शुक्रवार, 22 जून 2012

अनंत प्रेम ...!

सा-रंग नाम के कोरियाई गांव में दो फूल ऐसे थे , जो कभी मुरझाते नहीं थे , अगर उनके पास से कोई जोड़ा गुज़रता तो वे दुखी होते / क्रंदन करते ! बहुत समय पहले उस गांव में सू इल नाम का लड़का और सून एई नाम की लड़की रहते थे जो कि एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे और शादी करना चाहते थे ! लड़की का पिता एक धनी व्यक्ति था जिसे निर्धन सू इल दामाद के तौर पर स्वीकार नहीं था ! लड़की के पिता ने एक दिन सून एई को अन्य लड़के विवाह करने के लिए प्रेरित करते हुए झूठ बोला कि सू इल ने उसे धोखा दिया है , उसने किसी अन्य लड़की से विवाह कर लिया है ! चूंकि सून एई अपने पिता पर विश्वास करती थी सो उसने पिता के कहने से जुंग बेई नाम के युवक से विवाह कर लिया , हालांकि वह खुश नहीं थी !

जुंग बेई ज्यादातर अपनी मित्र मंडली में उलझा रहता , उसके अनेकों स्त्रियों से सम्बंध थे इसलिये वह अक्सर घर वापस लौटता ही नहीं था ! जुंग बेई के लिए उसकी प्रतीक्षा अंतहीन हो गई थी ! एक दिन उसने घर से बाहर अजीब सा शोर सुना , खिड़की खोलकर देखा तो उसे पता चला कि बाहर सू इल मौजूद है , उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा वह उसे पाना चाहती थी ! वह उस दो मंजिले मकान से नीचे कूद पड़ी , चोट लगने से उसे बेहद दर्द हुआ और वो बेहोश हो गई ! जब उसे होश आया तो उसने अपनी परवाह / देखभाल करते अपने परिजनों और सू इल को अपने सामने पाया ! उसे यह जानकर दुःख हुआ कि वह अब हिल डुल भी नहीं सकती और यह जानकर असीम पीड़ा हुई कि उसके पिता ने सू इल के बारे में उससे झूठ बोला था ! वह रोती रही  !  सू इल उससे मिलने प्रतिदिन आता किन्तु उसका पिता सू इल को उसे ठीक से देखने भी नहीं देता था ! 

परेशान सू इल , सून एई को लेकर अन्य कस्बे में चला गया , जहां वह लकड़ियां काटकर बेचता और सून एई के बेहतर स्वास्थ्य और जीवन यापन की चिंता करता ! सून एई भी धीरे धीरे अपने शरीर को हिलाने डुलाने का यत्न करती ! एक दिन लकड़ियां काटकर वापस आते हुए उसने गर्त / खड्ड के एक किनारे फूल खिला देखा उसे पता था कि सून एई को गुलाब बहुत पसंद हैं इसलिये उसने सून एई के लिए फूल तोड़ने की कोशिश की किन्तु दुर्भाग्यवश वह गर्त में गिरकर मर गया ! सून एई चल भी नहीं सकती थी पर पड़ोसियों की सूचना पर , पड़ोसियों के साथ , उस स्थान तक पहुंची जहां सू इल के अवशेष हो सकते थे , किन्तु वहां एक सुंदर से फूल के सिवा कुछ भी नहीं था ! उसने खाना पीना और बात करना भी छोड़ दिया ! उसे हरदम सू इल का ख्याल रहता जो अब कभी वापस नहीं लौटने वाला था ! एक दो दिन में उसकी भी मृत्यु हो गई तो उसे भी वहीं दफना दिया गया जहां वो फूल खिला हुआ था ! कुछ दिन बाद सून एई की कब्र के निशान भी मिट गये और वहां एक और फूल खिल गया जोकि हूबहू पहले फूल के जैसा था !

