गुरुवार, 15 मार्च 2012

बांके पिया कहो हां दगाबाज़ हो ...


ये सिलसिला सन 2006 की भीषण गर्मियों के दरम्यान शुरू हुआ था ! वैसे वो दोनों एक ही गांव में जन्मे और पले बढ़े थे पर यह साल कुछ खास साबित हुआ कि , जब दोनों ने एक दूसरे को चाहने जैसे नज़रिये से देखा ! स्कूल से छुट्टियों और जिस्मानी नजदीकियों वाले इस मुबारक मौके का इंतज़ार लम्हा लम्हा जवां होते हर बंदे का ख्वाब होता है ! उन दिनों ज़ोया को बारहवीं जमात पास होने के बाद के अपने कैरियर का ख्याल था जबकि अहसान , हाहाकारी पारिवारिक दिक्कतों और ग़ुरबत से जूझते हुए अपने मेडिकल कोर्स को पूरा करने ही वाला था ! दोनों के समाजी हालात यकसां थे और क़बीलाई पृष्ठभूमि से धार्मिक होते हुए परिवारों के पालन पोषण की समानता के साथ उम्र के नाज़ुक दौर ने दोनों को प्रेमपाश में बांध डाला ... फिर तय ये हुआ कि ज़ोया उसी शहर के वोमेन्स पोलीटेक्निक से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करेगी , जहां के मेडिकल कालेज से अहसान  अपनी डिग्री , मुकम्मल करने ही वाला था !

तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक़ दोनों अपने अपने हास्टल्स से बाहर निकल पाने के हर मौके का इंतज़ार करते और उसका फायदा उठाते ! आने वाली जिंदगी के तमाम ख्वाब , जिस्मानी यकजिहतियों के साथ परवान चढ़ते ... बनते ... बिगड़ते और फिर से बनते रहे  !  वक़्त अपनी रफ़्तार चलता रहा  !  कहते हैं ये दुनिया तन और मन के बीमारों से अटी पड़ी है सो डाक्टरों की क़िल्लत ने गोया अहसान की लाटरी निकाल दी और वह सरकारी डाक्टर के तौर पर उसी इलाके में  तैनात हुआ ! इधर प्रेमपगी ज़ोया का जी पढ़ाई में लगा ही नहीं सो वह अपनी डिग्री से बेनियाज़ बनी रही और अहसान से उसके ताल्लुकात मुतवातिर गहरे से और भी ज्यादा गहरे होते चले गए ! अहसान की सांवली रंगत के मुक़ाबिल ज़ोया का सुफैद रंग हुस्न-ओ-ज़माल कहर ढ़ाता रहा ! अपने रिश्ते को शादी में तब्दील करने का कोई प्लान फिलहाल इस जोड़े के सामने मौजूद नहीं था !

सुहेल , अहसान का करीबी दोस्त उसके राजदार की हैसियत से , अक्सर सलाह देता कि अब उन्हें  शादी कर लेना चाहिये पर...जोड़े को इसकी फ़िक्र ही नहीं थी ! रिश्ता बदस्तूर चलता रहा ! सुहेल को अहसान से ज़ोया ने ही मिलवाया था और इस हिसाब से वो इन दोनों का पारिवारिक मित्र   हमदर्द , सलाहकार और शुभचिंतक पड़ोसी भी था  !  ज़ोया और अहसान की जिंदगी शादी के बिना भी सुर ताल में बजती रही लेकिन एक दिन उन्हें मजबूर होकर शादी का फैसला करना पड़ा ज़ोया पिछले छै माह से हामिल: थी सो शादी के तीन महीने के बाद ही उन्हें एक बेटा भी हो गया ! जुलाई 2011 को पैदा होने वाले इस बच्चे की वज़ह से दोनों ने अपने रिश्ते को एक नाम दिया , शादी की !  बच्चा बेहद खूबसूरत और गोल मटोल उन दोनों के पारिवारिक जीवन का आधार बना !

