एक दिन परमात्मा ने आकाश से धरती पर देखा तो पाया कि दो बहने , सेम की फलियां तोड़ रही थीं ! वो आकाश से उतर कर उनके पास आया और पूछा कि तुम लोग क्या कर रही हो ? छोटी बहन जिसका नाम फुकान था , उसने कहा , हम लोग सेम इकट्ठा कर रहे हैं , लेकिन इसमें बहुत समय लग रहा है ! परमात्मा ने बड़ी बहन से कहा , मुझे एक फली दो ... और उसने फली लेकर , टोकरी में डाल दी , टोकरी फ़ौरन ही फलियों से भर गई ! फुकान यह देख कर हंसी तो परमात्मा ने उससे कहा , मुझे एक फली तुम भी दो , फिर परमात्मा ने फुकान की टोकरी भी फलियों से भर दी ! इसके बाद परमात्मा ने फुकान से कहा कि घर जाकर तीन खाली टोकरियां और ले आओ ! घर पहुंच कर फुकान ने तीन खाली टोकरियों की मांग की तो उसकी मां ने कहा , वहां तो ज्यादा सेम नहीं हैं तुम्हें टोकरियों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी , इस पर फुकान ने कहा कि वहां एक नवयुवक आया है जो एक फली से पूरी टोकरी भर देता है ! यह सुनकर फुकान के पिता ने कहा , उन्हें घर ले आओ वो ज़रूर देवता होंगे !
फुकान , पूर्व की तरह , तीनों खाली टोकरियां , सेम की फलियों से भरवाकर अपनी बड़ी बहन और परमात्मा के साथ घर वापस लौटती है ! जहां परमात्मा द्वारा पीने का पानी मांगने पर फुकान के पिता उसे नारियल पानी देते हैं , जिसे देखकर वो कहता है , कि अगर मैं आप लोगों के साथ रह जाऊंगा तो बहुत शक्तिशाली हो जाऊंगा ! अगली सुबह परमात्मा दड़बे में एक मुर्गी और कुछ चूजों को देखता है , जिस पर फुकान का पिता , उसे आश्वस्त करता है , कि सारे चूजे उनके अपने और पालतू हैं ! तब परमात्मा चूजों को चावल के दाने देता है , जिसे खाकर चूजे तेजी से बड़े होकर मुर्गी और मुर्गे बन जाते हैं ! फुकान का पिता , परमात्मा से अपने पालतू सूकरों की लघु काया का दुखड़ा रोता है , जिस पर परमात्मा सूकरों को एक बाल्टी भर शकरकंद की पत्तियां खाने को देता है , जिसके परिणाम स्वरूप सूकर तेजी से बड़े और विकसित हो जाते हैं !
यह सब देखकर फुकान का पिता परमात्मा को अपना बड़ा दामाद बनाने की इच्छा व्यक्त करता है किन्तु परमात्मा , बड़ी बहन के बजाये फुकान से ब्याह करने को सहमत होता है ! परमात्मा अपने ब्याह में भोज देना चाहता है , यह जानकर फुकान का मामा अत्यन्त क्रोधित होकर परमात्मा से पूछता है , यहां चावल नहीं , सूकर मांस नहीं , यहां तक कि चिकन भी नहीं हैं , तो तुम भोज कैसे दोगे ? किन्तु परमात्मा उसे भोज के लिए आश्वस्त करता है ! अगली सुबह गांव के लोग परमात्मा के अनुरोध पर पेड़ों की छोटी छोटी टहनियां लाते हैं , लेकिन इससे असंतुष्ट परमात्मा स्वयं जंगल से दो बड़े पाइन वृक्ष काटकर लाता है और आग जलवाकर दस बर्तनों में पानी उबलने के लिए रखवा देता है ! यह देखकर मामा उसका उपहास करता है कि चावल कहां हैं ? जिस पर परमात्मा एक छोटी सी टोकरी भर चावल से आग पर चढ़े पांच बड़े बर्तन भर देता है !
