धरती में चहुंदिश पसरे अनेकानेक जनसमूहों की तरह वे भी, अपनी जड़ों / अपनी उत्पत्ति के विवरणों को वाचिक परम्पराओं के माध्यम से सतत जीवित बनाये हुए हैं ! उनके आख्यान सामान्यतः प्रश्नोत्तर शैली में कहे जाते हैं, किन्तु उनकी ‘कहन’ की लयात्मकता, आख्यान को पद्य की श्रेणी में ला खड़ा करती है ! चीन के जनसमुदाय विशिष्ट की उत्पत्ति के इन विवरणों को गेय बना कर प्रस्तुत करने के लिए कम से कम दो या दो से अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है ! मंदरिन भाषी, ये वृत्तान्त, अपनी मौलिकता की दृष्टि से मंदरिन में ही कहे जाने चाहिये लेकिन तब, ये हमारे लिये नितांत अपठनीय हो जायेंगे और अगर इन्हें आंग्ल या हमारी ही किसी भाषा में उद्धृत किया जाये तो इनकी भाषाई मौलिकता, भले ही हाशिये पर चली गई मानी जाये, किन्तु इस स्थिति में उद्धृतकर्ता भाषाई जनसमूह के लिये, यही वृत्तान्त सहज ग्रहणीय हो जायेंगे ! अतः हमने आख्यान की मूल भावना को लेकर अपनी पूरी सतर्कता के साथ आख्यान की कथित भाषाई विशुद्धता / मौलिकता वाली अव्यवहारिकता / सैद्धांतिकता के बदले सहज ग्रहणीयता का व्यावहारिक विकल्प चुना है !
वे गाते हैं... बुरा स्वभाव लिये कौन आया ? अग्नि को भेजने और पहाड़ को जलाने के लिए ! ...बुरा स्वभाव लिए कौन आया ? जल को भेजने और धरती को नष्ट करने के लिये !...मैं जो गाता हूं , नहीं जानता ? ‘जी’ ने ये किया, उसका बुरा स्वभाव था ! उसने अग्नि भेजी और पहाड़ जलाया !...‘गरज / वज्र’ ने ये सब किया !...उसका बुरा स्वभाव था ! ‘गरज / वज्र’ ने जल भेजा धरती को नष्ट करने के लिए ! तुम कैसे नहीं जानते ?
जलप्रलय जैसी इस कथा में, पहले पहल पहाड़ों की आग को बुरा माना गया है और उसे भेजने वाली शक्ति के स्वभाव को भी ! ‘जी’ नाम की इस बुरी शक्ति ने गर्जन और वज्रपात के साथ जल भी भेजा, धरती को नष्ट करने के लिये ! यानि कि वज्रपात से पहाड़ों के जलने वाली घटना दुखदाई तो थी ही...फिर गर्जन के साथ हुई वर्षा ने इस समुदाय को ज़रूर बाढ़ पीड़ित बना दिया होगा ! बस्तियों को नष्ट कर दिया होगा !
जलप्रलय से बस्तियों और जनसमुदाय के विनाश के बाद केवल दो ही प्राणी, एक बड़े से कुम्हड़े की नाव की सहायता से अपने प्राण बचाते हैं ! ये दोनों भाई बहन हैं ! बाढ़ की समाप्ति के पश्चात, भाई अपनी बहन को अपनी पत्नि बनाने की इच्छा व्यक्त करता है किन्तु बहन इसका विरोध करती है ! जीवित प्राणी द्वय के मध्य दाम्पत्य संबंधों को लेकर हुई, लंबी बहस के उपरान्त बहन अपने भाई के सम्मुख एक सशर्त परीक्षा का प्रस्ताव करती है, जिसमें भाई की सफलता के बाद, उसे अपने भाई की पत्नि बन जाना स्वीकार करना था ! उसने कहा कि यदि तुम, घाटी के दोनों ओर के पहाड़ों को पत्थरों से जोड़ पाओगे, तो मैं तुम्हारी पत्नि बन जाऊंगी ! भाई ने अनिच्छा पूर्वक इस चुनौती को स्वीकार करके पहाड़ से नीचे पत्थरों को लुढ़का कर एक दूसरे के ऊपर व्यवस्थित करने की सोची ताकि वह घाटी के दोनों छोरों पर मौजूद पहाड़ों के दरम्यान एक रास्ता / पुल जैसा आकार बना सके, किन्तु उसके लुढ़काये हुए सारे पत्थर गहरी घाटी की लंबी घास में खो गये ! उसकी बहन उसके कार्य से संतुष्ट नहीं हुई ! परीक्षा में वो, असफल रहा!
