जब पूरी दुनिया में पानी भर गया था तो ईश्वर ने उसे नये सिरे से सृजित करने का फैसला किया ! उसने दुनिया को बनाने के लिए ओबटाला को अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा और ओबटाला के साथ ओदुदुआ नाम के एक सहायक को भी ! इन दोनों के साथ एक तुमड़ी भर मिट्टी और एक चूजा भी भेजा गया ! ओबटाला और ओदुदुआ ने ईश्वर द्वारा निर्धारित अपने काम को पूरा करने के लिए एक रस्सी की सहायता से नीचे उतरना प्रारम्भ कर दिया ! रास्ते में उन्हें एक जगह रुकना पड़ा , वहां एक उत्सव चल रहा था ! दावत के इस मौके पर ओबटाला ने अत्यधिक मात्रा में ताड़ी पी ली , जिसके कारण वह नशे में धुत हो गया ! अपने मालिक को नशे में धुत देखकर ओदुदुआ ने तुमड़ी और चूजे को लेकर आगे का सफ़र अकेले ही ज़ारी रखा !
जब ओदुदुआ जल प्लावित धरती के पास पहुंचा तो उसने , तुमड़ी से मिट्टी निकाल कर बिखेर दी और चूजे को नीचे छोड़ दिया ! इसके बाद चूजा तेजी से इधर उधर ,चारों ओर भागने लगा जिसके कारण से मिट्टी और भी बिखर गई ! चूजा जिस दिशा में भी भागा , वहां मिट्टी फैलती गई और भूमि बन गई ! इस तरह से ओदुदुआ ने जहां पानी था , वहां भूमि बना दी ! उधर नशा उतरने के बाद ओबटाला ने आगे चलकर ओदुदुआ को ढूंढ लिया किन्तु जैसे ही उसने देखा कि उसका सहायक ओदुदुआ भूमि के निर्माण का काम पहले ही पूरा कर चुका है , जबकि ईश्वर ने यह काम उसे सौंपा था , तो उसे बहुत दुःख हुआ ! हालांकि ईश्वर ने उसे दुखी देखकर धरती पर बसाने के लिए मनुष्य बनाने का एक अन्य काम उसे सौंप दिया और इस तरह से धरती पर जीवन शुरू हुआ !
अफ्रीकी महाद्वीप के इस लोक आख्यान में तुमड़ी / कमंडल को संग्रह का पात्र बताया गया है तथा उसमें संग्रहीत मिट्टी से जल के ऊपर भूमि के निर्माण की कल्पना की गई है ! तुमड़ी सर्व सुलभ वनस्पति निर्मित पात्र है ! भूमि के सृजन में , उसकी उपयोगिता की स्वीकृति , ग्रामीण जीवन में उसकी उपयोगिता से सम्बंधित है ! प्रसंग में चूजे की घुमक्कड़ी / वाचालता का इस्तेमाल मिट्टी को फैलाने के लिए किया जाना रोचक भी है और लोक पर्यवेक्षण के गहन और बुद्धिमत्तापूर्ण होने का संकेत भी ! इसी प्रकार से , ऊपर से , जल प्लावित धरती पर उतरने के लिए रस्सी के सहारे को भी ग्राम्य कल्पनाशीलता का प्रतीक माना जाये !
आख्यान में दुनिया में जल प्रलय की कल्पना की गई है ! जिसके बाद ईश्वर को उस अथाह जल राशि में फिर से भूमि का सृजन करना था और मनुष्यों की नवरचना कर धरती आबाद करना थी ! यानि कि यहां सबसे पहले एक ईश्वर है , फिर उसके बाद एक जलमग्न धरती भी , जिसपर ईश्वर नया जीवन देखना चाहता है ! ईश्वर यह कार्य करने के लिए अपने प्रतिनिधि / दूत और उसके एक सहायक को चुनता है ! ईश्वरीय आदेश के उपरान्त धरती पर उतरते हुए रास्ते में उत्सव मनाये जाने की परिकल्पना की गई है , जिसमें स्वामी ओबटाला की आमोद प्रियता के संकेत मिलते हैं ! वह छक कर ताड़ी पीता है और मदहोश भी होता है ! इस प्रसंग में , स्वामी और दास के सह-अस्तित्व को ईश्वरीय अनुज्ञा / संस्वीकृति के अधीन मौजूद बताया गया है ! संकेत यह कि मनुष्यों के मध्य दासत्व की धारणा मानवीकृत होने के बजाये ईश्वरीय विधान है !
