tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post8682633878892737765..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: ये भूमि !उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-18020299191935527792012-05-25T22:40:40.847+05:302012-05-25T22:40:40.847+05:30:):)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-89355049681876268902012-05-25T22:06:08.426+05:302012-05-25T22:06:08.426+05:30अलग-अलग लोक आख्यानो को पढ़कर यह खयाल आ रहा है कि स...अलग-अलग लोक आख्यानो को पढ़कर यह खयाल आ रहा है कि संपूर्ण धरती कभी जल प्लावित नहीं हुई होगी। अपनी-अपनी भूमी, अपने-अपने आकाश। भांति-भांति के लोग भांति-भांति के लोक आख्यान।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-22996955210778976702012-05-25T07:40:02.845+05:302012-05-25T07:40:02.845+05:30जी.बी.
आख्यान ये तो कहता है कि ईश्वर ने ओबटाला को ...जी.बी.<br />आख्यान ये तो कहता है कि ईश्वर ने ओबटाला को दोबारा नया काम सौंप दिया गया और वो काम हो भी गया पर आख्यान ये नहीं कहता कि ओबटाला फिर से ताड़ी पीकर धुत हुआ कि नहीं ? उसने वो काम वास्तव में खुद किया कि नहीं ? हो सकता है , दूसरा काम भी ओदुदुआ को करना पड़ा हो :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-20305297957574908132012-05-25T00:43:04.247+05:302012-05-25T00:43:04.247+05:30मुझे तो यह कहानी सच लगती है। मानव को देखकर क्या यह...मुझे तो यह कहानी सच लगती है। मानव को देखकर क्या यह नहीं लगता कि ओबटाला ने अत्यधिक मात्रा में ताड़ी पीकर ही मनुष्य की रचना की। अब मानव को क्या दोष दिया जाए जब भगवान ने भी अपना काम करने में आलस कर गलत व्यक्ति को सौंप दिया। फिर उस गलत व्यक्ति के ताड़ी में डूबने व काम न निपटाने की स्थिति में भी उसे सजा देने की बजाए आज के शासकों की तरह काम किसने किया यह न देखकर फिर से उसी व्यक्ति को एक और भी महत्वपूर्ण काम दे दिया। और उसने यह काम किस तरह से बला टलाई कर किया यह तो हम सब देख ही रहे हैं।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-85045117615979985912012-05-23T07:24:35.556+05:302012-05-23T07:24:35.556+05:30जिन्होंने बनाये हों / जिनकी वज़ह से बने हों , उनकी...जिन्होंने बनाये हों / जिनकी वज़ह से बने हों , उनकी छाप पड़ना स्वाभाविक है !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-55773555027188625172012-05-23T06:52:00.272+05:302012-05-23T06:52:00.272+05:30दैवीय विधानों पर सामाजिक तौर-तरीकों की छाप पड़ जात...दैवीय विधानों पर सामाजिक तौर-तरीकों की छाप पड़ जाती है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-27438412428911080682012-05-22T06:16:40.072+05:302012-05-22T06:16:40.072+05:30:):)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-8961504559282125202012-05-22T05:33:39.836+05:302012-05-22T05:33:39.836+05:30"अन्यथा ना लें ! "
ना जी, इसमे अन्यथा ल...<i>"अन्यथा ना लें ! "</i><br /><br />ना जी, इसमे अन्यथा लेने जैसा कुछ है नही! येल्लो जी स्माईली लगा दी :-)Ashish Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02400609284791502799noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-13760694709892765352012-05-21T23:32:00.361+05:302012-05-21T23:32:00.361+05:30रश्मि जी ,
संतोष जी की पहली टिप्पणी के जबाब में मै...रश्मि जी ,<br />संतोष जी की पहली टिप्पणी के जबाब में मैंने ये बात कही थी ...<br /><br />"ये कथा , श्रम और आनंद के असमान बटवारे के ईश्वरीय होने के संकेत देती है, जिससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि कथा के गढ़ने वालों में 'मालिक ब्रांड' लोगों का प्रभुत्व अवश्य रहा होगा :) अन्यथा इस तरह की मानवीय भूलों / निर्णयों के लिए मानव स्वयं ही जिम्मेदार है "<br /><br />मुझे लगता है कि दास लोगों के प्रभुत्व वाली कथा ज़रूर इसके उलट होती :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-31580597779315137572012-05-21T22:12:44.173+05:302012-05-21T22:12:44.173+05:30सलिल जी ,