कल शाम ये जोड़ा फिर से उसी शहर लौटा , जहां पर उन्होंने अपनी तालीम के आख़िरी साल गुज़ारे थे ! अब उन्हें एक नज़ूमी की तलाश थी जो उनके बच्चे के जनम के बाद की तनाव भरी जिंदगी से निजात दिला सके ! शहर के मशहूर नज़ूमी ने कहा कि वो उनकी दिक्क़तें दूर तो कर सकता है पर इसके लिए उन्हें बीस हज़ार रुपये खर्च करना होंगे ! इस पर उन्होंने एक और करीबी डाक्टर दोस्त से सलाह मशविरा किया और उसके बताये हुए नज़ूमी के पास पहुंचे जिसने उन दोनों की कुंडलियां बनाई और आसान शर्तों पर मदद का वादा भी किया !  नज़ूमी का ख्याल था कि नवजात बेटा अहसान का हो ही नहीं सकता और अहसान को भी यही शक था कि बेटा उसका है ही नहीं ! जोड़े के दरम्यान तनाव की असल वज़ह भी यही थी ! ज़ोया कहती कि तुम बिना वज़ह शक कर रहे हो और अहसान कहता कि बच्चे की शक्ल उससे नहीं मिलती !

वो दोनों पिछले सात माह के आपसी झगड़े , मारपीट और ज़हन्नुम हो गई जिंदगी को आसान करने के ख्याल से नज़ूमी तक पहुंचे थे ! अहसान का ख्याल था कि ज़ोया के हामिल: होने के शुरुवाती तीन महीनों में वो डिपार्टमेंटल कोर्स के सिलसिले में ज़ोया से दूर था इसलिए ज़ोया उसकी वज़ह से हामिल: हो ही नहीं सकती थी ! उसपर तुर्रा ये कि बच्चे की शक्ल भी अहसान के बनिस्बत सुहेल से मिलती है  ! घरेलू झगडों के दौरान अहसान ने एक बार खुदकुशी भी करने की कोशिश की पर ज़ोया ने उसके शक को हमेशा बेबुनियाद ही कहा ! इधर नज़ूमी अहसान के इस नज़रिये के पक्ष में था कि बेटा उसका नहीं है और फिर ज़ोया टूट गई उसने माना कि पिछले दो साल से उसके नज़दीकी ताल्लुकात सुहेल से बन चुके थे और यह बच्चा सुहेल का है ! ज़ोया के कुबूलनामे के साथ ही अब नज़ूमी के सामने सवाल यह है कि क्या इस जोड़े को आगे भी साथ में बना रहना चाहिये ? अहसान और ज़ोया ऐसा करने के लिए तैयार भी हैं बशर्ते उनके मन किसी आध्यात्मिक जुगत से शांत कर दिये जायें वे एक दूसरे को अब भी प्रेम करते हैं पर तनाव की मुक्ति और रिश्ते की सहजता को लेकर फिक्रमंद हैं !

उनका साथ बने रहना या अलग हो जाना नज़ूमी की सलाह और अमल पर निर्भर है ! मुश्किल ये है कि इस मसले में नज़ूमी को मुझसे बहुत उम्मीदें हैं पर मैं इतनी ज़ल्दी किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले जोड़े की पिछली समाजी / रोमानी जिंदगी को अच्छी तरह से पढ़ लेना चाहता हूं ! मुझे लगता है कि मैं उस जोड़े की काऊंसलिंग के लिए अभी तैयार नहीं हूं पर जोड़ा और नज़ूमी दोनों ही ज़ल्दी में हैं !  प्रेम के रिश्ते हम इंसानों को जोड़ते और तोड़ते हैं ! हम नफरतों के साथ भी जी सकते हैं बशर्ते , हमारा विवेक सलामत बना रहे ! इस जोड़े के मुद्दे पर मैं खुद ही अनिर्णय की स्थिति में हूं !  मुझे वक़्त चाहिये पर जोड़े के पास वक़्त की भारी कमी है ! नज़ूमी आध्यात्मिक अमल कर ही लेगा पर मैं प्रेम और जिंदगी को लेकर अनिश्चितता के संसार में डूबता जा रहा हूं ! नज़ूमी के पास अपने तयशुदा नियम कायदे हैं ... पर मेरे पास इश्क का कोई एक सिद्धांत नहीं !  शायद इश्क और जिंदगी सीधी राह नहीं चलते !