यह कथा , यूं तो अनंत प्रेम का सन्देश देने के लिए प्रतीकात्मक रूप से दो फूलों की अनश्वरता का सहारा लेती है , पर यह देखना / सुनना एक टीस / कसक की अनुभूति दे जाता है , कि फूल अपने पास से किसी युवा जोड़े के गुज़र जाने पर दुखी होते हैं , क्रंदन करते हैं  ! निश्चय ही उनके दुखमय जीवन प्रसंग , दु:खद जीवनांत और प्रेम से वंचित रह जाने की पीड़ा तथा अतृप्ति , फूलों के रूप में अमर हो जाने के बावजूद उन्हें कष्ट पहुंचाती है !  शायद संकेत यह कि नित्य , निरंतर खुशबुयें बिखेरने वाली अमरता के बजाये प्रेम , अपने मानवीय रूप की क्षण भंगुरता में ही , उन्हें अधिक प्रिय रहा होगा / प्रिय लगता होगा ! क्या पता ? प्रेम के अमरत्व और प्रेम की क्षणभंगुरता वाली धारणा में से अधिक सुखकर प्रतीति देने वाली संस्थिति कौन सी है ?  यानि कि तुलनात्मक रूप से बेहतर कौन ? पर फूलों के रूप में अमर हो गये , उस जोड़े का रुझान  / व्यवहार , प्रेम की क्षणभंगुरता के पक्ष में संकेत करता दिखाई देता है  !  या फिर ऐसा सोचना केवल एक  भ्रम है  ?

आख्यान , धन सम्पन्नता आधारित वर्ग भेद और समृद्ध पिता की निर्धन युवा से घृणा की वही इंगिति करता है , जो आज के दौर में भी अवांछित / अयाचित बुराई के रूप में सर्व सुलभ और समाज में सहज व्याप्त है ! पिता के द्वारा चुना गया दामाद वर्गीय समतुल्यता के चलते पिता के अहम को तोष भले ही देता हो किन्तु वह एक अनुचित वर है , उसमें सम्पन्नता जनित बुराइयां मौजूद हैं ! क्या यह संभव है कि लड़की के पिता को अपने धन श्रेष्ठ दामाद की बुराइयों का पूर्व संज्ञान नहीं रहा होगा ? या फिर वह अपनी वर्गीय अहमन्यता के चलते इन्हें बुराईया मानता ही नहीं होगा ? पुत्री से झूठ बोलकर उसका ब्याह कराने वाले पिता के पक्ष में सदाशयता के अन्य कोई तर्क दिये जाना उचित प्रतीत नहीं होते, जबकि वह दुर्घटनाग्रस्त और शरीर से लाचार हो गई , अपनी पुत्री को उसके प्रेमी के दर्शन मात्र से मिलने वाली क्षणिक / आंशिक खुशी में भी बाधक बनने का यत्न करता है ! 

इस सारे घटना क्रम में , चोट खाई पुत्री के तीमारदारों में , पिता द्वारा चुना गया वर अलोप है , अगर वह विवाहोपरांत पत्नी के पर–पुरुष अनुराग से विचलित / दुखी या क्रुद्ध हुआ होता तो कथा में इसका उल्लेख होना चाहिये था ! कथा , विवाह के फ़ौरन बाद भी लड़की के जीवन से उसकी अनुपस्थिति के ,जो कारण कहती है , वे एक आदर्श पति के लक्षण नहीं है ! वह शादी शुदा होते हुए भी पर स्त्रियों से संपर्क रखता है , नव विवाहिता के पास वापस नहीं लौटता , उसे मित्र मंडली से फुरसत नहीं है ! कुल मिलाकर वह उस लड़की के लिए सुयोग्य वर नहीं है , बल्कि लड़की के पिता की प्राथमिकता मात्र है ! आप इसे दो पीढ़ियों के दरम्यान...संबंधों और संवेदनाओं के रिक्त स्थान की तरह से देख सकते हैं !

19 टिप्‍पणियां:

  1. यह कथा दर्दनाक है और एक गहरी कसक छोडती है ...
    मन खराब हो गया...

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    1. आपका कहना सही है दुखांत प्रेम कथायें गहन टीस छोड़ जाती हैं ! मन का खराब हो जाना स्वाभाविक है !

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  2. इस आख्यान में दुखद यह रहा कि दोनों एक-दूसरे के लिए मर गए और दोनों इस बात से अनजान भी रहे.

    ...सच पूछिए,यह आज की ही समस्या नहीं है,बहुत पहले से चली आ रही है कि लोग सच्चे प्रेम को आंकने में अकसर चूक जाते हैं.प्रेम को केवल सही भावना से समझा जा सकता है न कि धन-दौलत और जाति-धर्म के बंधनों से !

    फूल खिलकर,मौन होकर बताना चाह रहे हैं कि केवल खिलकर मिट जाना ही उनकी नियति है !

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    1. संतोष जी ,
      शायद आपने ध्यान नहीं दिया ! दोनों फूल खिल कर अमिट बने रहे ! यह कथा का खास अंश है !

