शनिवार, 23 दिसंबर 2017

मेमना


मुद्दतों पहले गरज़ और विद्युत धरती पर रहते थे, गरज़ मां भेड़ थी जबकि विद्युत उसका पुत्र मेमना, वे दोनों पड़ोसियों में बहुत अलोकप्रिय थे, अगर कोई गलती से उस मेमने को छेड़ देता तो वो आवेश में आकर, अपने सामने पड़ने वाली सभी वस्तुओं को  जला डालता, झोपड़ियाँ, मकई के भुट्टे और बड़े पेड़ भी ! कभी कभार फसलों और खेतों को नुकसान पहुंचा देता, यहां तक कि किसान भी मारे जाते ! जब गरज़ को अपने पुत्र की करतूतों का पता चलता तो वो उसे जोर से चिल्लाकर डांटती, जिससे उसके पड़ोसी और भी दुखी हो जाते, उनके लिये, पहले पुत्र मेमने द्वारा किया गया नुकसान फिर मां भेड़ की भयावह आवाज़ को बर्दाश्त करना, दूभर हो गया था !

गांव वालों ने इस मुद्दे पर राजा से कई बार शिकायतें कीं, जिसके बाद राजा ने उन दोनों को गांव के बाहर रहने का हुक्म दे दिया और कहा कि वे लोग गांव के लोगों से मेलजोल बढाने की कोशिश ना करें, उनसे दूर रहें, हालंकि इससे कोई फायदा नहीं हुआ क्यों कि विद्युत आसानी से गांव की गलियों में चलते फिरते लोगों को देख सकता था इसलिए उनके दरम्यान झगड़े, आगे भी होते रहे ! इसके बाद राजा ने माता और पुत्र से कहा कि मैंने तुम्हें बेहतर जीवन के कई अवसर दिये, लेकिन ये सब व्यर्थ हुआ इसलिए आज के बाद से तुम दोनों इस गांव से दूर निकल जाओ और जंगल झाड़ियों में जाकर रहो, हम दोबारा तुम लोगों की शक्ल भी नहीं देखना चाहते ! भेड़ और मेमने ने राजा के आदेश का पालन किया लेकिन वे ग्राम वासियों से नाराज बने रहे !      
   
गांव से निष्कासित हो जाने के कारण से मेमना गांव वालों के प्रति बैर भाव रखता था इसलिए उसने सूखे मौसम के दौरान सारी झाडियाँ और पेड़ जला डाले, जिससे गांव के लोगों के कष्ट और भी बढ़ गये ! जंगल की आग की लपटें, गांव के खेतों और घरों तक पहुंच गईं ! मां अपने पुत्र को इस तरह के कार्य से रोकने की कोशिश करती और तेज आवाज में डांटती रहती लेकिन इससे पुत्र को कोई फर्क नहीं पड़ता था ! घटना क्रम से नाराज़ राजा ने अपने दरबारियों से सलाह माँगी, उन सभी ने एकमत होकर कहा कि माता पुत्र को धरती से बेदखल कर आकाश भेज दिया जाए ! राजा ने हुक्मनामा ज़ारी कर दिया और वे दोनों आकाश में जा बसे हालांकि, उद्दंड मेमना अब भी धरती को झुलसा डालता है और उसकी मां की भयंकर गर्जना हम आज भी सुनने को विवश हैं !

आदिम सामुदायिक जीवन में यह निष्कर्ष निकाल लेना कि विद्युत के कारनामें प्रथम और आवाज़ की उपस्थिति द्वैतीयक है, ग्राम वासियों के सफल पर्यवेक्षणीय अनुभवों का प्रतीक है, अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों / आधुनिक ज्ञान के इस दौर में, हम सभी जानते हैं कि विद्युत की गति, ध्वनि की गति से तीव्र होने के कारण से ही, आकाशीय विद्युत पहले चमकती / दिखती है और उसकी गर्जना बाद में सुनाई देती है, ऐसे में आख्यान के पात्रों का यह ज्ञान / कथन अदभुत है कि, मेमना पहले शरारत करता है और उसकी मां भेड़, उसे बाद में गरज़ कर डांटती है ! हमारा अभिमत यह कि इस विषय में आदिम जगत के पर्यवेक्षणीय अनुभव और विज्ञान युग के सत्य निष्पादन / सत्योद्घाटन में लेश मात्र भी अंतर नहीं है !

कथाकालीन समाज भले ही राजतान्त्रिक है किन्तु वहाँ पर उद्दंडता / वाचालता / आपराधिक कृत्यों के विरुद्ध सुनवाई का अवसर और सहज न्याय उपलब्ध है, इस कहन में महत्वपूर्ण तथ्य ये कि उद्दंड पुत्र मेमने के साथ उसकी मां को भी दण्डित किया जाता है जबकि वह अपने पुत्र को निरंतर डांटती रहती है और कोशिश करती है कि उसका पुत्र सुधर जाए ! प्रतीत होता है कि पुत्र की आपराधिक प्रवृत्ति के लिये माता के पालन पोषण को उत्तरदाई मान कर ही ये दंड दिया जाता रहा होगा अन्यथा मां का व्यवहार, ग्राम वासियों के पक्ष में / उनके हितों के अनुकूल था, इसलिए पुत्र की शरारतों का निरंतर निषेध करती हुई मां को मिले दंड के लिये, पालन पोषण की त्रुटि के इतर, आवाज़ की तीव्रता को, उत्तरदाई मानना संभवतः उचित नहीं होगा !

जनश्रुति में उल्लिखित न्याय व्यवस्था में घोषित दंड क्रमिक और सुधारात्मक है, दोषी मेमने और उसकी पालक मां को पहले गांव के बाहरी हिस्से में रहने का निर्देश, फिर गांव छोड़कर जंगल चले जाने का निर्देश और अंततोगत्वा धरती त्याग आकाश में बस जाने का आदेश, सुधार की अपेक्षाओं के विफल होते जाने के साथ ही, दंड की बढ़ती हुई कठोरता के स्पष्ट प्रमाण हैं ! मेमने के द्वारा की गई गतिविधियों को, आकाशीय विद्युत द्वारा पहुंचाई गई, जान माल की क्षति के साथ जोड़ कर देखा जाना प्रतीकात्मक है, बहरहाल कथा सार ये है कि मेमना अपनी आपराधिक प्रवृत्ति का दास है और वो सुधारात्मक उपायों से सुधर नहीं सकता भले ही उसके शक्ति उन्माद / कारनामों का दुष्परिणाम उसकी मां / स्वजन को भी भुगतना पड़े...