उन दिनों योहिरो, बेहद उदास, ना उम्मीद, बदहवास, घूमता फिरता, तब सामंतवादी जापान में युद्ध के दिन थे ।
योहिरो इस गांव से उस गांव भटकता रहता, उसे खुशी की तलाश थी, जो उसके अंदर, बाहर कहीं थी ही नहीं । महीनों बीते वो भावनाहीन
होता गया । कहते हैं कि युवक होने से पहले वो एक दरख्त था, बे-फूल, बिना हरियाली, मजबूत तने और लंबी शाखों के बावजूद हर मौसम, अन-खिला,युद्ध से मारों के लिए,उसके पास छिपने लायक या छायादार, कोई जगह तक नहीं थी। लोग उसके बांझपन से डरते और उसके पास फटकते
तक नहीं थे । दरख्त के अटूट वीरानेपन से दुखी, वन परी ने उससे पूछा, क्या वो दूसरे दरख्तों की तरह खिलना चाहेगा
? उसने कहा, हां जरूर । परी ने कहा मैं तुम्हें बीस साल के लिए इंसान में बदल सकती हूं और इस
दौरान तुम खुशियां और उम्मीदें ढूंढना, जैसे जैसे तुम्हारी उदासियां कम होती जाएंगी, तुम्हें फिर से दरख्त बनाने का मौका मिलेगा ताकि तुम दूसरे दरख्तों
की तरह से मुस्करा सको, महको, खिल सको ।
तुम्हारी उम्मीदें ही, तुम्हें नई ज़िंदगी देंगी, लेकिन ख्याल रहे कि तुम्हारे हाथ सिर्फ बीस साल होंगें, अगर तुम्हारे अंदर जीवन और खुशियों की भावनाएं फिर भी नहीं जागीं
तो तुम हमेशा के लिए मर जाओगे । उसके बाद तुम कभी भी धरती पर वापस लौट नहीं सकोगे ।
दरख्त के पास, कोई दूसरा विकल्प था भी नहीं । उसने वन परी
का अहसान मानते हुए अपनी सहमति दी और वन परी ने उसे युवक के रूप में बदल दिया जिसे, मनुष्यों के दरम्यान गांव में रहना था और खुद के अंतस मुहब्बतें
जगाना थीं, खुशियों की तलाश करना थी, पुर-उम्मीद होना था । महीनों यूं ही गुज़रे, एक रोज वह थक कर चूर, एक दरख्त के नीचे सुस्ताने के ख्याल से लेट
गया, तभी उसने देखा एक बेहद खूबसूरत लड़की पानी का
घड़ा लिए हुए, उसकी ही दिशा में बढ़ रही थी । युवक सम्मोहित
सा उसे देखता रह गया, उसका दिल कर रहा था कि लड़की, उसके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजारे, उसने युवती से कहा गांव चलोगी ? ना जाने क्यों युवती, युवक के प्रति सहृदय प्रतीत हो रही थी, उसने कहा ठीक है चलो ।
बात ही बात में युवक ने जाना कि लड़की का नाम सकुरा है । गांव
पहुंचकर सकुरा ने युवक से पूछा कि उसका नाम क्या है ? युवक ने अनायास ही कहा, मेरा नाम योहिरो है । ऐसे ही उनकी सोहबत के दिन, महीने, साल गुज़रते गए । उन दोनों के शौक एक समान थे, जैसे बातें करना, गीत गाना, किताबे पढ़ना वगैरह वगैरह और फिर एक खूबसूरत शाम, योहिरो ने सकुरा से कहा कि वो उसे प्यार करने लगा है और उसके साथ ज़िंदगी गुज़ारना
चाहता है । अपनी चाहत के इजहार के साथ ही उसने सकुरा को अपने एकाकीपन, बतौर इंसान अपने जीवन के शेष बचे दिनों, वन परी के अहसान, अपनी उदासियों, अपने दुखों, दरख्त के तौर पर अपनी उजाड़ ज़िंदगी के बारे
में सब कुछ बता दिया । सकुरा, योहिरो की कथा से प्रभावित तो हुई पर उसे सूझा
ही नहीं कि वो फौरन से पेश्तर योहिरो को, क्या जबाब दे ? सो वो खामोश रही । सकुरा का मौन, युवक को गहरी चोट दे गया, वो एक बार फिर से दरख्त में तब्दील हो गया, पहले की तरह से बेबस और उदास ।
योहिरो को पता था कि जल्द ही उसे दुनिया-ए-फ़ानी से कूच कर जाना
हैं और फिर एक दिन जब, उसकी ज़िंदगी की आखिरी दोपहर सिर चढ़ गई थी, तभी सकुरा हांफती, भागती हुई उस तक पहुंची । उसे एहसास हो गया
था कि वो योहिरो से मुहब्बत करती है । उस लम्हा, वन परी आस पास ही थी, उसने सकुरा से पूछा क्या वो योहिरो के साथ
इंसानों की तरह से ज़िंदगी गुज़ारना चाहेगी या कि उसके दरख्त रूप से एकाकार होना चाहेगी
? बेशक सकुरा ने चुना प्रियतम के दरख्त नुमा
जीवन का साथ, वो अपने सच्चे इश्क से दूर नहीं रहना चाहती
थी । उसने खिली खिली मुस्कराहट और खुली बांहों के साथ चुनी योहिरो की पुरबहार, महकती ज़िंदगी, योहिरो जो अब से जियेगा पुरउम्मीद, खिलेगा हर साल, लुभाएगा इंसानों को...