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    2. ...मेरा मतलब और आगे से था.खिलकर फिर अपनी स्वयं की पहचान नष्ट करना,किसी और के लिए !

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  3. पहले के तीन पैरे फूल हैं, अगले तीन हकीमी नश्‍तर ☺

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  4. सा-रंग, कोरियाई गांव नहीं अपने भारत का हिस्सा लगता है। एशियाई मूल की संस्कृतियों में गहरा सामंजस्य देखने को मिलता है...प्रेम करने और प्रेम न करने देने की इच्छा शक्ति के मामले में।:) या शायद प्रेम के प्रति यह दोहरा भाव दुनियाँ की हर संस्कृति का अभिन्न अंग हो:) जो भी हो लेकिन इन फूलों का रोते रहना अनूठा है। फूलों का रोना टीसता है और टीसते रहना भी चाहिए सभी को.. जो देखे, जो पढ़े। इस कथा का मूल संदेश भी यही है कि ऐ दुनियाँ वालों तुम सिर्फ खिलते हुए फूलों के दो जोड़ों को देखकर खुश मत हो जाओ इसके पीछे एक दर्दनाक कहानी छुपी है। ये दो प्रेमी युगल हैं जिनके प्रेम को क्रूरता के साथ मसल दिया गया। कोरिया में ये कहानी प्रचलित होगी। वे कहीं फूलों के खिलते दो जोड़ों को देखते होंगे तो उन्हें इस कहानी की याद आती होगी और यह प्रेरणा मिलती होगी कि प्रेम करना गलत बात नहीं है..प्रमियों को मिलने दो..हंसने दो..खिलने दो..फूल बनने से पहले थोड़ा जी लेने दो।

    क्षमा कीजिएगा अलि सा अभी मैने आपकी व्याख्या को ध्यान से नहीं पढ़ा। मैं तो इसी कहानी में डूब कर लिखता चला गया।

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    1. कहानी में डूब कर आपने जो भी कहा , वो पसंद आया :)

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  5. व्याख्यान का सबसे प्रिय अंश...

    नित्य , निरंतर खुशबुयें बिखेरने वाली अमरता के बजाये प्रेम , अपने मानवीय रूप की क्षण भंगुरता में ही , उन्हें अधिक प्रिय रहा होगा / प्रिय लगता होगा ! क्या पता ? प्रेम के अमरत्व और प्रेम की क्षणभंगुरता वाली धारणा में से अधिक सुखकर प्रतीति देने वाली संस्थिति कौन सी है ? यानि कि तुलनात्मक रूप से बेहतर कौन ? पर फूलों के रूप में अमर हो गये , उस जोड़े का रुझान / व्यवहार , प्रेम की क्षणभंगुरता के पक्ष में संकेत करता दिखाई देता है ! या फिर ऐसा सोचना केवल एक भ्रम है?

    ...अद्भुत व्याख्या! रूझान तो यही संकेत करते हैं। श्रेष्ठ मानव जीवन में जिये जा सकने वाला क्षणभंगुर प्रेम ही अन्य जीवन से प्राप्त होने वाली अमरता की तुलना में अधिक सुखकर प्रतीत होता है।..वाह!

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  6. कुछ कुछ नार्किसस की कथा की याद दिलाती पोस्ट ....किन्तु उसमें आत्ममोह का प्राबल्य था

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  7. ये बड़ी जानी-पहचानी सी कहानी लगी.
    बचपन में सुनी एक कहानी से मिलती जुलती है...जिसमे दोनों चंपा के फूल बन गए थे.

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    1. प्रेम की कहानी है सो एक जैसी होने की संभावनायें भी प्रबल हैं :)

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  8. प्रेम से वंचित रह जाने की पीड़ा तथा अतृप्ति , फूलों के रूप में अमर हो जाने के बावजूद उन्हें कष्ट पहुंचाती है !
    अपना प्रेम ना पाने की स्थिति में मनोवैज्ञानिक समस्या से ग्रसित कई प्रेमियों की दास्तान है .
    रोचक आख्यान ढूंढ लाते हैं आप.

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    1. हां...वंचित रह जाने का बोध ही दुःख कारक है ! यह जीवन में उथल पुथल पैदा कर सकता है ! आख्यान पसंद करने के लिए आभार , इनकी संख्या लाखों या शायद करोड़ों में है सो , सहज सुलभ हैं !

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