सुबह सुबह बिजली गुल, शाम तक मेंटीनेंस किये जाने की खबर है, आज दोपहर बमुश्किल गुज़रेगी ! एक उम्मीद कि दोपहर तक आसमान पे बादल छा जायें ! यहां होता अक्सर यही है कि तपिश की शिद्दत बादलों को तकरीबन हर रोज बुला लेती है ! शायद आज भी ऐसा ही हो याकि नहीं भी ? आखिर तपिश और बादलों को मेरी सहूलियत से अपने रिश्ते थोड़े ही निबाहने हैं ! ...और बिजली ? वो तो पहले ही किसी और के इशारों की गुलाम है ! बस...एक मैं हूं जो अपनी सुन लेता हूं वर्ना...
तब 1993 की मार्च में ऐसा ही कोई तपता हुआ दिन रहा होगा जबकि मैं उस शहर जा पहुंचा था ! बिजली वहां भी नहीं थी और दिन की हरारत यकीनन चालीस डिग्री के पार रही होगी ! बस स्टेंड में कोई खास चहल पहल नहीं थी ! पास ही के दरख्त के नीचे एक लाटरी वाला अपने गल्ले पर खामोश बैठ कर भी बैटरी के सहारे लगातार बज रहा था! कल खुलेगी...कल खुलेगी...कल खुलेगी ! उसने मुझे हसरत भरी निगाहों से देखा पर समझ गया कि ग्राहक नहीं हो सकता ! मैंने कहा ‘फलां’ से मिलना है उसने कहा पास ही स्कूल है, उनके बारे में वहां पूछ लीजिए ! मेरी शक्ल में उसे ग्राहक नहीं मिला पर उसका टेप बजता रहा ! उसे आगे भी उम्मीद रही होगी किसी और ग्राहक की ! मैं चल पड़ा!
स्कूल के बीचो बीच मैदान में आम के घने दरख्तों के नीचे कई टीचर्स कुर्सियां डाले वक़्त गुज़ार रहे थे ! मैं हैरान था, जो, उनमें से ज्यादातर मेरे पुराने विद्यार्थी निकले ! मेरे सामने उनके दमकते चेहरे, मेरी कमाई / मेरा हासिल, मैं खुश था ! बातें हुईं , मैंने कहा कल तक रुकूंगा ! उन्होंने कहा हमारे साथ रुकिए, हम ‘फलां’ के यहां, आपको ले जायेंगे और फिर वापस भी ले आयेंगे ! मैंने कहा नहीं, मेरा प्रोग्राम तय है, मुझे वहीं रुकना होगा ! खैर...लंबी मान मनौव्वल के बावजूद मेरा प्रोग्राम जैसा था वैसा ही रखना तय पाया गया, बशर्ते कि मैं सबके यहां जाकर थोड़ा थोड़ा वक़्त गुज़ारूंगा, शिष्य वधुओं से मिलूंगा ! तभी सामने वो भी नमूदार हुआ ! मैंने कहा अरे तपन तुम ? वो मुझे देख कर सकपकाया ! थोड़ा असहज लग रहा था ! उसने बताया कि वह इसी स्कूल में बाबू है ! मैंने दूसरों के मुंह देखे ! अब वे सब भी असहज लग रहे थे !
तपन भी मेरा पुराना विद्यार्थी था पर मेरे सामने उसकी असहजता और उसे देखकर दूसरे शिष्यों की असहजता मुझे अटपटी लगी ! सोचा कारण बाद में पता कर लूंगा ! दूसरे शिष्यों की तुलना में तपन ने मुझसे एक बार भी नहीं कहा कि मेरे घर चलिए ! कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूर थी ! मैंने कहा तुम सब लोग शाम को मेरे पड़ाव में आना मुझे तुम लोगों से और भी बातें करना है ! सबने सहमति में सिर हिलाया पर तपन खामोश रहा ! उसके चेहरे में एक अजीब सी चिंता झलक रही थी ! मैं अपने गंतव्य स्थल तक जा पहुंचा और 'मित्र' से घर की बातों के साथ ही साथ कामकाज निपटाने का सिलसिला शुरू हो गया ! तपन फिलहाल ध्यान से उतर गया था !
शाम सारे शिष्य मुझसे मिलने आये पर उनमें तपन नहीं था ! मैंने दोपहर की असहजता का कारण पूछा ! सब मौन रहे ! वे चाहते थे मैं बारी बारी से सबके घर चलूं ! मैंने उनका आग्रह मान लिया ! कल मुझे भी अपने घर वापस होना था ! शिष्यों से स्वजनता का निर्वाह करते रात देर हो चुकी थी ! पड़ाव पर लौटा तो मित्र ने कहा तपन आया था ! कल सुबह फिर से आएगा ! मैंने कहा अगर तपन के बारे में आपको कुछ पता है तो आप मुझे बताइए ! उन्होंने कहा सुबह तपन से मिल लीजिए ! अगर वो खुद कुछ नहीं कहेगा तो मैं आपको सब बता दूंगा पर उसके जाने के बाद ! अब मुझे सुबह का इंतज़ार था !
