गुरुवार, 17 जून 2010

कुंवें से पानी उलीचते समंदर ...अभिव्यक्ति के माध्यमों पर तू तड़ाक !

कई दिनों से  ब्लॉग में  कोई  प्रविष्टि नहीं डाली और शायद आज भी नहीं लिखता ...पर  पिछले दो दिनों की कशमकश के बाद मुझे लगा कि इस मुद्दे पर अपने विचारों को सार्वजानिक करना ही बेहतर है !  हुआ यह कि हमारे एक  मित्र ने  नया नया ब्लॉग बनाया और दस्तूर के मुताबिक़  उनके ब्लॉग पर चहल पहल दिखने भी लगी इसी दौरान  मित्र को यह अहसास हुआ कि उनकी   अभिव्यक्ति के लिये हिंदी जुबान सहज माध्यम नहीं है सो उन्होंने , मित्रों से यह दुशवारी बयान भी कर दी  !  मुझ जैसे कई मित्रों  ने  कहा , आपको जो  भी  जुबान  सहज  लगे  उसमें अभिव्यक्त होईये...कुछ  ब्लागर्स     नें कहा , हिंदी में ही कोशिश करिये भले ही  'इंडिक ट्रांसलिटेरियन टूल' का उपयोग कीजिये  ! ...ज़ाहिर है कि यह ब्लॉगर मित्र का विशेषाधिकार था कि वे अभिव्यक्ति के लिये कौन सी जुबान चुनते  !  उन्होंने कहा कि मेरे  चिंतन और अभिव्यक्ति के लिये हिंदी की तुलना में आंग्ल भाषा ज्यादा सुविधा जनक है  !  इस निर्णय में कोई बुराई भी नहीं थी ,रविन्द्रनाथ टैगोर के लिये बांग्ला , माओत्सेतुंग के लिये मंदरिन ,कार्ल मार्क्स के लिये जर्मन , ग़ालिब के लिये पर्शियन , कालिदास के लिये संस्कृत ,शेक्सपियर के लिये अंगरेजी चिंतन का सहज माध्यम रही हैं   !  इसी तर्ज पर स्पेनिश , अरेबिक ,ग्रीक भाषाओँ के  कई  महान  दार्शनिकों के नाम भी लिये जा सकते हैं  जिन्होंने चिंतन और अभिव्यक्ति का माध्यम अपनी सहजता से चुना ...लेकिन यह स्मरण रहे कि इन सभी की महानता  का कारण  उनका चिंतन था ना कि चिंतन के अभिव्यक्त होने का माध्यम ! ज़रा सोचिये कि क्या ग़ालिब और कालिदास को शेक्सपियर से हकीर  केवल इसलिये मान लिया जायेगा  कि वे आंग्ल भाषा में नहीं लिखते थे   ?   दर्शन शास्त्र के बाहर यदि विज्ञान और तकनीक के मुद्दे पर भी विचार किया जाये तो रशियन, जापानीज, चायनीज ,फ्रेंच ,जर्मन वगैरह वगैरह  जुबानों पर  भी उतना ही दांव लगाया गया है जितना कि अंगरेजी में , तो फिर ...माध्यमों के आधार पर ज्ञान / चिंतन की श्रेष्ठता का निर्धारण नितांत अर्थहीन और औचित्यहीन है  !  इसके अतिरिक्त एक  प्रश्न यह भी है कि क्या भाषाओँ को बोलने वालों की संख्या बल के आधार पर मंदारिन , अरेबिक या अंग्रेजी को श्रेष्ठता  के मानक बतौर पेश किया जा सकता है ? मेरा ख्याल है कि चिंतन और अभिव्यक्ति के माध्यम बतौर जो भी जुबान सहज लगे उसका प्रयोग श्रेयष्कर है किन्तु माध्यम,  चिंतन और अभिव्यक्ति की  श्रेष्ठता के  प्रतीक और  विजयी ध्वज बतौर  हवा में लहराये नहीं जा सकते !  
