शनिवार, 23 जून 2018

किन्नर - 25


एनकी / इया ने मृत देवात्मा पर जीवन जल छिड़कने के लिये अजीब सा जीव पैदा किया । सुमेरियन कथा के अनुसार उन्होंने दो जीव सृजित किये एक जीवन जल के लिये और दूसरा भोजन आपूर्ति के लिये । जबकि इसी कथा का अकाडियन संस्करण कहता है कि इया ने अपने पवित्र हृदय में उसकी छवि को धारण कर किन्नर पैदा किया, यह एक परिष्कृत निर्मिति थी । किन्नर का नाम असुशुनामिर था जोकि प्रतिभाशील दिखाई देता था, शुभ्रता / उजाले से आया हुआ । अच्छा दिखने वाला ।  

रानी इरेश्किगाल उसके आगमन पर बहुत प्रसन्न हुई और उसे वार देने को तत्पर हो गई , रानी इरेश्किगाल को उससे प्रेम हो गया । रानी को इससे फ़र्क नहीं पड़ता था कि वह किन्नर था क्योंकि वो स्वयं बांझपन और मृत्यु की देवी थी । जीवन और मृत्यु के मध्य, उर्वरता और अनुर्वरता का तथ्य महत्वपूर्ण है ।  रानी इरेश्किगाल को यह बाद में समझ में आया कि किन्नर असुशुनामिर जीवन जल से मृत देवात्माओं को जीवित करने का इच्छुक था, सो उसने क्रोध में आकर असुशुनामिर को बुरी नियति का श्राप दिया ।  

गल्प के सुमेरियन संस्करण के अनुसार किन्नर असुशुनामिर के सृजन कर्ता, एनकी / इया थे और गल्प संकेत यह है कि देवात्मायें मृत हो चुकीं थीं तथा उन्हें जीवित करने के लिये जीवन जल छिड़कने का कार्य किन्नर असुशनामिर द्वारा किया जाना था, अतएव उसे, एनकी / इया द्वारा सृजित किया गया ।  इस कथा में उसे अजीब सा जीव कहा गया है यानि कि असामान्य जीव, जोकि वो था, ना तो केवल स्त्री और ना ही सम्पूर्ण पुरुष ।  गौर तलब है कि एनकी / इया ने भोजन आपूर्ति के लिये किसी दूसरे जीव का सृजन भी किया किन्तु यहां पर, उसका उल्लेख करना विषयान्तर करने जैसा होगा ।  

बहरहाल कथा का अकाडियन संस्करण कहता है कि एनकी / इया ने, अपने पवित्र हृदय में उसकी छवि धारण कर के, उसे पैदा किया था इसलिये वो शुभ्रता से आया हुआ, अच्छा दिखने वाला और प्रतिभाशील दिखाई देता था । गल्प के इस संस्करण में, उसके जन्म से, बांझपन और मृत्यु की देवी इरेश्किगाल की आसक्ति और प्रसन्न होने का बयान अदभुत है । रानी इरेश्किगाल बांझपन और मृत्यु की देवी थी और असुशुनामिर स्वयं, किन्नर / बंध्याकृत / नपुंसक / अनुर्वर, तरह का जीव, सो गुण साम्य के आधार पर पारस्परिक अनुराग का कथन दिलचस्प है, सहज है, स्वभाविक है ।

लोक मानस में व्यापित इस गल्प में, देवी देवताओं के साथ किन्नरों की जागतिक उपस्थिति तथा जीवन बनाम मृत्यु को उर्वरता एवं अनुर्वरता से जोड़ा जाना बेहद महत्वपूर्ण है । इसके अतिरिक्त किन्नरों की दुर्दशा के लिये भी, इस कथा में प्रातीतिक संकेत मौजूद हैं यथा, रानी इरेश्किगाल को गुण साम्यता के आधार पर असुशुनामिर से प्रेम है और...प्रेम अपेक्षाएं जगाता है, जैसा कि इरेश्किगाल को असुशुनामिर से थीं ।

मृत्यु के लिये एक साथ, बांझपन के लिये एक साथ, अनुर्वरता के लिये एक साथ, किन्तु उस किन्नर को एनकी / इया ने रचा था, अपनी पवित्र आत्मा से, अनुर्वरता से उर्वरता के लिये, मृत देवात्माओं पर जीवन जल छिड़क कर, जीवन दान के लिये, अतः टूटती प्रणय अपेक्षाओं के साथ, रानी इरेश्किगाल का क्रुद्ध होना / मोहभंग, स्वभाविक था । सो किन्नर... सारे के सारे असुशुनामिर, प्रेम से अभिशापित हैं, आज भी ।