अनेकों चन्द्र मास गुज़रे, मुखिया बीमार था ! वो इस
उम्मीद के साथ, पवित्र घाटी में जा पहुंचा कि वहाँ के वाष्पित जल के जादुई प्रभाव
से उसकी समस्या का निदान हो जाएगा हालांकि घाटी के, उस गर्म जलस्रोत में इतनी
शक्ति नहीं थी कि, उससे मुखिया की बीमारी दूर हो जाए ! गर्म पानी में नहाने, गर्म
कीचड़ अपनी देह में लपेटने, पसीना बहाने के बावजूद मुखिया की तबियत में कोई सुधार
परिलक्षित नहीं हुआ बल्कि उसकी हालत और भी बिगड़ने लगी थी ! असहनीय दर्द के कारण से
वह सो भी नहीं पाता था ! एक रात जब वो, अपने खेमे में बेचैन पड़ा हुआ था, उसकी
सुंदर पुत्री, पिता की व्यथा पर रोती हुई आई, पुत्री ने पिता का हाथ पकड़ा और उसे
घाटी से बाहर ले जाने लगी !
पुत्री को ठंडे जलस्रोत की तलाश थी, उसे यह विश्वास
था कि ठन्डे जल का जादुई असर, उसके पिता को रोगमुक्त कर देगा, पहाड़ों और गहरी
घाटियों को पार करते हुए, वो दोनों अंततः उस जगह पर जा पहुंचे, जहां चट्टानों को
चीरकर, पांच ठन्डे झरने बह / जलस्रोत फूट, रहे थे ! यहां, पुत्री ने लौकी के
तुम्बे में ठंडा जल भरकर अपने पिता के मुंह से लगा दिया ! ठन्डे और ताजगी भरे जल को
पीकर बीमार मुखिया गहरी नींद में सो गया...और जब वो नींद से जागा तो उसका दर्द
खत्म हो चुका था, उसे यातनादाई व्याधि से मुक्ति मिल चुकी थी ! अपनी प्यारी पुत्री
के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये मुखिया ने पुत्री को एक नया नाम दिया,
चेवॉक्ला यानि कि नींद का पानी...
आख्यान कहता है कि मुखिया की समस्या वर्षों पुरानी
थी, वो दर्द से तड़पता रहता, उसे मुक्ति चाहिए थी, असहनीय दर्द से मुक्ति, व्याधि
से मुक्ति ! लगता ये है कि, उसके अपने गांव में इस बीमारी का कोई इलाज़ संभव नहीं
हुआ होगा, तभी वो ऊष्म जल स्रोतों के कुंड वाली घाटी में जा पहुंचा...उसने वहाँ पर
अपना खेमा लगाया हुआ था, जिसका मतलब ये हुआ कि उसको तप्त जल कुंडों की वाष्प / कीचड़
से,समस्या निदान की उम्मीद थी और इसीलिए वो लंबे अरसे तक वहाँ रुकने की गरज़ से आया
था ! मुखिया की अपेक्षा के विपरीत, वाष्प और कीचड़, व्याधि मुक्ति में सहायक सिद्ध
नहीं हुए ! बहरहाल ये मानने में कोई हर्ज़ नहीं कि वाष्प और कीचड़ के माध्यम से
व्याधि मुक्ति की धारणा, प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली का हिस्सा है !
ये कथा, मुखिया के दर्द की असहनीयता और व्याधि से
मुक्ति की असफलता के दौर में, मुखिया की सुंदर पुत्री के आगमन का कहन करती है... पुत्री
जो पिता के दर्द में आंसू बहा रही है, पुत्री जिसे अपने पिता के स्वास्थ्य की
चिंता है, पुत्री जिसे पिता के लिये चिकित्सकीय विकल्पों की तलाश है, पुत्री जो
पिता के सेहतमंद होने के इरादे से लंबी दुर्गम यात्रायें करने के लिये तत्पर है,
पुत्री जो बीमार पिता को अपने हाथों के सहारे लेकर चलने तैयार है ! कहने का आशय ये
कि इस नाशवान दुनिया की पुत्रियां अपने पिता से बेपनाह प्यार करती हैं, उनकी फ़िक्र
करती हैं ! कथा कालीन समुदाय के मुखिया की पुत्री में निर्णय लेने की क्षमता /
साहस है, वो पिता द्वारा अब तक करवाई गई, प्राकृतिक चिकित्सा के परिणामों से
संतुष्ट नहीं है !
पिता के पास उसका आगमन, पिता के दर्द पर केवल आंसू
बहाती, थकी हारी हुई लड़की के जैसा नहीं है बल्कि वो शिद्दत से पिता को अपने हाथों
का सहारा देकर उठाती है और...निकल पड़ती है नये चिकित्सकीय विकल्प की खोज में,
उसमें पिता की सेहत के नाम पर पर्वत लांघने, घाटियाँ पार करने का हौसला है ! चूंकि
ऊष्ण वाष्प और कीचड़ की चिकित्सा पद्धति निष्फल रही थी सो ताजे, ठन्डे और मृदु जल
को चिकित्सा का माध्यम चुनने का ख्याल सहज और स्वभाविक ही माना जाएगा, लेकिन
स्पष्ट तथ्य ये कि पुत्री भी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में यकीन रखती थी ! संभव
है कि गांव छोड़कर बाहर निकलने का एक कारण यह भी हो कि वहाँ मौजूद तमाम चिकित्सा पद्धतियाँ
उनकी समस्या के निदान में विफल रही हों !
पुत्री ने ठन्डे ताजे जल स्रोत का पानी तुम्बे में
भरकर पिता को दिया, जिसे पीकर बेचैन पिता को नींद आ गई और वह व्याधि मुक्त हुआ ! यदि
हम तो चाहें पानी के ठंडेपन और ताजगी को सांकेतिक रूप से सेहत की ठंडक और ताजगी से
जोड़कर देख सकते हैं ! बहरहाल असहनीय दर्द से
मुक्ति के लिये पुत्री के प्रयत्नों से कृतज्ञ पिता उसका नया नामकरण करे तो इसमें
आश्चर्य कैसा ?