इसके बाद परमात्मा उदघोष करता है...‘यिष्टजाओ’ जिसे सुनकर जंगल से कुछ हिरन भागते हुए आते हैं , पर वे परमात्मा के काम के नहीं थे ! अतः वो फिर से उदघोष करता है , जिसे सुनकर जंगल से कुछ सूकर भागते हुए आते हैं ! परमात्मा उन्हें पकड़ने का आग्रह गांव वालों से करता है ! वे सभी एक एक सूकर पकड लेते हैं , किन्तु मामा बड़ा सूकर पकड़ने की लालच में भाग दौड़ कर थक जाता है , परमात्मा यह देखकर हंसता है और फिर उसे वह सूकर पकड़ कर देता है , जिसे मामा यह कहते हुए छोड़ देता है कि मैंने इसे दौड़ा दौड़ा कर थका दिया था इसलिए तुम इसे पकड़ पाये हो ! यद्यपि परमात्मा उसे फिर से पकड़ लेता है और फिर खाने पीने का दौर चलता है तथा आत्माओं को भेंटें चढाई जाती हैं ! लेकिन अब वे सभी प्यासे थे ! मामा , परमात्मा से पानी उत्पन्न करने के लिए कहता है ! गांव के लोग प्यास से परेशान होकर लड़ने लगते हैं , किन्तु परमात्मा उन्हें शान्ति से बैठने की सलाह देता है और अपने भाले से एक चट्टान में छिद्र कर देता है , जहां से पानी का स्रोत फूट पड़ता है ! परमात्मा मामा को पहले पानी नहीं पीने देता बल्कि गांव के लोगों को प्यास बुझाने देता है और अंत में मामा को यह कहकर चट्टान में धंसा देता है कि तुमने मुझे बहुत परेशान किया है ! अब तुम यही रहो और फिर गांव के सभी लोग वापस गांव लौट आते हैं !
कुछ दिनों बाद परमात्मा वापस आकाश लौटना चाहता है , लेकिन इससे पहले वो अपनी पत्नि की परवाह करते हुए उसके लिए लकड़ी का एक ताबूत तैयार करता है और फुकान को उसमें बंद करके नदी में प्रवाहित कर देता है तथा गांव के लोगों से कहता है कि इसे कोई टिंगलियान तक पहुंचने से पहले ना तो रोकेगा और ना ही खोलेगा ! टिंगलियान में एक विधुर मछलियां पकड़ने आया हुआ था , उसने ताबूत को रोका और उसे खोला ! चूंकि उसकी पत्नी नहीं थी इसलिए उसने फुकान से ब्याह कर लिया !
जैसा कि ,दक्षिण पूर्व एशिया प्रशांत क्षेत्र की यह कथा परमात्मा के चमत्कारों से भरने वाली टोकरियों और चूजों तथा सूकरों के संपुष्ट होने से शुरू होती है , तो मेरा अभिमत यह है कि परमात्मा के अवतार पर विश्वास के साथ ही यह कथा सांकेतिक रूप से इस बात पर बल देती है कि परमात्मा ने एक नवयुवक के रूप मनुष्यों को वनस्पतियों / सब्जियों के अच्छे उत्पादन की तकनीक सिखाई होगी और साथ ही मुर्गी और सूकर पालन के बेहतर गुर भी सिखाये होंगे ! परमात्मा ने फुकान के परिवार को समझाया कि मुगियों और सूकरों के लिए कौन से खाद्य पदार्थ बेहतर हैं ! स्वयं की प्यास के नाम से परमात्मा , नारियल के पानी के शक्तिवर्धक होने का सन्देश भी उस परिवार / समाज को देता है ! इस आख्यान को बांचते हुए यह कहना मुश्किल है कि परमात्मा ने छोटी लड़की को पत्नि के रूप में क्यों पसंद किया पर इस तरह की घटना प्रायः आज के समाज में भी घटते हुए देखी जाती है !