विशेष टीप  : 
पात्रों के नाम बदल कर लिखी गई इस संस्मरणात्मक कथा का अंत चाहे जो भी हो पर... प्रेम , एक और प्रेम , खुदकुशी का ख्याल , नजूमियात , डाक्टर्स और नजूमियात , टूट के बाद भी साथ बने रहने का ख्याल , जीवन को एक और अवसर , शायद अलगाव या फिर अंततः तनावजन्य मृत्यु  !  इंसान , उसके ज़ज्बात और रिश्ते बेहद कन्फ्यूज करते हैं मुझे !   



52 टिप्‍पणियां:

  1. Kahani padhkr me bhi confusion ki halat me...
    Main samajh nhi pa rha hu k is pyar ko main kya naam du.... Kisko doshi thehraun... Kisko santvana du...
    Ek vichitra katha!!!!

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    1. नावेद साहब ,
      रिश्तों को बूझना सचमुच बहुत कठिन है ! एक गाना याद आ रहा है , दिल तो आखिर दिल है ना मीठी सी मुश्किल हैं ना ! दिया, दिया ! दिया ना दिया !

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  2. मन किसी आध्यात्मिक जुगत से शांत नहीं हो सकता। मन तो तभी शांत होगा जब दोनो में अभी भी इतना प्रेम होगा का कि माशूक कि दगाबाजी को हालात की देन मानकर नज़र अंदाज कर देगा। प्रेम है यह इससे पता चलता है कि शक-औ-सुबहा के यकीं में बदल जाने के बावजूद भी साथ रहने की जद्दोजहत जारी है। मसला गंभीर है। इसमें और भी पेचोखम हो सकते हैं जो आपके या नजूमी के सामने न आ पाये हों। पूरे वाकये में नजूमी समझदार लगता है जिसे अपने हुनर से अधिक आपकी समझदारी पर यकीन है। खुदा खैर करे।

    मेरी राय में दोनो को बच्चे के सुखद भविष्य के लिए आपस में समझौता कर ही लेना चाहिए..अपनी जिंदगी तो ये जी ही चुके।
    वैसे इस पूरे वाकये में सबसे महत्वपूर्ण पात्र सुहेल है। यह फिर दोनो की जिंदगी में जहर बो सकता है। इसे पूरी तरह हटाना या समझौते में शामिल करना जरूरी है।

    बेहद कन्फ्यूज करती पोस्ट है।

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    1. आपकी शानदार प्रतिक्रिया के लिए आभार ! ...पर मुझसे नज़ूमी की उम्मीदों पे खुदा खैर करे , भला क्यों :)

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  3. बहुत नाजुक मामला -अगर हम निकटवर्ती कपि प्रजातियों में देखें तो ऐसे बच्चे को मारने के बाद ही नर मादा का सम्बन्ध स्वीकार कर सकता है ....कारण वही ..सांप के सपोले भी पाले नहीं जाते हैं ...नजूमी को इस जैवीय पहलू नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए -जिसने जना,उसका क्या कहना ? उसे क्यों नहीं आगे बढ़ हाथ थामना चाहिए!

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    1. अरविन्द जी ,
      बच्चा अब लगभग आठ माह का है सो उसके साथ कपिवत व्यवहार तो संभव ही नहीं है ! तलाक के साथ सुहेल पहला विकल्प है और रिश्ते की कंटीन्यूटी के साथ अहसान दूसरा ! जैसा कि मैंने कथा में लिखा है कि दम्पत्ति कबीलाई पृष्ठभूमि से हैं सो यह भी कहना उचित है कि कथा वाले समाज में ज्यादातर पूर्व प्रेमी अथवा पति की संतान को सहज स्वीकार करने का चलन भी है ! यहां विवाह / परित्याग / पुनर्विवाह भी ऐसी ही सहज घटनाएं हैं इसलिए दूसरे विकल्प को ठुकराना आसान नहीं है ! इस प्रकरण में उल्लिखित पात्रों के नाम / धर्म छद्म हैं पर अब मुझे ऐसा लग रहा है कि इन नामों / धर्म / समाज के आलोक में टिप्पणीकार मित्र पहले विकल्प पर ज्यादा जोर दे रहे हैं ! पात्रों के नामों का चयन मेरी अपनी त्वरा या त्रुटि मानी जा सकती है इसलिए मेरा अनुरोध है कि पात्रों की कबीलाई पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रख कर सुझाव दिए जायें !
      अहसान कबीलाई पृष्ठभूमि से निकल कर डाक्टर बना है और अब वो हम जैसों के समाज के सतत संपर्क में है इसलिए उसकी ईर्ष्या और आक्रामकता पर हमारे समाज का प्रभाव भी देख पा रहा हूं मैं !