जलप्रलय जैसी इस कथा में, पहले पहल पहाड़ों की आग को बुरा माना गया है और उसे भेजने वाली शक्ति के स्वभाव को भी ! ‘जी’ नाम की इस बुरी शक्ति ने गर्जन और वज्रपात के साथ जल भी भेजा, धरती को नष्ट करने के लिये ! यानि कि वज्रपात से पहाड़ों के जलने वाली घटना दुखदाई तो थी ही...फिर गर्जन के साथ हुई वर्षा ने इस समुदाय को ज़रूर बाढ़ पीड़ित बना दिया होगा ! बस्तियों को नष्ट कर दिया होगा !
जलप्रलय से बस्तियों और जनसमुदाय के विनाश के बाद केवल दो ही प्राणी, एक बड़े से कुम्हड़े की नाव की सहायता से अपने प्राण बचाते हैं ! ये दोनों भाई बहन हैं ! बाढ़ की समाप्ति के पश्चात, भाई अपनी बहन को अपनी पत्नि बनाने की इच्छा व्यक्त करता है किन्तु बहन इसका विरोध करती है ! जीवित प्राणी द्वय के मध्य दाम्पत्य संबंधों को लेकर हुई, लंबी बहस के उपरान्त बहन अपने भाई के सम्मुख एक सशर्त परीक्षा का प्रस्ताव करती है, जिसमें भाई की सफलता के बाद, उसे अपने भाई की पत्नि बन जाना स्वीकार करना था ! उसने कहा कि यदि तुम, घाटी के दोनों ओर के पहाड़ों को पत्थरों से जोड़ पाओगे, तो मैं तुम्हारी पत्नि बन जाऊंगी ! भाई ने अनिच्छा पूर्वक इस चुनौती को स्वीकार करके पहाड़ से नीचे पत्थरों को लुढ़का कर एक दूसरे के ऊपर व्यवस्थित करने की सोची ताकि वह घाटी के दोनों छोरों पर मौजूद पहाड़ों के दरम्यान एक रास्ता / पुल जैसा आकार बना सके, किन्तु उसके लुढ़काये हुए सारे पत्थर गहरी घाटी की लंबी घास में खो गये ! उसकी बहन उसके कार्य से संतुष्ट नहीं हुई ! परीक्षा में वो, असफल रहा!
भाई की प्रथम असफलता को देखकर, बहन ने उसे एक और परीक्षा का अवसर दिया ! उसने कहा कि दोनों पहाड़ों की चोटियों से दो अलग अलग चाकू फेंक कर, घाटी के बीच रखी म्यान में डाल देने की स्थिति में भी वह उसका प्रस्ताव मान लेगी ! अन्यथा वे दोनों अलग अलग जीवन यापन करेंगे ! भाई ने ऐसा ही किया ! इस बार वह सफल हुआ ! उसकी इच्छा पूर्ण हुई ! उसकी बहन उसकी पत्नि बन गई ! कालांतर में इस दंपत्ति को, एक संतान हुई जिसके हाथ पैर नहीं थे और वह कुरूप दिख रहा था ! बच्चे के पिता ने क्रोध में आकर अपनी संतान के टुकड़े टुकड़े कर दिये और टुकड़ों को पहाड़ के चारों ओर फेंक दिया ! किन्तु अगली सुबह जब वे जागे तो वे सारे टुकड़े, स्त्री पुरुषों में बदल गये और इस तरह से धरती पर मानव जीवन प्रारम्भ हुआ !
