रविवार, 28 सितंबर 2025

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे

 

एक रियासत का शहजादा ब्याह करना चाहता था लेकिन उसे मनपसंद युवती नहीं मिल रही थी , फिर एक दिन उसकी मुलाकात जिप्सी महिला से होती है जो शहजादे को विलो दरख्त में मौजूद घोंसले से तीन अंडे लाने की सलाह देती है । शहजादा सलाह को मान लेता है और ऊंचे विलो दरख्त में चढ़कर घोंसले से तीन अंडे लेकर महल की तरफ लौटता है तभी उसे ख्याल आता है कि वो इन तीन अंडों का करेगा क्या ? ठीक उसी वक्त उससे गलती से एक अंडा फूट जाता है जिसमें से एक खूबसूरत युवती निकलती है वो शहजादे से पीने के लिए पानी मांगती हैं लेकिन शहजादा उसे पानी पिलाना भूल जाता है और युवती प्यासी ही मर जाती है । रास्ते में आगे बढ़ते हुए शहजादा दूसरा अंडा भी फोड़ देता है और उसमें से निकलने वाली युवती भी पीने के लिए पानी मांगती है जिसे शहजादा फिर से भूल जाता है और दूसरी लड़की भी प्यास से मर जाती है। इसके बाद वो तीसरा अंडा  फोड़ कर एक और युवती को अंडे से मुक्त करता है लेकिन इस बार वो लड़की को पानी पिलाना नहीं भूलता

 

इसके बाद वो लड़की दोबारा विलो के दरख्त में चढ़ जाती है और शहजादे से कहती है कि उसे लेने के लिए वो, एक रथ लेकर वापस आए । इधर जिप्सी महिला की नीयत खराब थी, तो वो सज धज कर पानी में अपना प्रतिबिंब देखती है , जहां उसे तीसरी अंडज युवती भी दिखाई देती है । ईर्ष्यावश दरख्त में चढ़ कर वो तीसरी युवती को नीचे उतार कर पानी में डुबा देती है और खुद उसके कपड़े पहन कर दुल्हन की तरह से तैयार हो जाती है ताकि शहजादा उसे ही तीसरी अंडज युवती मानकर ब्याह कर ले, हालांकि पानी में डूबते ही अंडज युवती सुनहरे शल्कों और पंखों वाली मछली बन जाती है । वापस लौटने के बाद शहजादा उस मछली को पकड़ लेता है और महल वापसी के बाद उस मछली को पका कर खाने की इच्छा प्रकट करता है लेकिन जिप्सी महिला उससे कहती है कि ये मछली जहरीली है इसे मार कर फेंक देना चाहिए । शहजादा समझता है कि जिप्सी महिला ही तीसरी अंडज युवती है तो उसकी सलाह पर मछली को मार कर बागीचे में फेंक देता है जहां कुछ अरसा बाद सेब का एक दरख्त उग जाता है । उस दरख्त में पत्ते और फल चांदी और सोने की रंगत लिए होते हैं ।

 

शहजादा उन फलों को खाना चाहता है लेकिन नकली दुल्हन बनी हुई जिप्सी महिला उसे भड़काती है और  कहती है कि ये फल जहरीले हैं इन्हें खाना मत । इस दरख्त को काट कर फेंक देना चाहिए । शहजादा उसकी बातों में यकीन करते हुए ऐसा ही करता है , तभी एक बे-औलाद दरबारी बुजुर्ग उस दरख्त की एक टहनी कंघी बनाने के लिए अपने घर ले जाता है और यह देखकर हैरान होता है कि लकड़ी का वो टुकड़ा अनायास ही खूबसूरत युवती में तब्दील हो जाता है । बूढ़ा उसे बेटी की तरह अपने घर में रख लेता है । कुछ दिनों के बाद शहजादा यह जान जाता है कि बे-औलाद बूढ़े दम्पत्ति के यहाँ एक खूबसूरत लड़की मौजूद है , वो बूढ़े से पूछता है कि ये लड़की उसे कहाँ से मिली ? बूढ़ा कहता है कि सेब के दरख्त की टहनी से । शहजादा यह सुनते ही पहचान जाता है कि ये लड़की वास्तव में तीसरी अंडज लड़की है जो रथ लेकर वापस आने वाले शहजादे का इंतजार कर रही थी । वो फौरन उस लड़की को अपनी असली पत्नि के रूप में स्वीकार कर लेता है और साजिश रचने वाली जिप्सी महिला को महल से बाहर निकाल देता है ताकि वो बतौर सजा जीवन भर सुअर चराती और पालती रहे।

 

