आज उसे फिर से बूझने का ख्याल क्यों आया ? कह नहीं सकता , कोई पक्की वज़ह , सूझती भी नहीं ! करना क्या चाहता हूं , ये बात समझ में तब आई , जब अपने हाथ में स्केल देखी ! इससे पहले भी ये अखबार किन्हीं विशिष्ट अक्षरों से अपने विशेष प्रेम को लेकर मेरे हत्थे चढ़ चुका था और आज जैसे ही इसे पढ़ना बंद करके स्केल थामी तो लगा कि मुझे इसके पहले और आख़िरी पन्ने की पैमाइश करनी है ! यूं तो ये अखबार कुल बारह पन्नों का है , पर मेरा ख्याल ये है कि किसी भी अखबार का पहला और आख़िरी पन्ना उसके व्यक्तित्व का सबसे अहम / सबसे खास हिस्सा हुआ करता है !
बहरहाल ... अखबार के पहले पन्ने में कुल मिलाकर 1980 वर्ग सेंटीमीटर कागज का इस्तेमाल किया गया है , जिसमें से 18 फीसदी हिस्सा राजनीति विषयक ख़बरों को समर्पित है ! कोई आश्चर्य नहीं कि इस 18 फीसदी में से कांग्रेस का हिस्सा सिर्फ 3 फीसदी है जबकि बाकी का 15 फीसदी हिस्सा भारतीय जनता पार्टी के हवाले है ! मुमकिन है कि चढ़ते और ढ़लते सूरज जैसा कोई राजनैतिक अनुमान इसकी पृष्ठभूमि में मौजूद हो ! पहले पन्ने की ख़बरों में अपनी 3 फीसदी हिस्सेदारी में , कांग्रेस पार्टी , अन्ना एंड कम्पनी से बचाव की मुद्रा अख्तियार करती हुई दिखाई दी , जबकि भाजपा की 15 फीसदी हिस्सेदारी में से पूरी पार्टी केवल 1 फीसदी में सिमटी हुई है और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बाकी के 14 फीसदी हिस्से पर काबिज हैं , हालांकि यह बात गौरतलब है कि मोदी के वक्तव्य में कांग्रेस का जिक्र , एक आक्षेपित पार्टी के तौर पर ही सही पर , ख़बरों में , कांग्रेस की हिस्सेदारी को बढ़ाता ज़रूर है !
आज के अखबार के पहले पन्ने का 15 फीसदी हिस्सा फिल्मों को समर्पित है , इसे हाल ही में आयोजित आइफा अवार्ड्स का असर माना जायगा ! इस पृष्ठ का 12 फीसदी हिस्सा , इस अखबार के नाम तथा अन्य विवरणों के साथ भीतर के पन्नों की मुख्य सुर्ख़ियों को संबोधित है ! इसके बाद ख़बरों का 9 फीसदी फोकस , नौकरशाही की ओर है , जिसमें से 4 फीसदी आइ.ए.एस. अधिकारियों और बाकी 5 फीसदी सेना के उच्चाधिकारियों के बारे में है ! इतना ही नहीं अखबार ने 8 फीसदी स्थान कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर से प्राप्त संपत्ति और पुरातात्विक धरोहरों से सम्बंधित ख़बरों को दिया है ! टीम अन्ना की सदस्य किरण बेदी के वक्तव्य ने अखबार के इस अहम पन्ने का 7 फीसदी हिस्सा घेरा हुआ है , नि:संदेह यह वक्तव्य कांग्रेस को निशाने पर रख कर दिया गया है ! सायना नेहवाल की उपलब्धियों के हिस्से इस पन्ने का 6 फीसदी हिस्सा आया है , इस पन्ने में खेलों की ये अकेली खबर है !