कथा में उल्लिखित जलप्रलय के समय, एक बड़े से कुम्हड़े की नाव का ख्याल घड़े की सहायता से पानी में तैरने जैसा लगता है, जिसमें मिट्टी के घड़े के स्थान पर कुम्हड़े का इस्तेमाल किया गया हो ! आख्यान, यौन नैतिकता के लिहाज़ से भाई बहन के संबंधों पर वर्जनायें आरोपित करने के स्थान पर दो परीक्षाओं का उल्लेख करता है, जिसके अंतर्गत एक स्त्री, पुरुष पात्र को अपने पति के रूप में वरण करने से पूर्व, उसकी निर्माण क्षमता / दक्षता को परखना चाहती है, अतः वो पहाड़ों पर सुलभ आवागमन के लिए एक पुल जैसे रास्ते की कामना करती है ! पुरुष की असफलता के बावजूद वो उसे ठुकराती नहीं है बल्कि उसे दूसरा लक्ष्य देती है ! कोई आश्चर्य नहीं कि यह लक्ष्य, पुरुष की आखेटक क्षमताओं को परखता है ! नि:संदेह वह समय आखेट द्वारा जीवन यापन के लिये उपयुक्त समय था ! इस अर्थ में वह स्त्री एक चतुर स्त्री थी, जिसने पुरुष के साथ जीवन यापन से पूर्व, उसकी जीवन यापन सामर्थ्य / योग्यताओं / क्षमताओं की परीक्षा ली !
स्पष्टतः भाई बहन के यौन / प्रणय संबंधों को लेकर किसी वर्जना के संकेत इस कथा में नहीं मिलते है, किन्तु निकट संबंधों से उत्पन्न विकलांग शिशु का जन्म एक बड़ा प्रतीक है ! यह कथा शिशु के टुकड़ों से अनेकों पुरुषों और स्त्रियों के बन जाने की बात कह कर महाभारत के कौरवों के जन्म को अनायास ही स्मरण करा देती है ! भले ही, काल और स्थान तथा जनसमुदाय विशेष को लेकर इन दो घटनाओं में कोई सीधा सम्बंध नहीं है ! इस आख्यान को बांचते हुये एक प्रतीति, निरंतर होती रही कि, कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘द ब्ल्यू लैगून’ भी इस लोककथा से प्रेरित रही हो...
स्पष्टतः भाई बहन के यौन / प्रणय संबंधों को लेकर किसी वर्जना के संकेत इस कथा में नहीं मिलते है, किन्तु निकट संबंधों से उत्पन्न विकलांग शिशु का जन्म एक बड़ा प्रतीक है ! यह कथा शिशु के टुकड़ों से अनेकों पुरुषों और स्त्रियों के बन जाने की बात कह कर महाभारत के कौरवों के जन्म को अनायास ही स्मरण करा देती है ! भले ही, काल और स्थान तथा जनसमुदाय विशेष को लेकर इन दो घटनाओं में कोई सीधा सम्बंध नहीं है ! इस आख्यान को बांचते हुये एक प्रतीति, निरंतर होती रही कि, कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘द ब्ल्यू लैगून’ भी इस लोककथा से प्रेरित रही हो...
विचारोत्तेजक।
जवाब देंहटाएंये चीनी लोक कथा,यथार्थ का पुट लिए हुए है. इसमें प्रकृति के कौतुकों का तार्किक विश्लेषण भी है.
जवाब देंहटाएंभाई-बहन सम्बन्ध में वर्जना तो है ही (बहन के शर्त रखने के माध्यम से )...ये भी संदेश है कि अगर जबरदस्ती सम्बन्ध बनाए गए तो बच्चों में जेनेटिक विकार होंगें.
जबकि इस तथ्य का वैज्ञानिक विश्लेषण कई वर्षों बाद हुआ होगा.
( BTW ब्लू लैगून फिल्म देखी तो नहीं है...पर इसके नायक-नायिका शायद भाई-बहन नहीं थे.)
भाई बहन के संबंधों की वर्जना को आप शर्तों से जोड़ रही हैं जबकि हमने उसे स्त्री की चतुराई से जोड़ा है जिसमें वह अपना वर चुनने से पहले उसकी जीवन दक्षता से संतुष्ट हो लेना चाहती है ! बाकी आपकी टीप से सहमति !
हटाएंफिल्मों के मामले में हम आप और आपके सखि दल को चैम्पियन मानते हैं इसलिए कृपा करके फिर से पुष्टि करें :)
भाई बहन के संबंधों की वर्जना को आप शर्तों से जोड़ रही हैं जबकि हमने उसे स्त्री की चतुराई से जोड़ा है
हटाएंलीजिये वो चतुर है, तभी तो उसने शर्त रखी...:)
ये फिल्म तो हमारे बचपन की है...तब बड़ी चुनिन्दा फिल्मे ही दिखाई जाती हीं...इसलिए सहेलियाँ भी मदद नहीं कर पाएंगी :)
पर गूगल ने मदद कर दी...फिल्म में वे भाई -बहन नहीं थे,कजिन भी नहीं....पर जिस कहानी पर ये फिल्म आधारित है...उस कहानी में वे कजिन थे. और कजिन से शादी तो हमारे देश के दक्षिण क्षेत्र में आज भी है.