दूल्हे के रूप में , अपने ब्याह के भोज का सारा भार स्वयं वहन करके , परमात्मा लड़की के परिजनों को व्यय भार से मुक्त रखता है और एक बड़ा सन्देश देता है कि वर पक्ष को क्या करना चाहिये ! गौर तलब है कि इससे पहले के मुर्गियों और सूकरों के पालन प्रसंग से स्पष्ट होता है कि , लड़की के पिता के पास भोज के लिए सूकर और चिकन उपलब्ध थे , किन्तु वर अपने ससुर की इस सामग्री का उपयोग नहीं करता ! वह गांव वालों को धरती से पानी निकालना सिखाता है और प्यास जैसे प्राण लेवा / कठिन संकट के समय में शांत और संयत बने रहने की शिक्षा देता है ! परमात्मा के ब्याह में अन्य ग्रामीणों की तुलना में मामा का कार्मिक योगदान शून्य रहता है और वह एक निठल्ला तथा केवल उपहास उड़ाने वाला व्यक्ति सिद्ध होता है अतः प्रतीकात्मक रूप से उसे गांव से बाहर छोड़ आने / निष्काषित करने का दंड भी ध्यान देने योग्य है ! अपने आकाश गमन / अपनी मृत्यु से पूर्व , परमात्मा अपनी पत्नि के पुनर्विवाह की व्यवस्था करता है ! जिससे यह स्पष्ट होता है कि वैधव्य / विधुरता और पुनर्विवाह को लेकर उस समाज को कितना महत्वपूर्ण सन्देश दिया गया है !
कहानी बिलकुल परियों के देश जैसी है.जो बात आप पूछना चाह रहे थे कि परमात्मा ने छोटी बहन से ब्याह क्यों किया तो मुझे यही समझ में आया कि परमात्मा का सबे पहले संवाद उसी से हुआ था और पहला प्रेम का अंकुर वहीँ से फूटा होगा !
जवाब देंहटाएंबाकी और व्याख्याएं आपने कर ही दी हैं,मैं उसमें क्यों दखल करूँ...?
संतोष जी,
हटाएंपरमात्मा द्वारा छोटी बहन से ब्याह करने के बारे में आपका अनुमान सही भी हो सकता है ! आभार !
@परियों के देश
हटाएंइसे तिलस्मी कहना चाह रहा था...!
ठीक है , मैं इसे तिलस्मी ही पढूंगा !
हटाएंपरमात्मा ने फुकान को क्यों पसंद किया? यही इस कथा में समझना शेष है। वह परमात्मा था। उसे पता था कि एक दिन जाना है। जिससे ब्याह करेगा उसे छोड़ना पड़ेगा। फुकान से प्रेम करता तो फुकान से विवाह क्यों करता? विवाह तो उसे बस इसलिेए करना था कि उसे समाज को सीख देनी थी। कहीं वह विधुर के लिए कन्या की तलाश में तो नहीं था मान लिया जाय कि था। फिर भी यह प्रश्न उठता है कि उसने फुकान को ही क्यों चुना?
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी ,
हटाएंइस प्रश्न का उत्तर मुझे कथा में नहीं मिला , इस विषय में संतोष जी का अनुमान एक वैकल्पिक उत्तर हो सकता है या शायद नहीं भी !
समाज में पुनर्विवाह होने चाहिये यह संकेत बहुत स्पष्ट है किन्तु विवाह किसी विशिष्ट लड़की से ही क्यों किया गया ? इसका कोई खुलासा नहीं मिलता !
Shayad iska arth yah ho ki byah aur prem par umr kee seema aur janm ke bandhan nahi hone chahiye.
हटाएंYadi chhoti bahan kisi se, aur koi usse prem karta ho, to sirf isliye byah rok kar rakhna ya badi,se us vyakti kq byah kareanq anuchit hai ki yah chhoti( naasamajh hai, vah pahle us yuvak par hansi thre) aur doosree badee (samajhdar) hai.
परमात्मा ने प्रतीकात्मक रूप से धरती पर निवास करते प्राणियों के जीवन को सुचारुपूर्वक चलाने के तरीके सुझाये और निपट आलसियों के लिए सजा का प्रावधान भी !
जवाब देंहटाएंईश्वर से क्या- क्या नहीं करवा लिया इस इंसान ने !