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  4. आपके अफ़साने (संस्मरणात्मक कथा) हमेशा किसी न किसी कहानी को ज़िंदा कर देते हैं मेरे ज़ेहन में... अब आपके सवाल का जवाब तलाशते-तलाशते मैं खुद एक सवाल पर अटक गया हूँ.. शायद मेरे सवाल का जवाब आपके सवाल की रास्ते की दुश्वारियां दूर कर पाए..
    .
    किस्सा मुख़्तसर ये है कि
    वे दोनों एक दूसरे को जी जान से चाहते थे... उनकी मोहब्बत की मिसालें दी जाती थीं.. मगर वुजुहात कुछ ऐसे हुए कि उनकी शादी मुकम्मल न हो पाई. दोनों ने खुदकुशी का फैसला किया... एक दूसरे को आख़िरी बार चूमा और एक दूसरे को आगोश में लिए दरिया के पुल से छलांग लगा दी...
    अगले दिन पुलिस ने दरिया से दो लाशें बरामद कीं और पोस्टमोर्टेम के लिए भिजवा दिया.. शाम तक रिपोर्ट आ गयी.. लड़की हामिला थी और लड़का नामर्द!!
    पिछले चालीस सालों से ये कहानी परेशान कर रही है मुझे!!!

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    1. ऐसे ही अफसाने परवान होते हैं इस 'प्यार' के !

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    2. इस कहानी से यह पता चलता है कि सेक्स क्षणिक शारीरिक भूख है और प्रेम कुर्बानी की हदें पार करने वाला जुनून।

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    3. no personal offence - but यह कहानी ही होगी जो आपने कहीं पढ़ी होगी |

      post mortem किसी भी अप्राकृतिक मृत्यु के समय मृत्यु का कारण पता करने के लिए किया जाता है - लड़की के गर्भवती होने की जांच शायद इसलिए की जाती है के हमारे परिवेश में यह एक common वजह है लड़कियों के suicide / murder की | परन्तु लड़का मर्द है या नहीं - यह जांच post mortem ke samay करने की कोई logical वजह है क्या ?

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    4. सलिल जी ,
      आपके द्वारा उल्लिखित किस्सा मेरी मुस्कराहट को कनपटियों तक खींच ले गया ! सुना मैंने भी था पर यह है तो आखिर किस्सा ही ! मेरे ख्याल से यह स्त्रियों के चरित्र को फोकस करके गढा गया किस्सा है ! मुमकिन है यह किसी सत्य घटना पर आधारित भी हो पर इसके कुछ पहलू मुझे अक्सर खटकते आये हैं ! पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लड़की का हामिल: साबित होना तो सामान्य पर्यवेक्षण का हिस्सा है पर नपुंसकता का टेस्ट वो भी मृत्यु के बाद ?
      चलो मान लिया कि लड़के का पक्ष लड़की को दुष्चरित्र साबित करने के लिए इस तरह के परीक्षण की मांग करता भी है तो क्या यह रिपोर्ट शाम तक आना संभव थी ?

      खैर इस बात से सहमत हूं कि किस्से में अन्तर्निहित मुद्दा लगभग वही है जो कल शाम मेरे घर की दहलीज़ तक पहुंची कथा में है ! हमेशा की तरह पोस्ट को सार्थक करने वाले कमेन्ट के लिये आपका शुक्रिया !

      संतोष जी ,
      प्यार पे खासा दखल रखते हैं आप :)

      देवेन्द्र जी ,
      अगर आप सेक्स को भूख के साथ साथ क्षणिक जुनून भी मान लेते तो उसे प्रेम के साथ देखना आसान हो जाता :)

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    5. शिल्पा जी ,
      आपसे इत्तेफाक रखता हूं और सलिल जी को भी मैंने यही बात कही है !

