रविवार, 16 जून 2019

मानुष तन

ईश्वर को सृष्टि की रचना करते हुए प्रत्येक प्राणी के जीवन की अवधि तय करना थी  गधे ने ईश्वर से पूछाप्रभु मैं कितने दिन जिऊंगाईश्वर ने कहा तीस बरसठीक हैआहये तो बहुत लंबा समय है। आप मेरे दर्दनाक अस्तित्व के बारे में सोचिये तो सहीसुबह से लेकर रात तक बोझ ढोना । कारखानों तक मक्के के बोरे पहुंचाना । जब दूसरे प्राणी रोटियां खायेंगे हसेंगे मुस्करायेंगे तब मैं धक्के और लातें खाता रहूँगा । कृपया मुझे इतने लंबे जीवन से मुक्ति दो । ईश्वर ने करुणावश उसकी जीवनावधि घटा कर अट्ठारह बरस कर दी । गधा ये सुनकर खुशी खुशी वहाँ से चला गया ।

इसके बादश्वान ईश्वर के पास पहुंचा तो ईश्वर ने उससे पूछा गधे के लिए तीस बरस का जीवन पर्याप्त था । क्या तुम इससे संतुष्ट होओगेश्वान ने कहा,आप सोचिये तो सहीमेरे पास भौंकनेभागने और काटने के सिवा कोई काम नहीं । अगर मैं काटते हुए अपने दांत खो दूं तोअगर मैं भौंकते हुए अपनी आवाज़ खो दूं तोमेरे पास इधर उधर भागने और गुर्राने के अलावा क्या विकल्प शेष रह जाएगाईश्वर ने उसकी बात पर विचार करते हुएउसे बारह बरस की आयु प्रदान की और श्वान वहाँ से संतुष्ट होकर चला गया ।

अब ईश्वर ने बंदर से पूछाक्या तुम्हें तीस साल की जिंदगी पर्याप्त हो जायेगीतुम्हारे पास गधे और श्वान जैसा कठिन काम भी नहीं होगा। तुम इसे मज़े से गुज़ार सकते हो । नहीं मेरा प्रकरणउन दोनों से अलग है प्रभुबंदर ने कहा । जब खिचड़ी मिलती है तो मेरे पास चम्मच नहीं होता । मुझे तरह तरह से मुंह बना कर लोगों का मनोरंजन करना पड़ता है । जब वे लोग मुझे सेब देते हैं तो वो खट्टा होता है । अक्सर मेरी उदासी, मेरे अभिनय के पीछे छुपी रह जाती है । तीस बरस की आयु मेरे लिए बहुत ज्यादा है । इसे कम कर दीजिए । ये सुनकर ईश्वर ने बंदर की जीवनावधि दस वर्ष कर दी ।

सबसे अंत में स्वस्थ, हर्षित, पुलकित, मनुष्य ईश्वर के पास आया और उसने ईश्वर से अपने लिए आयु तय करने की मांग की है । ईश्वर ने कहा क्या तुम्हारे लिए तीस बरस काफी होंगे? इतना कम समय, मनुष्य ने कहा जब मैं अपने लिए घर बनाऊंगा । अपने स्वस्थ जीवन के लिए चूल्हा जलाऊंगा । जब मैं अपने लिए फूल और फल के पौधे लगाऊंगा, तब तक मेरा समय खत्म हो जाएगा । जबकि मैं उस समय अपने जीवन के मजे लेना चाहूंगा । हे, ईश्वर मेरी जीवनावधि बढ़ा दी जाए । ईश्वर ने कहा, ठीक है, मैं इसमें गधे के बारह बरस और जोड़ देता हूं । लेकिन ये, पर्याप्त नहीं होगा, मनुष्य ने कहा । ये सुनकर ईश्वर ने कहा, ठीक है, मैं इसमें श्वान के अट्ठारह बरस और जोड़ देता हूं । ओह...ये फिर भी कम होगा, मनुष्य ने कहा । तब ईश्वर ने कहा, अच्छा तो तुम्हें बन्दर के दस बरस भी मिल जायेंगे । यह सुनकर मनुष्य वहाँ से चला गया हालांकि वो सत्तर बरस की आयु से संतुष्ट नहीं था । क्योंकि उसे उम्मीद थी कि ईश्वर बंदर द्वारा त्यागे गए पूरे बीस वर्ष उसे दे देगा ।

