शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018

परिंदों के रंग

जल प्रलय के दौरान पानी में डूबती उतराती, ईश दूत नूह की नौका, बारिश के थमने के कई दिन बाद बमुश्किल धरती के किसी ऊंचे स्थान पर जा पहुंची जोकि पानी का स्तर कम होने के कारण पानी की सतह पर उभर आया था, तब नौका के मस्तूल पर मौजूद परिंदे, धरती को देखकर, इतने उत्साहित हो गए कि उन्होंने आकाश की ओर ऊंची उड़ान भर दी, जहां उन्हें इंद्र धनुष दिखाई दिया, उड़ान भरते परिंदे, इंद्र धनुष के विविध रंगों से होकर गुज़रे, जिसके कारण से उनके पंख / जिस्म, उन्हीं रंगों में रंग गए ! यानि कि किसी परिंदे की रंगत सुर्ख लाल, किसी की रंगत चटख नील वर्ण और कोई परिंदा सुनहरे / पीले रंगों में रंग गया, बस ऐसे ही सारे परिंदों ने अलग अलग रंगत पाई...  

 

 जल प्रलय का यह आख्यान सगरे जगत में बहु-प्रचलित और बहु-श्रुत आख्यान है, हिन्दू, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी धर्मावलम्बियों में जल प्रलय के उपरान्त सिरजनहारे ईश के प्रिय दूत मनु या नूह की संततियों द्वारा धरती में इंसानों के पुनर्जीवन / पुनर्बसाहट की चर्चा की गयी है ! इतना ही नहीं अलास्का, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया,चीन, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, कम-ओ-बेश पूरी दुनिया में जल प्रलय के मिथक कहे सुन जाते हैं ! इसके इतर कतिपय आदिम समाजों में इन्द्रधनुष के माध्यम से धरती, प्रकृति और परिंदों के रंग बिरंगे होने के कथन किये गए हैं ! किन्तु यह अनोखा घालमेल है जो मनु / नूह / अन्यान्य ईश प्रिय दूतों की नौका विचरण के अंतिम चरण में धरती के किसी उच्च शिखर पर नाव के जा टिकने की संभावना से उत्साहित परिंदों और इन्द्रधनुष को लेकर रंगों के बिखरने निखरने का कथन किया गया है !

 

कथा कहती है कि लम्बे समय तक हुई वर्षा से धरती जलमग्न हो गई थी और वर्षा थमने के बाद जल का स्तर घटने से, कोई पर्वत शिखर सर्वप्रथम इंसानों / परिंदों की पुनर्बसाहट की संभावनाओं को लेकर प्रकटित होता है, ऐसे में लम्बे समय तक नाव के भरोसे अथाह जल राशि में उतरते / तिरते / भटकते, जिन्दा रह पाए, इंसानों और परिंदों का उत्साह स्वभाविक है ! उनमें से अधिकांश मूलतः थल / वन / आकाश जीवी हैं अतः अटूट वर्षा / बादलों से मुक्त आकाश और जल मुक्त धरती के संकेत उनके लिए अनुकूल / सहज पुनर्जीवन का सन्देश लाते हैं ! यह समय सूर्य के खुलकर चमकने और वर्षा के समापन का संधिकाल है सो इन्द्रधनुष की उपस्थिति और उसके बिखरे निखरे रंगों के दरम्यान उड़ान भरते, उत्साही परिंदों के रंगमय हो जाने का उल्लेख, प्रकृति और प्राकृतिक जीव जंतुओं के परस्पर अनुकूलतम हो जाने के जैसा है...