गांव में बच्चे अपनी शरारत पर मां से डांट खाते, हुलकी आये ! पड़ोसियों में झगड़ा होता तो, हवा में जुमला अक्सर उछलता, हुलकी आये ! तब सोचा भी नहीं कि इस शब्द के मायने क्या हो सकते हैं ? जेहन में कुछ ख्याल कौंधते, शायद ये कोई अपशब्द होगा या कि श्राप अथवा इसमें दूसरे पक्ष को चोट पहुंचाने का सामर्थ्य ज़रूर होगा ! लेकिन जब शब्दकोष देखने की उम्र हुई तो पता चला कि, इसका मतलब वमन / उल्टी / हैजा / उबकाई / जी मिचलाना / हिलोर मारना भी हो सकता है और देखना / झांकना भी ! जिन्हें बागवानी का शौक हो, उनके लिए जानकारी ये कि पेड़ / पौधे की चोटी / टुनगी / फुनगी / कोपल को भी हुलकी कहा जा सकता है !
उत्तर भारत में बहुतायत से प्रयुक्त इस शब्द के इतने सारे मायने देख / सुन / पढ़कर हैरानी होती है ! उत्तर प्रदेश के उरई शहर में हुलकी माता के मंदिर की मौजूदगी, पंजाब के पटियाला और मध्य प्रदेश में जबलपुर के पास के किसी गांव का नाम हुलकी होना, बिहार का कोई हुलकी पुल, हुलकी मार्ग ! ...मैत्रेयी पुष्पा अपने उपन्यास ‘ बेतवा बहती रहे ‘ में कह उठें, तुम पर हुलकी परे ! राजकमल चौधरी अपने उपन्यास ‘साँझक गाछ ‘ में लिखें, खिड़की से बाहर हुलकि देवनाथ चिचियाइल...सम गोटा हुलकी मार लागल ! भोजपुरी चैनल में हुलकी बुलकी का ज़िक्र हो या फिर कोई बंदा कह उठे, सांझ के हुनक हुलकी देबार समाचार ओहि मोहल्ला पसरि गेल छे ! क्या बुन्देली, क्या भोजपुरी और मैथिल क्षेत्र या फिर मगही के चाहने वाले, हुलकी के ज़लवे देखते ही बनते हैं !
इधर छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के मुरिया गोंड आदिवासी, शीत ऋतु में पेन (देव) कोलांग मनाते हों तो वर्षा ऋतु में हुलकी कोलांग ज़रूर मनायेंगे ! यानि कि हरियाली / खुशहाली के लिए महोत्सव ! इस पर्व के विशिष्ट अवसर पर उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए मुरिया गोंड समाज में प्रचलित, हुलकी पाटा एक सामूहिक नृत्य वाद्य भी है, जिसमें स्त्री पुरुष संयुक्त रूप से भाग लेते हैं और एक गीत वाद्य भी ! हुलकी गीत गायन के साथ, हुलकी पाटा नृत्य करते हुए, हुलकी मांदरी वाद्य यंत्र को बजाये जाने का उल्लेख, सारे माहौल को हुलकी मय कर देता है ! सच कहें तो हुलकी शब्द से तरंगों और लहर की तरह की ध्वनियों / हिलकोरों जैसे अर्थ की अनुभूति होती है, यहां तक कि ये संकेत, हुलकी के शाब्दिक अर्थ वमन से भी परिलक्षित होते हैं !
आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत का एक लोक आख्यान कहता है कि, एक भीमकाय मेंढक ने धरती का पूरा पानी पी लिया ! अन्य जीव धारियों के पीने के लिए कुछ भी नहीं बचा! हर ओर हाहाकार मच गया ! सभी जीव जंतुओं ने अपने अपने तरीके से मेंढक को हंसाने और उल्टी करवाने के यत्न किये,लेकिन मेंढक पर इसका कोई असर नहीं हुआ ! सारे जानवर अपनी कोशिश में नाकामयाब रहे ! जिसके चलते उन सभी के प्राण संकट में पड़ गये थे, तभी ईल ने अपनी शारीरिक भाव भंगिमाओं और खास किस्म की ऐंठन से मेंढक को हंसा दिया ! मेंढक के हंसते ही उसके अन्दर मौजूद सारा पानी बाहर निकल गया ! पानी की इस आकस्मिक निकासी के परिणाम स्वरूप आई, बाढ़ में अनेकों जीव जंतु बह गये, यहां तक कि, मनुष्य भी ! अगर जलसिंह बाढ़ में बहते हुए मनुष्यों को डोंगियों में नहीं डालते तो पूरी मानवता बह गई होती !
कथा में एक दानवाकार जल थल जीव मेंढक दुनिया का पूरा पानी पी लेता है, फिर दुनियां बिन पानी सब सून के हाल पर ! जब सारे जीव जंतु इस समस्या से निपटने में नाकाम रहते हैं, तब एक और जल जीव ईल, मेंढक से पानी की हुलकी / वमन कराने में सफल हो जाती है! पानी की आकस्मिक / एकमुश्त निकासी सृष्टि पर जलप्रलय सा संकट खड़ा कर देती है ! अब एक और जल जीव, जलसिंह बाढ़ में बह रहे मनुष्यों / जीवों को डोंगियों में चढ़ा कर जीवित बचा लेता है ! संभव है कि, ये डोंगियां, पानी में बह रहे, लकड़ी के बड़े बड़े लट्ठे रहे होंगे या फिर नदी / समुद्र के किनारों से बह गईं डोंगियां ही हों ! कथा, पानी के बिना जीवन दूभर होने तथा ज्यादा पानी से भी जीवन दूभर हो जाने का महती संकेत देती है और यह भी कि मनुष्य का जीवन जल जीवों से किस हद तक जुड़ा है, उन पर किस हद तक निर्भर है ! हमारे यहां हुलकी, देखना है, झांकना है, व्याधि है, समस्या है, वमन है, निजात है, उल्लास है, कोपलों के रूप में नवजीवन है...और वहां भी !
