उसे देखा नहीं पर नास्तिक भी नहीं हूँ और विश्वास करता हूँ कि उसने सारे के सारे ब्रम्हान्डों सारे जीव जगत , गोचर और अगोचर का सृजन किया , वो अनादि अनन्त और कण कण में विद्यमान ...सर्वशक्तिमान है ! समय उससे शुरू और उस में ही ख़त्म होता होगा ! हमारा वज़ूद ...अगर है तो उसके कारण और नहीं होगा तो उसके ही कारण ! सृष्टि में जीवन मृत्यु ...सुर असुर ... सुंदर असुंदर ... लय ताल ....सारे गर्जन ...सारे मौन ...नियति अनियती ...जो भी है ... सब उसका है / उससे है ! क्रोध दया ....घृणा प्रेम...विराट सूक्ष्म... सब कुछ और कुछ भी नही ...अगर है तो उसका... केवल ....उसका और हम..... इस सब से ऊपर हैं क्या ?..... कहां हैं ? हो सकता है ईश्वर के बारे में मैंने जो भी कहा है वह केवल मेरा भ्रम हो या फ़िर इस संसार में कुछ इंसान ऐसे भी होंगे जो मेरी तरह से ईश्वर के विचार पर आँख मूँद कर विश्वास करते होंगे और ईश्वर से प्रेम मतलब ईश्वर के अंशों प्रेम से भी करते होंगे ? ....पता नहीं मैं ऐसा क्यों सोचता हूँ जबकि ऐसे विचारों का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार और कारण भी नहीं हैं मेरे पास ! पर ये तो सच है कि दुनिया में बहुतेरे इंसान ईश्वर की धारणा से सहमत होने का दावा करते हैं और उन्होंने ईश्वर के वजूद की पैरोकारी के लिए नामी गिरामी कानूनदां भी नियुक्त कर रखे हैं ! अलग अलग गेटअप वाले और अलग अलग ब्रांडेड कम्पनियों के मुलाजिमों की तरह अलग अलग ईश्वर के पैरोकार ....वहां पैरोकारी है... बिजनेस है... पर इन्सान और ईश्वर ? पता नहीं ? वे निर्मम व्यवसाइयों की तरह केवल अपने ब्रांड की तरफदारी में लगे हुए लोग हैं..... शायद ? वैसे यह सब लिखने के पीछे मेरी चिंता यह नहीं है कि सभी कम्पनियां , मेरा ईश्वर उसके ईश्वर से अधिक उजला और झक्क सफ़ेद ... क्यों कर रही हैं ....भाई कम्पनी तो होती ही है व्यापार करने के लिए तो मैं इस बारे में क्यों सोचूँ ? दरअसल मैं फ़िक्र में हूँ कि इन कम्पनियों की सेल्स में रखा ईश्वर ...बेचारा ईश्वर ...क्या होगा ....उसका ... ...क्या उसके अलमबरदार उसे बचा पायेंगे ? पता नहीं कब और कैसे वो इन लोगों के संरक्षण का मोहताज हो गया ? शुरू शुरू में लगा कि सिर्फ़ ब्रांडेड कम्पनीज ही ईश्वर की जान-ओ-माल की खैरख्वाह है...पर अब तो हर ऐरा गैर ...दो पाया ....उसकी सलामती / उसकी हिफाजत का स्वयम्भू दावेदार बना हुआ है ! तो क्या ईश्वर इतना निर्बल ...अपाहिज और लाचार सा है ?
मैं उस सर्व शक्तिमान का शरणागत हूँ पर वो लाचार सा ? उनकी शरण में है तो फ़िर मेरा क्या होगा ?
मैं उस सर्व शक्तिमान का शरणागत हूँ पर वो लाचार सा ? उनकी शरण में है तो फ़िर मेरा क्या होगा ?
और ईश्वर के ''भक्त'' बेनामी रहने के सिवा कुछ नहीं कर सकते... :)
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