सुबह तपन आया ! वो उदास था, मैने कहा स्वास्थ्य ठीक है ? उसने कहा हां ! मैंने कहा कोई समस्या है ? उसने कहा नहीं पर उसके बोलने में झिझक थी ! मैंने जोर नहीं दिया ! थोड़ी देर बाद वो चला गया ! अब इसके आगे मेरे मित्र की बारी थी ! उन्होंने कहा, तपन जब अपने घर से नौकरी करने निकला तो वह संयुक्त किसान परिवार का एकमात्र शिक्षित और सरकारी नौकरी प्राप्त सदस्य था ! घर के तमाम लोगों को उससे अपेक्षायें थीं कि वह शेष परिवार के लिये भी कुछ करेगा ! नौकरी ज्वाइन करने के बाद उसने ऐसा किया भी ! वह अपने बड़े भाई की पुत्री को अपने साथ ले आया और उसी स्कूल में दाखिल करा दिया जहां वह खुद नौकरी कर रहा है ! चाचा के साथ रहकर भतीजी ने दसवीं की परीक्षा भी पास कर ली ! समय गुजरता रहा और एक दिन तपन के घर वालों ने तपन की शादी का इरादा कर लिया जिसपर तपन भी उनसे सहमत हो गया !
शादी की बात पर तपन की सहमति की खबर के साथ ही आकाश फट पड़ा ! उसकी भतीजी सीधे थाने पहुंची और उसने तपन के ऊपर खुद के जीवन से खिलवाड़ करने का आरोप लगा दिया ! उसका कहना था कि पिछले दो सालों से उसके और तपन के दरम्यान पति पत्नि जैसे सम्बंध हैं और अब तपन किसी और से शादी करके उसे धोखा देना चाहता हैं ! थाने की मध्यस्थता में लड़की ने अपनी रिपोर्ट तब वापस ली जब तपन, अपनी गलती मानते हुए,उससे शादी करने के लिए तैयार हो गया ! उनकी शादी और इस हंगामे के बाद तपन के बंधु बांधव और लड़की के माता पिता इस जोड़े से सम्बंध तोड़ चुके हैं ! वे यहां नहीं आते तथा तपन और उसकी ब्याहता गांव नहीं जा सकते !
मैं, संबंधों, रीति रिवाजों और सेक्स को लेकर चिंतन करने स्थिति में नहीं था ! मैं घटनाक्रम पर हतप्रभ था और मुझे घर भी वापस आना था ! बस स्टेंड जस का तस था और लाटरी वाला भी ! आज वो मुझे देख कर मुस्कराया और उसने मुझसे पूछा आपका काम हो गया ? मैंने कहा हां, उसने फिर पूछा, घर वापस जा रहे हैं ? मैंने कहा हां ! मैं अनमना था और लाटरी वाला हस्बे-मामूल अपने धंधे पर, उसका रिकार्ड आज भी एक ही रट लगाये हुए था...कल खुलेगी...कल खुलेगी...कल खुलेगी...और फिर...मैं घर वापस आ गया !
आपकी जितनी भी प्रेम कहानियाँ हाल में पढ़ीं उन सब में इस कहानी की कहन शैली उत्कृष्ट है। प्रथम पैरे की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ पहले ही कह गुजरती हैं जो कहानी पढ़ने के बाद सिद्दत से महसूस होती हैं....
जवाब देंहटाएंआखिर तपिश और बादलों को मेरी सहूलियत से अपने रिश्ते थोड़े ही निबाहने हैं ! ...और बिजली ? वो तो पहले ही किसी और के इशारों की गुलाम है !
....कहानी पर कमेंट फिर कभी।
देवेन्द्र जी ,
हटाएंकहन शैली की तारीफ़ के लिए धन्यवाद पर जो घटा उस पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार बना रहेगा :)
मैं लॉग आउट करने जा ही रही थी कि आपकी इस पोस्ट पर नज़र पड़ी...सरसरी निगाह से देख लिया..सोचा कल टिप्पणी करुँगी...पर आपकी इस पोस्ट ने नींद हर ली..
जवाब देंहटाएंदुबारा लैपटॉप ऑन करके लिख रही हूँ...
तपन ने लड़की का दाखिला स्कूल में करवाया था....और लड़की ने अब दसवीं पास कर ली थी...दो सालों से उनके सम्बन्ध थे...यानि कि लड़की ने या तो आठवीं में या नवीं में दाखिला लिया होगा. उसने बहुत देर से भी पढ़ाई शुरू की होगी तब भी...स्कूल में दाखिला लेते वक़्त वो पंद्रह साल से ज्यादा की नहीं होगी...जब उसने थाने में रिपोर्ट की तो क्या वो अट्ठारह साल की हो गयी थी...जो उनलोगों ने शादी की इजाज़त दे दी??
