गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

निर्विवाद मुखिया

एक बार की बात है, जब कौव्वा, चील, उल्लू और बड़ा नील बगुलापरिंदों के मुखिया बनने की होड़ में लगे हुए थे ! बैठक के दौरान ज्यादातर परिंदों का विचार था कि किसी छोटे परिंदे को यह मौक़ा मिलना चाहिए, लेकिन नील बगुला इस बात से सहमत नहीं था, क्योंकि वो स्वयं भी मुखिया बनने का इच्छुक था ! बहरहाल बैठक में बगुले को परीक्षा स्वरुप यह जिम्मेदारी दी गयी कि वह सारे परिंदों को मछलियां वितरित करे ! इस पर बगुले ने तय किया कि वो परिंदों को उनके आकार के हिसाब से मछलियां बांटेगा, यानि कि छोटों को छोटा और खुद जैसे बड़ों के लिए बड़ा टुकड़ा !

चील ने चिल्लाकर इस निर्णय का विरोध किया और मछली के एक बड़े टुकड़े पर अपने पंजे जमा दिए ! चूंकि चील और बगुला सभी परिंदों के लिए न्याय सम्मत नहीं थे और उनमें अधैर्य / उतावलापन भी था, सो उन दोनों को प्रतियोगिता से बाहर का रास्ता दिखा दिया ! अब, कौव्वा और उल्लू  ही मुखिया बनने की दौड़ में शेष रह गए थे ! इसके बाद ज्यादातर परिंदों ने कहा कि, उल्लू सिर्फ रात में जागता है तो फिर दिन में परिंदों की रक्षा और नेतृत्व कैसे करेगा ? यही वज़ह थी कि सारे परिंदों ने सर्वसम्मति से कौव्वे को अपना मुखिया चुन लिया...

हमें यह विश्वास है कि लोक आख्यानों में तत्कालीन समाज की पर्यावरणीय समझ और संचित ज्ञान / बोध का प्रकटीकरण होता है ! जैसा कि इस आख्यान में परिंदों के हवाले से निर्विवाद नेतृत्व की चर्चा और विविध वर्णी / बहु-जातीय समाज में आकार के बड़प्पन से छुटकारे की कामना के अंतर्गत नन्हें परिंदों को नेतृत्व देने की वकालत की गयी है, लेकिन बड़े परिंदे अपने दावे का परित्याग करने के लिए सहमत नहीं थे ! बहरहाल नेतृत्व के परीक्षण का दांव खेला गया, जिसके फलस्वरूप नील बगुला और चील, निज स्वार्थ सिद्धि की भावना के कारण स्पर्धा से बाहर हो गए ! बगुले और चील का निर्णय / व्यवहार / स्वभाव न्यायसंगत नहीं था और उनमें धैर्य की नितांत कमी थी !

 

नील बगुले और चील की समूहगत अस्वीकार्यता के बाद, नेतृत्व की होड़ में शेष रह गए उल्लू और कौव्वे की दावेदारी का निराकरण दिलचस्प है ! जन / परिंदा समूह मानता है कि उल्लू निशाचर है और वो दिन भर समाज के हित रक्षण हेतु उपलब्ध नहीं रहेगा अतः उसकी तुलना में कौव्वा बेहतर नेतृत्वकर्ता सिद्ध होगा ! अगर हम ध्यान दें तो नेतृत्व के चयन के लिए गढ़े गए छोटे छोटे उद्धरण / तर्क, नेतृत्व की दावेदारियों को अस्वीकार करने अथवा स्वीकार करने के लिए आधारभूत मानदंडों का कार्य करते हैं और इनसे परिंदों / मनुष्यों के सामाजिक जीवन के सम्बन्ध में समूह की सोच / चिंतन धारा उजागर होती है ! ज्ञान का पता चलता है ! बहरहाल इस कथा को बांचने से प्रतीत होता है कि लम्बे समय तक परिंदे और इंसान एक जैसा सोचते आये हैं ! हरेक दिन काम का और रातें आराम की...