भई,इस शब्द को दिल्ली में आने के बीस साल बाद अब सुन रहा हूँ.गाँव में जब था,तब हमारे पड़ोस की एक औरत जब किसी के ऊपर खूब क्रोधित होती तो उसके मुँह से सबसे पहले यही निकलता 'हुलकी आवैं' तब निश्चित रूप से इसका अर्थ वह उलटी से कहीं ज़्यादा लगाती थी और हम भी !
जवाब देंहटाएंबाकी जल से जुड़ाव की जो बात आपने लोक-आख्यान के माध्यम से कही है वह अपनी जगह दुरुस्त है !
शायद , मां की बनावटी नाराज़गी में इसका एक अर्थ ये भी होता था कि तेरी मृत्यु हो / आख़िरी हिचकी / हुलकी आवै ,पक्का कह नहीं सकता ! उस वक़्त ये अर्थ भी सूझता था !
हटाएंहुलकी की व्युत्पत्ति..., हूल देना, हुलसना जैसे शब्द भी प्रयुक्त होता है. मेंढक (उभयचर) का पानी पीना रोचक है.
जवाब देंहटाएंसही है ! मैंने उल्लास शब्द का उपयोग हुलसना की जगह कर दिया है !
हटाएंअली सा,
जवाब देंहटाएंआज शायद अभी के लिए आखिरी बार अपनी टिप्पणी दर्ज करने, हाजिरी लगाने, आपका आशीष प्राप्त करने और आपसे अनुमति लेने उपस्थित हुआ हूँ.. पता नहीं फिर कितने समय बाद (जब व्यवस्था का मेढक जल-वमन करेगा और कोई डोंगी मुझे जीवन प्रदान कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचायेगी)आपके यहाँ आना हो. बहुत 'मिस' करूँगा इस ज्ञान गंगा को.
पहले तो सोचा था कि बस हुलक कर या हुलकी मारकर चला जाऊँगा. लेकिन शिष्टाचार के विरुद्ध लगा, तो सोचा हुलकी नहीं, बाकायदा आपके चरण-स्पर्श कर ही विदा लेंगे!! तो आज और फिलहाल के लिए बस इतना ही! दुआओं में शामिल रखें!! इंशा अल्लाह दुबारा ज़रूर मिलेंगे! आमीन!!
सलिल जी ,
हटाएंआपके लिए अशेष दुआयें ! ईश्वर आपको ज़ल्द सुरक्षित ठिकाने पर वापस लाये ! व्यवस्था का अंधा / बहरापन खत्म हो ! आपका समस्त शुभ हो ! कल्याण हो !
आप जहां भी रहेंगे मैं आपके संपर्क में बना रहूंगा !
शुभकामनाओं सहित !
अली
व्यवस्था ने किस मझदार में ढकेल दिया...!
हटाएंसमुद्र जल के खारे होने के पिछे एक लोक कथा सुनी थी, अगस्त्य मुनी ने सारा पानी पी लिया था और .........
जवाब देंहटाएंसही है :)
हटाएंहुल्की शब्द के इतने रूप देख कर तबुयत हल्की हो गई . :)
जवाब देंहटाएंहुलकी तो क्या बढ़िया होगी ......
जवाब देंहटाएंबहरहाल आख्यान मजेदार रहा ! आभार भाई जी !
आख्यान वालों को उसकी ज़रूरत थी :)
हटाएंआजकल मैत्रयी पुष्पा की 'ईसुरी फाग' पढ़ रही हूँ...और बुन्देलखंडी भाषा को समझने में थोड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है...पर अच्छा लगा जानकर...उस भाषा में भी भोजपुरी ..मैथिली के मिलते जुलते शब्द हैं ..
जवाब देंहटाएंअब तक तो लगता था..जिन शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत शब्द से हुई है...वही शब्द हर भाषा में देखे जाते हैं..पर बोलचाल की भाषा वाले शब्द भी हर जगह कॉमन हैं, ..बढ़िया है.
पिछली पोस्ट पर ही एक बात का ख्याल आया था...लोक आख्यानों में चौंकाने वाले तथ्यों का समावेश शायद जरूरी होता है....जिस से सुनने वाले की रूचि बनी रहे. वैसे ये किसी भी कहानी की मांग है ...पर लोक कथाओं में ज्यादा क्यूंकि सुनने वाले की प्रतिक्रिया कथावाचक सामने देख सकता है (ये महज एक ख्याल है )
आख्यान , उस समाज के अनुकूल लगने वाले तत्वों को लेकर गढ़े / कहे जाते हैं ! सामान्यतः , ये उस समाज की समझ का प्रतिनिधित्व करते हैं ! चूंकि हम उन समाजों में से नहीं हैं इसलिए ज़्यादातर चौंकना हमारे हिस्से आता है :)
हटाएंआपका कहना सही ही होगा...
हटाएंपर मुझे एक बात लगी...कथावाचक कथा सुना रहा होगा..."सारा संसार पानी में बह गया...सिर्फ एक स्त्री और पुरुष बच गए.'"
