गुरुवार, 24 मई 2012

तोय निमज्जन : मही के हर छोर से ...!

पिछले अंक में  जल प्रलय पर टिप्पणी करते हुए अरविन्द जी का ख्याल था कि “सृजन को लेकर सभी संस्कृतियों में ऐसे आख्यान हैं ...जल प्रलय तो एक बहुश्रुत आख्यान है -लगता है धरती पर निश्चित ही एक जलप्रलय का कोई समय रहा होगा...कहते हैं कैस्पियन सागर एक ऐसे ही जल प्रलय से निर्मित है और यहाँ की सभ्यता कालांतर में अन्य भागों तक फ़ैली और अपने साथ प्रलय की स्मृति कथा भी लेती गयी...मगर अफ्रीकी कहानियों में भी जल प्रलय का क्या लिंक हो सकता है समझ में नहीं आ रहा ! ” उनके अभिमत / प्रश्न पर आगे चलकर प्रतिक्रिया देने वादा करते हुए मेरे मन में एक विचार ज़रूर था कि अगर सम्पूर्ण धरती एक ही बार में जलमग्न हुई हो , तो उसके बाद एकमात्र बचे हुए जोड़े की संततियों के पास संसार के हर कोने में महाप्रवास के दौरान , जल प्रलय के आख्यान को अपनी स्मृतियों में सहेज कर आगे बढ़ जाने में कोई असुविधा नहीं हुई होगी , किन्तु आख्यान पर , समय / स्थान और पीढ़ियों के विस्तार का असर निश्चित रूप से , विचलन के रूप में उभर कर आया होगा ! कह सकते हैं कि कथा अपने मूल से थोड़ा बहुत अवश्य भटकी होगी , उसमें स्थानीयता के प्रभाव झलके होंगे ! इसे महान परम्परा के स्थानीय परम्परा के रूप में बदल जाने / स्थानीयकरण के रूप में भी , स्वीकार कर सकते हैं !

अपनी टिप्पणी में वे कैस्पियन सागर को एक ऐसे ही जल प्रलय से निर्मित होने का संकेत देते हैं ! अफ्रीका से सम्पूर्ण विश्व की ओर , मानव जाति के महाप्रवास पर वे एक आलेख पहले ही लिख चुके हैं , अतः उनकी टिप्पणी से यह भी ध्वनित होता है कि जलप्रलय , मानव जाति के अफ्रीका से बाहर निकल चुकने के बाद की घटना है ! इसलिए जल प्रलय के आख्यान , विश्व के शेष भागों में प्रसरित हुए , तो ठीक है , किन्तु इन्हें अफ्रीका में मौजूद नहीं होना चाहिये ! अगर अफ्रीका से बाहर के , मानव महाप्रवास और एकमात्र जल प्रलय की धारणा को स्वीकार कर लिया जाये तो यह निश्चित है कि , ना तो मानव महाप्रवास के बाद पलट कर वापस अफ्रीका लौटा और ना ही जल प्रलय की कथाओं को अफ्रीका में होना चाहिये था ! परन्तु वस्तु स्थिति ये है कि जल प्रलय की कथायें अफ्रीका के हर हिस्से और कमोबेश सभी जनसमुदायों में मौजूद हैं ! चूंकि अब तक के अधिकांश वैज्ञानिक अनुसन्धान / अध्ययन अफ्रीका से बाहर की ओर हुए मानव महाप्रवास के पक्ष में हैं तो फिर इसे स्थापित सत्य के तौर पर स्वीकार करने में कोई हर्ज़ भी नहीं है , जब तक कि इससे बेहतर और तर्कपूर्ण कोई दूसरा सिद्धांत सामने नहीं आ जाता !

