अर्वाचीन समय की
बात है जब एक दैत्य महामार्ग में यात्रा कर रहा था । अचानक उसके सामने एक अनचीन्ही
सी मनुष्य आकृति खड़ी हो गई और बोली, रुको एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाना । क्या, दैत्य
चिल्लाया एक तुच्छ प्राणी, जिसे मैं अपनी चुटकी से मसल सकता हूं
, मेरा रास्ता रोक रही है । इतना दुस्साहस पूर्ण बोल बोलने की
हिम्मत कैसे हुई , तुम कौन हो ? उसने कहा, मैं मृत्यु हूं । कोई भी मेरा प्रतिरोध नहीं करता,
सभी मेरे निर्देशों को मानते हैं । किन्तु दैत्य ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया । उसने
मृत्यु से, धक्का मुक्की शुरू कर दी । यह एक लंबा और हिंसक
युद्ध था । अंततः दैत्य ने मृत्यु को, अपने मुक्के से नीचे
गिरा दिया और महामार्ग पर आगे बढ़ गया ।
लेकिन एक दिन किसी
ने उसे बाँध कर अपने काँधे पर टांग लिया और कहा चलो मेरे साथ तुम्हारे मरने का समय
हो चुका है । इस धरती पर तुम्हारे दिन पूरे हुए । क्या ? युवक चिल्लाया, तुम अपना
वादा तोड़ रही हो । तुमने तो कहा था कि तुमसे पहले, तुम्हारे सन्देश वाहक मुझ तक
आयेंगे, मगर तुम खुद ही आ गईं, तुम्हारे किसी सन्देश वाहक को मैंने आज तक देखा ही
नहीं । शांत हो, जाओ मृत्यु ने कहा । क्या मैंने एक से ज्यादा सन्देश वाहक तुम तक
नहीं भेजे ? क्या तुम तक बुखार नहीं पहुंचा, जिसके कारण से तुम कांपने लगे थे । क्या
तुम्हारे सिर तक भारीपन नहीं पहुंचा ? क्या तुम्हें चक्कर नहीं आये ? क्या
तुम्हारे अंगों तक टूटन नहीं पहुँची ? क्या तुम्हारे कान नहीं बजते थे ? क्या
तुम्हारे दांतों तक दर्द नहीं पहुंचा था ? क्या तुम्हारी आँखों के सामने अन्धेरा
नहीं छा जाता था ?
इस सबके अलावा,
क्या तुम्हें हर रात, मेरी बहन नींद ने, मेरी याद नहीं दिलाई ? ये सुन कर वो युवा, मृत्यु को कोई जबाब नहीं दे सका और अपनी
नियति को स्वीकार कर, मृत्यु के साथ चल
पड़ा ।
संकेत देती है मृत्यु पर हम ध्यान नही देते .
जवाब देंहटाएंजी
हटाएंइस कहानी में पहले ही अंदाजा हो गया की मृत्यु का संदेश वाहक कौन था | लेकिन बच्चो को ये कहानी नहीं सूना सकते हैं वो उसका मतलब कुछ और ही निकाल सकते हैं | हम अपना किस्सा लिखते हैं फेसबुक पर |
जवाब देंहटाएंसही
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