यह तो जल प्लावन की कथा नहीं ....सालियों की मोह का यह आदि उद्धरण है .....ये सालियाँ मूल से इतनी शोख क्यों होती हैं यह आप बतायें या वाणी जी -किसी और से नहीं सुनने का :)
हटाएंवाणी जी ,
हटाएंवास्ते "ईश्वर से क्या- क्या नहीं करवा लिया इस इंसान ने"
100 / 200 / 1000 या जितने भी प्रतिशत आप कहें , सहमत हूं आपके इस कथन से !
अरविन्द जी ,
हटाएंसालियां :) यहां कहां से आ गईं :) उनके शोख होने का अनुभव मुझे नहीं है :)
पंडित जी! आपका ध्यान सालियों पर है [कथा में एक ही साली है-कोई बात नहीं :)]किन्तु बाप के साले का क्या?? युगों-युगों से पिटता आ रहा है बेचारा.. कंस और शकुनी जैसे मामा तो फिल्मों में भी भरे पड़े हैं!!
हटाएंये परमात्मा तो बड़ा समझदार टाइप जीव जान पड़ता है.
जवाब देंहटाएंस्मरण रहे , वो किसी अन्य समुदाय का परमात्मा है और उसके बारे में आपको जो उचित प्रतीत हुआ होगा वो आप कह रहे हैं !
हटाएंधमकी है या चेतावनी? :)) जो परमात्मा हो कर भी अपने समुदाय तक सीमित रहे, मुझ तक न पहुंच पाए, तो फिर क्या कहना उसके लिए.
हटाएंस्मरण रहे माने स्मरण रहे :) बाकी , आप जितने चाहें अर्थ निकाल लें , आपकी मर्जी :)
हटाएंपरमात्मा के मसले पे सैद्धांतिक और व्यक्तिगत रूप से हम आपके हमख्याल हैं , लेकिन व्यवहारिक रूप से भिन्न भिन्न समाजों की इस 'समझ' का क्या किया जाये , कि उनका परमात्मा दूसरों के जैसा नहीं होता ! क्या आपको नहीं लगता कि मनुष्यों के दरम्यान , सारे क़त्ल-ओ-गारत / दंगे फसाद , समाजों की इसी समझ का नतीजा हैं !
Sundar sandesh deti hui rochak katha.
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया !
हटाएंविनोद से इतर यदि इस पूरे प्रसंग को देखें तो परमात्माओं का निवास जहाँ होना बताया गया है वह ऐसा लोक है जहाँ इच्छाएं जन्म लेते ही साकार हो जाती हैं, अप्सराएं नृत्य करती हैं और सुंदरियां चारण.. किन्तु सुख अवश्य उबाऊ होता होगा, तभी परमात्मा धरती पर साधारण मनुष्य के रूप में प्रकट होते रहे हैं.. (इन्द्र-गौतमी आदि)
जवाब देंहटाएंछोटी को क्यों पसंद किया, इसका तत्काल जो उत्तर ध्यान में आता है वह "हँसी तो फंसी" ही हो सकता है.. (फुकान यह देख कर हंसी तो...) बाद के आख्यान में अपने प्रेम को पाने में एक साधारण प्रेमी की तरह सब करने को तैयार और जो सन्देश आपने बताया वह निहित रहा होगा... एक बात समझ में नहीं आई कि जब उसने साधारण मनुष्य की तरह फुकान का हाथ माँगा तो (बाद की घटनाओं में) चमत्कार की क्या आवश्यकता रही होगी!! अगर उसने अतिमानव का रूप/चरित्र त्याग दिया होता तो कदाचित "कुछ दिनों बाद" आकाश में वापस लौट जाने की इच्छा न होती!!
एक और बात जो तत्काल मन में आती है उसपर किसी ने कुछ नहीं कहा.. इसका मेरा अपना एक तर्क है, मगर वो बाद में कभी.. अभी यह कहना कि पंडित जी ने साली की बात कही, किन्तु बेचारे पिता के साले की बात भूल गए.. बचपन से अबतक सुने समस्त आख्यानों में मामा का चरित्र ऐसा ही दिखाया जाता है.. शकुनी, कंस, और तो और बन्दर मामा, चन्दा मामा आदि.. और विदेशी आख्यानों में भी ऐसा ही है जानकर मुस्कुराकर रह गया. इसलिए उसका (मामा का) परिणाम तो वही होना था जो सदा से लोकाख्यानों में होता आया है.. किमाश्चर्यम!!