शिक्षा और युवाओं के लिए प्रतिस्पर्धात्मक विषय पर अखबार अपने मुख्य पृष्ठ में केवल 4 फीसदी जगह ही दे पाया है जबकि क़ानून व्यवस्था की हिस्सेदारी सिर्फ 3 फीसदी है , इतना ही नहीं , अखबार के नियमित स्तंभ के अंतर्गत मौसम के विवरण के लिए भी 3 फीसदी जगह खर्च की गई है ! रिश्वतखोरी से सम्बंधित खबरों की हिस्सेदारी सिर्फ 1 फीसदी है ! छपाई के फॉण्ट और हाशिये जैसे विवशताओं के चलते मुख्य पृष्ठ का कुल 14 फीसदी हिस्सा रिक्त छूट गया है ! अगर हम गौर करें तो इस अखबार का पहला पन्ना राजनीति , फिल्मों , खबर की सुर्ख़ियों , नौकरशाही , धर्मस्थल संपदा , एन.जी.ओ. और खेलों के घटते हुए क्रम में , ख़बरों को अहमियत देता है ! उसके मुखौटे में शिक्षा और प्रतिस्पर्धा तथा कानून व्यवस्था जैसे विषयों के लिए स्थान जरा कम ही है !
अखबार का आख़िरी पन्ना , पहले पन्ने के जितना ही कागज प्रयुक्त करता है , यानि कि 1980 वर्ग सेंटीमीटर लेकिन यह पूरा पन्ना ख़बरों से खाली है ! यहां पर 85 फीसदी जगह विज्ञापनों के लिए खर्च की गई है जबकि हाशिये वगैरह की वज़ह से 15 फीसदी जगह किसी भी उपयोग में नहीं ली जा सकी है ! विज्ञापनों के लिए अखबार की प्राथमिकता , मानव देह , उसका स्वास्थ्य और ऐसे ही अन्य दैहिक सुख दुःख है ! आख़िरी पन्ने की 54 फीसदी जगह में ऐसे ही विज्ञापन भरे पड़े हैं ! ‘काम जीवन’ की अभिवृद्धि वाले नुस्खों से सम्बंधित विज्ञापन इस पन्ने के 25 फीसदी हिस्से पर काबिज हैं , जिसमें से पौरुष को अनंत ऊंचाइयों तक ले जाने वाले विज्ञापन 22 फीसदी और स्त्रियों के दैहिक सौंदर्य को दिन दूना रात चौगुना श्रीवृद्धि देने वाले नुस्खे 3 फीसदी हिस्से पर मौजूद हैं ! इसके अतिरिक्त , स्त्री रोगों और उनके निदान सुझाने वाले विज्ञापनों को यह पन्ना 13 फीसदी जगह देता है ! विभिन्न स्वास्थ्यगत कारणों से सर्जरी को प्रेरित करने वाले अस्पतालों के विज्ञापनों ने 7 फीसदी स्थान घेरा हुआ है जबकि चर्मरोग से मुक्ति दिलाने वाले विज्ञापनों का हिस्सा 6 फीसदी और बवासीर से मुक्ति दिलाने वाले विज्ञापनों का हिस्सा 3 फीसदी है !
विज्ञापनों से लैस अखबार के आख़िरी पन्ने में शिक्षा और प्रशिक्षण से सम्बंधित विज्ञापनों की हिस्सेदारी सिर्फ 5 फीसदी है , जबकि म्यूजिक सिखाने तथा दो पहिया / चौपहिया वाहन खरीदने के लिए वित्तीय ऋण उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं के विज्ञापन क्रमशः 3 , 3 फीसदी जगह पर मौजूद हैं ! इसके अलावा , बीमा सुविधा / पासपोर्ट / लायसेंस / पेन नम्बर तथा किराये पर वाहन उपलब्ध करने वाली सेवाओं के विज्ञापन भी 3 फीसदी जगह पर काबिज हैं ! नौकरी के लिए रिक्तियों तथा इलेक्ट्रोनिक सामग्री के विक्रय से सम्बंधित विज्ञापन भी 2 , 2 फीसदी और टूर्स एवं ट्रेवल्स के विज्ञापन भी 2 फीसदी हिस्से पर मौजूद हैं ! इस पन्ने का 12 फीसदी हिस्सा अखबार ने स्वयं के विज्ञापन और हेड लाइन्स के लिए प्रयुक्त किया है ! मोटे तौर पर देखा जाये तो अखबार का आख़िरी पन्ना केवल विज्ञापनों के लिए प्रयुक्त हुआ है , किन्तु दैहिकता संबंधी विज्ञापनों में अखबार का खास रुझान अपनी कहानी आप कहता है ...