श्रोता उत्सुक.
अब यह कहकर उनकी उत्सुकता चरमोत्कर्ष तक पहुंचा देता है कि 'वे दोनों स्त्री-पुरुष भाई-बहन थे .'
अब श्रोता चिंता में उनकी उत्सुकता चरम सीमा पर कि 'संतति आगे कैसे बढ़ेगी..भाई-बहन में विवाह तो हो नहीं सकता...'
कथा वाचक..कई सारे मोड़ लाकर उनके विवाह भी करवा देता है.
(पिछली पोस्ट पर यह बात मन में आई थी ,इसलिए जिक्र भी पुरानी पोस्ट की लोक कथा का ही है )
अच्छा तो ये बात है :)
जवाब देंहटाएंरश्मि जी , मैं पहले भी कह चुका हूं कि विश्व के बहुतेरे समाजों में भाई बहन के प्रणय संबंध सामान्य बात रही है , जैसा कि विश्व के अनेक कोनों से आई कथाओं में यह एलिमेंट मिल भी रहा है , इसलिए भाई बहन के प्रणय सम्बंध की कथा उन समाजों के श्रोताओं को अखरती है / चौंकाती है / असामान्य लगती है , जिनमें भाई बहन के प्रणय सम्बंध निषिद्ध हैं !
तब कथा कहने वाला अपने ही समाज के श्रोताओं को कथा सुना रहा होता था तो फिर श्रोतागण , अपने समाज में सामान्य रूप से प्रचलित धारणाओं को , कथा में पाकर हैरान क्यों होंगे ?
अब इस तर्क को ज़रा सा उलट कर देखिये ! मान लीजिए भाई बहन के प्रणय संबंधों के निषेध वाला कोई समाज कथा विकसित करेगा तो उसमें भाई का बहन से विवाह क्योंकर होगा ? मसलन हिंदू / मुस्लिम / इसाई / यहूदियों के जलप्रलय वाली कथा में बचने वाला जोड़ा (मनु इला और नूह दंपत्ति) भाई बहन नहीं था ! जब हम इस कथा को सुनते हैं तो सामान्य रूप से सुनते हैं क्योंकि यह कथा हमारे सामाजिक प्रावधान के अनुकूल है ! लेकिन अगर कोई दूसरा समाज , जहां भाई बहन के संबंध निषिद्ध नहीं है , इस कथा को सुनेगा तो ज़रूर चौंकेगा / दुखी भी होगा ...अरे ये दोनों पति पत्नि तो भाई बहन ही नहीं हैं :)
आपका तर्क आज के समय की कथाओं के लिए मुफीद है ! क्योंकि कथाओं की बढ़ती संख्या / प्रतिस्पर्धात्मक समय और श्रोताओं को अपनी ओर खींच लेने की ललक / होड़ , कथाकार के रूप में हमसे यह काम करवा सकती है ! शायद उन दिनों के कथाकार आज के कथाकारों की तरह से प्रोफेशनल / होशियार / समझदार / शातिर नहीं हुआ करते थे :)
मेरे लिए आपका तर्क भी सही है / आपकी संभावना भी सही है किन्तु मैं इसे सभी कथाओं के परिप्रेक्ष्य में नहीं देख पाता !
चलते चलते एक संवाद सूझ रहा है ...
हटाएंहमारे यहां जल प्रलय में बचते वो हैं जो भाई बहन नहीं हैं और उनके यहां वो जिन्हें शादी करनी है :)
अली जी,
हटाएंमैने एक संभावना व्यक्त की थी...कि शायद कहानी में surprise element रखना ज्यादा जरूरी हो क्यूंकि भले ही कथावाचकों के बीच प्रतिस्पर्द्धा ना हो पर अगर कथा बोरिंग हुई तो श्रोता सुनते सुनते सो तो जा सकता है :):)
आपकी अफ्रीका वाले आख्यान में उद्धृत था...
लड़की और उसके भाई ने ऐसा ही किया और वे दोनों बाढ़ से बच गये ! बाद में वर्षों तक उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिला और वे अकेले बने रहे !
अगर भाई -बहन में प्रणय सम्बन्ध समान्य बात थी तो झट से शादी क्यूँ नहीं कर ली...अकेले क्यूँ बने रहे??
चीनी लोक कथा में था...
बाढ़ की समाप्ति के पश्चात , भाई अपनी बहन को अपनी पत्नि बनाने की इच्छा व्यक्त करता है किन्तु बहन इसका विरोध करती है !
फिर वही..जब समान्य बात है तो बहन क्यूँ विरोध करती है??
फिर से मुझे कुछ उलटे-सीधे ख्याल आ रहे हैं....:) अब मन की कह ही देती हूँ.:)
सृष्टि की शुरुआत में भाई-बहन जैसे कोई रिश्ते होंगे ही नहीं..
फिर धीरे धीरे आने वाली पीढ़ियों में एक साथ बड़े हुए एक ही माँ के द्वारा पाले गए बच्चों का आपस में आकर्षण ना होकर दूसरी माताओं के बच्चों के प्रति आकर्षण हुआ होगा.
कालांतर में यही परिपाटी बन गयी होगी और अलग अलग माताओं के बच्चों में प्रणय संबंद्ध स्थापित हुआ होगा.
फिर धीरे धीरे..एक माँ के बच्चों का आपस में प्रणय संबंद्ध निषिद्ध ही हो गया होगा.
