मुद्दतों पहले की बात है जब कलियांगेट, इंडोनेशिया में प्लेग की महामारी के कारणवश हजारों लोग मारे
गए थे। आख्यान का नायक जयाप्राण उन दिनों छोटा सा बच्चा था । उसका पूरा परिवार काल
कवलित हो गया था । अनाथ जयाप्राण बेहद खूबसूरत और हिम्मत वाला बच्चा था । कलियांगेट
के राजा को उस बच्चे पर दया आई और उसने उसे दत्तक पुत्र बतौर गोद ले लिया । बच्चे का
भाग्य कि उसे महल में जीवन यापन का मौका मिला, उसे एक योद्धा की तरह से प्रशिक्षित किया गया था । जयाप्राण, पितातुल्य राजा की उम्मीदों पर खरा उतरा । कालांतर में वो राजा
का विश्वस्त और बहादुर जवान सिद्ध हुआ ।
एक दिन संयोग वश जब वो बाजार में घूम रहा था
उसने फूल की दुकान मे एक खूबसूरत मालिन को देखा और वो उस पर मोहित हो गया। आहिस्ता
आहिस्ता उन दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं और उनकी मुहब्बत प्रगाढ़ होती गई। राजा ने
अपने दत्तक पुत्र के प्रेम को खुशी खुशी स्वीकार किया और उनकी शादी कर दी । शादी के
अवसर पर शानदार दावत दी गई । दावत समारोह के बाद जयाप्राण अपनी नवविवाहिता को लेकर
कृतज्ञता प्रकट करने हेतु पालक पिता के पास गया लेकिन यहां जो घटा उसे अनहोनी कहा जा
सकता है । राजा अपने दत्तक पुत्र की प्रेयसी, नववधु के सौन्दर्य से अभिभूत हो गया। अब, वो किसी भी कीमत पर पुत्र वधु लायोनसारी को पाना चाहता था ।
लायोनसारी को पाने का ख्याल राजा पर जुनून
की तरह से हाबी हो गया था अतः उसने सेनापति को बुलाया और कहा, जयाप्राण को रास्ते से हटा दो, सेनापति हैरान था, वो जयाप्राण को पसंद करता था पर राजा की आज्ञा
के सामने विवश था, उन दिनों तेलुक तेरिमा के जंगल में डाकुओं का आतंक फैला हुआ था। जयाप्राण को डाकुओं के सफाये के नाम से सेनापति के साथ भेजा गया। पत्नि ने पति की
सुरक्षा की कामना की और कहा कि वो अपने प्रियतम का इंतजार करेगी । जंगल पहुंचते ही
सेनापति ने जयाप्राण पर छुपकर वार किया लेकिन वो बच गया । सेनापति बार बार, कथा नायक को मारने की कोशिश कर रहा था किन्तु
नायक हथियारों के संचालन में निपुण था सो हर हमले से बच जाता था।
जयाप्राण घटनाक्रम से आश्चर्य चकित था, उसने सेनापति से पूछा
कि उसने ऐसा क्यों किया । सेनापति ने उसे राजा
की कुटिल मंशा से अवगत करा दिया । पिता की क्रूर योजना से अत्यंत दुखी और स्तब्ध था
। उसने सेनापति से कहा, मैं दक्ष सैनिक हूँ और एक ताबीज दुश्मनों से
मेरी रक्षा करता है फिर उसने अपने सिर पर पहने हुए फूल, कमर से खंजर और बांह से ताबीज को उतार दिया और सेनापति से कहा, राजा की आज्ञा को पूरा करो। अभयदान प्राप्त सेनापति ने उसकी
हत्या कर दी । युवा जया प्राण की मृत्यु से जंगल के सभी जानवर और परिंदे दुखी हो गए
। पूरे जंगल में जया प्राण की शहादत के बाद
खुशबू सी बिखर गई थी । एक सफेद शेर ने गुस्से में सेनापति को मार डाला ।
जंगल से कलियांगेट वापस लौटे सैनिकों ने नगर
जनों को सारा किस्सा कह डाला । अस्तु वे सभी दुखी और शोक संतप्त थे । लायोनसारी राजा
की कुटिलता से भयभीत और प्रियतम की हत्या से शोकाकुल थी बहरहाल उसने खुदकुशी कर ली