बढिया लगी आपकी पोस्ट ... ओर मुझे भी अखबार के मुख्यपृष्ट पर लिखी अपनी पोस्ट याद आ गयी,
जवाब देंहटाएंसंजय बाऊ ने कह रखा है - लिंक बिखरे कर जाने वाले कृपया अपना समय कहीं ओर लगाए - कुछ ऐसा ही कुछ....
अत: चाहते हुए भी लिंक नहीं दे रहा पूरी की पूरी पोस्ट ही यहाँ कटपेस्ट कर रहा हूँ :)
ये नए लोकतंत्र की बयार है
की-बोर्ड नज़र आ रहा है – मोनिटर नहीं, हाथ मोनिटर को सूझ रहे हैं...... जूझ रहे हैं.... खोज रहे हैं..... उस धडधड़ाती न्यूज़ के लिए.... जो पेज १ पर कम्पोज हो रही है.... रात्रि के अंतिम पहर में यह पहला पन्ना......... बहुत कुछ खाली है ... इन ख़बरों की तरह ..
कई खबरें गोल है उपरी माले में दिमाग की तरह.....
कई खबरे बे-पैंदे लोटे की तरह लपक रहीं है... अखबार के फ्रंट पेज पर ...... खाम्खाहं ... बेमतलब.. भ्रष्टाचार ....... घोटाला ....... गडबडझाला ....... मग्गा ला ....... बेकार की जिद छोड़....
जब बत्ती बना कर ये ‘नाईट की मेहनत’ पड़ा होगा सुबह बरामदे में.... लोग, इस अंतिम पहर के पहले पन्ने को छोड़ कर पलटेंगे तीसरा पन्ना....... उसके बाद .. देहली एन सी आर, व्यापार, तेरा मेरा कोना ..... ज्योतिष और सेल ..... सभी कुछ तो देखेंगे..... पर नहीं देखते ये सब पहले पन्ने को.....
इक आदत सी हो गयी है अब .. इन बाबुओं को ....... इन सब कीटाणुओं के साथ जीते हुवे ....... इन विषाणुओं को पीते हुवे..... स्टेंडर्ड अपना-अपना है..... रकम उनकी लाख-करोड़ों में हुई तो क्या हुवा....... अब ‘अपुन’ भी तो हरे गांधी के नीचे नहीं मानता....
चाय की चुस्की के साथ मैडम भी पूछती है....... सन्डे इव मॉल रोड चलेंगे........ डिकोस्टा क्रिअशन में इटालियन स्टेंडर्ड का माल आया है .... भारी सेल पर .....
और पहला पन्ना ...... वहीँ कहीं क्रिकेट (खेल) के पन्ने के नीचे छुप सा जाता है ...... ८० पॉइंट बोल्ड की हेडलाईन गौण हो जाती है, बाकि सब हाई लाईट है....... बिना किसी टाईपोग्राफी के .....
ये नये जमाने की नयी सुबह है.... थोड़ी बहुत कालिमा लिए हुए .... पर सब चलता है, क्या है कि ये नए लोकतंत्र की बयार है - कौन पूछता है सरदार की सरदारी को....... 'कंट्रोल एस' की तरह सब कुछ पुख्ता है राजमाता के ब्रह्मवाक्य की तरह....