आपने आज के युग में भी किसी राज परिवार में भाई -बहन के बीच शादी की बात कही थी..ऐसा सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया गया होगा...कि संपत्ति उनके खानदान में ही बनी रहे..बाहर ना जाए. और वे राजा यानि अमीर लोग हैं इसलिए उस इलाके के लोगों ने भी विरोध नहीं किया वरना कोई दूसरा परिवार ऐसा करता तो उसका हुक्का पानी बंद कर देते लोग.
बढ़िया संवाद।
हटाएंरश्मि जी ने जो मन की कही, वही सही लगती है। चलन..परंपरा..सभ्यता..बूढ़ी सभ्यता..संस्कृति ...आधुनिक परिपेक्ष में संस्कृतियों में दोष...क्रांतिकारी विचार...नये चलन..नई सभ्यता..भौतिकता..लोभ जनित भौतिकता का चरम...प्रलय..नई सृष्टि...नई सभ्यता..नये लोक आख्यान.. यही चक्र चलता रहेगा, ऐसा लगता है।
@ रश्मि जी ,
हटाएंवास्ते आपके उलटे सीधे ख्याल और आपके मन की कही हुई :)
ये सही है ! तब कोई रिश्ते नहीं रहे होंगे , तब कोई पति पत्नि भी नहीं हुआ करते थे , उन दिनों समूह के लोग परस्पर यौनाचार करते रहते थे ! रिश्तों की बारीकियां बाद में शुरू हुईं ! सहमत हूं :)
वास्ते चीनी लोक कथा भाई का प्रस्ताव और बहन का विरोध :)
आपको लगता है कि किसी इच्छुक लड़के का प्रस्ताव लड़की को फ़ौरन से पेश्तर , सिर्फ इसलिए स्वीकार कर लेना चाहिये कि शादी 'लड़की और लड़के' के बीच होने का नियम समाज में मौजूद है :)
मैंने कहा था कि कथा से संकेत नहीं मिलता कि भाई बहन के यौन संबंधों पे कोई वर्जना रही होगी , लड़की ने प्रस्ताव का विरोध किया ( ऐसे प्रस्तावों पर ज्यादातर लडकियां लपक कर हां नहीं कहतीं की , सामान्य धारणा पर विश्वास किया जाना चाहिये ) और फिर उसने लड़के को अनेक अवसर दिये , भला क्यों ?
मान लीजिए भाई बहनों की शादी की प्राथमिकता का चलन किसी समाज में है तो क्या वहां के सभी भाई बहन लपक कर / उमंग और उत्साह के साथ ब्याह कर लेते होंगे :)
बहरहाल आगे चलकर इसी समाज की एक और कथा पेश करने वाला हूं जिसमें भाई बहन के यौन संबंधों की समाज स्वीकृति का विवरण होगा :)
वास्ते अफ्रीका वाला आख्यान :)
कृपया इस आख्यान के अंतिम पैरे को फिर से पढ़ें ! इस कथा में मैंने कब कहा कि इस समाज में भाई बहनों के ब्याह चलन था ! आपको यह भ्रम क्यों हो रहा है कि मैं हर कथा भाई बहनों के ब्याह को स्वीकृति देने वाले समाज से ढूंढ कर ला रहा हूं :)
इस आलेख के आख़िरी पैरे में , मैंने स्पष्ट कहा था कि बकरी ने भाई बहन को जलप्रलय से बचने के लिए सचेत किया , वे बच गये और वर्षों तक 'अकेले' बने रहे क्योंकि उन्हें कोई 'जीवन साथी' नहीं मिला ! अब आप ही कहें मेरे इस कथन का क्या अर्थ हुआ ?
फिर चमत्कारी बकरी ने उन्हें परस्पर शादी के लिए प्रेरित किया और "एक रिश्ते के छीज" / टूट जाने के पश्चात "नये सम्बंध" की शुरुवात हुई ! बकरी की प्रेरणा से पुराने रिश्ते के छीजने और नये सम्बंध के बनने की बात क्यों कही गई है भला ?
इस कथा में मैंने तो कभी नहीं कहा / कोई अनुमान नहीं लगाया कि इस समाज में भाई बहन के ब्याह का चलन था ! हां...इस कथा के भाई बहन का ब्याह किसी दैवीय संकेत से हुआ , जिसके कारण एक रिश्ता छीज गया और नया सम्बंध शुरू हुआ , ये ज़रूर कहा है !
दैवीय संकेत पर रिश्ता छीजने की बात से स्पष्ट है कि मैंने उस समाज में भाई बहन के ब्याह के पूर्व चलन की बात नहीं कही है !
दो भिन्न कथाओं में मिक्सअप करने की वज़ह से ऐसा लग रहा है कि आप मेरी हर कथा को ध्यान से नहीं पढ़ रही हैं :)
@ देवेन्द्र जी ,
हटाएंरश्मि जी की मन की कही पे आपकी सहमति सिर माथे पर :)
लेकिन टिप्पणी का अगला हिस्सा सिर के ऊपर से गुज़र गया ??? अगर बदलाव की ओर आपके संकेत हैं तो ये सही है फिर कारण चाहे जो भी हों
आपको यह भ्रम क्यों हो रहा है कि मैं हर कथा भाई बहनों के ब्याह को स्वीकृति देने वाले समाज से ढूंढ कर ला रहा हूं :)
हटाएंअली जी, हमने ऐसा कब कहा...:)
और आपको ऐसा क्यूँ लगा..कि मैं ऐसा सोचती हूँ...मैने लिख ही दिया था कि पिछली पोस्ट पर ये ख्याल आए थे इसीलिए जिक्र पिछली पोस्ट में वर्णित लोक कथा का है. ..(वहाँ टिप्पणी करने के बाद ये ख्याल आया इसलिए सोचा ..आपकी अगली पोस्ट पर ये बात कह दूंगी...:))
आप कथा की मीमांसा कर रहे हैं जबकि मैं ये सोच रही थी....ऐसी कथाएं कहने के पीछे क्या सोच होती होगी??...और मुझे ऐसा लगा कि चौंकाने के लिए और मनोरंजन के लिए ऐसे तथ्यों का समावेश किया जाता रहा होगा...अब जैसे मेढक का सारा पानी पी जाना...बाढ़ का सूरज-चंद्रमा के घर पर कब्ज़ा कर उन्हें बेघर कर देना.