आज भी प्रचलित है*
हटाएंआपका सुझाव मान लिया गया है !
हटाएंभाई-बहन सम्बन्ध में वर्जना का भाव तो उपस्थित है। चतुरता से चुनाव का आशय तो तभी माना जाता जब एकाधिक पुरूष अथवा प्रतिस्पृद्धि अन्य कोई पात्र विवाह के लिए उपस्थित होता। शर्ते भी यही अर्थ उद्घाटित कर रही है कि जैसे एक पहाड से दूसरे पहाड को घाटी पाट कर मिलाना असम्भव है वैसे ही यह सम्बंध भी। जैसे गहरी घाटी में पडी मयानों में चाकू पिरो देना दुर्गम है वसे ही यह सम्बंध भी। शर्तों का यही संदेश हो सकता है। उसके उपरांत, चाकू को संयोग से म्यान पिरोना सम्भव दर्शाया गया है उससे भी यही संदेश उभारा गया है कि परिस्थितिवश संयोगिक सम्भावनाओं को विवशता से व्यवहार में लिया जाय।
हटाएंदिक्कत ये है कि हम सभी समाजों में भारतीयता की मर्यादा को देखने का यत्न करते हैं ! अनेकों समाज ऐसे हैं जहां भाई बहन के प्रणय संबंधों को प्राथमिकता दी जाती है ! आशीष जी ने अपनी टिप्पणी में इसका उल्लेख भी कर दिया है ! इस आख्यान के लिए आप और रश्मि रविजा द्वारा उल्लिखित वर्जना की संभावना भी ठीक हो सकती है और दूसरी संभावना भी ! मैंने दूसरी संभावना पे बल दिया क्योंकि भाई के आग्रह को बहन ने ठुकराया ही नहीं उसने केवल उसकी दक्षता की परीक्षा ली और उसमें फेल होने के बाद दूसरा अवसर भी दिया ! यदि भाई दूसरे अवसर पर भी असफल हो जाता तो ? प्रश्न ये है कि , क्या बहन उसके आग्रह को ठुकरा देती याकि उसे तीसरा अवसर भी देती ?
हटाएंबहन और भाई के संबंधों की वर्जना पर हम केवल बहन के पक्ष से चिंतन कर रहे हैं ! अगर सच में वर्जना होती तो फिर भाई के निरंतर आग्रह का क्या अर्थ हुआ ?
मिथको में भाई बहन के प्रणय संबंध की गाथाएं संख्यान्तर से नगण्य प्रायः है, और जो है वे भी अपवाद स्वरूप है। कोई सामान्य स्थिति नहीं। अगर यह आदर्श स्थिति होती तो आज पूरे संसार में प्रमुखता से प्रवर्तमान होती। अपवाद मार्ग कभी भी व्यवहारिक स्वरूप ग्रहण नहीं करता। अनेकों समाज की छोडो, आज कोई एक भी ऐसा प्रमुख समाज विद्यमान नहीं है जहाँ भाई बहन (सहोदर) के प्रणय संबंध आदर्श स्थिति में हो। आदर्श क्या सामान्य स्थिति में भी रूढ नहीं है।
हटाएं@अगर सच में वर्जना होती तो फिर भाई के निरंतर आग्रह का क्या अर्थ हुआ ?
पहली बात तो यहाँ विकल्प ही उपलब्ध नहीं है, और न कोई चारा। फिर भी इसे सहज सामान्य या रूटिन की तरह न दर्शाकर शर्तों के अधीन या किसी अन्य पात्र की अनुज्ञा (बकरी वाली कथा)से उपादेय स्वरूप दिया गया है। दूसरी बात, समस्त जीव जगत में अधिकांशतः साथी बनाने का प्रस्ताव नर द्वारा होता है और साथी का चुनाव करने कार्य अक्सर मादा करती है। मानव में भी यह प्राय: देखा जाता है।
मिथकों में भाई बहनों के प्रणय सम्बंधों की गाथायें नगण्य नहीं है ! जैसा कि मैं इन्हें बांच रहा हूं ये पूरे विश्व में / लगभग हर महाद्वीप / ज्यादातर देशों में सहज रूप से मौजूद हैं ! अतः इन्हें अपवाद कहना भी दुरुस्त नहीं है ! चूंकि ये आख्यान जनसमुदाय के लिए किसी विशिष्ट काल में कहे गये हैं तो उस समय की परिस्थितियों में उनके लिए जो आदर्श रहा होगा / उचित रहा होगा उन्होंने किया !