वैसे यह परमात्मा ससुराल वालों की मदद करता रहा चाहे सिखाने के नाम पर ही.. और जैसा कि मैंने कहा फिर वही ऊब.. फुकान से, प्रेम से, गाँव वालों से, उस प्रदेश से और चल दिया आकाश में (मृत्यु वाले निष्कर्ष से असहमत) ... अंत में उसका निर्देश कि उस सुनिश्चित स्थान से पूर्व उस ताबूत को कोई न खोले, यह शंका उत्पन्न करता है कि वह विधुर व्यक्ति उस परमात्मा का कोई मित्र रहा हो, कोई मिली-भगत, कोई षड़यंत्र, कोई आभार, कोई वरदान, कोई सन्देश, कोई भविष्य की घटना का बीज!!
पुनः कहूँगा कि लोकाख्यान मुग्ध करते हैं और अक्षरशः पढ़ने/समझने से आगे की बात कहते हैं!!
/
[पुनश्च, एक व्यक्तिगत सन्देश: सोमवार को पलायन]
post par kuch kahne ko ali sa chorte nahi.....aur udhar ki tip kab tak chalegi
हटाएं.......
@punasha : somvar ko palayan nahi 'prasthan' kahen....
pranam.
सलिल जी ,
हटाएंसबसे पहले सोमवार और उससे आगे के समस्त समय की शुभता के लिए अशेष दुआयें !
आपकी प्रतिक्रिया के एक अंश में किंचित संशोधन चाहूंगा , बाकी सब दुरुस्त ...परमात्मा ने शादी की पहल स्वयं नहीं की / हाथ नहीं मांगा बल्कि कन्या के पिता ने उसे अपना दामाद बनाना चाहा ,पहल की , इसके बाद ही परमात्मा ने अपने पत्ते खोले :) शायद यही कहना सही रहेगा :)
मामाओं को निपटाने के प्रसंग हमारी और उनकी कथा की समानता को उजागर करता है , इस तथ्य को अपनी व्याख्या में जोड़ने की आपसे अनुमति चाहूंगा !
कोई आश्चर्य नहीं कि अरविन्द जी ने सालियों के बारे में मुझसे पूछा :) पर आश्चर्य यह है कि वाणी जी से देवरों के बजाये सालियों के बारे में सवाल क्यों :)
परमात्मा के आकाश गमन / मृत्यु के दोनों विकल्प मैंने खुले रखे थे ! इसमें से एक आपने खारिज कर दिया ! चलेगा ! टिप्पणी में परमात्मा की विधुर से मित्रता / मिली भगत / षड्यंत्र / आभार / सन्देश / वरदान / भविष्य की किसी घटना का बीज , वाला अंश आकर्षित करता है ! इस दृष्टिकोण से भी सोचा जा सकता है ! सहमत हूं ! आपकी प्रतिक्रिया प्रविष्टि को समृद्ध कर रही है !
सञ्जय जी ,
हटाएंसलिल जी के साथ अन्याय हुआ है , उनके अधिकारियों ने उनका पक्ष सुना ही नहीं , संभवतः इसी मनःस्थिति में वे पलायन कह बैठे होंगे !
आप टिप्पणी ना भी करें तो क्या ? आपका आगमन ही सुखकर है !
अली सा,
हटाएंसंशोधन स्वीकार्य.. अनुमति खारिज.. मुझसे किसी भी अंश/वक्तव्य की अनुमति की इच्छा मुझे शर्मिन्दा करने जैसा है..
संजय जी मेरे अनुज हैं और प्रिय भी है.. उनका प्रेम है जो उन्होंने दर्शाया है.. और आपका स्पष्टीकरण भी उचित..
