाक्त कर दिया !  ग्राम्य परिजनों के समक्ष अनायास ही आ खड़े हुए , भीषण महामारी और मृत्यु के इस संकट को स्वयं हेनो ने समझा और उसने युवती को इसकी खबर दी ! युवती की याचना पर हेनो ने स्वयं युवती को उसके परिजनों के पास पहुंचा दिया ताकि वह अपने परिजनों को अल्पावधि में इस गंभीर खतरे से आगाह कर सके , युवती ने ऐसा ही किया , अस्तु उसके परिजन समय रहते , अन्यत्र सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर गये और उनका जीवन बच गया ! इसके बाद हेनो युवती को उसके पति के पास , अपने घर वापस ले आया !

कुछ दिनों के बाद वो महाकाय सांप इस उम्मीद से गांव वापस आया कि उसे विषाक्त जल पीने से मर गये लोगों की लाशें खाने का अवसर मिलेगा , किन्तु वीरान गांव देख कर वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने जोर की फुफकार के साथ नदी की जल धारा के ऊपरी हिस्से की ओर बढ़ना शुरू कर दिया !  हेनो को इसका अनुमान पहले से ही था , सो उसने धुंध के सहारे जलप्रपात के ऊपर चढ़कर उस विराट सांप के ऊपर भयावह वज्र चला दिया , जिससे वह सांप एक विस्फोट के साथ मर गया ! सांप की मृत देह जल प्रपात के ऊपर अर्ध चंद्राकार रूप में बहते बहते अटक गई , जिसके कारण से होने वाले विशाल जल जमाव से एक नया संकट खड़ा हो गया , आगे चल कर , पानी वहीं गिरने वाला था , जहां हेनो का अपना घर था !

देवता हेनो के सामने अकस्मात आ खड़ी हुई , विपदा की इस घड़ी में अपने घर को बचाने का कोई तात्कालिक विकल्प भी मौजूद नहीं था , क्योंकि उसके पास समय बहुत कम था , इसलिये उसने अपने पुत्र , पुत्रवधु और पोते को शीघ्रता से घर छोड़ कर, अपने पीछे आने को कहा...और फिर उन सबको , अपने साथ लेकर ऊंचे आकाश की ओर प्रस्थान कर गया तथा वहीं अपना नया घर बना लिया ! अब वे सभी अपने नये घर से धरती के लोगों को देखा करते हैं !  देवता हेनो इन दिनों बादलों में उसी तरह से गर्ज़न करता है , जैसे कि पहले वो जलप्रपात की धुंध में गरजता था !  नियाग्रा के महा-जलप्रपात से गिरती हुई , अथाह जलराशि में से आज भी हेनो के गर्जन की प्रतिध्वनि सुनायी देती है !

ओनियाग्रा कबीले की इस कथा को बांचने और उसमें निहित सन्देश को बूझने से पहले यह जानना उचित होगा कि नियाग्रा शब्द संभवतः ओनियाग्रा से ही जन्मा है ! इस आख्यान में दो अलग अलग कबीलों के बयान मिश्रित होकर एक नया सा रूप ले बैठे हैं !  कहते हैं कि ओनियाग्रा और इरोक्वोइज़ कबीलों में पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता थी और यह आख्यान उन दोनों के गल्प का समवेत संस्करण जैसा है , जिससे स्पष्ट होता है कि मौखिक परम्परायें किस तरह से अपना रूप बदलती रहती हैं !  कथा के मूल ओनियाग्रा संस्करण में उक्त युवती प्लेग की महामारी को रोकने के लिये देवता हेनो के पुत्र से विवाह के लिये सहमत होती है , जबकि इरोक्वोइज कथा के अनुसार वज्र स्वामी पक्षी ने विषधर हेनो को पराजित किया था !