और अगर रिपोर्ट दर्ज कराते वक्त उसकी उम्र अठारह साल की हो भी गयी हो..लेकिन वो खुद कह रही है..दो साल से उनके शारीरिक सम्बन्ध थे..यानि कि तपन ने जब शारीरिक सम्बन्ध बनाए तब वो लड़की नाबालिग थी.
पुलिस वालों ने तपन पर बलात्कार का केस क्यूँ नहीं दर्ज किया??
कितनी अजीब सी बात है..एक व्यक्ति नाबालिग लड़की के जीवन से खिलवाड़ करता है..फिर भी उसकी सरकारी नौकरी बची रहती है. यानि कि शादी करके उसके सारे पाप धुल गए?? तपन की नौकरी छिन जानी चाहिए थी..उसे जेल में होना चाहिए था...
लेकिन वही है...हमारा समाज इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि उस लड़की को इज्जत भरी जिंदगी जीने देता...पर ये चाचा-भतीजी की शादी की मैं पहली घटना सुन रही हूँ.
आंकड़े बताते हैं कि 75% नबालिग लड़कियों से बलात्कार उनके जान-पहचान वाले करते हैं..और 45% उनके अपने परिजन होते हैं.
मुझे शब्द नहीं सूझ रहे इसकी भर्त्सना के...
पहले तो लड़कियों को जन्म ही ना लेने दो..और वे दुनिया में आ गयीं तो उन्हें जीते जी मार दो...disgusting..sheer disgusting
रश्मि जी ,
हटाएंगांव की पृष्ठभूमि में लड़की की स्कूलिंग देर से हुई ! थाने पहुंचने के वक़्त वो अट्ठारह की हो चुकी थी ! तपन ने जब उससे दैहिक सम्बंध बनाये होंगे तब निश्चित रूप से वह नाबालिग रही होगी ! कम उम्र में बलात्कार का केस दर्ज करने के लिए लड़की की शिकायत अहम है ! उसने पुलिस वालों से बतौर शिकायत , जो फेवर मांगा होगा , वह उसे मिला ! वैसे भी पुलिस वाले सामान्यतः इस तरह के मामले रफा दफा करने में यकीन रखते हैं !
घटना पर आपका आक्रोश सौ फीसदी सही है ! आलेख के शीर्षक में उल्लिखित शब्द 'क़फ़स' का मतलब भी पिंजरा / जेल होता है !
फ्रायड सही है!
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंआशीष जी , स्वागत है !
हटाएंहमारे महापुरुषों ने यूं ही नहीं वर्जित किया था कि स्त्री पुरुष साथ -साथ लम्बे वक़्त तक रहे ,तब के सिवाय जबकि दोनों पति -पत्नी हों !
जवाब देंहटाएंयह प्रेम-विवाह तो कतई नहीं है ,वासना से उपजा अनैतिक और असामाजिक सम्बन्ध है जो पशुओं में पाया जाता है.
संतोष जी ,
हटाएंजिस समाज में हम और आप जी रहे हैं ! वहां इस तरह के सम्बंध निषिद्ध हैं / वर्जित हैं ! इस हिसाब से इस प्रकरण में आपकी प्रतिक्रिया सही है !
बाकी , वर्जनाओं और वरीयताओं पे निर्णय लेने महापुरुषों के बारे में क्या कहूं ? आपको तो मालूम ही होगा कि दक्षिण भारत में अपनी भांजी से शादी करना उसके मामा की वरीयता होती है !
क्या कहूं ? संतोष जी का इंतज़ार कर रहा हूँ ....सोचता हूँ अब उन्हें ही अपना माउथ पीस बना लूं!
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ,
हटाएंये स्पैम बड़ा गड़बड़ कर रहा है ! इसकी वज़ह से टिप्पणीकार मित्रों को पता ही नहीं चलता कि कौन कौन बंदा पहले ही आ चुका है और क्या क्या कहके जा चुका है !
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जवाब देंहटाएं.
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यहाँ एक बात जिस की ओर इंगित करूंगा वह यह, कि सामाजिक नियम दोनों ने दो साल तक आपसी सहमति से तोड़ा... Incest हर समाज में मिलता है, यह ढंका-छुपा दिया जाता है लोकलाज के चलते, ज्यादातर मामलों में... इसके सही आंकड़े किसी को भी हैरत में डाल सकते हैं...आपसी सहमति से बने इन संबंधों में दोषी कोई एक कभी नहीं हो सकता...
साबित यह यही करता है कि इंसान है आखिर कायदों में बंधा एक पशु ही... जो कभी कभी फिर उसी आदिम युग सा बर्ताव कर देता है... नियम-कायदे लिखे जाने से पहले का... देह जीत जाती है कभी कभी, कुछ मामलों में...
...
प्रवीण शाह जी ,
हटाएंआपने एकाधिक संकेत दिये हैं ! मेरी सहमति स्वीकारिये !
@प्रवीण जी,
हटाएंआपसी सहमति से बने इन संबंधों में दोषी कोई एक कभी नहीं हो सकता...