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    6. ये कहानी आज से चालीस साल कबल 'सारिका' या ऐसे ही किसी रिसाले में पढ़ी थी... उस वक्त "लघुकथा विशेषांक" निकला करते थे और शायद इस कहानी के बारे में कहा गया था ये सबसे छोटी लघुकथा है... किस्से को किस्से के नज़रिए से देखा जाना चाहिए.. फैक्ट वही हैं.. दो शख्स.. बेइन्तिहाँ मोहब्बत... शादी नामंजूर.. खुदकुशी.. और वो आख़िरी बात... अब इसे पंचलाइन मान लें, लेखक का एक स्टेटमेंट मान लें... या लेखक की "बीमार" ज़हनियत का सुबूत.. लेकिन ये मेरे लिए बहस का कोई मुद्दा नहीं और इसकी वकालत में मैं कोई बयान नहीं देने जा रहा..!!
      कहानी मेरी होती तो मेरा बयान मायने रखता!!

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    7. सलिल जी ,
      ये तो तय है कि ये कहानी मैंने भी उसी रिसाले में पढ़ी होगी जिसमें आपने !

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    1. क्षमा जी ,
      अज़ब इत्तेफाक है कि जब यह प्रेम शुरू हुआ तो मैं जिस सरकारी मकान में रहता था ज़ोया उसके ठीक सामने के हास्टल में रहती थी और अब जबकि मैं अपने खुद के मकान में हूं तो यह प्रकरण फिर से मेरी दहलीज तक आ पहुंचा !
      मुझे लगता है कि मैं अपने सरकारी मकान में रहते हुये ऐसे हज़ारों प्रेम प्रसंग देख चुका हूं क्योंकि मेरे सरकारी मकान के आगे पीछे गर्ल्स हास्टल्स थे और घर के सामने वाली सड़क हमेशा आबाद बनी रहती थी ! क्या पता कल को , कोई और किस्सा फिर से लौट कर मेरे सामने आ जाये !

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    अली सैयद साहब,

    इस मसले पर तो आपको कोई भी अनिश्चय होना ही चाहिये... न प्रेम को लेकर और न जिंदगी को लेकर ही... हमेशा की तरह ही अरविन्द मिश्र जी ने खरा-साफ लिख दिया है... अहसान और जोया को तलाक ले लेना चाहिये... और फिर उसके बाद अगर संभव हो तो जोया सुहेल के साथ अपनी आगे की जिंदगी बिताये... न भी संभव हो तो भी जोया और अहसान एक दूसरे को भूल अपनी अलग-अलग जिंदगी बितायें... भूलने की बहुत बड़ी ताकत है इंसान के पास...

    और हाँ, बिना प्रेम के तो इंसान जी सकता है, हम में से बहुत से हैं जिन्हें कोई प्रेम नहीं करता और न ही वे किसी को करते हैं, फिर भी ठीकठाक जी लेते हैं... पर नफरतों के साथ नहीं जी सकता कोई भी, कारण, नफरतें विवेक को नष्ट कर देती हैं और ऐसा होने पर दुर्घटना का घटना तय सा हो जाता है...


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      त्रुटि सुधार :-

      'अनिश्चय होना ही' को 'अनिश्चय होना ही नहीं' पढ़ा जाये...

      आभार!



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      हटाएं
    2. प्रवीण जी ,
      आप त्रुटि सुधार नहीं भी करते तो भी मैं टिप्पणी को आपके मंतव्य के हिसाब से ही पढता !
      नफरत के साथ जीवन जीने के लिए मैंने विवेक की शर्तबंदी तो की ही है ! इससे आगे मुझे लगता है कि अरविन्द जी को प्रतिक्रिया देते वक़्त मैं आपको भी संबोधित कर रहा था !

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    3. मनुष्य की जीनिक अभिव्यक्तियों का अनदेखा किया गया तो अनहोनी तय है ...मनुष्य आज भी ह्रदय से एक गोरिल्ला सम है! प्रवीण शाह जी मेरी बात इतनी सहजता से कैसे समझ जाते हैं जिसे कोई नजूमी समझना नहीं चाहता या समझ कर भी किंचित निहितार्थों की नासमझी है उसकी ????