दीपक जी ,
हटाएंये संजय बाऊ भी जो ना करायें :)
एक तरह से ठीक ही हुआ जो लिंक खोल कर वहां पहुंचने की तुलना में सीधे सीधे पोस्ट पढ़ने को मिल गई इससे बेहतर और क्या हो सकता है :)
पहले पन्ने से जी उचाट रखने वाले बन्दों पे ऐसी भी क्या नाराज़गी :)
आप पहले पन्ने का सीरियस पाठक मान लीजिए मुझे :)
अच्छा, तो ये साजिश चल रही है संजय बाऊ के खिलाफ? देख लेंगे :)
हटाएंये लेओ जी , भाई ने दोस्ती का नाम साजिश रख दिया :)
हटाएंआ जाना - दिखा देंगे :)
हटाएंजरूर आऊँगा बाबाजी|
हटाएंआप अखबार खरीदते हैं समाचार के लिए
जवाब देंहटाएंछाप रहे हैं वे इसे फ़कत व्यापार के लिए।
राजनीति, नौकरशाही, फिल्म और विज्ञापन
मसाला सभी यह चाहिए दरबार के लिए।
वो छापते हैं इसे फ़कत व्यापार के लिए
हटाएंलोग पढ़ते हैं इसे देह की हुंकार के लिए
आप चाहें तो हुंकार की जगह टंकार भी पढ़ सकते हैं :)
...यह प्रतिशोधी ललकार भी हो सकती है |
हटाएंसंतोष जी ,
हटाएंयूं तो 'फुंकार' भी हो सकता है :)
भाजपा को ज़्यादा हिस्सा मिलकर भी मोदी की वज़ह से कांग्रेस को इसमें बढ़त मिल गई...अखबार के न चाहने पर भी...!
जवाब देंहटाएंयह हिसाब-किताब कैसे किया है आपने....अच्छा स्केल लेकर,बहुत ही फुरसत में हैं आप !
...अब शायद ही कोई नए अखबार वाला आपको अपना अखबार भेंट करेगा,उसका पूरा पोस्ट-मार्टम या यूँ कहें तियाँ-पांचा कर दिया है !
...आपके पास सर्वे कम्पनी वालों के भी ऑफर आ सकते हैं,बैठे-ठाले इतना बारीक़ काम इतनी आसानी से...उफ़,आप सच्चे शोधकर्ता हैं !
संतोष जी ,
हटाएंआपने शायद ध्यान नहीं दिया , मैंने कहा...
"एक 'आक्षेपित' पार्टी के तौर पर ही सही पर , 'ख़बरों में' , कांग्रेस की 'हिस्सेदारी' को 'बढ़ाता' ज़रूर है"
शुभकामनायें बनाये रखियेगा :)
अली साब,यह मैं समझ गया था,मैंने केवल इस लिए उल्लेख किया था क्योंकि यह हिसाब आपने बड़ी बारीकी से लगाया था |
हटाएंशुक्रिया :)
हटाएंयह हिसाब किताब पसंद आया भाई जी ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको!
सतीश भाई ,
हटाएंआपको पसंद आ गया तो अब किसकी चिंता करूं और क्यों करूं :)
अच्छा तो अली साहब यह सारी नाप-तोल सतीश जी के हिसाब-किताब की चिंता मिटाने के लिए थी :)
हटाएंहम सब का क्या? जब आपने कह दिया-अब किसकी चिंता करूं और क्यों करूं :)
प्रिय सुज्ञ जी ,
हटाएंचिंता ना करें , नाप तौल वाला आयटम सतीश भाई को समर्पित किया है तो आपके लिए भी कोई ना कोई व्यवस्था ज़रूर की जायेगी :)
अली सा,
हटाएंकोई ना कोई क्यों, आपने एक 'आहार' आयटम का वादा किया हुआ ही है उसी की प्रतिक्षा में आपकी गली के चक्कर लगते है :)
'नैतिकता के अपने अपने मानदंड' पर भी चर्चा अधूरी है वही हो जाय :)
हाहाहा ! याद है मुझे पर ये दोनों पोस्ट कुछ खास हैं देखिये जिस दिन भी मूड बन जाये !
हटाएंआंकड़ों का सच, आंकड़ों का झूठ.
जवाब देंहटाएंफेंस पे खड़े हुए कमेन्ट का क्या किया जाये :)
हटाएंनापा हुआ अखबार सुरक्षित है अगर फिर से नापना चाहें तो :)
आपने विज्ञान की व्याप्ति का उल्लेख नहीं किया जो महज 3 फीसदी है :(
जवाब देंहटाएंबढियां विश्लेषण है !
अरविन्द जी ,
हटाएंइस अखबार के आज के एडिशन के मुख्य पृष्ठ में विज्ञान विषयक कोई समाचार नहीं है , इसलिए जबरिया उल्लेख कैसे करता !