...हाँ तो मैं कह रहा था कि मेरे मित्र ब्लागर ने आंग्ल भाषा में अभिव्यक्त होना तय किया , जोकि उनकी अभिव्यक्ति और चिंतन के लिये सहजता वाली जुबान है , नि:संदेह  इसमें कोई हर्ज़ भी नहीं है और इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होना चाहिये थी ...अगर किसी मित्र को आपत्ति होती भी तो वह इसे आंग्ल भाषी ब्लाग मानकर वहां से हट भी सकता था ...दुर्भाग्यवश इन्टरनेट की समस्या से दो चार होने के बाद उस ब्लॉग तक  पहुंचने में मुझे ८-१० घंटे का वक्त लग गया  !  पहुंचने पर  इरादा खालिस टिप्पणी का था पर वहां दो टिप्पणीकार मित्रों में हिंदी बनाम अंगरेजी को लेकर व्यक्तिगत आक्षेपों की झड़ी लगी हुई थी  !  दुखी भाव से उलटे पैरों वापस लौटा एक उम्मीद लिये कि ब्लाग स्वामी कोई हस्तक्षेप करके इसका पटाक्षेप कर देंगे बात ख़त्म हो जायेगी  !  कुछ घंटों बाद फिर से वापस लौटा तो पुराना  सिलसिला जारी था और  ब्लागर मित्र ने कोई हस्तक्षेप भी नहीं किया था  , खिन्नता के भाव लिये , बिना टिप्पणी किये , उस कूंचे से पलायन मेरी मजबूरी थी...और मुझे यह करना पडा !
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि सवाल  अपनी सहजता का है ,  जिसे जैसा  मुफीद लगे वो करे ...मामला यह है कि ब्लागर मित्र का प्रोफाइल उनकी सुविधानुसार गोपनीयता बनाये हुए है और उनकी पसंद की जुबान आंग्ल भाषा है  फिर  उन्होंने अंग्रेजी  बनाम  हिन्दी  के टिप्पणीकारों की बहस में कोई हस्तक्षेप भी नहीं किया तथा इसे अपने ब्लॉग से डिस्कार्ड भी नहीं किया तो यह माना जायेगा कि यह बहस उन्हें 'हर्ट' नहीं कर रही थी ! हिंदी भाषा के समर्थक टिप्पणीकार और अंग्रेजी भाषा के समर्थक टिप्पणीकारों का यह दावा  था  कि वे ब्लागर के सच्चे हितैषी हैं   !  इस दौरान आंग्ल भाषी टिप्पणीकार ,  ब्लागर को  निज  तौर पर  जानने  का  दावा भी कर रहे थे जोकि सही ही लगता है क्योंकि ब्लागर ने उसका खंडन भी नहीं किया  ! संयोगवश आंग्ल भाषी टिप्पणीकार का प्रोफाइल भी गोपनीयता के धागे से लिपटा हुआ पाया गया  ! ज़ाहिर है कि उनकी अपनी समस्यायें  /  अपना  हक़ है कि वे  प्रोफाइल ज़ाहिर ना करें  !
वहां की बहस के लब्बो लुबाब में से एक बात जो मुझे  उचित  नहीं लगी वो ये कि आंग्ल भाषी टिप्पणीकार ने हिन्दी भाषी टिप्पणीकार को  संबोधित करते हुए कहा कि "तुम दो कौड़ी के ब्लागर"   "अंगरेजी किसी भी समय हिंदी से बड़ी है "  "ब्लागर, हिन्दी ब्लागडम , एक छोटे कुंवे जैसे ,सीमित क्षेत्र में प्रतिबंधित नहीं"   "तुम कुंवे के मेंढक हो , क्या जानों कि  इसके बाहर भी दुनिया है " ... वैसे तो  उनकी बातें वे ही जाने  और  इन बातों पर प्रतिक्रिया ना देने वाले ब्लागर मित्र जाने ,  पर मजेदार बात ये है कि आंग्ल भाषा के समंदर में तैरते हुए ... अपनी बात को पुख्तगी के साथ रखने के लिये वे  उर्दू / हिन्दी के कुंवें से शेरों और छंदों को उलीच जरुर रहे थे ... क्या पता  ?   उन्हें यह अहसास है भी  कि नहीं कि अपने अस्तित्व के लिये  घड़े को बूंदों की और समंदर को नदी नालों की जरुरत हुआ करती है  ! लेकिन मुझे कोई शक नहीं कि मामला अन्योंनाश्रितता का है गैर बराबरी का तो बिलकुल भी नहीं !  मित्रो , माध्यम केवल माध्यम हैं उन्हें श्रेष्ठता की तलवार की तरह से मत भांजिये !