संजय जी, मैंने जानबूझकर पलायन कहा था.. कल फेसबुक पर भी मैंने लिखा कि अंततः दिल्ली कार्यालय से मेरा पत्ता साफ़ कर दिया गया, जिसका तात्पर्य मुझे कार्यमुक्त किये जाने से था.. जैसा अली सा ने कहा परिस्थितियाँ बड़ी विकत कर दी गयी थीं मेरे लिए!! मृत्यु से भय नहीं लगता, मृत्यु के प्रकार से घबराता है इंसान!!
संजय जी, आशीष!! इतना प्यार कहाँ समेट पाउँगा!!
लोक आख्यान के सबके अपने -अपने इंटरप्रेटेशन हैं...
जवाब देंहटाएं@ "इससे पहले वो अपनी पत्नि की परवाह करते हुए उसके लिए लकड़ी का एक ताबूत तैयार करता है और फुकान को उसमें बंद करके नदी में प्रवाहित कर देता "
इसे पत्नी की परवाह करना समझा गया (आख्यान में ही ) ??...पुनर्विवाह का संदेश जरूर महत्वपूर्ण है...पर इसमें लड़की की मर्जी का कोई ख्याल नहीं रखा गया..लड़की को एक वस्तु की तरह ट्रीट किया गया...यानि कि सदियों से संसार के हर कोने में यही चलता आ रहा है..
छोटी बहन से शादी करने की वजह तो यही लगी कि वो बातूनी थी..चंचल थी..स्मार्ट थी.
पहली बार सवाल का जबाब उसने दिया....हंसी भी..घर से टोकरी भी वही लेकर आई....परमात्मा का संवाद उस से ही हुआ..
रश्मि जी ,
हटाएंआख्यान में इसे 'परवाह' करना ही कहा गया है , हालांकि मैंने इस 'परवाह' पर स्वयं कोई कमेन्ट नहीं किया है , परन्तु आपकी इस बात से सहमत हूं कि , लड़की की मर्जी का ख्याल नहीं रखा गया है और लड़की को वस्तु की तरह से ट्रीट किया गया है !
परमात्मा को स्वयं को स्थापित साबित करने के लिए चमत्कार दिखाने और जो संशय करे उसे दंडित करने से ये परमात्मा कम और आशिक अधिक प्रतीत होते है (प्रभाव पैदा करने के लिए चमत्कार की शरूआत वे स्वयं करते है) इस लोक आख्यान में लगता है किसी अतिकुशल बलशाली बुद्धिमान पुरूष को परमात्मा समकक्ष स्थान दिया गया है।
जवाब देंहटाएंपरमात्मा के व्यवहार से भी प्रतीत होता है उसमें सामन्य मानवीय गुणदोष विद्यमान है।
लडकियों को प्रभावित करने के पहल उपक्रम करना। (फलियां चुनती युवतियों को चमत्कार)
चुलबुली लडकी से नेह आकर्षण।
ससुराल को अपने कौशल से प्रभावित करना।
संशय पैदा करने वालों को मार्ग से हटाना।
पत्नी के भविष्य का निर्णय अपने अधिकार में रखना। आदि
प्रिय सुज्ञ जी ,
हटाएंकथा उसे परमात्मा कहती है सो कह दिया ! बाकी आप जो संभावनायें बता रहे हैं उनके औचित्य से इंकार नहीं !
@दूल्हे के रूप में , अपने ब्याह के भोज का सारा भार स्वयं वहन करके , परमात्मा लड़की के परिजनों को व्यय भार से मुक्त रखता है और एक बड़ा सन्देश देता है कि वर पक्ष को क्या करना चाहिये !
जवाब देंहटाएंभोज देने की महत्वकांक्षा दूल्हे की अपनी है कन्या पक्ष को अपनी चादर का ख्याल है। इसमें कन्या-पक्ष को व्यय भार से मुक्त रखनें का संदेश प्रेषित नहीं होता। :)
सामान्यत: वर पक्ष के स्वागत और भोजन आदि की व्यवस्था कन्या पक्ष करता है , ऐसे में वर द्वारा स्वयं भोज देने का आग्रह ( आपने इसे महत्वाकांक्षा कहा ) कन्या पक्ष को व्यय भार से मुक्त रखने का सन्देश नहीं देता , ऐसा हमें नहीं लगता !