बहरहाल संशोधित कथा के अनुसार युवती का अल्पकालिक वैवाहिक जीवन अपने पति की आकस्मिक मृत्यु के कारण दुखदाई हो गया था...और वो गहन अवसाद के चलते आत्महत्या करने पर उतारू हो गई थी , हालाँकि देवता हेनो अथवा किसी जल क्षत्रिय / मल्लाह ने उसके जीवन की रक्षा की थी , उसे झरने में डूबने से बचाया था ! देवता हेनो का पानी अथवा निकटस्थ क्षेत्र में निवासरत होना, सांकेतिक रूप से युवती के आश्रयदाता के जल आधारित व्यवसाय में संलग्न होने जैसी प्रतीति कराता है ! इस कथा में यदि उसे गर्जन का देवता कहा गया है , तो भी वह जलप्रपात के ऐन निचले क्षेत्र में मौजूद अथवा जीवन यापन कर रही जनसंख्या का अभिजात्य / कुलीन प्रतिनिधि / सदस्य हो सकता है !
 
युवती जल-नद क्षेत्र की किसी अन्य बस्ती की निवासी थी ! जल प्रदूषण / प्लेग अथवा विषाक्तता से अपने ग्राम्य परिजनों की प्राण रक्षा का संकल्प एक महत्वपूर्ण संकेत है कि , एक युवती जो स्वयं अवसाद का शिकार हो कर मृत्यु की कगार पर खड़ी हो , वो अपने परिजनों के जीवन के लिये स्वयं को दांव पर लगा देती है !  जीवन दाता का पुत्र ही सही...पर शोक ग्रस्तता के समय में एक विजातीय से , विवाह की स्वीकृति से कम से कम यही अर्थ ध्वनित होता है ! कहने का आशय यह है , कि जहां एक ओर,युवती अपने आश्रय दाता का उपकार चुकता करती है , वहीं दूसरी ओर अपने ग्राम्य परिजनों के लिये व्यावहारिक धरातल पर फिक्रमंद भी दिखाई देती है ! मृत्यु और गहन दुःख के काल में पुनः नवजीवन का संकल्प उसकी सामाजिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है !

इस आख्यान से तत्कालीन समाज में विधवा पुनर्विवाह अथवा अंतरजातीय विवाह के चलन अथवा स्वीकार्यता के संकेत भी मिलते हैं ! बादलों में बसने वाले गर्जन देवता के नये घर को आपदा के चलते विस्थापन और फिर नई बसाहट से जोड़कर देखा जाना चाहिये , ठीक वैसे ही जैसे कि युवती के ग्राम्य परिजनों ने आपदा के संकेत मिलते ही नयी बसाहटों की ओर प्रस्थान कर दिया था ! बादलों की गड़गड़ाहट और जलप्रपात के शोर में ध्वनि साम्य भले ही सांकेतिक माने जायें पर यह साम्य अंतत: दो भिन्न जलीय दैहिकी में मौजूद जल तत्व की समानता और उनमें सन्निहित ऊर्जा की समानता से वास्ता रखते हैं ! लोक कथाओं में प्राकृतिक शक्तियों और मानवीय जीवन के समेकित अनहद नाद के सिवा और कोई दूजी बात भला मिलना भी क्यों चाहिए? 

8 टिप्‍पणियां:

  1. उस जमाने के आख्यान की सही विवेचना, आसान नहीं . . .
    आपने अपने लिए सही विषय छांटे हैं , विद्यार्थियों का कल्याण होगा !
    आभार !

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  2. ब्लॉग जगत में अच्छे लेखन का वैसे ही अभाव है, आप अपनी कृपा बनाएं रखे प्रभु . . .
    शिकायत यह है कि आपका लेख कई महीने बाद पढने को मिला। . .

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  3. कुहासा में आशा..आशा के बाद फिर छाता कुहासा। हेना की गर्जन वास्तव में प्रकृति के विध्वंस के खिलाफ मानव के संघर्ष का अनहद नाद ही है।..सुंदर व्याख्या।

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  4. ...एक दिन अपनी छोटी से किश्ती , नदी की धार में छोड़ दी और आहिस्ता आहिस्ता मृत्यु गीत गाते हुए , चप्पू चलाने लगी..

    कवि‍तामयी.

    'तीसरी क़सम' के हीरामन ही याद आई ... -' मन समझती हैं न आप ?'

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  5. आपके पोस्ट .......... !! सुंदर व्याख्यात्मक !!
    मेरे पास शब्द ही नहीं जो कुछ कहूँ ...

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