जब लड़की नाबालिग हो और पुरुष व्यस्क...तो दोष किसका होगा? ..समझदारी की अपेक्षा किस से है?
ये कहा जा सकता है कि...लड़की ने बाद में क्यूँ नहीं शोर मचाया?..उसने सहमति क्यूँ दी?...पर ये बाद की बातें हैं...इसके पीछे कई कारण होते हैं...समाज का डर....पुरुष की ब्लैकमेलिंग.
अपराध की पहल पुरुष ने ही की होगी..और अगर उसने नहीं..लड़की ने ही नासमझी में उसे रिझाया-फुसलाया...तब भी पुरुष व्यस्क है तो उसे ही ऐसे कृत्य से दूर रहना चाहिए था.
अगर लड़की नाबालिग है..तो शत-प्रतिशत दोषी पुरुष हैं..हाँ दोनों व्यस्क हों तो बात अलग है.
प्रवीण शाह से सहमत हूँ !
हटाएंरश्मि जी से अक्षरश: सहमत!!
हटाएंविकृतियों के प्रति सहजबोध का प्रसार, भोथरी होती सम्वेदनाएं, परे धकेले जाते विवेक के कारण देह अक्सर जीत जाती है।
@ रश्मि जी ,
हटाएंवैसे तो आपने प्रवीण जी को संबोधित किया है ! पर एक इशारा मैं भी करता चलूं ! आलेख में मैंने बार बार तपन की असहजता का उल्लेख किया है ! यह उसका अपराध बोध ही है !
@ सतीश भाई ,
अब आपकी प्रतिक्रिया के बारे में प्रवीण शाह जी जो भी कहें :)
@ प्रिय सुज्ञ जी ,
नियंत्रणों के अधीन रहना देह के मूल स्वभाव के अनुकूल नहीं है पर पालतूकरण की सुदीर्घ अवधि में उसने ज्यादातर निर्देशों का पालन करना सीख लिया है ! या कहिये कि निर्देशों के अनुपालन की अभ्यस्त हो चली है ! लेकिन कभी कभी वह अपने मूल स्वभाव का प्रकटन करके नियमों को तोड़ बैठती है ! इसलिए 'देह अक्सर जीत जाती है' वाले आपके कथनांश से मेरी सहमति जानिये !
@ अली सा,
हटाएंमानव सभ्यता और संस्कृति का विकास क्या है? प्राकृतिक मूल स्वभावों पर नियंत्रण ही न? अनुकूलता प्रतिकूलता पर चिंतन दूसरे नम्बर पर है प्रथम आवश्यकता है सभ्यता कैसे विकसित की जाय। विज्ञान विकास क्या है? प्रकृति के सहज प्रचलन के विरूद्ध मानवीय संघर्ष और जीत। यह भी प्राकृतिक नियमों पर मानव का नियंत्रण ही तो है। पालतूकरण? जनाब इसे अनुशासन, संयम या सभ्यता या संस्करण कहिए :)
वाक्यांश 'देह अक्सर जीत जाती है' 'कार्य' के साथ 'कारण' का होना जरूरी है। "परे धकेले जाते विवेक के कारण देह अक्सर जीत जाती है।" :)
प्रिय सुज्ञ जी ,
हटाएंक्या आपको लगता है कि सभ्यता और संस्कृति सुनियोजित ढंग से / प्रथम आवश्यकता है कि कैसे विकसित की जाये के रूप में , पहले से सोच समझ कर विकसित की गई है ?
क्या आपको लगता है कि प्रकृति के सहज प्रचलन के विरुद्ध मानवीय संघर्ष और जीत , विज्ञान है ?
मैं पोस्ट से विषयान्तर नहीं चाहता ! ये दोनों प्रश्न आपके कमेन्ट को पढ़कर ही किये है यदि आप हां या नहीं में भी अपना अभिमत दे देंगे तो मैं आपका दृष्टिकोण समझ जाऊंगा !
जब मैंने कहा "लेकिन कभी कभी वह अपने मूल स्वभाव का प्रकटन करके नियमों को तोड़ बैठती है" तो इसमें कार्य और कारण दोनों ही मौजूद है :) आपके वाक्यांश से मेरी सहमति का आधार भी यही है !
आप अपनी सुविधा से कोई भी नाम दें ! हम इसे पालतूकरण ही कहेंगे ! हर नवजात शिशु का पालन पोषण होता है ! अब जिसे पाला जाये उसे पालतू बनाया जाना ना कहें :)
सुज्ञ जी ,
जब आप किसी विषय पर लिखते हैं तो अपने चिंतन अपनी सोच और अपनी रूचि के अनुकूल प्रामाणिक शब्दावलियां चुनते हैं ! जैसे कि आपने कहा "परे धकेले जाते विवेक" और मैंने कहा "नियमों को तोड़ बैठती हैं"
( इसके आगे जोड़ सकते हैं / जैसा कि आपने जोड़ा है ,के कारण देह अक्सर जीत जाती है )
इसी तरह से पालन पोषण की पृष्ठभूमि को ध्यान में रख कर जब मैंने कहा 'पालतूकरण' तब आप कह रहे हैं कि जनाब इसे "अनुशासन , संयम या सभ्यता या संस्करण" कहिये !