यथार्थवादी कहनियाँ कब लिखनी शुरू हुईं नहीं मालूम पर अपने यहाँ भी 'देवकीनंदन खत्री' की 'चंद्रकांता' बहुत लोकप्रिय रही. कहते हैं..लोगों की पढ़ने की तरफ रुझान इसी पुस्तक ने पैदा की...कई उर्दूभाषियों ने सिर्फ इस पुस्तक को पढ़ने के लिए हिंदी सीखी. इसमें भी तमाम अकल्पनीय बातें ही हैं...ऐसी चीज़ें हमेशा ही जन-मानस को चौंकाती हैं और पसंद आती हैं.
अब आज ही 'हैरी पौटर' की लोकप्रियता देखें या बॉलिवुड फिल्मों की जहाँ..दस मंजिले से कूद कर भी नायक जिंदा रहता है...या बीस लोगों को अकेला पछाड़ देता है.
यह मेरी सोच थी कि अकल्पनीय बातें लोगों को पसंद आती हैं...मैं बिलकुल गलत भी हो सकती हूँ..:)
और एक कन्फेशन कर लूँ...मुझे लोक आख्यानों में कभी रूचि नहीं रही, पहली बार आपके ब्लॉग पर ये सिरीज़ मन लगा कर ,ध्यान से पढ़ रही हूँ...चकित भी हो रही हूँ कि पूरे संसार की कथाएं कितनी मिलती जुलती हैं. ..और शायद इसीलिए इतने सवाल कर रही हूँ..:)
अब आप एकदम सही हैं ! देखिये सामान्यतः कथा में दो तरह के तत्वों का उल्लेख किया जाता रहा है एक तो सामाजिक नियम और सम्बंध , जिनसे चौंकाने वाली बात से मैं सहमत नहीं हुआ ! दूसरे परालौकिक / अधिप्राकृतिक / दैवीय शक्तियों का उल्लेख ! कथाओं में जो दूसरी तरह के एलीमेंट्स हैं , वे हर समय के मानवीय विश्वास / अंधविश्वास पर आधारित हैं , जैसे कि भीमकाय मेंढक / सूरज चांद वगैरह वगैरह , अगर आप इन्हें चौंकाने वाला कहें तो मैं बेशक सहमत हूं ! पिछली से पिछली टिप्पणी में ये बात लिख कर भी मिटा दी थी मैंने , मुझे लगा कि आप जिन बातों का ज़िक्र ही नहीं कर रही हैं , उनके बारे में क्या लिखना ! मुझे लगा कि आपकी चिंता , विशिष्ट सम्बंध मात्र हैं :)
हटाएंलोक कथाओं का इंटरप्रटेशन करते हुए मैंने , अक्सर परामानवीय शक्तियों के उल्लेख के सांकेतिक अर्थ ढूंढने की कोशिश की है , जैसे कि सूरज में पति के स्वभाव की गर्मी और चंद्रमा में पत्नी की मृदुता वगैरह वगैरह ! बेशक कोई और पाठक इन कथाओं की मुझसे अलग व्याख्या कर सकता है !
लोक आख्यान मेरी अनेकों रुचियों में से एक हैं , ये मुझे इंसानों की यकसानियत का यकीन दिलाते हैं ! इन आख्यानों में आपकी रूचि भले ही ना हो किन्तु आप इस श्रृंखला पे और भी ज्यादा योगदान दे सकती हैं ऐसा मुझे लगता है !
चलते चलते एक बात और आपने अफ्रीका और चीन वाली कथा पर मेरी आपसे जो शिकायत थी , उसपर कुछ नहीं कहा :)
रश्मि जी और अली जी के दरम्यान काफ़ी विमर्श हुआ जिससे हम जैसे बुद्धू भी बौद्धिक हो गए !!
हटाएंआपने अफ्रीका और चीन वाली कथा पर मेरी आपसे जो शिकायत थी , उसपर कुछ नहीं कहा :)
हटाएंवो इसलिए कुछ नहीं कहा...क्यूंकि मुझे लगा पोस्ट से हटकर सबका ध्यान टिप्पणियों पर ही चला जाएगा.पर अब आपने शिकायत कर दी तो फिर रख देती हूँ अपना मत :)
आपकी अपनी सोच है..
पर मुझे इन दोनों कथाओं में ऐसा ही लगा कि उस समय के समाज में भाई-बहन के बीच प्रणय संबंद्ध स्वीकृत नहीं थे...और ऐसा नहीं है कि आज ये वर्जित हैं... इसलिए इसे स्वीकार करना मुश्किल है बल्कि इसलिए क्यूंकि दोनों ही कथाओं में भाई-बहन को सहज रूप से इसे स्वीकार करते नहीं दिखाया गया है.