आपने जो सवाल उठाया है ! उसका जबाब देने स...सलिल जी ,<br />आपने जो सवाल उठाया है ! उसका जबाब देने से बेहतर है कि मैं आपकी हाजिरी क़ुबूल कर लूं :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-86943060770982000492012-05-21T21:36:46.837+05:302012-05-21T21:36:46.837+05:30आज तो बस हलके में हाजिरी लगा देते हैं.. दो मालिकों...आज तो बस हलके में हाजिरी लगा देते हैं.. दो मालिकों के दो नौकरों में बातचीत का एक हिस्सा:<br />"यार एक बात बताओ, ये प्यार करना मज़े का काम है कि मिहनत का?"<br />"सीधी सी बात है, मज़े का!"<br />"वो कैसे?"<br />"अरे भाई, मिहनत का होता तो ये मालिक लोग हमसे न करवाते!! खुद नशे में पड़े रहते और हमसे कहते कि जाओ हमारी बेगम के साथ ज़रा मोहब्बत करके आओ!"<br />/<br />अली सा, यह श्रृंखला (मेरी) टिप्पणियों के लिए नहीं, बल्कि मेरे सीखने के लिए है.. शुक्रिया आपका!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-49432976307976911652012-05-21T18:27:21.811+05:302012-05-21T18:27:21.811+05:30मनुष्यों के मध्य दासत्व की धारणा मानवीकृत होने के ...<b>मनुष्यों के मध्य दासत्व की धारणा मानवीकृत होने के बजाये ईश्वरीय विधान है ! </b><br /><br />यानि की अगर यह कथा...स्वामित्व की भावना रखनेवाले ने कही है तो....इसे सही ठहराते हुए ईश्वर का विधान कह दिया गया और अगर दासवर्ग के लोगो ने कही है तो..अपनी स्थिति की मजबूरी को ईश्वरीय इच्छा कह कर संतोष कर लिया गया.<br />ये दास-स्वामी की प्रथा शुरू कब से हुई??...इस पर भी कोई शोध जरूर किया गया होगा...कभी उस से भी परिचय करवाएं. <br /><br />फिलहाल तो अलग-अलग देशों के लोक आख्यानों का इंतज़ार है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-38371672748823746552012-05-21T17:20:04.248+05:302012-05-21T17:20:04.248+05:30सिंह साहब ,
प्रायः सभी जनजातियों में इस तरह की कथा...सिंह साहब ,<br />प्रायः सभी जनजातियों में इस तरह की कथायें मौजूद हैं , जो रोचक भी हैं और उन समाजों को समझने में मदद भी करती हैं फिर गोंड तो हमारे अपने ही हैं !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-42082925882994849312012-05-21T14:47:12.827+05:302012-05-21T14:47:12.827+05:30sundar katha.ur bhi janjatiyo me issi tarah sristi...sundar katha.ur bhi janjatiyo me issi tarah sristi ke nerman ke kathaye.mujhe gondo ke katha bhi rochak lagti hai.विवेकराज सिंहhttps://www.blogger.com/profile/15536634754311915828noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-3570233164207189692012-05-21T12:17:58.567+05:302012-05-21T12:17:58.567+05:30संतोष जी ,
इसके लिए धन्यवाद :)संतोष जी ,<br />इसके लिए धन्यवाद :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-7910487642622323392012-05-21T09:17:52.230+05:302012-05-21T09:17:52.230+05:30..अब तो हम भी समझ गए हैं !..अब तो हम भी समझ गए हैं !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-14758453660775058652012-05-21T06:49:05.807+05:302012-05-21T06:49:05.807+05:30आपका आभार !आपका आभार !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-61497635665806274322012-05-21T06:46:30.513+05:302012-05-21T06:46:30.513+05:30आशीष जी ,
मैं आपका आशय समझ गया था लेकिन आपसे परिहा...आशीष जी ,<br />मैं आपका आशय समझ गया था लेकिन आपसे परिहास किया ! कृपया अन्यथा ना लें ! अब इससे आगे ...<br /><br />"हालांकि ईश्वर ने उसे दुखी देखकर धरती पर बसाने के लिए मनुष्य बनाने का एक अन्य काम उसे सौंप दिया और इस तरह से धरती पर जीवन शुरू हुआ"<br /><br />कथा इस वाक्य पर समाप्त होती है , किन्तु अगर गौर से देखे तो इस वाक्य से ये तो पता चलता है कि ओबटाला को काम सौंपा गया और फिर धरती पर जीवन शुरू हुआ ! किन्तु इस काम को ओबटाला ने स्वयं किया कि नहीं या फिर से नौकर को काम करना पड़ा , वाला घटनाक्रम दोहराया गया ! इस वाक्य में काम सौंपे जाने और फिर काम हो जाने के बीच , काम को वाकई में करने वाले पर एक अनिश्चितता है ! कथा के इस मौन को मैंने आगे चर्चा में लिया है !<br /><br />आलेख के आख़िरी पैरे में अपना निष्कर्ष कथन / अपना अभिमत , देते हुए , मैंने ये संकेत दिया था कि ईश्वर , शराबी ओबटाला को दण्डित करने के बजाये... <br /><br />"उसे मनुष्यों के सृजन की नई भूमिका भी सौंप देता है भले ही आगे क्या हुआ होगा , पर यह कथा मौन रहती है" <br /><br />ये भी हो सकता है कि उसने खुमार में स्वयं मानव सृजन किया हो और ये भी कि फिर से नौकर को करना पड़ा हो ! बहरहाल धरती पर जीवन शुरू हुआ !<br /><br />मानवता के विरोधाभाषों पर आप दोनों ही स्थितियों में सही कहे जायेंगे !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-81302177236960878472012-05-21T04:49:14.911+05:302012-05-21T04:49:14.911+05:30अली सा,