अब प्रश्न ये है कि , यदि अफ्रीका से शेष विश्व की ओर मानव महाप्रवास सत्य है और प्रवासियों ने पलट कर अफ्रीका की दोबारा नहीं देखा तो फिर अफ्रीका में शेष रह गये जन समुदायों में मौजूद जलप्रलय की धारणा से क्या अर्थ निकाले जायें ? मेरे विचार से पूरे विश्व में एकमात्र / विराट जलप्रलय की बजाये , तत्कालीन मानव समुदायों / बस्तियों में स्थानीय तौर पर बाढ़ पीड़ित हो जाने / जलप्लावित हो जाने / मही के हर छोर पर तोय निमज्जन की धारणा , पर भी विचार किया जाना चाहिये  ! उस समय मानव की सभ्यता / तकनीक और  समझ इतनी विकसित नहीं थी कि वो पूरे विश्व को समग्र रूप से विश्लेषित कर पाता  !  उन दिनों उसके लिए अपना समुदाय  /  निकट की बस्तियां ही सम्पूर्ण विश्व की पर्याय रही होंगी  अतः स्थानीय बाढ़ग्रस्तता से हुई जनधन की क्षति उसके लिए प्रलय से कम तो नहीं ही रही होगी ? आज भी विश्व के हर कोने में / अलग अलग स्थानों में / अलग अलग कारणों से बाढ़ें आती हैं और जनधन की व्यापक क्षति का कारण बनती हैं जबकि पुराने समय के मनुष्य की तुलना में आज का मनुष्य इस आपदा का सामना करने के लिए कहीं ज्यादा समर्थ है ! इसलिए इस विचार को आगे बढ़ाने में कोई  हर्ज़ नहीं है कि , जलप्रलय के लोक आख्यान अगर विश्व के हर छोर में मौजूद हैं और लगभग हर जनसमुदाय सृष्टि की पुनर्रचना की इस धारणा को स्वयं से जोड़ कर देखता है , तो इसका मतलब यह भी हो सकता है कि इन सभी जनसमुदायों ने अपने अपने स्तर पर जल आप्लावन को झेला होगा ! यानि कि विश्व के हर समाज / समुदाय की अपनी जलप्रलय गाथा , उसका अपना अनुभव भी हो सकती है !


चलते चलते अफ्रीका महाद्वीप के एक लोकाख्यान को , देखते चलें ! एक लड़की गेहूं पीस रही थी और एक बकरी उसे चाटने आ पहुंची ! पहले पहल लड़की ने उसे भगा दिया किन्तु दोबारा वापस आने पर आटा चाटने दिया ! लड़की की सहृदयता के बदले बकरी ने उसे भविष्य में होने वाले जल आप्लावन से सचेत किया और कहा कि वो अपने भाई के साथ किसी सुरक्षित स्थान पर चली जाये  ! लड़की और उसके भाई ने ऐसा ही किया और वे दोनों बाढ़ से बच गये ! बाद में वर्षों तक उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिला और वे अकेले बने रहे  !  एक दिन बकरी पुनः प्रकट हुई और उसने भाई बहन को परस्पर विवाह करने की सलाह दी और यह भी कहा कि उन्हें अपने घर की छत पर कुदाल का हत्था तथा टूटे तले वाले मिट्टी के एक पात्र को रखना चाहिये ताकि पता चल जाये कि वे रिश्तेदार हैं !  आख्यान में भाई बहन को एक चमत्कारिक बकरी के द्वारा पहले जान बचाने और फिर विवाह के लिए प्रेरित किया गया  , जबकि वे ऐसा नहीं कर रहे थे  !  घर की छत पर रखा जाने वाला , कुदाल का हत्था और टूटा हुआ मृदा पात्र  ,  सांकेतिक रूप से एक सम्बंध के छीज जाने / टूट जाने का प्रतीक कहे जा सकते हैं , जिसके बाद नये सम्बंध की शुरुवात हुई  !  विनाश , विवशता और पुनः सृजन !

38 टिप्‍पणियां:

  1. जलप्लावन जैसी कुछ मूलभूत धारणाएं सभी समाजों में समान रूप से वि‍द्यमान हैं. इनके पीछे तीन कारण प्रमुख हैं एक, प्रकृति‍ पर अजेयता दूसरे, अपना उल्‍लू साधने की प्रवृत्‍ति‍ व तीसरे, स्‍वयं को धॉंसू सि‍द्ध करने के लि‍ए अपने पूर्वजों के बारे में लंबी लंबी हॉंकने वाली कहानि‍यॉं गढ़ना. ति‍ल का ताड़ बना लेना भी इन्‍हीं प्रवृत्‍ति‍यों का वि‍स्‍तार भर है...मैं इन्‍हें मज़ा लेने का माल-असवाब भर मानता हूँ. ☺

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    1. काजल भाई ,
      एक दम ज़रा सी / ज़र्रे बराबर , असहमति के साथ आपके कमेन्ट का आनंद लिया , इसे मैं बेहतरीन कमेन्ट मान रहा हूं :)