हटाएंअतीत में जिसे आदर्श माना गया उसे आज आप रूढ़ कह पा रहे हैं भविष्य में इसे क्या कहा जाएगा यह निश्चित नहीं है ! आदर्श / उचित होने का निर्णय समय विशेष में जनसमुदाय विशेष तय करता है अतः अलग अलग समय के , अलग अलग उचित / अनुचित निर्णयों को अलग अलग ही देखना चाहिये !
कहने का आशय ये है कि हमें आज , जो बेहतर लग रहा है , उसे हम कर रहे हैं ! उन्हें कल ( अतीत में ) जो बेहतर लगा था वे कर चुके !
ये आपने क्या किया ? किसी दूसरे देश के आख्यान वाली बकरी , आपने यहां क्यों ला दी है :)
अब आपसे एक आग्रह है , मेरा इरादा अनेकों देशों की लोक गाथायें प्रस्तुत करने का है , जिनमें भाई बहन के प्रणय सम्बंध उल्लिखित हो भी सकते हैं और नहीं भी ! मैं गाथा दर गाथा अपना अभिमत / इंटरप्रटेशन देने की कोशिश कर रहा हूं ! यदि सम्भव हुआ तो सबसे अंत में सृष्टि सृजन की इन तमाम गाथाओं में बार बार उद्धृत हुए , भाई बहन सम्बंध , आकस्मिक जलाधिक्य , जन हानि , पशु पक्षियों , देवों आदि आदि तत्वों पर एक समेकित अभिमत आलेख प्रस्तुत करने का यत्न करूंगा !
इसलिए आप कृपया , यदि उचित समझें तो , अद्यतन आलेख पर अपना अद्यतन अभिमत देते चलें , वहां भी आपको भाई बहन के सम्बंध जैसे विशिष्ट तत्व मिलते रहेंगे और अन्य तत्व भी !
-गाथायें नगण्य मैं ज्यादातर देशों की संख्या की तुलना में नहीं, उन देशों में उपलब्ध असंख्य मिथक गाथाओं की तुलना में नगण्य कह रहा हूँ इसलिए अपवाद स्वरूप है।
हटाएं-रूढ़ इसलिए कि जो भी परम्परा समाज के लिए आदर्श व व्यवहार्य होती है स्थापित हो जाती है इसी आशय से रूढ़ होना लिखा गया है न कि प्रचलित रूढ़ियों के अर्थ में। निश्चित ही उचित / अनुचित का निर्णय काल लेता है किन्तु व्यवहारिक व्यवस्था को मानव समाज लम्बे समय तक अपनाए रहता है।
-बकरी को तो उदाहरण के लिए ले आया, कि इस व्यवहार को व्यवहार्य सिद्ध करने के लिए किसी पात्र या घटना का समर्थन दर्शाया जाता है।
-मैं आपके अद्यतन आलेख पर अवश्य अभिमत देना चाहुंगा।
सामान्यतः किसी एक जनसमुदाय में 'सृष्टि सृजन' की असंख्य गाथायें नहीं हो सकतीं / नहीं हुआ करतीं ! अतः ज्यादातर देशों में 'सृष्टि सृजन' की गाथाओं की गणना भी ऐसे ही की जायेगी !
हटाएंकिसी एक जन समुदाय में असंख्य गाथायें ज़रूर होती हैं पर उन सबका विषय / मुद्दा अलग अलग होता है अतः एक मुद्दे की गाथा को अन्य मुद्दों की गाथाओं की समवेत संख्या की तुलना में अपवाद / नगण्य नहीं कहा जाना चाहिये !
इस श्रृंखला में आपका स्वागत है !
और हां इस श्रृंखला में 'तोय निमज्जन' पिछले दो दिनों से ब्लाग पर मौजूद है यदि समय हो और उचित लगे तो प्रतिक्रिया दें , क्योंकि अब एक नये आलेख को प्रकाशित करने का समय आ चुका है !