हटाएंमान्यवर अली सा,
हटाएंकथा जीवन-निर्वाह के संसाधनो को जुटाने के प्रारम्भिक काल का संकेत करती है। अतः मुझे नहीं लगता यह अवार्चिन काल के सामान्य प्रचलन- 'भोजन आदि की व्यवस्था कन्या पक्ष करता है' के विरूद्ध सन्देश हो।
मेरा व्यक्तिगत मन्तव्य है कि दूसरे सभी संकेतों के अनुरूप 'भोज' से यह सन्देश देने का प्रयास हुआ है कि 'बडे स्तर पर भोज प्रबन्ध कैसे किए जाय', 'मेलजोल बढाने के उपाय के रूप में सामुहिक भोज व्यवस्था दी जाय', 'मनोबल हो तो व्यवस्था हो ही जाती है' आदि सन्देश देने का प्रयास हुआ है।
और भोज कौन दे पर कोई सन्देश नहीं ?
हटाएंजी, है न। एक सम्भावना तो आपकी प्रस्तुत है ही, वस्तुतः हम जिस पारम्परिक रीति के परिपेक्ष्य में सोच रहे है वहां वर-पक्ष का आतिथ्य सत्कार कन्या पक्ष द्वारा भोज सत्कार से होता है। किन्तु यहां वर-पक्ष से कोई अतिथि है भी नहीं, मात्र वधुपक्ष के पूरे गांव को अपने स्वयं के समाज प्रवेश और मेलजोल की इच्छा से दिया जाना उचित प्रतीत होता है।
हटाएं"भोज कौन दे?" का उत्तर शायद इन पंक्तियों में उपस्थित है। "फुकान का मामा अत्यन्त 'क्रोधित' होकर परमात्मा से पूछता है , यहां चावल नहीं , सूकर मांस नहीं , यहां तक कि चिकन भी नहीं हैं , तो तुम भोज कैसे दोगे ? किन्तु परमात्मा उसे भोज के लिए 'आश्वस्त' करता है !" संदेश शायद यह है कि जो 'सक्षम' हो और 'भावना' हो वह भोज दे।
पिछली टिप्पणी के वक़्त मैं सोच ही रहा था कि आप 'सक्षम दे' की बात ज़रूर कहेंगे :) चलिए यही सही :)
हटाएंउस वक़्त फुकान के घर में सब कुछ था पुष्ट चिकन / पुष्ट सूकर वगैरह वगैरह पर वो सब परमात्मा ( भावी वर ) की देन था और परमात्मा / वर भोज भी अपनी ओर से देना चाहता था तो इसे 'सक्षम' कह के काम चलाया जा सकता है !
अब टिप्पणी से हटकर एक परिहास...क्या कथा से यह सन्देश नहीं निकलता कि ब्याह से पहले दामाद / भावी वर , अपनी होने वाली ससुराल को संपन्न करे / समृद्ध करे / उपहार दे या शायद बिना जतलाये वधु मूल्य दे :)
:)
हटाएंनहीं, वधु-मूल्य का संदेश तो बिलकुल नहीं!!
यह भावी वर ससुराल से भी अधिक समृद्ध और सर्वगुणसम्पन्न है। वह मात्र प्रभावित करने के उद्देश्य से अपनी ससुराल को संपन्न करता है, वधु के सुरक्षा मक़सद से नहीं। ऐसा वर या दामाद पाना वधु-मूल्य से लाख गुना उपयुक्त है। फिर यह विशिष्ट कौशलधारी तो घरजवाई बनकर निरंतर पोषण करने वाला था। :)
तो क्यों ना घरजंवाई वाले सन्देश को आगे बढ़ाया जाये :)
हटाएंबाकि जीवन -निर्वाह की विभिन्न तकनिक सिखाने के संदेश से पूर्णतया सहमत!!
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंकथा बेतुकी है लेकिन स्पष्टीकरण सही है । :)
जवाब देंहटाएंआज आपकी शिकायत आधी रह गई :)
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