असल में रोमानियत भरा ये जापानी मिथक, सकुरा यानि चेरी ब्लासम दरख्त के वज़ूद को, संबोधित है, जो कि हर साल अप्रेल महीने मे खिलते हैं ।
दुनिया के लाखों पर्यटक इन फूलों के खिलने का इंतजार करते हैं, उन्हें इन फूलों की हल्की गुलाबी रंगत सम्मोहित करती है । ये
फूल कुछ लम्हों के लिए खिलते हैं और सांकेतिक रूप से जीवन की नश्वरता को प्रकटित करते
हैं । कहने का आशय यह है कि जीवन का अल्पकालिक होना मायने नहीं रखता अगर वो दूसरों
की खुशियों की वज़ह बन जाए तो। मिथक में मौलिक रूप से उल्लिखित ये दरख्त जंगल में अन-खिला, वीरान और उजाड़ सा है । उसमें युद्ध से बचने और जीवन की आस में
भागे हुए लोगों के लिए पनाह की कोई गुंजायश नहीं है । उसकी हरियाली विहीन ज़िंदगी में
बेशक परिंदों तक के लिए कोई जगह नहीं थी ।
लोग उसके बंजरपन से डरते और दूर रहते थे ।
कहने को एक वन परी है, शायद कोई मालिन जो उसे जंगल से हटाकर इंसानी
बस्तियों में नई ज़िंदगी देती है । दरख्त के वीरान और कदाचित अनुर्वर होने का कारण उसकी
अपनी उदासियां, दुख और गहन निराशा के भाव हैं , जो संभवतः युद्ध की पृष्ठभूमि और जीवन मृत्यु के दुःस्वप्नों
से उपजे हैं । उसमें अपनी सृजनशीलता के प्रति घनघोर अविश्वास है । उसके अंतस खुशियां
नहीं, मुहब्बतें नहीं । सो कथा संकेत ये कि सृजनशीलता, उम्मीदों, मुहब्बतों, और खुशियों पर निर्भर है । बहरहाल मालिन उर्फ वन परी उसे इंसानी बस्तियों में पनपने
का अवसर देती है ताकि वो इंसानों की तरह से खुशियां और उम्मीदें ढूंढ सके, अपने अंदर या अपने बाहर । गांव में उसका कोई नाम नहीं है , वो भटकता है, आस के लिए , खुशियों के लिए और अंततः सृजनशीलता के लिए । युवती, यानि कि उसकी सृजनशीलता या उसके सृजन का सौन्दर्य, या उसकी प्रेरणा, सकुरा ।
वो सकुरा से मिलता है और उसमें सकुरा की स्थायी संगत के भाव
जागते हैं । पूछ जाने पर वो सकुरा को अनायास ही अपना नाम योहिरो कह देता है । योहिरो
माने उम्मीद, जबकि इससे पहले उसका कोई नाम नहीं था । कथा
कहती है कि उसका स्वभाव बिल्कुल सकुरा के स्वभाव जैसा है । प्रतीकात्मक रूप से उसके
प्रणय प्रस्ताव पर सकुरा के मौन को, सकारात्मकता, सृजनशीलता के पूर्व, चिकित्सीय प्रभावशीलता के प्रतीक्षा काल जैसा
माना जा सकता है।योहिरो को सकुरा चाहिए और सकुरा को योहिरो, यानि कि पुरउम्मीद होना । बेशक उन्हें मालिन उर्फ वन देवी के
सहयोग से यकजा होने का मौका मिलता है । अब वो दोनों खिलखिलाते हैं, महकते हैं, लुभाते हैं इंसानों को, उनकी ज़िंदगी, क्षणभंगुर है पर वो दुनिया भर के लोगों की खुशियों की वज़ह बनते हैं । वास्तव में उन दोनों
का साथ, युद्ध की विभीषिका, इंसानों के हताहत होने और द्विवर्गीय समाज की अमानवीय, असमता मूलक, श्रेष्ठता और हीनता का प्रतिकार करता है ।