इसके बाद से मनुष्य सत्तर बरस जीने लगा, जिसमें से पहले तीस बरस उसका अपना मानव जीवन होता है, जिसे वो शादी करके, आनंद उठा कर और स्वस्थ रहकर गुज़ारता है और अगले बारह बरस वो, गधे की तरह से दूसरों का बोझ ढोता है। जिसकी एवज उसे ठोकरें और लातें खानी पड़ती हैं । इसके बाद वो अट्ठारह बरसों तक श्वान की तरह से एक छोर से दूसरे छोर भागता और गुर्राता फिरता है या किसी कोने में पड़ा रहता है क्योंकि उसके दांत उसका साथ छोड़ चुके होते हैं या भोथरे हो जाते हैं । अगले दस बरस मनुष्य, बंदर की तरह कमजोर दिमाग मूर्ख और नादान काम / अभिनय करने वाला बन जाता है । इस समय वो बच्चों के हास्य / उपहास का विषय हो जाता है । 

ये कथा मनुष्य और अन्य जीवधारियों की तुलनात्मक लालसाओं / दुःख सुख / अपेक्षाओं का बयान करती है । कथा मूलतः विभिन्न जीवों के जीवन-वृत्त के पर्यवेक्षण पर आधारित है, जिसका सार संक्षेप ये है कि नश्वरता अपरिहार्य है । मनुष्य के बरक्स शेष सभी जीव अपने जीवन की जटिलताओं से दु:खी हैं, अस्तु अपनी उम्र के वर्षों / जीवनावधि में कटौती चाहते हैं, किन्तु मनुष्य अपने लिए सुदीर्घ जीवन की कामना करता है । उसकी लालसा अंतहीन है । वो दूसरे जीवों द्वारा त्यागी गई आयु को अपनी आयु के साथ जोड़ते जाने की जुगत में है, कदाचित अंतिम क्षण तक संतुष्ट भी नहीं । इस आख्यान की कहनीयता में उपस्थित ईश्वर, सृष्टि के जीवों की जीवन मृत्यु के अन्तराल को सुनिश्चित करना चाहता है । 

ईश्वर द्वारा प्रथम आहूत गधे के दुःख, बोझ और शारीरिक पीड़ा पर आधारित है जबकि श्वान लम्बे जीवन काल में अपने अंगों के भोथरे / व्यर्थ  हो जाने की आशंका से ग्रस्त है । लेकिन बन्दर अपने अभिनय की पृष्ठभूमि में छुपी उदासी का तर्क रखते हुए अपनी आयु कम करवाना चाहता है । अतः ईश्वर इन तीनों की जीवन मृत्यु के अन्तराल में क्रमशः बारह और अट्ठारह, बीस वर्षों की कटौती कर देता है । बहरहाल मनुष्य की लालसा है कि वो घर बनाये, स्वस्थ जीवन के लिए चूल्हा जलाये, फूल पौधे लगाए और जीवन के मजे लूटे । ईश्वर उसकी लालसाओं को देख कर गधे और श्वान और बंदर के समेकित चालीस बरस उसके जीवन में जोड़ देता है । लेकिन मनुष्य अतिरिक्त आयु पाकर भी खुश नहीं है उसे बन्दर के बचे हुए दस वर्ष भी चाहिये थे । 

आख्यान कहता है कि मनुष्य, स्वयं के इतर, दूसरे जीवों की तरह से जीवन भी जीता है क्योंकि उसकी आयु में उन जीवों की आयु  सम्मिलित है । वो दूसरे जीवों से बेहतर जीवन स्थिति में है किन्तु संतुष्ट नहीं... 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें