पृष्ठभूमि :
मेरे मित्र वी.संदीप गोट मारी के लिए मशहूर गांव पांढुरना में जन्मे और पले बढे , उनके परिवार को निम्न मध्यवर्गीय धार्मिक परिवार कहा जाए क्योंकि पिता जी स्वप्नजीवी थे ,लिहाज़ा जो भी काम करते असफल रहते ! यूं कहिये आर्थिक संकटों जूझ रहे परिवार के लोग ईश्वर के सिवा किस का मुंह देखते ! जैसे तैसे उच्च शिक्षा पूरी कर , नौकरी मिली तो बहनों के ब्याह की जिम्मेदारी , भला अपने शौक ( रोमांस , शेरो शायरी वगैरह वगैरह ) पूरे करते भी तो कैसे ? ईश्वर पर आस्था थी ही , ज्योतिष कर्म में भी रूचि जागी , ख़ुद का भाग्य देखते देखते दूसरों का भी बांचने लग गए ! चूंकि भूविज्ञान से वास्ता था तो रत्न विज्ञानं में पीएच.डी.भी कर डाली जोकि उनके ज्योतिष्कर्म को निखारने में मददगार साबित हुई ! वैसे सरकारी नौकरी अच्छी खासी है लेकिन वेतन के अलावा ऊपर की कमाई का कोई चांस नहीं ! बहनों की शादी के बाद ख़ुद की शादी उसके बाद मामला ठनठन गोपाल ! सब कुछ निपटा तो घरौंदे की फ़िक्र हुई , एक ही विकल्प , कर्ज लो घी पियो , अपना बैंक भारतीय स्टेट बैंक ! कभी ठेकेदार नहीं , कभी मजदूर नहीं , कभी सामान नहीं , कभी समय पर पैसा नहीं , घर का मुखिया डाक्टर वी.संदीप , एकदम अकेला , कोई दूसरा सहारा नहीं , सारी भागदौड़ ख़ुद करो और नौकरी भी तो करना है वर्ना घर के खर्चे और कर्ज की किश्तें कौन भरेगा ?
"हर सुबह पूरा परिवार ईश वंदना में लग जाता और उसके बाद ही घर से बाहर की दिनचर्या शुरू होती "
घटना :
उस दिन सैकडों बोरी सीमेंट खुले में पड़ी थी और छत ढलाई का कार्यक्रम प्राम्भ होने ही वाला था कि बादल गहराने लगे ठेकेदार नें कहा आप ताल पत्री ले आयें वर्ना सीमेंट खराब हो सकती हैं ! ईश्वर से गिडगिडाते हुए जब तक मोटर साइकल स्टार्ट करते बारिश शुरू भी हो गई ! मकान रायपुर शहर के बाहरी हिस्से में बन रहा था बाजार तक पहुंचते पहुंचते बारिश मूसलाधार हो गई थी ! सड़कों में घुटनों घुटनों पानी , तेज हवा , बिजली की धमाचौकडी और बेचारी मोटर साइकल की पेट्रोल टंकी के ऊपर भारी भरकम ताल पत्री रख कर उसे चलानें की मजबूरी , आँखों में आंसू , उधर सीमेंट भीग जाने से हजारों रुपयों का नुकसान होने का डर , ईश्वर से सारे अनुरोध व्यर्थ ! परिवार का मुखिया डाक्टर वी.संदीप , पैसों की तंगी , भयंकर बारिश से जूझता , मजबूर , असहाय कातर , अपने एकमात्र सहारे ईश्वर की अनसुनी से परेशान !
"...........क्या करता उसने ईश्वर को अपशब्द कहे और कहा तुझे मैं ही मिला बरबाद करने के लिए ?" आशंकित निर्माण स्थल पर पहुँचा तो ठेकेदार नें कहा , यहाँ तो आपके जाते ही बारिश बंद हो गई थी अब ताल पत्री की जरुरत नहीं हैं !
पहले उसने ईश्वर को अपशब्द कहे और फ़िर बारिश से लथपथ , जमीन पर औंधा पड़ा हुआ ईश्वर से क्षमा मांग रहा था ! कौन जानता हैं कि ये महज संयोग था या सच में ईश्वर हैं ?
रोचक।
जवाब देंहटाएंऊपर वाले की वही ऊपरवाला जानें।
ये संयोग मात्र है ! ईश्वर होता है, लेकिन ऎसा नही हो सकता
जवाब देंहटाएंsanyog hai
जवाब देंहटाएंरोचक घटना है। मकान बना?
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
मैं तो ये मानता हूँ जो है जैसा है इश्वर का है... वो ही करता है और वो ही करवाता है... आपसे पोस्ट भी वो लिखवा रहा है.. और मुझसे कमेंट भी..
जवाब देंहटाएंअली सर ( जैसा कि मैं उन्हें कहता हूं ) नें मेरे साथ घटित , सत्य घटना को खूबसूरती से गढा है ! मैं अपनी ग़ज़ल का एक शेर नज़्र कर रहा हूं !
जवाब देंहटाएंग़म मेरे आशियाने में लेकर अब त्यौहार भी आयें !
तुझे याद करने ग़र है ये सबब तो हज़ार भी आयें!!