      अब आगे ...
      गढ़ी गई कथाओं में अतिरंजना / तिल का ताड़ बना लेना / कपोल कल्पना , के एलिमेंट की मौजूदगी वाले आपके कथन से काफी हद तक सहमत हूं किन्तु सौ फीसदी नहीं ! अगर इन्हें बांचते समय , इनके अतिरंजित हिस्सों की पहचान कर ली जाये तो कथा के शेष कथन उस समय के समाज के बारे में हमारी जानकारी अपडेट करने के अवसर भी देते हैं !
      चूंकि हमारे पास उस समय का इतिहास अभिलिखित रूप में मौजूद नहीं है , तो फिर हमें इन्हीं स्रोतों को खंगालना होगा ! इनमें से स्वयं के पूर्वजों के बारे में लंबी लंबी हांकी गई बातों और स्वयं को धाँसू माने वाले अंशों को छोड़ कर जो भी मिले उसका लाभ उठाने की सतर्क कवायद ज़रूर करना चाहिये !

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  2. अमरीकन(माया/इंका/होपी)/आस्ट्रेलीयन मिथको मे भी जलप्रलय का उल्लेख है लेकिन ये शर्तिया है कि ये सभी घटनायें किसी एक जलप्रलय के बारे मे नही हो सकती!

    यह भी एक तथ्य है कि भारी बारीश हर जगह होती है, मिथको का कालखंड तय नही होता है, जिससे सभी घटनाये एक जैसी लगती है। शायद प्राचीन सभ्यताओं के लिये ३००-४०० किमी से बड़ा विश्व नही होता था, कम से कम अमरीका(दक्षिण/उत्तर) मे तो नही।

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    1. आशीष जी ,
      मैं खुश हूं कि आप एकाधिक स्थानीय जलप्रलय वाले विचार से सहमत हैं ! उस ज़माने का विश्व शायद एक गांव या एक पारा टोला भी हो सकता था ! यानि कि अपने अपने गांव अपना विश्व !

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  3. बाइबल और कुरान के उल्लेखीत जलप्रलय मिथक के बारे मे कहा जाता है कि वे गिल्गमेश की कथा से प्रेरीत है, इसी मिथक से मिलता जुलता बेबीलोन का जललप्रलय मिथक भी है।

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    1. सारी पृथ्वी , इस तरह के आख्यानों से आप्लावित है :)

      जिन्हें इन कथाओं में रूचि है और जिन्होंने ये कथायें पढ़ रखी होंगी , उन्हें संभवतः पुनरावृत्ति भी लगे किन्तु मेरा इरादा विश्व के हर कोने की कम से कम एक कथा को कह डालने का है ! हो सकता है कि पूरे विश्व में जलप्रलय / सृष्टि सृजन की समानता को पढ़कर , आज भी केवल 'अपने ही गांव को विश्व' मानने वाले कतिपय मित्रों का नज़रिया बदले :)

      मेरा लिखना अकारथ भी हो सकता है पर उम्मीद है कि छूटती ही नहीं :)

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    2. "मेरा लिखना अकारथ भी हो सकता है पर उम्मीद है कि छूटती ही नहीं :)"

      नाजी, आपका कोई भी लेख अकारथ लेखन की श्रेणी मे नही आता, आपकी टिप्पणीयाँ भी नही!

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  4. भिन्न समय में विभिन्न भूभागों में जलप्लावन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता . उन्नत तकनीक और संचार माध्यमों के बावजूद आज भी कुछ सभ्यताएं आधुनिक मानव के लिए अनजानी है , ज़ाहिर है कि उस समय उनके लिए दूसरे भूभागों के अस्तित्व से अनजान रहे हों .आशीष जी से सहमत .
    कामायनी में भी इसके संकेत मिलते हैं जब आखिरी बचे मानव को श्रद्धा और इडा मिलती हैं .

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    1. वाणी जी ,
      एक बेहतर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ! आप आशीष जी से सहमत हैं और मैं आप दोनों से , तो फिर मैंने जो भी आशीष जी से कहा , वो आपके लिए भी हुआ :)

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  5. मैं तो अभी तक यही समझता रहा हूँ कि जल-प्रलय का मतलब पूरे भूमि-क्षेत्र में जल-प्लावन और सम्पूर्ण-विनाश,इसीलिए अफ्रीका के लोग भी इस आपदा से अनजान नहीं रह सकते.हो सकता है कि कुछ क्षेत्र इस प्रलय से अछूता भी रहा हो और वहीँ अगली सृष्टि के बीज बचे हों.