9 टिप्‍पणियां:

  1. उस बहस से उपजे इस पोस्‍ट नें मुझे प्रेरणा दी है, अभिव्‍यक्ति के प्रवाह को महसूस कर रहा हूं.

    गुरूदेव टैगोर के कुछ बाग्‍ला गीत मानस में तैर रहे हैं, सत्‍य, अभिव्‍यक्ति किसी निश्चित भाषा की मोहताज नहीं.

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  2. बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर पहुंचा. पोस्ट देख दंग हूँ, क्या कहूँ.

    एक ब्लोगर मित्र की टिपण्णी दे रहा हूँ - "जब इन्के बच्चे कान्वेंट(जिसकी स्थापना अंग्रेज़ो ने अनाथों के लिये की थी) मे पढ कर अन्ग्रेज़ी बोलते है ये फ़ूले नही समाते, सोचते है बच्चे सर्वज्ञाता हो गये( यानि पक्के दास हो गये ). इनकी मूर्खता की पराकाष्ठा देखिये ये मानते है कि देश मे सम्पन्नता पश्चिम देशो से आयेगी, उनसे जिन्होने लूट लूट कर नंगा कर दिया। भूल जाते है कि इन लुटेरों के आने से पहले भारत को सोनें की चिडिया कहा जाता था। ये मूर्ख अपने बच्चो को पढाते है कि "भारत को वास्कोडिगामा ने खोजा" कोई इन्हे सद्बुद्धी दे की हमारी सनातन संस्क्रिति धरती पर सबसे पुरानी है।..."

    माध्यम तो माध्यम है, विचार और चिंतन हमेशा श्रेष्ठ रहेंगे... बस गुलामी मानसिकता से बचने की जरुरत है.

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  3. "स्मरण रहे कि इन सभी की महानता का कारण उनका चिंतन था ना कि चिंतन के अभिव्यक्त होने का माध्यम..." पढ़कर वह चुटकुटा याद आया कि 'भई इंग्लैड के तो पिद्दे-पिद्दे बच्चे तक ग़ज़ब के इंटेलिजेंट हैं, मैंने तो उन्हें भी अंग्रेज़ी बोलते देखा'...

    जब अपने बच्चों को हम अंग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ा ही इसलिए रहे हैं कि कल, उन्हें रोज़ी-रोटी की परेशानी न हो तो फिर रोज़ सुबह उठकर अंग्रेज़ी को दो चांटे लगा कर आगे बढ़ जाना कहां तक वाजिव है...मुझे नहीं पता.

    एक बार मैं किसी विदेशी को बता रहा था कि मैं हिन्दी, अंग्रेज़ी के अलावा अपनी मातृभाषा डोगरी भी बोलता हूं व कुछ दूसरी भाषाएं जैसे पंजाबी व उर्दू पढ़-बोल लेता हूं व कई भारतीय उपभाषाएं समझ लेता हूं तो उसका मुंह खुला का खुला रह गया. मैंने उसे बताया कि मैं ही नहीं अधिकांश शिक्षित भारतीयों की भी यही स्थिति है. उसने स्वीकार किया कि उसे बस अपनी मातृभाषा आती है व, अंग्रेजी में संघर्ष करता है. अधिकांश विदेशियों की यही कहानी है. मैंने उसे भरतीय मुद्रा दिखाकर कहा कि देखो इस नोट पर मेरे देश की कितनी भाषाएं अंकित हैं...इनके अलावा भी कई सौ भाषाएं मेरे देश में हैं जिन्हें मैं भी नहीं जानता.

    ऐसी धनी संस्कृति के संवाहक होते हुए जब मैं भाषाओं के मुद्दे पर लट्ठम-लट्ठ होते देखता हूं तो अब हैरानी नहीं होती....बस दुख होता है...

    तेरी कमीज मेरी कमीज़ से ज़्यादा सफेद कैसे.. शायद यही हमारी नियति है.

