उस समय गहन अंधकार और ठंडापन था, व्यापक, अंतहीन सभी दिशाओं में पसरा
हुआ ! आकाश के नीचे मौजूद, महाकाय पाषाण मेहराब में से,
आश्चर्यजनक रूप से, नन्हें जीव जागृत होने लगे,
उन्हें महसूस हुआ कि वे प्यासे हैं, वहाँ बेहद
ठंड और जीवों का आधिक्य है ! सबसे पहले जागे जीव ने कहा मुझे जल की गंध आ रही है,
मैं जल भृंग हूं...और वो मेहराब से नीचे कूद गया हालांकि छप छप की
आवाज़ काफी देर बाद आई ! दूसरे क्रम में जागृत हुए जीव ने कहा, मैं रेशम बुन सकती हूं , मैं मकड़ी हूं...इसके बाद
जागने वाला हर एक जीव, अपने अस्तित्व की घोषणा करता गया !
कुछ देर बाद जल भृंग की आवाज़ आई, उसने कहा, यहां नीचे पानी में कुछ कोमल और कुछ सख्त है, जिसमें
हमें, सँभालने का सामर्थ्य है !
यहां हम सभी के रहने लायक जगह है, कोई रस्सी, नीचे फेंको ताकि हम इसे
ऊपर खींच सकें ! मेहराब पर मौजूद अन्य जीवों ने मकड़ी से कहा, तुम कुछ करो, सो मकड़ी ने एक मजबूत जाल नुमा रस्सी
बुनी और उसे जल भृंग के पास फेंका जिसे पकड़ कर जल भृंग ने पानी के नीचे डुबकी लगाई
और जल तल में मौजूद मिट्टी, कीचड़, पाषाण
के बड़े खंड को चारों तरफ से कसकर बाँध दिया, इसके बाद उसने
पानी की सतह पर आकर, ऊपर मेहराब में मौजूद जीवों को आवाज
लगाई, खींचो, ये सुनकर सभी जीव रस्सी
को ऊपर खींचने लगे और इस तरह से जल तल में मौजूद धरती, जल की
सतह से ऊपर आ गई ! धरती के उजागर होते ही सभी जीव आकाश की मेहराब से लटकी हुई उसी
रस्सी पर रेंगते / लटकते / जूझते हुए नीचे आ गये !
यहां सभी के रहने लायक पर्याप्त जगह थी ! धरती की सतह पर
पहुंचने के बाद सभी जीवों ने अपनी प्यास बुझाई,
जिन जीवों को स्वयं के मछली होने का अहसास था वे पानी में तैर गये !
जिन जीवों को पता था कि वे उड़ सकते हैं वे धरती से आकाश की ओर उड़ान भरने लगे और
कुछ जिन्हें अपने उभयचर होने का विश्वास था वे प्रसन्नतापूर्वक कीचड़ युक्त पानी
में उतर गये, ये मेढक थे ! कहते हैं कि उसी दिन से धरती जल
की सतह पर तिरती हुई आकाश के मेहराब पर लटकी है...और जिस दिन भी रस्सी टूट जायेगी,
धरती फिर से जल तल में समा जायेगी...
ये मूल अमेरिकी इंडियंस की सृजन कथा है, जिसमें आकाश को साधने
के लिये महाकाय पत्थर के मेहराब की कल्पना की गई है, उसके बेहद नीचे जल ही जल है,
जिसके अंदर धरती डूबी हुई है ! अदभुत बात ये कि अंतरिक्ष स्थित मेहराब में, असंख्य
जीव मौजूद हैं, जो गहन नींद से जागते ही स्वयं को पहचान लेते हैं ! एक जल भृंग जो
सबसे पहले जागृत होता है, उसे जल गंध आने और फिर उसके, मेहराब से कूद पड़ने का कथन मज़ेदार
है ! जल भृंग के नीचे कूद पड़ने के काफी समय बाद, छप छप की आवाज आना, आकाश और जल
सतह की दूरी का बयान करती है ! जल भृंग द्वारा पानी की जांच पड़ताल किये जाने का
कथन बेहद रोचक है , वो थोड़े मुलायम, थोड़े सख्त पदार्थ / वस्तु के जल तल में पड़ा
होने का उल्लेख करता है !