    ...बकरी द्वारा भाई-बहन को आगाह करना,विवाह की सलाह देना कुछ परम्पराओं पर मुहर लगाने का उपक्रम भी हो सकता है !

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    1. संतोष जी ,
      आपकी प्रतिक्रिया अच्छी है !

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    2. ...कभी-कभी आप भी गंभीर मजाक करते हो !

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    3. नहीं भाई , बहुत सीरियसली सीरियस बात कह रहा हूं :)

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  6. वाचिक परम्‍पराएं, सोचने का आधार (मसाला) तो देती हैं, लेकिन उनकी अर्थवत्‍ता अपने पूरे परिवेश के साथ बेहतर स्‍पष्‍ट होती है, इसलिए उनसे सीधे, साफ निष्‍कर्ष सम्‍यक नहीं होता.

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    1. वाचिक परम्पराओं के किसी विशिष्ट काल / आद्य बिंदु की यात्रा पे जायें तो उसका एक ही मतलब होगा कि तब के परिवेश के बारे में 'लिखित' रूप में कुछ मौजूद नहीं होना चाहिये / ज्यादातर सम्भावना यही है ! इस स्थिति में आप परिवेश के जिस हिस्से में भी हाथ डालेंगे वहां एक मसालेदार ( सोचने का आधार ) वाचिक परम्परा ही मिलेगी :)

      व्यक्तिगत रूप से मैं इन्हें सीधे सीधे निष्कर्ष कहने से बचना चाहूंगा ! मेरा विचार है कि इन्हें संभावित या अनुमानित ( निष्कर्ष ) ही कहना उचित होगा !

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  7. बहुत विचारपूर्ण और महत्वपूर्ण पोस्ट जो मुझे सोचने का एक नजरिया दे रही है .आशीष ने गिल्गामेश का उल्लेख किया है -वह दुनिया की प्राचीनतम कथाओं में से एक है -एक महानायक का जलप्रलय से जूझने का प्रामाणिक दस्तावेज जो मात्र एक मिथक ही नहीं है ..
    जबकि मनु की कथा ,हजरत नूह की कथा ,आर्क ऑफ़ नोवा इन महाप्रलयो में काफी साम्य है ..अफ्रीका से मनुष्य का महाभिनिष्क्रमण किन कारणों से हुआ होगा -भयनक सूखे के चलते या हिमयुग के पश्चात बर्फ के पिघलने से यत्र तत्र सर्वत्र बाढ़ की विभीषिकाओं के चलते यह सब एक गंभीर शोध का विषय है ...
    बहरहाल आपकी इस श्रृखला का आस्वादन सुख ले रहा हूँ!

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    1. अरविन्द जी,
      कायदे से ये पोस्ट आपको / आपकी टीप को समर्पित है ! आशीष जी की टिप्पणियाँ पोस्ट को समृद्ध करती हैं !
      मनु / नूह की कथायें महान परम्पराओं का हिस्सा हैं ! फिलहाल स्थानीय / लघु परम्पराओं पे ही हाथ डाल रहा हूं , उद्देश्य का अंदाज आपको भी है !

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  8. अली सा,
    जैसा कि पहले भी कहा था - यह श्रृंखला मेरे लिए बहुत कुछ सीखने का अनुभव है. क्योंकि इन विषयों/आख्यानों को मैं अपनी व्यक्तिगत राय में अत्यंत पवित्र मानता हूँ, जिन्हें छूने भर से मैले हो जाने का संकट उपस्थित हो सकता है. बहुत कुछ हमारी प्राचीन परम्पराओं की तरह.. तर्क से परे. बस ऐसे जैसे मान लेने को जी चाहे.
    सीखने को बहुत कुछ मिला और पिछले अंक में व्यक्त की गयी जिज्ञासा का एक नवीन आख्यान द्वारा उत्तर भी प्राप्त हुआ. मैंने पूछा था कि जलप्लावन में समस्त जीवों की विनष्टि के बाद एक स्त्री और एक पुरुष का बच जाना तार्किक रूप से एक अद्भुत संयोग प्रतीत होता है और उनमें भी दोनों का भाई-बहन होना एक असंभव संयोग. किन्तु आज बकरी वाली कथा ने इस जिज्ञासा को एक नयी सोच प्रदान की, एक तर्कसंगत उत्तर, वर्जना का एक अनोखा और सुग्राह्य संकेत (वर्त्तमान में भी घट विवाह या घट श्राद्ध जैसे संकेत). ऐसे आख्यानों को सहज ही मान लेने की इच्छा होती है.
    बहुत ही पावन श्रृंखला – मेरी दृष्टि में! साधुवाद!!