अगर मैं आपसे कहूं कि आपके वाक्य में "परे धकेले जाते विवेक" के स्थान पर "नियमों को तोड़ बैठती हैं" ही कहिये या फिर "अनुशासन , संयम या सभ्यता या संस्करण" के स्थान पर 'पालतूकरण' ही कहिये क्योंकि यह शब्द आपके शब्दों की तुलना में पालन पोषण से ज्यादा नैकट्य रखता है तो यह बात सरासर अनुचित होगी ! लगभग आपके मुंह में मेरे शब्द डालने जैसी अयाचित ! जबकि मैं जानता हूं कि आपकी रूचि के शब्द और आपके अपने वाक्य विन्यास में आप भी वही कहना चाहते हैं जोकि मैं अपनी रूचि के शब्द और वाक्य विन्यास में कह रहा हूं ! और दोनों का आशय कमोबेश एक ही है तो फिर...आपको नहीं लगता कि अभिव्यक्त होने में हमें वाक्य और शब्द अपनी मर्जी के ही चुनने चाहिये और बनाये रखने चाहिये ?
कृपया मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगे !
अली सा,
हटाएंसवाल ही नहीं उठता आपकी बातों को अन्यथा लेने का।
आपके विषयान्तर ना पसंदगी का आदर करते हुए मेरा जवाब 'हाँ' है हालाँकि मुझे पता है मेरा दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं हो पाएगा।
मेरा अपने शब्द आपके मुंह में डालने का प्रयोजन नहीं है और न मैनें यह बात अपने शब्द विन्यास के सामर्थ्य के दर्प से कही। मुझे लगा कि 'पालतूकरण' शब्द सार्थक अर्थबोध नहीं दे रहा है, यह शब्द पालन-पोषण से इतर गुलामी प्रमुख अर्थबोध में मेरे संज्ञान में आ रहा था तो मैने मात्र सुझाव रखा था। बेशक सभी को अपनी मर्जी के श्ब्दों का चुनाव करने का अधिकार है। यह मात्र मेरा व्यक्तिगत मंतव्य है कि सटीक शब्द के चुनाव से बहुत ही कम शब्दों में सार्थक अभिव्यक्ति होती है। एक ही अर्थ के शब्द अपनी पर्याय अनुसार अभिव्यक्ति में विशेष अर्थ-समर्थ होते है। कृपया मेरे इस कथन को अनधिकार चेष्टा की तरह न लें। ऐसा कोई भाव नहीं था तथापि आपको पहूँचे असहज भाव के लिए खेद व्यक्त करता हूँ।
विषय अनुशासन का आदर करते हुए, जब कभी संयोग बैठा तो इस पर अवश्य चर्चा करेंगे। क्योंकि आपके साथ ज्ञानवर्धक चर्चा हो जाती है जो मेरी विचार चेतना का उन्नयन करती है।
शुभकामनाओं सहीत!!
प्रिय सुज्ञ जी ,
हटाएंसबसे पहले धन्यवाद ! आपकी हां से विषयान्तर भी नहीं हुआ और मैं आपकी धारणा भी जान सका ! भविष्य में कभी इन दोनों विषयों पर आपका विस्तृत पक्ष भी जान लूंगा ! इसलिए आप अपने दृष्टिकोण की स्पष्टता के लिए निश्चिन्त रहिये !
असल में हम अपने अध्ययनों में जन्म के बाद , परिवार में , मानव शिशु के समाजीकरण के लिए सामान्यतः इसी शब्द का प्रयोग करते हैं ! यह हमारी प्रामाणिक शब्दावली में से एक है ! जैसे पालन पोषण गरिमामय शब्द हैं , मिसाल के तौर 'यशोदा हरि पालने झुलावे' में हरि पालने में झूलते हैं और सामान्य जीवन में मां द्वारा पाले जाते हैं सो हमें उसकी प्रक्रिया के रूप में यह शब्द भी गरिमामय लगता है ! मुश्किल ये है कि ज्यादातर लोग केवल चौपायों को पालतूकरण के साथ जोड़कर गड़बड़ कर देते हैं जबकि हमारे लिए यह दोपायों को भी इंसान बनाने / सामाजिक जीवन के योग्य बनाने , की प्रक्रिया का प्रतीक शब्द है !
मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं ! आपका शब्द संसार काफी समृद्ध है ! आपको मैंने पहले भी कहा है कि खेद का कोई कारण नहीं ! आप मुझसे चर्चा ही तो कर रहे हैं और मैं आपसे !
सस्नेह !