चीनी कथा में लड़की ने इस से बचने के लिए लगभग असंभव सी शर्तें रखीं...जबकि उसके पास चुनाव के लिए कोई दूसरा मौजूद नहीं था. सही है...लडकियाँ बिलकुल लपक कर तैयार नहीं होती किसी रिश्ते के लिए...पर यहाँ तो कोई दूसरा रिश्ता था ही नहीं फिर भी वह आसानी से तैयार नहीं हुई. अंत में कथाकार को उसे तैयार करवाना पड़ा .. नहीं तो कहानी आगे ही नहीं बढती :)
अब सवाल ये भी हो सकता है कि भाई ने क्यूँ शादी का प्रस्ताव रखा.??...तो ये कहा जा सकता है कि वह उस वक़्त भाई से ज्यादा एक पुरुष रह गया था.
{ये निष्कर्ष भी निकलता है कि सदियों से ही स्त्रियाँ शांत चित्त....सही-गलत का ध्यान कर कदम बढाने वाली होती हैं...और पुरुष उतावले..बिना सोचे समझे काम करने वाले...मैने नहीं..कथाकार ने समाज में व्याप्त इस प्रवृत्ति को नोटिस किया और तभी कहानी में व्यक्त किया :)
वरना वो ये भी कह सकता था..अकेले जंगल में रहने से लड़की घबरा गयी...और लड़के के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. पर तब लड़का तो झट से मान जाता...और फिर दो पंक्ति में कहानी ख़त्म हो जाती :)}
अफ़्रीकी कथा में भी संकेत है कि...काफी दिनों तक दोनों अकेले रहे...फिर बकरी के कहने पर शादी की.
मैने इन दोनों कथाओं से यही अर्थ निकाला. कि इस तरह के तथ्य कहानी के shocking N surprise element ही होते हैं. और इन्हीं की वजह से कहानी दिनों तक सुनी-सुनाई जाती है.
मेरी अपनी सोच तो खैर है ही ! शिकायत कुछ और थी पर जबाब आपने कुछ और ही दे दिया :)
हटाएंमैंने जब कहा ही नहीं कि अफ्रीका वाली कथा के समाज में भाई बहन के वैवाहिक के संबंध पूर्व प्रचलित थे तो भी आपने उसे चीनी कथा के समान उद्धृत किया :)
इन दोनों कथाओं में अगर कोई समानता है तो सिर्फ इतनी कि इन दोनों में भाई अपनी बहन से विवाह करते हैं वर्ना 'पूर्व स्वीकृति' के हिसाब से चीनी कथा , अफ्रीकी कथा से बिल्कुल भिन्न है ! अफ्रीकी कथा में वर्जना के कारण भाई बहन किसी और जोड़े की तलाश में वर्षों अकेले रहे और बकरी ने उनकी वर्जना तोड़ कर उनका विवाह करवा दिया जबकि चीनी कथा में वर्जना तोड़ने के लिए किसी अन्य पात्र की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि वर्जना वहां थी ही नहीं !
अपनी टिप्पणी में चीनी समाज के सन्दर्भ में , मैंने लिखा कि " बहरहाल आगे चलकर इसी समाज की एक और कथा पेश करने वाला हूं जिसमें भाई बहन के यौन संबंधों की समाज स्वीकृति का विवरण होगा" :)
इसके बावजूद आप लिख रही हैं कि भाई ने बहन के समक्ष प्रस्ताव क्यों दिया ? और ये भी कि ये सब कथाकार का किया धारा है :)
हां तो शिकायत मेरी यह थी कि आपने दोनों कहानियों को ध्यान से नहीं पढ़ा :) वर्ना दो कथायें अलग अलग समाजों की थी , एक में वर्जना होने और दूसरे में वर्जना नहीं होने के कथन मैंने किये थे / संकेत मैंने दिये थे पर आपने इन्हें बोल्ड लेटर्स में एक ही उदाहरण में शामिल कर दिया गोया मैं दोनों कथाओं में वर्जना नहीं होने की बात कह गया होऊं :)
खैर जैसे मेरी सोच वैसे आपकी अपनी भी हुई :) वैसे एक कथाकार के रूप में जया की कथा में चौकाने वाले किसी एलीमेंट की ज़रूरत आपको पड़ी हो तो बताइयेगा :)
अली जी,
हटाएंआप पुराने लोक आख्यानों से हमें परिचित करवा रहे हैं...जाहिर है कथा आपने नहीं लिखी...आप उसे प्रस्तुत करके उसकी समीक्षा कर रहे हैं...यानि आप उस कथा को जैसा देखना चाह रहे हैं..देख रहे हैं...और हम पाठक उस कथा को अपनी नज़र से देख रहे हैं..
आपने कहा... "जबकि चीनी कथा में वर्जना तोड़ने के लिए किसी अन्य पात्र की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि वर्जना वहां थी ही नहीं ! "
और मुझे ये लगता है कि लड़की विवाह से मना करती है..शर्त रखती है..इसका अर्थ है कि वहाँ यह सम्बन्ध सामान्य नहीं था यानि कि वर्जना थी.
मुझे इस कहानी में यह नज़र आया.