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    1. सलिल जी,
      आपकी प्रतिक्रियायें हमेशा ही , बहुमूल्य होती हैं ! इनसे पोस्ट का मान बढ़ता है और लिखने वाले को उसकी मेहनत का सिला भी मिलता है ... और हौसला तो खैर बढ़ता ही है ! बहुत बहुत शुक्रिया !

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    2. ...हमारी तरफ से भी सलिल जी को शुक्रिया !

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  9. ( यह ख़त प्रोफ़ेसर अली की क्लास में फेंक कर भाग रहे हैं )

    सन्दर्भ : कुछ पिछली घटनाएं

    संतोष त्रिवेदी : आपकी इस दार्शनिक-टाइप पोस्ट को एक बार पढके चक्कर खा गया हूँ.लोक-कथाएं भी दुरूह होती हैं ?

    प्रोफ. अली : और मैं आपकी टिप्पणी पढ़के चक्कर खा रहा हूं :)

    संतोष त्रिवेदी : दुबारा से पढ़ा हूँ,पर पूरी तरह से समझ नहीं पाया !

    प्रोफ. अली : हद कर दी आपने :)

    असली बात :

    अली सर ,

    आपकी कक्षा में कुछ कम पढ़े लिखे बच्चे भी " यह क्लास सबके लिए खुली है " बोर्ड देख कर अन्दर आ गए हैं !

    बदकिस्मती से इन्हें अन्तरराष्ट्रीय समाज शास्त्र की छोडिये, देसी समाज की ही समझ नहीं है और अक्सर जब तब विशिष्ट विद्वानों से पिटते रहते हैं !

    पिछले दिनों एक बच्चे संतोष त्रिवेदी ने, आपके शब्द न समझ आने की शिकायत कर दी थी जिसे आपने डांट कर बैठा दिया था !

    उनको डांट खाते देख मैंने अपना उठाया हुआ हाथ अपने सर पर लेजाकर खुजाते हुए नीचे कर लिया था ! आपके एक विशिष्ट मित्र डॉ अरविन्द मिश्र उस बात से नाराज होकर, संतोष त्रिवेदी को मिलते ही, गरियाने लगते हैं !

    उस दिन के बाद से मैंने, संतोष त्रिवेदी के साथ, आपकी क्लास रूम से दूर,आपका चित्र लगा कर, गुल्ली डंडा खेल कर, अपना समय पास करने का फैसला किया है !

    पढ़े लिखों से दूर ही रहें, तभी ठीक है :)

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    1. विषय से ध्यान हटाने के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं मगर बाल मन पढ़ाई में कैसे लगे जब एक दोस्त का मामला हो ....

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    2. सतीश भाई ,
      :)

      आप भी कमाल करते हैं ! संतोष जी से मैं कितनी मुहब्बत के साथ डांट डपट करता हूं , इसका आपको ज़रा भी अंदाज़ नहीं है ! कभी यूं भी समझिये कि ये हमारे अन्दर की उन्सियत है , जो उन्हें अपना समझ के डांट लेने का हौसला कर पाते हैं वर्ना तो दोस्तों से दिल की बातें शेयर करने भी ज़माना नहीं रह गया है :)

      अगर आप दोनों अनुमति दें तो ज़रा सा बाहर आकर गुल्ली डंडा मैं भी खेल लूं :)

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    3. सतीश जी,मैं गाहे-बगाहे अली साब को मशविरा देता रहता हूँ कि कभी-कभी हमारे लिए भी 'क्लास' ले लिया करो,पर शायद इन्होंने यह मामला मिश्रजी के सुपुर्द कर दिया है.अब वही हमें 'समझावन-लाल' से समझाते रहते हैं.

      ..मैंने बचपन से ही गुल्ली-डंडा खेलना शुरू कर दिया था,अब तलब लगती है तो टंकी पर चढ़ जाता हूँ और वहीँ से कूदता हूँ !