हमारा संदर्भ मानव के निर्माण से था।
&quo...अली सा,<br /><br />हमारा संदर्भ मानव के निर्माण से था।<br /><br /><i>"उधर नशा उतरने के बाद ओबटाला ने आगे चलकर ओदुदुआ को ढूंढ लिया किन्तु जैसे ही उसने देखा कि उसका सहायक ओदुदुआ भूमि के निर्माण का काम पहले ही पूरा कर चुका है , जबकि ईश्वर ने यह काम उसे सौंपा था , तो उसे बहुत दुःख हुआ ! हालांकि ईश्वर ने उसे दुखी देखकर धरती पर बसाने के लिए मनुष्य बनाने का एक अन्य काम उसे सौंप दिया और इस तरह से धरती पर जीवन शुरू हुआ !"</i><br /><br />इसके अनुसार ओबटाला ने नशा उतरने के बाद मनुष्य को बनाया, कुछ खुमारी बाकी रह गई होगी! नतिजा सामने है!Ashish Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02400609284791502799noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-27598755181280916692012-05-20T15:57:48.333+05:302012-05-20T15:57:48.333+05:30आशीष जी ,
अरे नहीं भाई ! उस वक़्त , शराबी तो धुत प...आशीष जी ,<br />अरे नहीं भाई ! उस वक़्त , शराबी तो धुत पड़ा हुआ था , जबकि उसके बिन पिये हुए नौकर ने निर्माण कार्य कर डाला ! विरोधाभाष इसलिए आया कि 'बनाना' पीने वाले को थी किन्तु 'बना' बिना पीने वाले ने दी :)<br /><br />और हां ! ये बात ज़रूर पक्की है कि उसी दिन से पीने वाले बंदे , चूजे (मुर्गे) के पीछे पड़ गये हैं :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-70729544173972005002012-05-20T15:48:25.804+05:302012-05-20T15:48:25.804+05:30अरविन्द जी ,
आगे कुछ और कहानिया भी दूंगा , जिनमें ...अरविन्द जी ,<br />आगे कुछ और कहानिया भी दूंगा , जिनमें जलप्रलय के उपरान्त सृष्टि के सृजन की बात सामने आयेगी ! उस समय अफ्रीका समेत , जलप्रलय के सारे लिंकों पर अपना अभिमत दूंगा :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-49937600357387884392012-05-20T15:44:25.386+05:302012-05-20T15:44:25.386+05:30संतोष जी ,
तुमड़ी / मिट्टी / चूजा यहां तक कि दास भ...संतोष जी ,<br />तुमड़ी / मिट्टी / चूजा यहां तक कि दास भी लक्ष्य से नहीं भटका ! अगर कोई भटका तो , वो जिसे ईश्वर ने मालिक बना रखा था :)<br /><br />ये कथा , श्रम और आनंद के असमान बटवारे के ईश्वरीय होने के संकेत देती है, जिससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि कथा के गढ़ने वालों में 'मालिक ब्रांड' लोगों का प्रभुत्व अवश्य रहा होगा :) अन्यथा इस तरह की मानवीय भूलों / निर्णयों के लिए मानव स्वयं ही जिम्मेदार है ! <br /><br />आज आपकी टिप्पणी में एक खास बात नज़र आई ! आप उस चूजे पे कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रहे हैं ! मतलब ये कि चूजे का अहसान सबसे ज्यादा मान रहे हैं :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-81634696804234892862012-05-20T15:34:08.153+05:302012-05-20T15:34:08.153+05:30क्षमा जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया !क्षमा जी ,<br /><br />बहुत बहुत शुक्रिया !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-37426784603391642112012-05-20T15:33:17.937+05:302012-05-20T15:33:17.937+05:30आपने जैसा चाहा वैसा ही पढ़ा गया है :)आपने जैसा चाहा वैसा ही पढ़ा गया है :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-73033553527048043352012-05-20T15:32:34.078+05:302012-05-20T15:32:34.078+05:30सतीश भाई ,
अच्छी टिप्पणी के लिए आभार !
समय के साथ...सतीश भाई ,<br />अच्छी टिप्पणी के लिए आभार !<br /><br />समय के साथ मालिकों के पहनावे भले ही बदले हों पर ऐश के मामले में वो हमेशा से एक जैसे ही रहे हैं :)<br /><br />चूंकि ईश्वर शक्तिशालियों के पक्ष में है इसलिए आजकल सरकारें भी यही करती हैं :)<br /><br />जल प्रलय का उल्लेख बहुत व्यापक है सारी दुनिया में इससे सम्बंधित आख्यान मौजूद हैं !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.com