अखबार का हिसाब किताब बड़ा ही नपा तुला है. ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विश्लेषण ..
कविता जी ,
हटाएंबहुत आभार !
फीता लेकर बैठेंगे अली साहब तो सरकारी गैर सरकारी विज्ञापनों, ग्लैमर के तड़के को दरकिनार कर देखियेगा, जीरो फिगर हाथ में आने का पूरा चांस है|
जवाब देंहटाएंसो तो है :)
हटाएंअखबार को कोई इस तरह भी पढता है :)
जवाब देंहटाएंहम तो सम्पादकीय पृष्ठ के अतिरिक्त कोई पन्ना ध्यान से नहीं पढ़ते , नाप जोख तो दूर की बात है . राजनीति और मार- काट, हत्या और से जुडी खबरे पतिदेव के समाचार प्रेम के कारण जरुरत से ज्यादा टी वी पर देखनी पड़ ही जाती हैं!
पढ़ता ? हम तो उसे अक्षर अक्षर खा पी के उगल देते हैं :)
हटाएंआपके पतिदेव की अभिरूचि जानके यही कह सकता हूं कि घर घर की यही कहानी है :)
सही कहा..अखबारों में पढ़ने लायक कुछ होता भी नहीं...पर पढ़े बिना रहा भी नहीं जाता
जवाब देंहटाएंवैसे...आपने ये नहीं बताया...ये कौन सा अखबार था...'हिंदी ' का या 'अंग्रेजी' का ?
शायद लोगों को बुरा लगे...पर सच तो यही है...भले ही हिंदी में लिखती हूँ..कहानियाँ..कविताएँ...हिंदी की ही अच्छी लगती हैं..पर अखबार नहीं.
मुंबई में तो 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' के साथ दो सप्लीमेंट्स आते हैं..'मुंबई मिरर ' और 'बॉम्बे टाइम्स'...तीनो अखबारों में अच्छी खासी सामग्री मिल जाती है,पढ़ने को.
पटना जाती हूँ तो सबसे ज्यादा मिस करती हूँ यहाँ के अखबार.
घर में कई अखबार आते हैं उनमें से एक हिन्दी अखबार है , पहले भी इसके बारे में लिखा था शायद लिंक आपने देख लिया होगा , अखबारों के पारस्परिक प्रतिस्पर्धात्मक और अन्य कुछ निज कारणों को ध्यान में रखकर उसका नाम सार्वजनिक रूप से डिस्प्ले करना उचित नहीं लगा ! पर आपको बता ही दूंगा :)
हटाएंVINOD DUA LIVE KE TARZ PE PADHA.....PADHA KYA DEKHA...??
जवाब देंहटाएंPRANAM.
सञ्जय जी ,
हटाएंविनोद दुआ का नाम आपने क्या लिया कि मैं बीबी से फरमायश कर बैठा , आज कुछ जोरदार चीज़ बनाई जाये :)
नाप जोख़ सही है
जवाब देंहटाएंपर हमेशा यह प्रश्न बना रहता है कि………
व्यापारी बेचते है इसलिए मांग है या
ग्राहक खरीदते है इस लिए आपूर्ति है।
व्यापारी से पूछो कि क्यों बेचते हो तो जवाब होता है ग्राहक की मांग है।
ग्राहक से पूछो कि क्यों खरीदते हो तो जवाब होता है यही तो उपलब्ध है।
पता नहीं अमूल्यन या पतन के लिए जवाबदार कौन है?
प्रिय सुज्ञ जी ,
हटाएंमामला दोतरफा है ये सच है !
...पर इसमें अक्सर एक पक्ष दूसरे की मजबूरी का फायदा उठा लेता है :)
जैसे शाम को अगर सब्जियां खराब हो रही हों / होने की आशंका हो तो ग्राहक , सब्जी विक्रेता से फायदा उठा सकता है ! वैसे ही विक्रेता ग्राहक को निपटाने का कोई मौका नहीं छोड़ता :)
इसलिए उस समय के हालात को ध्यान में रख कर , अवमूल्यन के लिए दोनों में से किसी एक को जिम्मेदार माना जाना चाहिये ! लेकिन मोटे तौर पर दोनों ही जिम्मेदार हैं !