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    4. अरविन्द जी ,
      नज़ूमी को आपकी मंशा से अवगत करा दिया जाएगा उसके बाद उसकी वो जाने !...पर मैं खुद इतनी त्वरा में सामान्यीकरण का रिस्क नहीं लूंगा !
      जीनिक अभिव्यक्तियों के मामले में प्रवीण जी और आपका अभिमत एक जैसा होना मुझे भी हैरान कर रहा है :)

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  7. मानवीय रिश्ते, कुछ भी संभव है !
    सलिल ( चला बिहारी ...) की टिप्पणी पर क्या कहना है भाई जान ??

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    1. यकीनन !
      सलिल जी के मुताल्लिक मैं आपका कहना मान लिया है !

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  8. मेरी राय इस मामले में अलहदा किस्म की है.ऐसे रिश्ते जो किसी खास बुनियाद के आधार पर खड़े होते हैं,बनते हैं,उस आधार के उलट जाने पर जो दरार पड़ती है,उसकी फौरी मरम्मत तो हो सकती है,पक्की नहीं !
    ..मतलब यह कि जिस मुहब्बत और भरोसे के साथ यह रिश्ता बना,वह बीच में झूठ और फरेब के साथ टूट गया.इस रिश्ते को कोई नजूमी मंतर मारकर या पैसे लेकर किसी तरह का ठेका लेता है तो उसका भरम है.
    ..अगर रिश्ते में कोई गर्मी बची रही होती तो न अहसान जोया पर शक करता और न जोया अहसान से झूठ बोलती.

    यदि वे दोनों बहुत आदर्श और समझदार-टाइप के लोग हैं तो बच्चे को लेकर भी सहमत हो सकते थे क्योंकि वह उन्हीं में से एक का अंश है.उसे खत्म करने का विकल्प या साथ रहने की दवा किसी नजूमी से लेना दोनों चीज़ें वाहियात हैं.ऐसा होने के बाद भी 'उस' चीज़ की दवा कोई नहीं दे सकता ,जो अहसान या जोया को चाहिए !

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    1. आज तो आप खासी गहन , सार्थक और मर्मभेदी टिप्पणी कर बैठे हैं ! बस एक मुद्दा है जो सच नहीं है और वो है बच्चे को खत्म करने का विकल्प ! ना तो ये संभव है और ना ही जोड़े में से किसी एक ने इस तरह की इच्छा जताई है !

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  9. ये कैसा सुर मंदिर है , जिसमे संगीत नहीं ।
    ऐसी लड़की जो एक साथ दो दो लड़कों से जिस्मानी सम्बन्ध रखे , वह भरोसे के लायक नहीं हो सकती । इस पूरे प्रकरण में अहसान बलि का बकरा बन गया है । उसने अपनी नादानी से अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है ।
    लड़की उसकी नहीं , बच्चा उसका नहीं , फिर वो इस रिश्ते में क्या कर रहा है ?
    मुझे इस रिश्ते का कोई भविष्य नज़र नहीं आता जब तक कि सुहैल आस पास है ।

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  10. जब दो साल तक सुहैल से सम्बन्ध थे..तो फिर शादी अहसान से क्यूँ??...इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं....आज अहसान कितना ही उदारवादी बन जाए...पर वह बच्चे को पूरे दिल से नहीं अपना पायेगा और यह बच्चे के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए सही नहीं है...वो इस उपेक्षा को हमेशा महसूस करेगा..और इसके बाद जोया और अहसान के दूसरे बच्चे हो गए तब तो यह बच्चा उपेक्षा का शिकार बनेगा ही...और इसकी जिंदगी पर उसका गहरा असर पड़ेगा....अब कोई भी फैसला..बच्चे को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए.

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    1. क्या पता अहसान की अनुपस्थिति में ज़ोया की कोई एक भटकन लंबी चल निकली हो ! शायद वो अहसान से ही ज्यादा प्यार करती हो इसलिए उससे शादी की या फिर सुहेल आर्थिक रूप से अहसान से कमतर रहा हो याकि कोई और वज़ह ? कुछ पक्का कहना कठिन है पर सच तो यही है !
      फैसला अभी कुछ हुआ नहीं है पर ज़ल्द ही सारे पहलुओं पे विचारण होगा , अगर कोई आकस्मिक घटना ना घट जाये तो !