"अपनी टिप्पणी में चीनी समाज के सन्दर्भ में , मैंने लिखा कि " बहरहाल आगे चलकर इसी समाज की एक और कथा पेश करने वाला हूं जिसमें भाई बहन के यौन संबंधों की समाज स्वीकृति का विवरण होगा" :)
इसके बावजूद आप लिख रही हैं कि भाई ने बहन के समक्ष प्रस्ताव क्यों दिया ? और ये भी कि ये सब कथाकार का किया धारा है :)"
जब आगे चलकर आप वो कथा लिखेंगे तो उस पर भी अपनी सोच रखेंगे....फिलहाल इस कहानी में ऐसा ही लगा..इसलिए ऐसा ही कहा...
अगर आप दोनों कथाएं एक साथ लिखते तो हम भी उसका तुलनात्मक अध्ययन करते.
मैने टिप्पणियाँ लिखने के क्रम में दोनों कहानियों को दुबारा-तिबारा ध्यान से पढ़ा. पर वही नज़र का दोष मैने अपनी नज़र से देखा..और दोनों कहानियों में मुझे वर्जनाएं नज़र आयीं.
"वैसे एक कथाकार के रूप में जया की कथा में चौकाने वाले किसी एलीमेंट की ज़रूरत आपको पड़ी हो तो बताइयेगा :) "
जया की कथा हो..शची की या नेहा की....मैने ये कहानियाँ 'लिखी' हैं..अगर श्रोताओं के सम्मुख सुनानी पड़तीं तो हो सकता था...मुझे उनका ध्यान ना भटकने देने के लिए और उनकी एकाग्रता बनाए रखने के लिए कुछ चौंकाने वाले तथ्य जोड़ने पड़ते.
आकाशवाणी में सुनाती भी हूँ तो एकतरफा मामला होता है...9 मिनट तक मुझे कहानी पढनी ही होती है. और उन्हें रेकॉर्ड करना ही पड़ता है..श्रोता सुनते हैं या बीच में ही रेडियो बंद कर देते हैं...अब ये तो पता नहीं अब तक :)
मैं तो खुद कह रहा हूं कि अफ्रीकी कथा में वर्जना है किन्तु चीनी कथा में नहीं इसलिए मामला अगर बहस का था तो केवल चीनी कथा के लिए , किन्तु आपने अपनी टिप्पणी में दोनों को लपेट लिया :)
हटाएंअफ्रीकी कथा का उद्धरण देते हुए आपने लिखा "अगर भाई -बहन में प्रणय सम्बन्ध समान्य बात थी तो झट से शादी क्यूँ नहीं कर ली...अकेले क्यूँ बने रहे?? :)" अगर इस कथा में मैंने कहा ही नहीं कि भाई बहनों के वैवाहिक सम्बंध को इस समाज की स्वीकृति थी / याकि ये सम्बंध होना सहज / सामान्य बात थी तो फिर आप ही बताइए कि आपके इस वाक्य को मुझे संबोधित करके लिखे जाने का क्या मतलब रहा होगा ?
:)
व्यक्तिगत रूप से मैं अगली चीनी कथा को लिखने का इच्छुक रहा होता तो पहले ही लिख देता लेकिन इस कथा पे आपके वर्जना विषयक दृष्टिकोण के चलते मैंने कहा कि , इस समाज की एक और कथा आगे प्रस्तुत करूंगा जिसमें भाई बहन वैवाहिक संबंधों की स्वीकृति का विवरण होगा ! ज़ाहिर है कि ये कथा और सम्बंध स्वीकृति विवरण भी मैंने नहीं लिखे है मैं केवल उनका समीक्षक होऊँगा :) हैरानी ये है कि आपको मेरे कहे पे विश्वास नहीं हुआ :) अब आप कह रही हैं कि , दोनों कथा साथ लिख देता , तो आप तुलना कर पातीं :)
किसी कथा को सुनाने और लिखने में , चौंकाने वाले तथ्यों को जोड़े जाने के विभेद , वाला आपका तर्क काफी मजेदार है ! क्या कमेन्ट करूं इस पर :)
वो कथा तो खैर मैं प्रस्तुत कर ही दूंगा और आप तुलना भी कर लीजियेगा :)
मेहरबानी करके इस चीनी कथा को बुकमार्क कर लीजियेगा , जिसपे कि आप मुझसे वर्जना विषयक तर्क कर रही हैं ! आगे तुलना के लिए खोज परख की ज़रूरत नहीं पड़ेगी !
@मेहरबानी करके इस चीनी कथा को बुकमार्क कर लीजियेगा , जिसपे कि आप मुझसे वर्जना विषयक तर्क कर रही हैं .
हटाएंमैं आपसे तर्क नहीं कर रही...आपकी बात गलत और खुद की सही नहीं साबित कर रही....मैने तो बार-बार कहा...मैं पूरी तरह गलत हो सकती हूँ...पर मैं उस कहानी को इसी नजरिये से देखती हूँ...आपके नजरिये से नहीं देख पा रही.
अफ़्रीकी कथा का उदाहरण आपके उपरी कमेन्ट पर था जहाँ आपने कहा था "जैसा कि विश्व के अनेक कोनों से आई कथाओं में यह एलिमेंट मिल भी रहा है , इसलिए भाई बहन के प्रणय सम्बंध की कथा उन समाजों के श्रोताओं को अखरती है / चौंकाती है / असामान्य लगती है , जिनमें भाई बहन के प्रणय सम्बंध निषिद्ध हैं !
तब कथा कहने वाला अपने ही समाज के श्रोताओं को कथा सुना रहा होता था तो फिर श्रोतागण , अपने समाज में सामान्य रूप से प्रचलित धारणाओं को , कथा में पाकर हैरान क्यों होंगे ? "
विश्व के अनेक कोनों में निश्चय ही अफ्रीका भी शामिल होगा. इसीलिए उस कथा का जिक्र किया मैने.