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  10. आलेख और टिप्पणियों के वाचन से बढ़िया ज्ञानवर्द्धन हुआ...
    सृष्टि के विनाश की कल्पना के लिए शायद जल-प्लावन की धारणा ही सबसे उपयुक्त मानी गयी है....इसीलिए इसका विश्व के सभी लोकाख्यानों में जिक्र है...भूकंप ..आंधी के बाद भी जीवन शेष रह सकता है...और आग में सब जल जाने की कल्पना बहुत ही भयावह होगी..इसलिए इसे कहानी में भी जगह नहीं मिली.

    पर ये भाई-बहन के बच जाने और उनके आपसी विवाह का जिक्र सोच में डाल रहा है...ऐसी कल्पना क्यूँ की जाती रही??..दो पड़ोसी भी तो बच जा सकते थे...

    {टिप्पणियों को अलग-अलग कैटेगरी दी जा रही है...'बेहतरीन-बेहतर-अच्छी'...तो मिल गयी लोगों को..शिष्टाचारवश आप ..'बुरा' कहेंगे नहीं...हम खुद ही 'साधारण' वाली कैटेगरी में शामिल हो जाते हैं.:)}

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    1. रश्मि जी ,
      कभी अग्नि से हुए नुकसान के बारे में भी लिखूंगा पर फिलहाल इसे ही चलने दीजिए वर्ना मोमेंटम टूट जाएगा !

      अगर मूल कथाकार मैं स्वयं होता तो भाई बहन के साथ और भी बहुतों को बचा लेता पर उन बन्दों का क्या करूँ जिन्होंने सिर्फ भाई बहन को ही बचाया और उनमें परस्पर शादी जैसी मजबूरी वाले हालात पैदा कर दिये !

      टिप्पणी के मामले में आप तकल्ल्लुफ़ ना करें ! आपकी टिप्पणी अत्यन्त प्रश्नोत्सुक और सार्थकता की कैटेगरी वाली है :)

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  11. आपका यह लेख हमारे लिए तो सी एन एस जैसा साबित हो रहा है । सी एन एस को समझना हमें हमेशा स्त्री जाति को समझने जैसा लगा जो कभी समझ नहीं आया । अभी दिमाग कहीं और फंसा है , इसलिए जोर भी नहीं डाल सकते । :)

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    1. ...चलो,हमारा कोई तो साथी मिला !

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    2. डाक्टर साहब ,
      स्त्रियां मेरे लिए 'मान' का विषय हैं ! अतः आपके कमेन्ट को मैं अपने लिए काम्प्लीमेंट मान लूं :)

      आपके सुझाव पर मैंने कई बार अपनी भाषा पर एक्सपेरीमेंट भी कर डाले हैं अब तो कृपा कीजिये :)

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    3. अली सा , शायद आप हिस्ट्री के प्रोफ़ेसर हैं . और हमने हिस्ट्री कभी पढ़ी नहीं . :)
      इसलिए भूतकाल की मान्यताओं और धारणाओं को छोड़ वर्तमान में घटित होने वाली घटनाओं पर ही ध्यान देते हैं .
      लेकिन कॉम्प्लीमेंट तो है ही .:)

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    4. डाक्टर साहब ,
      मैं हिस्ट्री का प्रोफ़ेसर नहीं हूं :)
      मैं भी वर्तमान का ध्यान देने / अध्ययन करने वालों में से हूं :)
      मुझमें आपमें , अंतर कुछ खास नहीं है ! आप मरीज के वर्तमान के साथ उसकी केस हिस्ट्री देखना / जानना ज़रुरी समझते हैं और मैं उसी मरीज़ के समाज के वर्तमान के साथ उसकी केस हिस्ट्री देखना / जानना ज़रुरी समझता हूं :)

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  12. इस पोस्ट को पढ़े बिना पिछली पोस्ट में कमेंट किया था...

    अलग-अलग लोक आख्यानो को पढ़कर यह खयाल आ रहा है कि संपूर्ण धरती कभी जल प्लावित नहीं हुई होगी। अपनी-अपनी भूमी, अपने-अपने आकाश। भांति-भांति के लोग भांति-भांति के लोक आख्यान।
    ..यहां भी यही सही लग रहा है।:)

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    1. कमेन्ट के मामले में आपने ठीक ही किया ! हर आलेख को अलग से ही पढ़कर निपटाया जाना उचित होगा क्योंकि हरेक में उद्धृत कथा अलग देश / स्थान की है !

      अनेकों जलप्रलय की धारणा से सहमति के लिए धन्यवाद !

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