हटाएंभाई बहन के प्रणय संबंध की गाथायें तो हर जगह हैं! ग्रीक/बेबीलोन/रोमन मिथको मे तो इसकी भरमार है। भारतीय मिथको मे भी यम-यमी का उल्लेख है।
जवाब देंहटाएंकिसी समय जब आदिम कबीले दूर दूर रहे होंगे, जनसंख्या कम रही होगी तब शायद यह वर्जित नही रहा होगा।
सही ! इस तरह की गाथायें विश्वव्यापी है ! इनसे तत्कालीन समाजों / विश्व की यौन वरीयताओं का संकेत तो मिलता ही है !
हटाएंभाई बहनों में नैतिकता और सामाजिक नियम कब से स्वीकृत हैं , इस प्रकार यह लेख कुछ नहीं कहता ! अगर हम आज के नज़रिए से देखेंगे तो इस लेख को पसंद नहीं किया जा सकता ! शायद उस समय विश्व में "नैतिकता" ही न रही हो....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
सतीश भाई ,
हटाएंसामाजिक नियमों की स्वीकृति , सरकारी दफ्तरों के सर्कुलर्स जैसी शक्ल में नहीं होती इसलिए कब ? मतलब तारीख / माह या साल कहना तो बेहद मुश्किल होगा :)
हम आज के नज़रिये से देखेंगे , का मतलब यही समझ रहा हूं कि हमारे अपने समाज की नैतिकता के हिसाब से यह प्रंसग अनुचित की श्रेणी में गिना जायेगा ! वर्ना मेरी अपनी जानकारी के अनुसार और आशीष जी के कमेन्ट में इसके अनेकों देशों में उचित माने जाने के संकेत हैं !
यक़ीनन मतलब सर्कुलर से नहीं था प्रोफ़ेसर .. :)
हटाएंसमाज शास्त्र पर अध्ययन नाम मात्र का है , मगर मेरा मतलब वर्जनाओं के लागू होने के समय से है ! मुझे लगता है जब की यह किवदंतियां है उस समय शायद ही कोई सामाजिक नियम रहे होंगे फिर भी बहन भाई रिश्ते का प्रयोग किया गया है !
आपके इन लेखों से विश्व समाज पर और जानकारी में रूचि बढ़ रही है ...आशा है आप आलोक दिखाते रहेंगे !
आभार इन लेखों के लिए !
सतीश भाई ,
हटाएंशुरुवाती समाजों में रिश्तों की वो परिभाषायें मौजूद नहीं थी जैसी कि आज हम देख रहे हैं ! तब संभवतः भाई बहन का कंसेप्ट भी नहीं रहा होगा ! कालांतर में जिन्हें भाई बहन माना गया उन्हें विवाहों के लिए प्राथमिकतायें दी गईं ,इन संबंधों में वर्जनायें बाद में आईं !
एक प्रसंग से बहस उधर मुड़ी जा रही है शायद जिधर नहीं जानी चाहिए.भई-बहन के बीच आम-परिस्थितियों में ऐसा होना सदैव वर्जित है पर उस समय सृष्टि की शुरुआत में,तत्कालीन देशकाल और परिस्थिति के मद्देनज़र यह अचंभित नहीं करता.
जवाब देंहटाएं...स्त्री ऐसे संबंधों की निर्णायक पहले भी रही है आज भी,भले ही इसे कुछ लोग न माने !
संतोष जी ,
हटाएंभाई बहनों के सम्बंध सभी समाजों में वर्जित नहीं रहे हैं यहां तक कि कई समाजों में इन्हें प्राथमिकता माना जाता रहा है !
आपकी प्रतिक्रिया की दूसरी पंक्ति विचारोत्तेजक है !
नैतिकता के मापदंड पर घृणा योग्य है ,मगर कथा है तो है !
जवाब देंहटाएंकथा में ही प्रकारांतर से इन संबंधों की परिणिति को त्रासदी में दिखाया ही गया है .
सही है ! हमारी नैतिकता के मानदंड इसे घृणित मानते हैं पर कथा और कथा के इतर अनेकों समाजों में इन्हें वरीयता भी दी जाती रही है , जिसके संकेत आपको आशीष जी के कमेन्ट में भी मिलेंगे !
हटाएंकथा त्रासदी के उपरान्त टुकड़ों के जी उठने की बात कहके उसे सुखांत टच देती है ! शायद इसके आधार पर वे कोई बात कहना चाहते हों , जैसे ईश्वर को यह सम्बंध स्वीकार हैं , या कुछ और , मुझे कुछ सूझता नहीं ,पक्का कह नहीं सकता ! पर त्रासदी का रिपेयर तो है ही !