लो एक और कहानी. मैं कतई अचंभित नहीं हूँ. जीवन में ऐसी झांकियां बहुत पायी हैं.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुब्रमनियन जी ,
हटाएंआपके अचंभित नहीं होने का मुझे अनुमान था :)
यह घटना समाज की प्रथम घटना या अंतिम घटना नहीं है.. लेकिन इस विषय पर कोई राय व्यक्त किये बिना कुछ तथ्य जो जल्दी जल्दी (ऑफिस निकालना है) और जैसे-जैसे दिमाग में आते जा रहे हैं रख रहा हूँ:
जवाब देंहटाएं१. महान फिल्मकार सत्यजीत राय की पत्नी उनकी सगी चचेरी बहन थीं. वे मशहूर थे इसलिए हम जानते हैं या उदाहरण दे रहे हैं, वरना समाज में कई उदाहरण ऐसे हैं. इस संबंधों का 'कफस' कहा जाए या वर्जनाओं का या शारीरिक ज़रूरतों का पता नहीं..
२. मेरे दक्षिण भारतीय एक मित्र ने बताया था कि जब वे अपनी बहन के विवाह के लिए चिंतित थे और जब उन्होंने एक जगह विवाह लगभग तय कर दिया था तो उनके मामा ने बड़ा हंगामा खडा किया कि वे उस लड़की से विवाह करेंगे क्योंकि भांजी पर उनके समाज की परमपरानुसार मामा का प्रथम विवाह अधिकार है. मेरे मित्र को तयशुदा रिश्ता तोडकर मामा से विवाह देना पड़ा बहन को. वहाँ ऐसे विवाह आम बात है.
३. हमारे देश के गोदलेने के क़ानून में भी बच्चे और अभिभावक के बीच उम्र का फासला १३-१४ वर्ष का होने का प्रावधान है. शायद ऐसा इसलिए है कि ऐसे पवित्र क़ानून का भी बेजा इस्तेमाल न किया जा सके.
४. दीवार के के बाहर और भीतर की घटनाओं का सच हमेशा एक ही होता हो यह मुझे यकीन नहीं होता. ट्रुथ शायद फिक्शन से स्ट्रेंजर इसीलिए होता है. कम स कम फिक्शन में लेखक सारी बातें बता के चलता है और इसमें किसी एक्सप्लेनेशन की ज़रूरत नहीं होती.. लेखक ने कहा वो अच्छा आदमी था तो फिर उसके बुरा होने का सवाल पैदा नहीं होता. जबकि ज़िंदगी दोगलेपन से भरी है.
/
तपन की तपन क्या रही होगी.. पता नहीं!! और सही गलत का फैसला करने वाले हम नहीं.. मगर एक शे'र पता नहीं कितना मौजू, पर कहने की इजाज़त चाहूँगा:
कफस में हम बड़े महफूज़ होंगे,
कि पहरे पर खडा सय्याद होगा!
पुनश्च: स्पेलिंग वगैरह आप संभाल लीजियेगा.. जल्दबाजी वज़ह होगी उसकी मेरी कमअक्ली कतई नहीं!! :)
सलिल जी ,
हटाएंबिल्कुल सही , यह प्रथम और अंतिम घटना नहीं है ! सत्यजीत राय का दृष्टांत काफी मशहूर है ! मामा भांजी के विवाह की वरीयता का संकेत मैंने संतोष जी को भी दिया है ! और फिर यह आपके मित्र का निज पारिवारिक अनुभव तो है ही ! निश्चित रूप से वहां यह आम बात है ! आपकी प्रतिक्रिया के तीसरे बिंदु से सहमत हूं ! आपकी प्रतिक्रिया का चौथा बिंदु , क़ातिल / मारक /... हाहाहा...अदभुत है !
तपन की तपन पर बड़ा ही माकूल शेर जड़ दिया है आपने ! सामाजिक हालात के शायरनुमा जौहरी हैं आप :)
इतनी खूबसूरत प्रतिक्रिया पर किस की मजाल है जो स्पेलिंग मिस्टेक्स निकालने की जुर्रत करे :)
जिस गुनाह के लिए कठोर सजा मिलनी चाहिए , उसे विवाह बंधन में में बाँध दिया !!
जवाब देंहटाएंसालों से महिलाओं की पत्रिकाएं में मन की उलझन जैसे कॉलम पढ़ती रही हूँ , इसलिए ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ . मुझे इन लड़कियों पर नहीं उनके अभिभावकों पर गुस्सा आता है!
@ विभिन्न धर्मों या जातियों में ऐसे रिश्ते मान्य हो सकते हैं , मगर यह नाबालिक और अवयस्क लड़की जो अपना भला बुरा नहीं समझती ,को बरगलाने जैसा मामला है !
वाणी जी ,
हटाएंआपका गुस्सा जायज़ है ! इस प्रकरण में तपन और उसकी भतीजी ( न्यूनतम ही सही ) को छोड़ कर किसी का दोष नहीं है ! घरवालों को तो इस हाहाकारी घटना की सूचना थाने वाले दिन प्राप्त हुई ! उन्होंने ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा होगा ! उनका विश्वास टूटा तो इसके लिए वे जिम्मेदार नहीं है ! विश्वास तोड़ने वाली पार्टी दूसरी है !