स्वामी के रूप में आतिथ्य का आनंद , ओबटाला के हिस्से आता है जबकि कर्तव्य और श्रम , दास के रूप में , ओदुदुआ के पल्ले पड़ता है ! मद्यपि ( शराबी ) स्वामी की कामचोरी पर ईश्वर उसे दण्डित नहीं करता बल्कि ‘निर्मिति श्रेय’ से वंचित रह जाने के उसके कथित दुःख की भरपाई के तौर पर , उसे मनुष्यों के सृजन की नई भूमिका भी सौंप देता है ! भले ही आगे क्या हुआ होगा , पर यह कथा मौन रहती है किन्तु अब तक वह मनुष्यों की ऊंच नीच वाली दो श्रेणियों और आनंद तथा श्रम के असमान बंटवारे को ईश्वरीय मर्जी पर आधारित बता चुकी होती है !
प्रतीक्षित, आपसे अपेक्षित ..., फिर से आता हूं.
जवाब देंहटाएंजी , ज़रूर !
हटाएंसीधे साधे लोगों की कल्पना शक्ति के अनुसार यह एक रोचक लोक कथा है...
जवाब देंहटाएंजल प्रलय की कल्पना शायद अधिकतर लोक कथाओं में शामिल हैं, ओब्टाला की आमोद प्रियता देख आजकल के अफसरों को बड़ा संतोष मिलेगा ! ईश्वर के चेलों में भी करप्शन का बोलबाला सदियों से था ! जज़र बचते ऐश करने का यह मौका शायद असली मानव की पहचान है !
आज का समय होता तो चेले स्वामियों से आगे रहते हैं , मगर दास ने अपना कर्तव्य याद रखा , उन दिनों की दास प्रथा की मानसिकता बताता है ! शक्तिशाली की गलतियों को ईश्वर आज भी माफ़ कर देता है ....
मानव कमजोरियों की बात करते अब लेखकों को शर्म आती है ....
सतीश भाई ,
हटाएंअच्छी टिप्पणी के लिए आभार !
समय के साथ मालिकों के पहनावे भले ही बदले हों पर ऐश के मामले में वो हमेशा से एक जैसे ही रहे हैं :)
चूंकि ईश्वर शक्तिशालियों के पक्ष में है इसलिए आजकल सरकारें भी यही करती हैं :)
जल प्रलय का उल्लेख बहुत व्यापक है सारी दुनिया में इससे सम्बंधित आख्यान मौजूद हैं !
जज़र को नज़र पढ़ा जाए ...
जवाब देंहटाएंआपने जैसा चाहा वैसा ही पढ़ा गया है :)
हटाएंBehad rochak tareeqese prastut kiya hai aapne!
जवाब देंहटाएंक्षमा जी ,
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया !
यह कथा पहली वाली की बनिस्पत ज़्यादा सहज लगी.ईश्वर ने कुछ मिटटी देकर जो अपना प्रतिनिधि भेजा,लगता है रस्ते में ही उस मिटटी से ऐसी हवा का कुसंग हुआ कि वह प्रतिनिधि ही लक्ष्य से भटक गया.
जवाब देंहटाएंचूजे द्वारा मिटटी के बिखेरने का आइडिया भी बड़ा रोचक रहा.चूजे ने अनजाने में ही वह श्रम कर दिया जो ओद्दुआ को करना कठिन पड़ता.यह भी बात मजेदार रही कि श्रम और आनंद का विधान ईश्वरीय ही है,मानवीय नहीं.इसीलिए आज भी यही अंतर लगातार चला आ रहा है.स्वामी और दास की प्रवृत्ति वास्तव में हमारे संचालन में नहीं है,ऊपर से ही बन के आई है !चूजे ने श्रम किया और भूमि बनाकर हम मानवों को भोगने के लिए दे दी !
संतोष जी ,
हटाएंतुमड़ी / मिट्टी / चूजा यहां तक कि दास भी लक्ष्य से नहीं भटका ! अगर कोई भटका तो , वो जिसे ईश्वर ने मालिक बना रखा था :)
ये कथा , श्रम और आनंद के असमान बटवारे के ईश्वरीय होने के संकेत देती है, जिससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि कथा के गढ़ने वालों में 'मालिक ब्रांड' लोगों का प्रभुत्व अवश्य रहा होगा :) अन्यथा इस तरह की मानवीय भूलों / निर्णयों के लिए मानव स्वयं ही जिम्मेदार है !