मुख्य बात यही है कि इस कथा से क्या सार्थक निकल कर आया है .मैं समझता हूँ कि जो क्रिया हुई वह वासनाजनित से कहीं अधिक परिस्थितिजनित थी !
हटाएंअली सा , आपकी कथाएं अक्सर मूंह में एक कड़वा सा टेस्ट छोड़ जाती हैं .
जवाब देंहटाएंकुछ मीठा भी खिलाया करो यार !
ब्लू लेगून में लड़का लड़की भाई बहन नहीं थे . लेकिन एक सुनसान टापू पर दोनों अकेले रह गए थे .
दोनों ज़वान होकर किस तरह प्राकृतिक रूप से एक दुसरे से जुड़ते हैं , यही दिखाया गया है इस फिल्म में . ज़ाहिर है ,मनुष्य को यौन सम्बन्ध और संतान उत्त्पत्ति के लिए किसी ट्रेनिंग की ज़रुरत नहीं होती . यह नेचुरली आ जाता है , अन्य जीवों की तरह .
ट्रेनिंग तो आधुनिक मानव को चाहिए , यौन विकारों से बचने के लिए .
डाक्टर साहब ,
हटाएंबेहतर पे सब लिखते हैं तो मैंने सोचा कि कमतर पे , मैं लिख लिया करूं :)
बहरहाल आपके सुझाव को ध्यान में रखा जायेगा ! ब्ल्यू लैगून वाले केस में ,रश्मि जी ने रिफरेंस दिया था कि वे दोनों कजिन्स थे ! मैंने सोचा भाई बहन का एलीमेन्ट ना सही , अकेले फंस गये युवक और युवती का फील तो आता ही है !
यौन विकारों के मामले में आपसे सहमत हूं ! यौन विकारों से बचने के वास्ते आपकी सलाह आधुनिक मानवों को फारवर्ड करने वाला हूं :)
देखो जी मुझे तो बस इतना पता है कि ब्लू लागून्ज़ ब्रुक शील्ड की छा जाने वाली फ़िल्म थी. मैंने भी देखी थी. इसी के नाम पर बिंग्ज़ जीन वालों ने ब्लू डेनिम की जीन्स निकाली थी जो उस उन दिनों 325 रूपये की हुआ करती थी. यह उस समय की सबसे महँगी जीन्स की पैंट थी, मैंने कई साल यह ब्रॉंड पहना बल्कि कहिये कि बिंग्ज़ कंपनी जब तक दूसरी कंपनियों से पिछड़ नहीं गई तब तक पहनी... बस्स्स.
जवाब देंहटाएंहाहाहा ! ये भी खूब रही :)
जवाब देंहटाएं☺☺☺
हटाएंमैंने ब्लू लैगून देखी है,तभी देखी थी जब देखी जानी चाहिए थी ०एक बेहतरीन फिल्म थी...
जवाब देंहटाएंबाकी कई कपि प्रजातियों में इन्सेस्ट वर्जित है मनुष्य की तो बात ही छोडिये ....
फिल्म नि:संदेह बेहतरीन थी ! मैंने भी तभी देखी जब देखी जानी चाहिये थी :)
हटाएंयहां उनकी बात हो रही है जो 'अगम्यागमन' को प्राथमिकता मानते हैं / मानते थे :)
जड़ों में, आदिम मन का भाई-चारा आसानी से बनने लगता है.
जवाब देंहटाएंसब अनुपात का अंतर है वर्ना कलह और कटुतायें भी वहीं से अपनी जगह बनाते चलते हैं !
हटाएंकभी-कभी लगता है कि ये आख्यान अनचाहे तौर पर भी फ्लैश-बैक शैली में रचित हुए/किये गए. इनमें भविष्य की घटनाओं के संकेत मिलते हैं.. यहाँ एक स्त्री और एक पुरुष का बच जाना (भाई-बहन ना भी हों तो स्त्री-पुरुष तो हैं ही) यह भी सुनियोजित प्रतीत होता है, मानो आने वाली घटना का संकेत कि भविष्य में सृष्टि का सृजन दो प्राणियों के परस्पर संबंधों से होने वाला है (अन्यथा जिस जल-प्रलय में सारी जन-संपदा विनष्ट हो गयी वहाँ केवल दो प्राणियों का बच जाना वह भी एक स्त्री एक पुरुष, एक असम्भव संयोग ही माना जा सकता है)...