नाबालिग वाली आपकी बात सही है !
प्रवीण जी ने सही लिखा...
जवाब देंहटाएंइंसान है आखिर कायदों में बंधा एक पशु ही... जो कभी कभी फिर उसी आदिम युग सा बर्ताव कर देता है...
..यही कटु सत्य है।
अब इसमें दो बातें हैं। एक तो यह कि पशुवत आचरण करते वक्त तो उसे खूब मजा आता है औऱ सामाजिक कायदों को परवाह नहीं करता। लेकिन कर चुकने के बाद जब समाज का सामना करना पड़ता है तो अपराध बोध से जीवन भर शर्मसार रहता है, जैसा कि तपन है। दूसरा यह कि वह अनजाने में, प्रकृति के वश में होकर, नासमझी से, पशुवत आचरण कर बैठता है और समाज की आलोचना के बाद कुछ समय के लिए शर्मिंदा होता है फिर जो हुआ उसे स्वीकार करते हुए, वही आचरण दोहराता चला जाता है। यह कहते हुए कि दुनियाँ मेरे ठेंगे पर, मैने जो किया वह सही है। जिंदगी मेरी, मैं चाहे जैसे जीयूँ।
सामाजिक दृष्टि से दोनो गलत हैं, दोनो को माफी नहीं मिलेगी क्योंकि हमने समाज को सभ्य बनाने का बीड़ा उठा रखा है। लेकिन इंसानी तौर पर दूसरा आदमी अधिक ईमानदार है। दुनियाँ चाहे जो कहे लेकिन वह तो अपनी जिंदगी मस्ती से जी कर ही दुनियाँ से रूखसत होने वाला है। वह न ज़िंदगी को क़फ़स समझेगा न सबा के सामने लाचारगी महसूस करेगा। नदी में कूदो नहीं लेकिन यदि गलती से गिर जाओ तो...
या तो इस पार रहो या उस पार
नहीं तो डूबोगे प्यारे बीच मझदार।
.....तपन तो दोनो जहाँ से गया।
देवेन्द्र जी ,
हटाएंप्रवीण जी से मैं अपनी सहमति पहले ही अभिव्यक्त कर चुका हूं ! सामान्यत: सामाजिक कायदों को तोड़ने वाली ऐसी घटनायें आकस्मिक हुआ करती हैं , पर होती तो हैं ही ! आपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी ! सार्थक , व्यवहारिक और संतुलित !
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जवाब देंहटाएं...........
४. दीवार के के बाहर और भीतर की घटनाओं का सच हमेशा एक ही होता हो यह मुझे यकीन नहीं होता. ट्रुथ शायद फिक्शन से स्ट्रेंजर इसीलिए होता है. कम स कम फिक्शन में लेखक सारी बातें बता के चलता है और इसमें किसी एक्सप्लेनेशन की ज़रूरत नहीं होती.. लेखक ने कहा वो अच्छा आदमी था तो फिर उसके बुरा होने का सवाल पैदा नहीं होता. जबकि ज़िंदगी दोगलेपन से भरी है.हमारे महापुरुषों ने यूं ही नहीं वर्जित किया था कि स्त्री पुरुष साथ -साथ लम्बे वक़्त तक रहे ,तब के सिवाय जबकि दोनों पति -पत्नी हों !
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यह प्रेम-विवाह तो कतई नहीं है ,वासना से उपजा अनैतिक और असामाजिक सम्बन्ध है जो पशुओं में पाया जाता है.
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आंकड़े बताते हैं कि 75% नबालिग लड़कियों से बलात्कार उनके जान-पहचान वाले करते हैं..और 45% उनके अपने परिजन होते हैं. मुझे शब्द नहीं सूझ रहे इसकी भर्त्सना के...पहले तो लड़कियों को जन्म ही ना लेने दो..और वे दुनिया में आ गयीं तो उन्हें जीते जी मार दो...disgusting..sheer
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रश्मि जी से अक्षरश: सहमत!!
विकृतियों के प्रति सहजबोध का प्रसार, भोथरी होती सम्वेदनाएं, परे धकेले जाते विवेक के कारण देह अक्सर जीत जाती है।
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फ्रायड सही है!
guru-jan/swa-jan/sudhi-jan.......ham poori paricharcha se iqtaphaq rakhte hain vishist roop se upkrokt aap sabhi ke wakyansh.......
pranam.
सञ्जय जी ,
हटाएंहाहाहा ! बढ़िया ! बहुत बढ़िया ! आपकी जय हो !