अवमूल्यन के लिए इन दोनों के अलावा एक तीसरा पक्ष अधिक जिम्मेदार है जो इनके लोभ,लालच,तृष्णा और प्रलोभन को संरक्षण समर्थन व प्रोत्साहन देता है।
हटाएं:) :)
हटाएंसुज्ञ जी की बात के परिपेक्ष्य में बता रहा हूँ कि लंबे समय तक 'जनसत्ता' विश्वसनीयता के पैमाने पर खरा उतरता रहा(कम से कम मुझे ऐसा लगा) लेकिन वही बात हुई, इस चक्कर में सरकारी विज्ञापन न के बराबर मिले और चटपटी ख़बरें वहाँ छपती नहीं थी, लुप्तप्राय हो गया| TOI, HT जैसे अखबार डेढ़ दो रुपये में चालीस चालीस पेज, वो भी बेहतर क्वालिटी और रंग संयोजन के साथ देते रहे, छाते रहे|
हटाएंजनसत्ता का उदाहरण बढ़िया दिया आपने ! एकबार सरकार के खीसे में पहुंचा पैसा पलटकर 'जन' सत्ता का मुंह भी नहीं देखना चाहता :)
हटाएंबरास्ता सरकार भी जनता लुट रही है और सीधे सीधे बतौर उपभोक्ता भी , उसके पास खोने के सिवा है ही क्या ?
आज इतनी फुर्सत में कैसे भाई ?
जवाब देंहटाएंवैसे अख़बार पर थीसिस पसंद आई . :)
छुट्टियां तो चल ही रही हैं डाक्टर साहब , बस तीन दिन और :)
हटाएंछुट्टियों पर तो हम भी थे लेकिन नेट से दूर हो गए थे . पहाड़ों में नहीं मिलता न. :)
हटाएंहिन्दी चैनलों के अंतर्रष्ट्रीय संस्करणों के समाचार बुलेटिन देख लेंगे तो ये अखबार सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे। पूरे बुलेटिन के समन्दर को खाली कर लें तो शायद एकाध समाचार किसी तली में गढा हुआ मिल जाये। इनके बुलेटिन से ज़्यादा खबर तो पडोस के बच्चों की बेबी-टाक में मिल जाती है।
जवाब देंहटाएंहिन्दी चैनलों के देशी प्रोग्राम ही ले लीजिए , वे खास और सबसे पहले , आपके लिए जो भी सनसनीखेज़ विषय लाने का दावा करते हैं , लंबे समय तक 'कहन' आगे नहीं बढ़ती ! स्क्रीन पर मौजूद कोई बेहूदा बंदा एक ही वाक्य लगातार रिपीट करता रहता है और पृष्ठभूमि से सांगीतिक शोर उठता है ! एक कदम आगे दो कदम पीछे की तर्ज़ पर संवाद अदायगी ! ढेंचू ढेंचू की शैली में !
हटाएंहम लाये हैं सिर्फ आपके लिए सबसे पहले
सबसे पहले हमारा चैनल आपके लिए
हम लाये हैं पहले पहल
सिर्फ आपके लिए
कहीं मत जाइयेगा
बने रहिएगा हमारे साथ
आप जान जायेंगे ...का रहस्य
...रहस्य से आज पर्दा उट्ठेगा
हमारा चैनल , सबसे पहले आपके लिए
कहीं मत जाइयेगा
आप जान जायेंगे सबसे पहले
मिलते हैं छोटे से ब्रेक के बाद
सारे प्रोग्राम में बस यही इरीट्रेटिंग शैली , रुमाल को चादर बनाने की अदभुत कला :) हासिल ज़ीरो :)
कमेंट पढ़ के आनंद आया।
हटाएंमास्टर जी , आखरी पन्ना एक बलान्ग छोटा कर दीजीये !
जवाब देंहटाएंआखिरी पन्ना बहुत संभल कर काटा और सिला है वर्ना उसमें पहले से ही क्या क्या मौजूद था कहना कठिन है :)
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