ये आख्यान यूक्रेनी मूल का है और इसमें चार किरदार महत्वपूर्ण है , सर्व प्रथम शहजादा, जो शादी करना चाहता है लेकिन उसे मनपसंद युवती मिल ही नहीं रही है और उसे मजबूरी में एक घुमक्कड़ जिप्सी महिला से सलाह लेना पड़ती है जोकि इस आख्यान का दूसरा किरदार है जिसकी सलाह में निज स्वार्थ भी मौजूद है यानि कि यह किरदार नकारात्मक रंगत  छुपाये हुए है । इस मिथक का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण किरदार उस अंडज युवती का है जिसे नियति ने शहजादे की पत्नि बनने के लिए चुना था और जिसे टूटे हुए अंडे से प्रकट होने के उपरांत शहजादा पानी पिलाना नहीं भूलता और वो युवती साधिकार चाहती है कि शाहजादा उसे रथ में बैठाकर महल में ले जाये । बहरहाल इस मिथक में जिप्सी युवती के छल का शिकार हुई अंडज युवती, बे-औलाद बुजुर्ग की दत्तक संतान होने के उपरांत ही वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर पाती है । सो यह माना जाए कि नियति ने बुजुर्ग को सकारात्मक परिणति का उचित माध्यम माना और वो आख्यान का चौथा किन्तु महत्वपूर्ण किरदार साबित हुआ ।

 

इस कथा के अनुसार शहजादा कुलीन रक्त और सम्पन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक  वर्ग का प्रतिनिधि है किन्तु स्वयं के ब्याह को लेकर अनिश्चय की गिरफ्त में है । उसे पता ही नहीं कि उसकी मनचाही पत्नि उसे कहाँ मिलेगी ? ऐसे में उसके जीवन में मार्गदर्शिका के रूप में जिप्सी महिला का आगमन सांकेतिक रूप से बेहद दिलचस्प है । महिला घुमक्कड़ समुदाय में से है अतः उसने घाट घाट का पानी पिया होगा और दुनियादारी को लेकर उसके अनुभव, समझ सह निर्णय, अन्यान्य लोगों से कहीं अधिक परिपक्व और दूरदर्शी होंगे, यह मानना अत्यंत सहज प्रतीत होता है । शहजादा उसकी सलाह पर ऊंचे दरख्त में मौजूद आश्रय स्थल से तीन अंडज युवतियों के संपर्क में आता है किन्तु दैव विधान यह कि उसे प्रथम दो युवतियों को पानी पिलाना सूझता नहीं और वो दोनों प्यास से काल कवलित हो जाती है । तीसरी युवती पानी पीकर तृप्त और जीवित है सो वह शहजादे से कामना करती है कि उसे रथ पर महल ले जाया जाए यानि कि मायके से ससुराल गमन का सम्मानजनक प्रतीक है रथ आरूढ़ विदाई ।

 

दरख्त पर घोंसले का होना संभवतः उस जनसमुदाय की ओर प्रातीतिक  संकेत करता है जोकि जोखिम भरे वनों में दरख्तों की ऊंचाई पर घर बना कर रहता है । इस विचार से हटकर यदि हम दरख्त को ऊंचाई का प्रतीक माने तो वो युवतियाँ भी किसी जन समूह के उच्च सामाजिक वर्ग की प्रतिनिधि रही होंगी । मिथक में उल्लिखित युवतियों का अंडज होना मनुष्य जन्म के विज्ञान सम्मत होने जैसा है जैसे कि हम सभी अपनी माता के अंडे और पिता के शुक्राणुओं के अंडे में प्रवेश से जीवन पाते है। जिन्हें कथा की यह व्याख्या उचित प्रतीत न हो वो इसे दैवीयता के आलोक में बाँच सकते है तब उन्हें यह विश्वास भी करना होगा कि कथा की नायिका, पानी में तैर पाने वाली युवती नहीं रही होगी और मछली के रूप में उसकी मृत्यु से सेब का अद्भुत वृक्ष पनप सकता है । आख्यान की खलनायिका जिप्सी महिला शहजादे की पत्नि बनने के लिए तीसरी युवती को पानी में डुबा देती है पर वो मरती नहीं है । उसे मिथक में सुनहरी वेशभूषा वाली मछली बताया गया है जोकि  जिप्सी महिला के षडयंत्र का शिकार होकर भी सेब के दरख्त के रूप में कायांतरित होती है और एक बार फिर से जिप्सी महिला के छल प्रपंच का शिकार होकर लकड़ी के एक टुकड़े बतौर बे-औलाद बूढ़े की दत्तक पुत्री यानि कि संवेदनशील सहारा बन जाती है ।

 

आख्यान में जिप्सी महिला की कुटिलताओं का अंत तभी होता है जब एक बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति अपने केश सँवारने के लिए कंघी बनाना चाहता है किन्तु सेब के दरख्त की वो लकड़ी किसी और शक्ल में उसका जीवन संवार देती है । शहजादे के भ्रम टूटते है और वह अपनी वास्तविक जीवन संगिनी को स्वीकार कर लेता है परिणामस्वरूप जिप्सी युवती को उच्च कुल से बहिष्कृत होने तथा शूकर पालन जैसे निम्न वर्गीय आर्थिक कार्य में संलग्न होने का दंड प्राप्त होता है । कथा को समाज में व्यापित छल प्रपंच, अनुभव और नासमझी की रस्साकशी के आलोक में पढ़ा जाना चाहिए भले ही शताब्दियों तक जीवित वाचिक परंपरा ने इसमे अनेकों दैवीय चमत्कार जोड़ दिये हों । बहरहाल ये आख्यान सत्य की विजय और झूठ की पराजय वाली सीधी रेखा में चलकर खत्म हो जाता है ।