जल भृंग विश्वास है कि जल तल में मौजूद पदार्थ में इतना
सामर्थ्य है, कि वह समस्त जीवों को संभाल सके और इतनी जगह भी, कि सभी जीव उसमें आराम
से रह सकें ! आकाशीय मेहराब के गहन अन्धकार और ठंडेपन के माहौल में, दूसरे क्रम मे
जागृत हुई जीव, मकड़ी है जो स्वयं का परिचय बुनकर बतौर देती है ! वहाँ अन्य जीव भी
जागे वे सभी अपने आत्म से परिचित हैं ! इधर जल भृंग की पर्यवेक्षणीय निष्पत्तियों
और अन्य जीवों से सहयोग के आह्वान का दौर जारी है ! जल भृंग चाहता है कि जल तल में
पड़े हुए पदार्थ / वस्तु को अन्य जीव जल तल से ऊपर लाने में मदद करें ताकि सभी
मिलजुल कर उस पर निवास कर पायें ! जल भृंग का आह्वान समस्त जीवों की पारस्परिक
सहभागिता और भविष्य के सहअस्तित्व का उदघोष है !
जल भृंग की पुकार और अन्य जीवों के आग्रह पर बुनकर मकड़ी द्वारा
एक मजबूत रस्सी का जाल बुनने का कथन दिलचस्प है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उस जाल
में जल तल की वस्तु / पदार्थ को बाँधने का दायित्व जल भृंग का है, क्योंकि वह जल
जीव है और उसके ही पर्यवेक्षण के अनुसार कोई कार्य योजना संपन्न की जाना है !
बहरहाल मज़बूत रस्सी से बांधी गई धरती को जल तल से जल की सतह तक खींचने का काम सभी
जीवों का समेकित प्रयास है, अन्ततोगत्वा ये सब उनके भविष्य को निर्धारित करने का
उपक्रम जो है ! धरती के जल सतह से ऊपर आने के बाद सभी जीवों का आकाश से नीचे उतरकर,
विशेष कर मछलियों का पानी में तैर जाना, मेढक का फुदक कर कीचड़ में उतर जाना और
परिंदों का आकाश में उड़ने लग जाना, निज व्यक्तित्व / विशिष्टताओं की पहचान के अनुरूप
दुनिया के ढूंढ लेने जैसा है !
इस आख्यान में, पाषाण के मेहराब पर आकाश के टिके होने का विवरण,
भले ही हास्यास्पद लगे पर धरती और आकाश के पार्थक्य को बयान करने के लिये संभव है
कि ये एक सांकेतिक कथन हो, जिसे ग्रहों, पिंडों, आकाशगंगाओं के एक दूसरे से
निश्चित दूरी पर बने रहने के ब्रह्मांडीय नियम, गुरुत्वाकर्षण से जोड़ कर देखा जा
सकता है ! ब्रह्मांडीय नीरवता, अन्धकार और ठंडेपन को लेकर तथा नन्हें जीवों के
सुसुप्त बने रहने और फिर किसी कारणवश जागृत हो जाने को लेकर, कथाकालीन आदिम समुदाय
का अभिमत स्पष्ट है ! ध्यान रहे कि धरती, या तो गुरुत्वाकर्षण के नियम से बंधी हुई,
इस विराट अंतरिक्ष में गतिमान है या फिर बुनकर मकड़ी के द्वारा बुने गये जाल से
बंधे रहे कर अपने मार्ग / स्थान से नहीं भटकती...वर्ना नियम / रस्सी के टूटते ही धरती फिर से...