@किसी कथा को सुनाने और लिखने में , चौंकाने वाले तथ्यों को जोड़े जाने के विभेद , वाला आपका तर्क काफी मजेदार है ! क्या कमेन्ट करूं इस पर :)
आप क्यूँ कोई कमेन्ट करेंगे ..ऐसा मुझे लगता है...ये मेरी सोच है...मजेदार ही सही. (वैसे ये पढ़कर थोड़ा अचरज हुआ . "एक कथाकार के रूप में जया की कथा में चौकाने वाले किसी एलीमेंट की ज़रूरत आपको पड़ी हो तो बताइयेगा "....यहाँ बात लोक आख्यान की हो रही थी...एक दूसरे के लिखे आलेखों/कहानियों/कविताओं की नहीं )
और प्लीज़...अगर आप व्यक्तिगत रूप से इच्छुक नहीं हैं...तो मत लिखिए वो कहानी...कोई बाध्यता नहीं है...और टिप्पणी में अगली कहानी लिखने के जिक्र के परिप्रेक्ष्य में हम किसी कहानी को कैसे देखें...हम तो उसे individually ही देखेंगे ना :)
अब मेरा ये आखिरी कमेन्ट है.... इस विमर्श को आगे बढाने की इच्छा नहीं है.
विमर्श आगे नहीं बढ़ाने की आपकी इच्छा का सम्मान करते हुए मैं भी आपको आखिरी कमेन्ट दे रहा हूं !
हटाएंविश्व के अनेकों कोनों से आयी कथाओं का मतलब विश्व की सभी कथायें हुआ क्या :)
खासकर जबकि अफ्रीकी कथा के अपने इंटरप्रटेशन में मैंने अपनी मंशा साफ़ कर दी थी !
आप , संबंधों की सामान्यता अथवा असामान्यता को लेकर कहे गये , मेरे कमेन्ट के जिस हिस्से का हवाला दे रही हैं वह विश्व के बहुतेरे समाजों के हवाले से कहा गया था कि इस अफ्रीकी कथा के हवाले से ? :)
तर्क पे अचरज कैसा ? आप कहानियाँ लिख रही हैं और किसी बंदे ने आख्यान कहा होगा :)
निश्चित रूप से आप किसी भी कथा को अपने ही नज़रियें से देखेंगी !
विमर्श के लिए आपका हार्दिक आभार !
हुलकी मेरे लिया नया शब्द रहा. जानकारी के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंअरे ! मेरा ख्याल था कि यह उत्तर भारत का बहुप्रचलित शब्द है ! बहरहाल विनम्रता के लिए आपका धन्यवाद !
हटाएंअद्भुत वर्णन!
जवाब देंहटाएंआस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत की लोक कथा को अपने मुलुक में प्रचलित शब्द हुलकी से जबरदस्त साम्य बिठा दिया आपने। यह आपकी लेखन शैली और खोजी वैचारिक शक्ति का चमत्कार है। ...मंत्रमुग्ध हूँ।
आपको नहीं लगता कि आप मुझे कुछ ज्यादा ही 'हूल' दे रहे हैं :)
जवाब देंहटाएंaajkal apan bhi yahi kam kar rahe matbal 'hulki' markar nikal jate hain......
जवाब देंहटाएंpranam.
हुलकी मारने के लिए धन्यवाद :)
हटाएंअली जी 'हुलकी' के साथ अगर कोई और पद लगाएंगे मसलन ,'मारना' ,'होना' आदि तो हिंदी के अन्य मुहावरों जैसे ही इसका अर्थ बदलता जायेगा....असली प्रयोगतो वही है,'नासिकाटे क हुलकी आवैं'!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया :)
हटाएंHulki kaa matlab aaj tak pata nahee tha!
जवाब देंहटाएंओह ! टिप्पणी के लिए शुक्रिया !
हटाएंहुलकी जैसे शब्द के, भारी भारी अर्थ |
जवाब देंहटाएंप्रान्तों का कर के भ्रमण, पहुँच गए हम पर्थ |
पहुँच गए हम पर्थ, अर्थ जो रविकर भाये |
ताक-झाँक में मस्त, नजर कुछ सुन्दर आए |
लेख लगे गंभीर,चुटकियाँ हल्की-फुलकी |
चले अली के तीर, कभी ना आवैं हुलकी ||
रविकर जी ,
हटाएंजैसा सुना था उससे बेहतर पाया ! शानदार ! बेहतरीन !
अली भाई, आभार
हटाएंलेख का जिक्र यहाँ भी है ||
http//dineshkidillagi.blogspot.in
...ठीक है भाई,मैं भी साथ हूँ !
हटाएंhttp://urvija.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_29.html
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! मैं लिंक देख लूंगा !
हटाएंहुलकी ने तो हलकान कर दिया :)
जवाब देंहटाएंये भी ठीक है :)
हटाएंकुछ कुछ घुसा कमजोर दिमाग में भी । अच्छा है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंआप ने तो पूरा हुलकी पुराण ही लिख दिया..
जवाब देंहटाएंएक अकेली हुलकी के इतने मायने ...
जवाब देंहटाएंविश्व के विभिन्न भूभागों में जल प्लावन की इतनी घटनाये या आख्यान एक ही स्थान पर पढना अच्छा है !
आभार !
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