आज आपकी टिप्पणी में एक खास बात नज़र आई ! आप उस चूजे पे कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रहे हैं ! मतलब ये कि चूजे का अहसान सबसे ज्यादा मान रहे हैं :)
सृजन को लेकर सभी संस्कृतियों में ऐसे आख्यान है ...जल प्रलय तो एक बहुश्रुत आख्यान है -लगता है धरती पर निश्चित ही एक जलप्रलय का कोई समय रहा होगा ..कहते हैं कैस्पियन सागर एक ऐसे ही जलप्रलय से निर्मित है और यहाँ की सभ्यता कालांतर में एनी भागों तक फ़ैली और अपने साथ प्रलय की स्मृति कथा भी लेती गयी ...मगर अफ्रीकी कहानियों में भी जल प्रलय का क्या लिंक हो सकता है समझ में नहीं आ रहा :)
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ,
हटाएंआगे कुछ और कहानिया भी दूंगा , जिनमें जलप्रलय के उपरान्त सृष्टि के सृजन की बात सामने आयेगी ! उस समय अफ्रीका समेत , जलप्रलय के सारे लिंकों पर अपना अभिमत दूंगा :)
अब समझ आया, शराब के नशे के बाद निर्माण हुयी मानवता में इतने सारे विरोधाभाष क्यों है! नशा!
जवाब देंहटाएंआशीष जी ,
हटाएंअरे नहीं भाई ! उस वक़्त , शराबी तो धुत पड़ा हुआ था , जबकि उसके बिन पिये हुए नौकर ने निर्माण कार्य कर डाला ! विरोधाभाष इसलिए आया कि 'बनाना' पीने वाले को थी किन्तु 'बना' बिना पीने वाले ने दी :)
और हां ! ये बात ज़रूर पक्की है कि उसी दिन से पीने वाले बंदे , चूजे (मुर्गे) के पीछे पड़ गये हैं :)
अली सा,
हटाएंहमारा संदर्भ मानव के निर्माण से था।
"उधर नशा उतरने के बाद ओबटाला ने आगे चलकर ओदुदुआ को ढूंढ लिया किन्तु जैसे ही उसने देखा कि उसका सहायक ओदुदुआ भूमि के निर्माण का काम पहले ही पूरा कर चुका है , जबकि ईश्वर ने यह काम उसे सौंपा था , तो उसे बहुत दुःख हुआ ! हालांकि ईश्वर ने उसे दुखी देखकर धरती पर बसाने के लिए मनुष्य बनाने का एक अन्य काम उसे सौंप दिया और इस तरह से धरती पर जीवन शुरू हुआ !"
इसके अनुसार ओबटाला ने नशा उतरने के बाद मनुष्य को बनाया, कुछ खुमारी बाकी रह गई होगी! नतिजा सामने है!
आशीष जी ,
हटाएंमैं आपका आशय समझ गया था लेकिन आपसे परिहास किया ! कृपया अन्यथा ना लें ! अब इससे आगे ...
"हालांकि ईश्वर ने उसे दुखी देखकर धरती पर बसाने के लिए मनुष्य बनाने का एक अन्य काम उसे सौंप दिया और इस तरह से धरती पर जीवन शुरू हुआ"
कथा इस वाक्य पर समाप्त होती है , किन्तु अगर गौर से देखे तो इस वाक्य से ये तो पता चलता है कि ओबटाला को काम सौंपा गया और फिर धरती पर जीवन शुरू हुआ ! किन्तु इस काम को ओबटाला ने स्वयं किया कि नहीं या फिर से नौकर को काम करना पड़ा , वाला घटनाक्रम दोहराया गया ! इस वाक्य में काम सौंपे जाने और फिर काम हो जाने के बीच , काम को वाकई में करने वाले पर एक अनिश्चितता है ! कथा के इस मौन को मैंने आगे चर्चा में लिया है !
आलेख के आख़िरी पैरे में अपना निष्कर्ष कथन / अपना अभिमत , देते हुए , मैंने ये संकेत दिया था कि ईश्वर , शराबी ओबटाला को दण्डित करने के बजाये...
"उसे मनुष्यों के सृजन की नई भूमिका भी सौंप देता है भले ही आगे क्या हुआ होगा , पर यह कथा मौन रहती है"
ये भी हो सकता है कि उसने खुमार में स्वयं मानव सृजन किया हो और ये भी कि फिर से नौकर को करना पड़ा हो ! बहरहाल धरती पर जीवन शुरू हुआ !
मानवता के विरोधाभाषों पर आप दोनों ही स्थितियों में सही कहे जायेंगे !
..अब तो हम भी समझ गए हैं !
हटाएंसंतोष जी ,
हटाएंइसके लिए धन्यवाद :)
"अन्यथा ना लें ! "
हटाएंना जी, इसमे अन्यथा लेने जैसा कुछ है नही! येल्लो जी स्माईली लगा दी :-)
:)
हटाएंआपका आभार !
जवाब देंहटाएंsundar katha.ur bhi janjatiyo me issi tarah sristi ke nerman ke kathaye.mujhe gondo ke katha bhi rochak lagti hai.