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  11. आपकी इस पोस्ट ने यशपाल के एक उपन्यास "तेरी मेरी उसकी बात " की याद दिला दी.

    जिसमे नायक आजादी की लड़ाई के लिए जेल में रहता है और उस बीच उसका एक दोस्त उसकी पत्नी की बहुत मदद करता है. दोनों में कोई प्रेम सम्बन्ध नहीं था..सिर्फ एक अच्छी दोस्ती थी.यह भी पति नहीं बर्दाश्त कर पाता. और काफी उलझनें..लड़ाई-झगड़े...तनाव होते हैं दोनों के बीच. वह तो कहानी थी इसलिए पति का एक्सीडेंट करवा कर कहानी ख़त्म कर दी गयी...पर यहाँ तो वास्तविक जीवन है.

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    1. वहां घटनाक्रम यशपाल जी के नियंत्रण में था पर यहां ऐसा मुमकिन ही नहीं है ! जो हो उसे थोड़ा बेहतर करने की कोशिश ही की जा सकती है !

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  12. उलझी हुई प्रेम कहानी है ...प्रेम इतना अधिक था कि अब तक निभाए जा रहे हैं तो इनसे इतर शारीरिक सम्बन्ध कैसे बने ...बहुत मुश्किल है यह कहना कि यह कुछ समय की कमजोरी थी या भावनात्मक सम्बन्ध ...कुछ भी हो, अहसान के लिए बहुत मुश्किल होगा यह भूलना ...
    दूसरा पहलू यह भी है कि तलाक के बाद पुनर्विवाह या असामान्य परिस्थितियों में कई बार जोड़े पिछली जिंदगी से जुड़े बच्चों को अपनी जिंदगी में स्वीकार कर लेते हैं , निभाते भी हैं ,ऐसे कई उदाहरण मेरी आँखों के सामने हैं !
    प्रेम और विवेक दोनों का असमंजस है इस सत्य कथा में...मैं संतोषजी की टिप्पणी " यदि वे दोनों बहुत आदर्श और समझदार-टाइप के लोग हैं तो बच्चे को लेकर भी सहमत हो सकते थे क्योंकि वह उन्हीं में से एक का अंश है.उसे खत्म करने का विकल्प या साथ रहने की दवा किसी नजूमी से लेना दोनों चीज़ें वाहियात हैं.ऐसा होने के बाद भी 'उस' चीज़ की दवा कोई नहीं दे सकता ,जो अहसान या जोया को चाहिए !" से सहमत हूँ !

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    1. संतोष जी की टीप के बच्चे से सम्बंधित अंश पर मैं पहले भी असहमति जता चुका हूं ! बच्चे को खत्म करने का कोई विचार भी इस जोड़े के मन में नहीं है ! यानि कि इस सारे फसाद में बच्चे की जान को कोई खतरा नहीं है ! शेष टीप यथावत शिरोधार्य !

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  13. रोचक मामला है। वैसे इसका हल दोनों को ही निकालना होगा। कोई भी तर्क उनके मन के हिसाब से ही अमल में लाया जा सकता है।

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    1. अभी के हालात में रोचक के बजाये विस्फोटक या भयंकर मामला कहिये ! दोनों की सम्मति से ही निर्णय हो सकेगा और यही उचित भी है ! निर्णय चाहे जो भी हो !

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  14. लड़के का चरित्र...लड़की का चरित्र..इन सभी बातों का अब कोई मूल्य नहीं है...ये सम्बन्ध अब भावनाओं से बहुत परे जा चुका है...अब बात होनी चाहिए कि बच्चे का असली पिता कौन है..
    सिर्फ शक्ल मिल जाने से ये तय कर लेना कि बच्चे का बाप कौन है, ये भी कोई समाधान नहीं है...अगर ऐसा ही है तो अमिताभ बच्चा की शक्ल से मिलते-जुलते कई लोग मिल जायेंगे....
    DNA टेस्ट करवा लिया जाए...और जो बच्चे का पिता है...उसे बच्चे की जिम्मेवारी ले लेनी चाहिए...फिर उसपर यह निर्भर करता है कि वो लड़की को अपनी पत्नी बनाए कि ना बनाए...इससे कम से कम बच्चे को पिता का सही नाम मिल जाएगा....और उसकी ज़िन्दगी में कम से कम कन्फ्यूजन नहीं होगा...बाकी जो गलतियाँ हुईं हैं...उनके साथ तो जीना ही पड़ेगा...

