मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

मैंने रखा है मुहब्बत...2


उस रोज़ लकड़हारे ने घायल हिरण को शिकारी के चंगुल से बचाया था । अहसानमंद हिरण ने लकड़हारे को बताया कि हरेक महीने के एक ख़ास दिन परियां, जंगल के तालाब में नहाने के लिए आया करती हैं और अगर लकड़हारा चाहे तो उनसे शादी भी कर सकता है । हिरण ने लकड़हारे से कहा कि वो तालाब के पास छुप कर परियों का इंतज़ार करे और फिर उनमें से किसी एक के पंख चोरी कर लेऔर उन्हें ऐसी जगह छुपा दे जो किसी को पता ना हो । हिरण ने लकड़हारे से यह भी कहा कि पंख, परियों की धरती में आमद और स्वर्ग वापसी का एक मात्र ज़रिया होते हैं सो पंख चोरी की ज़द में आई परी स्वर्ग वापस नहीं जा पायेगी । इसके बाद लकड़हारा मदद की पेशकश के साथ, उस परी को अपनी ब्याहता बना सकता है ।

हिरण ने लकड़हारे को ख़ास तौर पर यह ताकीद की, कि कम से कम तीन बच्चे होने तक वो पंख चोरी का राज़ अपनी पत्नि को ना बताये वर्ना परी उसे छोड़ कर स्वर्ग वापस चली जायेगी । जैसा हिरण ने कहा था लकड़हारे ने वैसा ही किया, फिर हुआ ये कि हिरण की सलाह के मुताबिक़ लकड़हारे ने अपने लिए परी पत्नि का इंतजाम कर लिया । बहरहाल ये शादी लकड़हारे की नज़र में बेहद खुशहाल और कामयाब शादी थी, सो वो अपनी पत्नि की सोहबत के लिए बेहद मुतमईन हो गया था और उसने हिरण की, तीसरे बच्चे की पैदाइश तक पंख चोरी की गोपनीयता बनाये रखने वाली सलाह से मुंह मोड़ते हुए, अपनी परी पत्नि को छुपाये हुए पंख दिखला दिये । पंख मिलते ही परी अपने दोनों बच्चों सहित स्वर्ग वापस चली गई ।

लकड़हारा अपनी गलती पर मायूस और शर्मिन्दा था पर...उसके पास इस अनपेक्षित घटनाक्रम से निपटने के लिए हिरण से बढ़कर कोई दूसरा सलाहकार भी नहीं था । हिरण ने लकड़हारे को जादुई फलियां दीं जिनकी मदद से लकड़हारा नश्वर मनुष्यों के लिए निर्धारित, अनेकों बाधायें पार करता हुआ स्वर्ग जा पहुंचा और उसे उसका परिवार दोबारा मिल गया । लेकिन मुश्किल ये थी कि लकड़हारे की बीमार मां धरती पर अकेली रह गई थी और लकड़हारे को उसकी फ़िक्र हो चली थी । लकड़हारे की फ़िक्र से हमदर्दी जताते हुए पत्नी ने उसे उड़ने वाला घोड़ा दिया ताकि वो धरती पर जाकर अपनी मां को लेकर स्वर्ग वापस आ जाये । पत्नि ने उसे यह भी कहा कि घोड़े से किसी भी हालत में अलग मत होना वर्ना स्वर्ग वापसी असंभव हो जायेगी ।

इस यात्रा के दौरान हुआ ये कि लकड़हारे ने गलती से अपनी मां की गर्म खिचडी घोड़े की पीठ पर छलका दी । घोड़ा उड़ने के लिए तैयार था । उसने अपने दोनों अगले पैर आकाश की ओर उठा लिए थे । लकड़हारे ने घोड़े की पीठ पर हल्की सी थपकी दी ताकि वो धीरज रखे पर घोड़े ने इसे रवानगी का संकेत समझा और स्वर्ग की ओर उड़ गया ।  लकड़हारा एक बार फिर से अकेला ही रह गया, धरती पर अपनी पत्नि और बच्चों के बिना । कहते हैं कि पत्नि के बिछोह से दुखी लकड़हारा कुछ अरसे बाद मुर्गे में तब्दील हो गया जो आसमान की ओर मुंह उठा कर चीखता है । अपने दुःख को अभिव्यक्त करता, मारा मारा फिरता है ।

ज़ाहिर है कि लकड़हारा निर्धन किन्तु सदाशय व्यक्ति था सो उसने घायल हिरण की जान बचाई । वो अपनी बूढ़ी और बीमार मां के साथ रहता था और उसकी शादी भी नहीं हुई थी । संभव है कि उस समय पशु पक्षियों और इंसानों की जागतिक अन्योनाश्रितता तथा सम्बन्ध, श्रेष्ठतम पायदान पर रहे होंगे । आख्यान का हिरण, दैवीय रूप से सक्षम और लकड़हारे को समुचित मार्गदर्शन देने की स्थिति में दिखाईं देता है । सो कह नहीं सकते कि हिरण का घायल होना और प्राण बचाने की एवज़ में लकड़हारे का अहसानमंद हो जाना, प्रतीकात्मक रूप से हिरण को हिरण ही बना रहने देगा । निश्चय ही कथा का यह पशु पात्र, हिरण केवल पशु पात्र नहीं है बल्कि उसे निर्धन लकड़हारे के शुभचिन्तक और मददगार दैवीय शक्ति के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए

कथा का नायक आर्थिक दृष्टि से समाज के निम्नतम तबके से ताल्लुक रखता है और उसमें सामान्य लोगों के जैसी चिंतायें हैं, वो सहज विश्वास करता है और फिर अपने निर्णयों पर पछताता है, उसकी सामान्यतायें / सहजतायें, उसकी असाधारण उपलब्धियों पर धूल डाल देती हैं । वो जीना चाहता है प्रेम के साथ, विश्वास और सदाशयता के साथ । पर उसका साधारण होना, सामाजिक  अभिजात्यता की गति से एक लय नहीं हो पाता और वो हमेशा वंचित हो जाता है, उस सुख से जो उसकी मुट्ठी से रेत सा फिसल गया हो । कहने को ये कथा कोरियाई द्वीप की है किन्तु एक सामान्य सा श्रोता भी इस जैसी अंतर्वस्तु वाली सैकड़ों गाथायें, भारतीय उपमहाद्वीप में खोज निकालेगा । कहन का मंतव्य ये है कि जन सामान्य के सपने, समूची दुनिया में कम-ओ-बेश एक जैसे होते हैं ।