। कलियांगेट के नगर जन लायोनसारी की मृत देह के साथ वहां पहुंचे जहां जया प्राण निर्जीव
पड़ा था । उन्होंने दोनों प्रेमियों को एक साथ दफन कर दिया और उस जगह पर एक मंदिर बना
दिया । तेलुक तेरिमा का मंदिर आज भी उन दोनों के प्रेम और पारस्परिक समर्पण की कथा
कहता है ।
सच कहें तो इंडोनेशिया के छोटे से अंचल में
घटित अवांछित घटनाओं की चर्चा करता हुआ यह मिथक स्पष्ट करता है कि मनुष्य की यौन लालसायें, नैतिकता और सामाजिक
वर्जनाओं के समस्त बंधन तोड़ देती हैं । पितृ तुल्य राजा का अपनी ही पुत्र वधु के मोहपाश
में बंध जाना और देह लालसा के वशीभूत होकर अपने ही पालित पुत्र को मार्ग से हटाने का
आदेश देना तथा अपने पद का दुरुपयोग करना, इसी बात को सिद्ध करता है कि काम वासना सामाजिक
मर्यादाओं को तार तार कर देती है । इसमें पीढ़ी का अंतराल और नाजुक संबंध अर्थहीन हो जाते हैं ।
कथा का नायक अनाथ और अबोध था जब राजा ने उसे
दत्तक पुत्र स्वीकार किया और उसे एक योद्धा की तरह से प्रशिक्षित होने का अवसर दिया
। वो राजपरिवार के सदस्य की तरह से पाला गया । उसके पालक पिता ने कुलीनता बोध से ऊपर
उठकर फूल बेचने वाली लगभग निर्धन सुकन्या से जयाप्राण के विवाह को सहर्ष स्वीकर किया
था । यह संभव है कि उसने कथा की नायिका को विवाह से पूर्व स्वयं देखा नहीं होगा इसलिए
जब उसका दत्तक पुत्र, नायिका से राजा को मिलवाने ले जाता है तो यकीनन
वृद्ध हो चुके राजा की दैहिक लालसा प्रबल हो गई और उसने सारे रिश्ते लील लिए ।
दस्यु उन्मूलन के समय सेनापति के साथ जाते
हुए जयाप्राण ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसका पिता देह लोलुपता के चलते उसे
रास्ते से हटाना चाहता है । अनेकों हमलों से सुरक्षित कथा नायक, सेनापति से घटनाक्रम की वास्तविकता जानना चाहता है और वो पालक
पिता की अनैतिक कामना को जानकर स्तब्ध हो जाता है । वो पिता के प्रति उपकृत होने के
भाव लेकर जवान हुआ था अतः अपने सारे सुरक्षा उपकरणों का परित्याग कर देता है कदाचित
वो उऋण होना चाहता हो उस स्नेह अथवा प्रेम से जो पिता ने अनाथ बालक को दिया था । सेनापति
राजाज्ञा का पालन करता है भले ही वो अनिच्छुक रहा हो इस कृत्य से ।
सेनापति की मृत्यु के लिए एक सफेद शेर को जिम्मेदार बताया गया है प्रातीतिक रूप से शेर साहस और आक्रामकता है , योद्धा है किन्तु वो सफेद रंग का है यानि कि उसमें सुलह, शांति और न्याय जैसे संकेत अंतर्निहित माने जा सकते हैं अतः नायक की अयाचित मृत्यु तक वो हिंसक नहीं होता किन्तु राजा की अनैतिकता के पक्ष में आदेश को यथावत स्वीकार करने वाले सेनापति की हत्या कर, वो न्याय का पक्ष लेता है । सेना की वापसी के उपरांत घटनाक्रम को जान कर नगरजन दुखी होते हैं और अंतिम क्षणों में नायक के प्रति नायिका के समर्पण का अनुमोदन करते हैं । राजा के कोप की परवाह किए बिना वो नायक नायिका को ना केवल एक ही कब्र में दफनाते हैं बल्कि उनकी स्मृतियों को अमर बनाए रखने के लिए एक मंदिर भी बना देते हैं यानि कि अकाल मृत्यु को प्राप्त, नायक नायिका के अमर प्रेम और देवत्व का उद्घोष ।