जवाब देंहटाएंसिंह साहब ,
हटाएंप्रायः सभी जनजातियों में इस तरह की कथायें मौजूद हैं , जो रोचक भी हैं और उन समाजों को समझने में मदद भी करती हैं फिर गोंड तो हमारे अपने ही हैं !
मनुष्यों के मध्य दासत्व की धारणा मानवीकृत होने के बजाये ईश्वरीय विधान है !
जवाब देंहटाएंयानि की अगर यह कथा...स्वामित्व की भावना रखनेवाले ने कही है तो....इसे सही ठहराते हुए ईश्वर का विधान कह दिया गया और अगर दासवर्ग के लोगो ने कही है तो..अपनी स्थिति की मजबूरी को ईश्वरीय इच्छा कह कर संतोष कर लिया गया.
ये दास-स्वामी की प्रथा शुरू कब से हुई??...इस पर भी कोई शोध जरूर किया गया होगा...कभी उस से भी परिचय करवाएं.
फिलहाल तो अलग-अलग देशों के लोक आख्यानों का इंतज़ार है.
रश्मि जी ,
हटाएंसंतोष जी की पहली टिप्पणी के जबाब में मैंने ये बात कही थी ...
"ये कथा , श्रम और आनंद के असमान बटवारे के ईश्वरीय होने के संकेत देती है, जिससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि कथा के गढ़ने वालों में 'मालिक ब्रांड' लोगों का प्रभुत्व अवश्य रहा होगा :) अन्यथा इस तरह की मानवीय भूलों / निर्णयों के लिए मानव स्वयं ही जिम्मेदार है "
मुझे लगता है कि दास लोगों के प्रभुत्व वाली कथा ज़रूर इसके उलट होती :)
आज तो बस हलके में हाजिरी लगा देते हैं.. दो मालिकों के दो नौकरों में बातचीत का एक हिस्सा:
जवाब देंहटाएं"यार एक बात बताओ, ये प्यार करना मज़े का काम है कि मिहनत का?"
"सीधी सी बात है, मज़े का!"
"वो कैसे?"
"अरे भाई, मिहनत का होता तो ये मालिक लोग हमसे न करवाते!! खुद नशे में पड़े रहते और हमसे कहते कि जाओ हमारी बेगम के साथ ज़रा मोहब्बत करके आओ!"
/
अली सा, यह श्रृंखला (मेरी) टिप्पणियों के लिए नहीं, बल्कि मेरे सीखने के लिए है.. शुक्रिया आपका!
सलिल जी ,
जवाब देंहटाएंआपने जो सवाल उठाया है ! उसका जबाब देने से बेहतर है कि मैं आपकी हाजिरी क़ुबूल कर लूं :)
दैवीय विधानों पर सामाजिक तौर-तरीकों की छाप पड़ जाती है.
जवाब देंहटाएंजिन्होंने बनाये हों / जिनकी वज़ह से बने हों , उनकी छाप पड़ना स्वाभाविक है !
हटाएंमुझे तो यह कहानी सच लगती है। मानव को देखकर क्या यह नहीं लगता कि ओबटाला ने अत्यधिक मात्रा में ताड़ी पीकर ही मनुष्य की रचना की। अब मानव को क्या दोष दिया जाए जब भगवान ने भी अपना काम करने में आलस कर गलत व्यक्ति को सौंप दिया। फिर उस गलत व्यक्ति के ताड़ी में डूबने व काम न निपटाने की स्थिति में भी उसे सजा देने की बजाए आज के शासकों की तरह काम किसने किया यह न देखकर फिर से उसी व्यक्ति को एक और भी महत्वपूर्ण काम दे दिया। और उसने यह काम किस तरह से बला टलाई कर किया यह तो हम सब देख ही रहे हैं।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
जी.बी.
हटाएंआख्यान ये तो कहता है कि ईश्वर ने ओबटाला को दोबारा नया काम सौंप दिया गया और वो काम हो भी गया पर आख्यान ये नहीं कहता कि ओबटाला फिर से ताड़ी पीकर धुत हुआ कि नहीं ? उसने वो काम वास्तव में खुद किया कि नहीं ? हो सकता है , दूसरा काम भी ओदुदुआ को करना पड़ा हो :)
अलग-अलग लोक आख्यानो को पढ़कर यह खयाल आ रहा है कि संपूर्ण धरती कभी जल प्लावित नहीं हुई होगी। अपनी-अपनी भूमी, अपने-अपने आकाश। भांति-भांति के लोग भांति-भांति के लोक आख्यान।
जवाब देंहटाएं:)
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