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  4. @ ज़ील
    मुझे अफ़सोस है कि मेरी पोस्ट से आपको तकलीफ हुई पर दिन में कई बार आपके ब्लॉग पर पहुंचने के बाद जो दुःख मुझे हुआ वह मैंने बयान किया ,मैं खुद बहुभाषी हूँ और मैंने स्वयं आपकी अंगरेजी में अभिव्यक्ति की सहजता वाली बात को अपनी सहमति दी थी !
    मैं बहुत कम ब्लाग्स पर जाता हूँ और उनमें से एक आप हैं पर उस दिन आपके प्लेटफार्म का दुरूपयोग (मिसयूज ) हुआ और आपने उसे रोका भी नहीं , मुद्दा अंगरेजी बनाम हिंदी होता तो मुझे क्या फर्क पड़ना था पर "कुँवें के मेंढक" "तुम दो कौड़ी के ब्लॉगर" "ब्लागर, हिन्दी ब्लागडम , एक छोटे कुंवे जैसे , सीमित क्षेत्र में प्रतिबंधित नहीं" वगैरह वगैरह ये सारी बातें हिंदी ब्लागर्स के सम्मान में तो नहीं कही गयी थीं ?...लेकिन आप खामोश रहीं , आपने दोनों बहस करने वालों को रोका नहीं , टिप्पणियां हटाना तो दूर आपने कोई अपील तक नहीं की ! ये आपका हक़ है कि आप किसे रोकें या ना रोकें ! ...पर किसी विवादित और दिल दुखान॓ वाली जगह पर मुझे क्यों रहना चाहिए ?
    @I am utterly disappointed by the allegation on that blogger....कोई आरोप नहीं केवल अपेक्षा थी जो अधूरी रही !
    @Not only you, your whole group has deserted that upcoming blogger. .... मेरा कोई ग्रुप नहीं है ! कुछ मित्र हैं जो मुझसे सहमत असहमत होते रहते हैं ! मेरी मित्रता मेरी सोच / मेरे चिंतन को ड्राइव ( परिचालित ) नहीं करती !
    @I appreciate your decision for boycotting that blogger....मेरा ब्लाग लिंक अभी भी मौजूद है वहां पर ...'तू तू मैं मैं' पर मेरी असहमति को बायकाट का नाम देना शायद उचित नहीं है !
    @ Majboori ke chalte, you left that blog. It's understandable....मेरी कोई मजबूरी नहीं पर झगडे मुझे पसंद नहीं !

    इसके आगे भी आपने कुछ कहा है ये आपके निष्कर्ष / परिकल्पना हो सकती है पर ये मेरा चिंतन नहीं है अतः इनके लिए क्या कह पाउँगा ?

    @"Shayad apni aukaat mein aa gayee hogee ab tak "

    You did the right thing by deserting that blogger. "A friend in need is a friend indeed." You proved this proverb. It was your duty to stand tall with your friend in his crisis.

    @ " Angraez to chale gaye, sirf kuchh 'kameene' peeche chhod gaye


    एक बार फिर से निवेदन है कि मुझे जो अशुभ लगा मैंने उसके विरुद्ध कहा / असहमति दी और अगर मेरी असहमति ही आपके दुःख का कारण है तो मुझे खेद है ! आदर सहित !

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  5. आपकी बात सही है, लेकिन जिसमें जितनी समझ होगी, वह उतना ही सोच सकता है।
    --------
    भविष्य बताने वाली घोड़ी।
    खेतों में लहराएँगी ब्लॉग की फसलें।

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  6. देर से आया ,पूरा प्रकरण जील की टिप्पणी ने उजागर कर दिया जिसे आपने ढक के रखा था .... ओह ,कितना दुर्भाग्यपूर्ण है यह सब -अर्थ देसाई ने अनर्थ कर ही दिया -उसने हिन्दी और हिन्दी ब्लागर्स के लिए अपमानजनक बातें कीं -कोई भी भाषा से मोह रखने वाला ऐसा नहीं कर सकता और न ही कोई शिष्ट सज्जन व्यक्ति ऐसी बातें बोल सकता है -मुझे लगता है दोनों जन एक दूसरे की स्थिति,मित्रता डिजर्व करते हैं ...हम भी क्या मुंह ले के जायं वहा -अपमानित और तिरस्कृत होने के लिए ....
    मुझे किसी भी भाषा के प्रति कोई विद्वेष नहीं है -मगर अर्थ देसाई हिन्दी निंदक है -ऐसे लोगों को बर्दाश्त भी नहीं किया जा सकता -हिन्दी और अंगरेजी की बात आयेगी तो मैं हिंदी ही पसंद करूंगा ! आपने अपनी भाषा के बारे में जो दस्तावेज और तर्क रखे वे शिरोधार्य है !
    अंगरेजी ब्लॉग वालों के लिए श्रोता /दर्शक कम नहीं हैं -जील को शुभकामनाएं !

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  7. मुझे लगता है सभी ब्लागर्स को क्षद्मनामी अर्थ देसाई के हिन्दी ब्लागर्स विरोधी उदगार यहाँ पढना चाहियेशुरू के पोस्ट पर

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  8. "इस पोस्ट का मकसद अभिव्यक्ति के माध्यमों के साथ भेदभाव करने वाले मित्रों से असहमति व्यक्त करना मात्र है !" हम समर्थन करते हैं. १७ तारीख को ही लिया गया एक एक्शन फोटोग्राफ आपको अलग से भेज रहा हूँ. हमें लगता है की आपके पोस्ट के लिए उचित रहेगी.एंड आये तो उपयोग करें.

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