बालिग़/नाबालिग का प्रश्न भी कहीं उठा था. १८ वर्ष की आयु सीमा कब किसने निर्धारित की. यह तो आधुनिक विधान ही है. हमारी मान्यताओं के अनुसार रजस्वला हो जाने के पश्चात कन्या बालिग़ मानी जाती थी. ऐसी कन्या को घर में रखे रखना समाज के कायेदों के विपरीत रहा. जहाँ तक दक्षिण की बात है, निश्चित तौर पर मामा पहला हकदार होता था. इस्लाम में भी ऐसी कोई वर्जना नहीं है. यह तो क़ुबूल ही है. मिश्र में तो सगी बहनों से ही विवाह की परंपरा रही है. संभवतः कांकेर के राज घराने में भी मिश्र के प्राचीन संस्कृति को अपनाया गया. लेकिन वे राजा थे. अब मामला रेवेर्सिबल नहीं है. उन्हें चैन से जीने दें.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुब्रमनियन जी ,
हटाएंमैं उन्हें चैन से ही रहने दे रहा हूं :) उनके किये को अब कोई भी उलट नहीं सकता ! आपकी टिप्पणी के हर शब्द से सहमत !
सबसे पहले तो घरवाले इडियट थे जिन्होंने एक ज़वान होती लड़की को अकेले चाचा के पास रहने भेज दिया . अक्सर यौन शोषण रिश्तेदारों द्वारा ही होता है .
जवाब देंहटाएंफिर उन दोनो की , जो रिश्ते को भूलकर हवस के शिकार हो गए .
कनूनी तौर पर बलात्कार और सामाजिक तौर पर अनैतिक सम्बन्ध हैं .
शादी कर के नज़र कैसे मिलायेंगे !
विभिन्न समुदायों में भिन्न भिन्न रिवाजें होती हैं .
हरियाणा में घरवाले / खाप वाले दोनों को मौत के घाट उतार देते .
एक एक्सट्रीमिस्ट न होते हुए भी मैं यह महसूस करता हूँ की समाज के कायदे कानून अक्सर भलाई के लिए ही बनाये जाते हैं . यदि सब को खुली छूट मिल जाए तो समाज में एनार्की हो जाएगी .
डाक्टर साहब ,
जवाब देंहटाएंघरवाले अनपढ़ और संयुक्त परिवार के सदस्य थे ! चाचा भतीजी संयुक्त परिवार में भी साथ ही रहते आये थे ! इसलिए चाचा के साथ लड़की को भेजते वक़्त परिजनों को अविश्वास की अनुभूति नहीं हुई होगी ! बल्कि ऐसा तो उन्होंने सोचा भी नहीं था , इसलिए घटना के बाद इन दोनों से सम्बंध तोड़ लिए हैं !
आपका कहना सही है कि ये कानूनन बलात्कार है और सामाजिक तौर पर अनैतिक सम्बंध है ! पर शादी तो उन्होंने कर ही ली है !
आपका यह कहना भी सही है कि अनार्की से बचने के लिए ही समाज में कायदे कानून बनाये जाते हैं ! लेकिन यह भी सही है कि इस तरह की घटनाएं असामान्य हैं और कम ही होती हैं ज्यादातर लोग तो कायदे से ही चलते हैं !
इसीलिए कहा जाता है कि लड़की के मामले में किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए , परिवार के अन्य सदस्यों पर भी नहीं । एक यथोचित दूरी और समाज सुलभ लज्जा का होना ज़रूरी है ।
हटाएंअली जी , बड़े होने के बाद तो सगे भाई बहन का भी एक कमरे में सोना उचित नहीं होता .
आपकी बात सही है !
हटाएंआपके दो पोस्ट पढने को मिले दोनों ही पोस्ट शानदार ढंग से फ्रेम कर के लिखे गए हैं जिस पर प्रबुद्ध वर्ग द्वारा अपने ज्ञान और अनुभव का पिटारा खोला गया है ऐसे ही एक दो और पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार है जिसे क्रमशः भाग १ भाग २ देने का कष्ट करेंगे जिस पर पोस्ट से ज्यादा कमेन्ट खुद के पढ़ने को मिलें क्या एक ही बार में पूरी कथा का अंत नहीं किया जा सकता एक बार विचार कर के अवश्य देखें
जवाब देंहटाएंसिंह साहब ,
हटाएंकाफी पहले भाग एक और दो करके भी पोस्ट लिखी थीं ! एक असुविधा समझ में आई कि टिप्पणीकार पहले अंक यानि कि अधूरी पोस्ट पे कमेन्ट क्या करें ! उन्हें दोनों अंक पूरे होने के बाद ही कमेन्ट करना उचित होगा सोच कर मामला एक ही पोस्ट में समेटने लगे !
पोस्ट में तो आम तौर पर वह सब लिख देते हैं जो आवश्यक लगता है पर कमेन्ट के जबाब और उनकी लम्बाई मित्रों के विचार वैषम्य की वज़ह से बढ़ती है ! वे जितना वैरिएशन कमेन्ट में डालेंगे अपना जबाब भी उतना विस्तृत होगा !
मेरा ख्याल है कमेन्ट और कमेन्ट के जबाब पोस्ट से ही विस्तार पाते हैं इसलिए इस जगह तो मैं खुद को असहाय पाता हूं कि इन्हें छोटा कैसे किया जाये !
वैसे आपके सुझावों पर एक बार अमल करके देखने की कोशिश ज़रूर करूँगा !