शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

बोगियों में पहले से जमें इंसान...खाने पर पहले से काबिज़...और सहमी हुई गायें !

अभी अभी लौटा हूँ , बच्चों को स्कूल वालों की गिरफ्त में सौंप कर , थोड़ा लंबा होकर खबरें पढ़ लूँ ...इस ख्याल से नजरे दौड़ाता हूँ....निगाहे टिक गई हैं हमेशा की तरह इस बार भी ...आस्ट्रेलिया में चार और उत्तरी आयरलैंड में दो भारतीय नस्लभेदी ? हमले का शिकार हुए ? सरकारी मुलाजिम पीडितों की मदद करने वाले हैं ? सरकारें चौकन्नी हैं ? ...इधर बाहर बहुत शोर हो रहा है ...निकल कर देखता हूँ , बीबी ने रात का बचा हुआ खाना घर के पिछवाडे ,खुली जगह पर गायों के लिए रख छोड़ा है पर गायें वहां से दूर सहमी सी खड़ी हुई हैं और गली के आवारा कुत्ते खाने पर टूट पड़े हैं ! एक दूसरे पर गुर्राते हुए ...झपटकर एक दूसरे को खून खून करते हुए ! ना जाने क्यों मुझे याद आता है , त्यौहार से पहले छुट्टियों पर घर जाने के लिए ट्रेन पर रिजर्वेशन का व्यर्थ होना ! वहां बोगियों में पहले से ही ठंसा ठंस भरे हुए मुसाफिर , दरवाजे खिड़किया बंद कर किसी को घुसने नहीं देते और जो कोई जैसे तैसे अन्दर पहुँच जाए वो अगले स्टेशन पर दूसरे मुसाफिरों को अन्दर नहीं घुसने देने की कवायद में लग जाता है ! .......हाँ ....ये धरती भी ट्रेन की बोगियों सी खचाखच भर चुकी है अलग अलग कम्पार्टमेंट में काबिज़ इंसानों के समूह ...नहीं चाहते कि कोई दूसरे इंसान. ..अन्दर दाखिल हों और संसाधनों /सुविधाओं में हिस्सेदार बन बैठें ...गोरों के कम्पार्टमेन्टस एशियाई ...भारतीय...पाकिस्तानी ..बंगला देशी ...अफ्रीकी ...नीग्रो ...वगैरह वगैरह के लिए निषिद्ध कर दिए गए हैं ...हाथ में रिजर्वेशन टिकट है......होता रहे ! बात इतनी सी होती तो इसे नस्ल भेद कह कर काम चला लेते मगर ... बंगाल - बिहार में मारवाडी नहीं चाहिए ...मुंबई में यूपी- बिहार के लोग ...नाट अलाउड....असम में बंगाली /बिहारी ....यहाँ ये ....वहां वो ! .... कई बार लगता है जैसे ये लोग भाषाई /धार्मिक /प्रजातीय /मुद्दे पर मारकाट कर रहे हों पर सच तो ये है कि ये सब ऊपरी /सतही बहाने हैं , वरना संसाधनों /सुविधाओं और आर्थिक मुद्दे को इस बवाल का मूल आधार और एकमात्र वजह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं !
इंसानी इतिहास में भूखंडों /संसाधनों पर पहले से काबिज़ लोग ...बोगियों में पहले से जमे हुए इंसान और खाने पर पहले से काबिज़ कुत्ते .....बोगियों में घुसने के लिए जूझते ...धक्के खाते ...चोटिल होते लोग ....दूर से खाने पर निगाहें गडाये....गुर्राते हुए कुत्ते , खून खून कुत्ते ....सहमी हुई गायें ...जिधर तक निगाह डालो बस यही नजारा है ...भला इंसानों और जानवरों में कोई फर्क है भी कि नहीं ?

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