जवाब देंहटाएंजिस समाज में इस लोक-आख्यान का जन्म हुआ वहाँ भी अवश्य ही भाई-बहन के यौन संबंधों की वर्जना रही होगी, अतः उसे स्थापित करने के लिए उन्हें भाई-बहन और कालान्तर में उस सम्बन्ध से विकलांग शिशु के जन्म की कथा कही गई. शिशु की विकलांगता आसन्न है इसलिए दिखाई देता है और उसे हम वर्जित संबंधों का परिणाम कह सकते हैं, किन्तु ध्यान देने योग्य बात यह है कि भविष्य में उसी शिशु के अंगों से समस्त सृष्टि निर्मित हुई. यदि वर्जित संबंधों का परिणाम कुरूप होता तो उस कुरूपताओ से इस सौंदर्य का जन्म कैसे?
अतः या तो वे भाई-बहन न रहे होंगे, या वह सम्बन्ध वर्जित/अनैतिक न रहा होगा, या उन समबन्धों में जिनसे किसी भी प्रकार सृष्टि का सृजन होता हो वह अनैतिक हो ही नहीं सकता. वर्त्तमान सन्दर्भ में देखें तो हम जिन्हें “नाजायज़ औलाद” कहते हैं, क्या वे नाजायज़ होती हैं! नहीं होतीं... समबन्धों की कृत्रिम वर्जनाओं के कारण इस प्रकार के शब्द गढ़ लिए जाते हैं!!
अपनी इस छोटी सी बुद्धि में जो भी आया वह कह दिया, ताकि सनद रहे!!
सलिल जी ,
हटाएंलोकाख्यान में निश्चित रूप से उक्त समाज की 'कतिपय मंशायें' निहित हुआ करती हैं ! इन्हें आप सुनियोजित कहना चाहें तो चलेगा !
जलप्रलय के पूर्व की यौन वर्जनाओं पर अनुमान ही लगाया जा सकता है , क्योंकि कथा इस बारे में मौन है ! तथापि विकलांग शिशु के जन्म को इसके , संकेत के तौर पर स्वीकार करने में कोई हर्ज भी नहीं दिखता ! कथा से , शिशु की विकलांगता और कुरूपता पर माता का कोई मंतव्य पता नहीं चलता किन्तु पिता का उत्तेजित होना स्पष्ट है ! शिशु अंगों के टुकड़ों से अन्य स्त्री पुरुषों के जन्म दृष्टान्त नया नहीं है इसीलिए कौरवों के जन्म का उल्लेख किया गया है ! आप अपने पहले तर्क पर अडिग रहना चाहें , तो कह सकते हैं कि अगर कीचड़ में कमल खिल सकते हैं तो कुरूपताओं से सौंदर्य का जन्म भी हो सकता है , यानि कि उस समाज में भाई बहन के यौन संबंधों की वर्जना रही होगी , ऐसी संभावना है !
छोटी बुद्धि का सवाल नहीं है , आपने काफी अच्छी व्याख्या की है ! अस्तु साधुवाद !
अली सा , आपने हमारी बात मानी , आभार ।
जवाब देंहटाएंअरे भाई फोटो वाली -- काहे छुपा रहे थे यह सुन्दर चेहरा ।
डाक्टर साहब ,
हटाएंमुझे लगा वो फूल इसका हक़दार है :)
आप सदाबहार वाले फूल हैं...!
हटाएंधन्यवाद दर्शन देने के लिए !
Engliish picture BLUE LAGOON के साथ यह पोस्ट चार्ल्स डारविन के THEORY OF EVOLUTION का संकेत देता है । बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! आपके ब्लाग पर जरूर पहुंचेंगे !
हटाएंयह बड़ी किरपा होगी आपकी !
हटाएंभाई बहन को पुरूष और स्त्री के नज़रिये से ही देखा जाना चाहिए। आज हम जिस समाज में हैं उसी की निर्धारित नैतिकता का पालन करें, सृष्टि के वक्त के संबंधों में नैतिकता ढूँढना हास्यास्पद है। ऐसा करके हम अपनी कूप मंडुकता ही सिद्ध करेंगे।
जवाब देंहटाएंखरी खरी के लिए धन्यवाद :)
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