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  15. उत्तर
    1. मैंने लिखा कि पति गर्भावस्था के प्रथम चरण में सीन से बाहर है ! पति के शक की बुनियाद भी यही थी ! अब जबकि लड़की ने खुद ही क़ुबूल कर लिया है कि बच्चा सुहेल का है तो नौबत डी.एन.ए. टेस्ट तक नहीं जाती ! आप का सुझाव सही है कि वास्तविक पिता बच्चे की जिम्मेदारी ले ले पर कथा के पात्र जिस समाज से उभर कर आये हैं वहां पर बच्चे को दूसरा पिता भी स्वीकार कर ले तो यह समाज विरुद्ध कृत्य नहीं माना जाएगा ! यहां बच्चे को पालक पिता का नाम सहज स्वीकार्य होता है ! संभवतः वे दोनों इसीलिये आगे भी एक साथ रहने वाले विकल्प की बात भी कर रहे हैं !
      अपनी कबीलाई पृष्ठभूमि से उभर कर अहसान अगर डाक्टर नहीं बना होता और हम जैसों के समाज के संपर्क में आकर यौन नैतिकता के नये मानदंड नहीं देखने लगता तो शायद यह मुद्दा मुद्दा ही नहीं बना होता !

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  16. डा0 साहब की टिप्पणी से सहमत। अहसान को बचाया जाना चाहिए। सुहेल और जोया दोनो शातिर हो सकते हैं। यह अहसान को फंसाने के लिए किया गया सम्मिलित षड़यंत्र लगता है। तीनो से अलग-अलग बात की जाय तो मामला समझ में आ जायेगा।

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    1. मैंने निवेदन किया ना कि ( मामला बहुत उलझा हुआ है पेचीदा है ) इसे पढ़ने के लिए वक़्त चाहिये !

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  17. पूरी कहानी को पढने के बाद मुझे सुहैल की पृष्ठभूमि में जाने की जरूरत महसूस हो रही है. सीधे सीधे उस शख्शियत की औकात क्या थी. क्या वह उस हुस्न-ओ-ज़माल से शादी कर घर बसा सकता था. शायद नहीं और यही वजह होगी कि उसने सोचा होगा अपने जिस्मानी संबंधों को बरकरार रखते हुए कोई दूसरा बकरा ढूंडा जाए. अहसान मिल गया. जैसा आपने लिखा है, "वे कबीलाई पृष्ठभूमि से हैं और वहां उस बच्चे के होते हुए भी वर्त्तमान सम्बन्ध कायम रह सकता है". यही तो वह बात है जिसपर सुहैल बेंक कर रहा होगा. एक महत्वपूर्ण पहलु यह भी है कि अहसान अब उन कबीलाई मानसिकता से ऊपर उठ चुका होगा और आधुनिक संभ्रांत समाज का हिस्सा बनने कि दौड़ में होगा ऐसे में मै नहीं समझता कि दोनों कि ज़िन्दगी सहज रह पाएगी. अंततोगत्वा एक दिन जरूर आएगा जब वह हुस्न-ओ-ज़माल परित्यक्ता बन जायेगी. सनद रहे सुहैल वहीँ कहीं आस पास ही होगा. बेहतर विकल्प तो यही होगा कि समय रहते सुहैल अपने बेटे को अपना ले या यों कहें कि हुस्न-ओ-ज़माल अहसान पर अहसान करे.

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  18. आदरणीय सुब्रमणियन जी ,
    आपने गज़ब की प्रतिक्रिया दी है ! इससे पहले किसी भी टिप्पणीकार बंधु ने सुहेल की पृष्ठिभूमि की जांच पड़ताल का सुझाव नहीं दिया ! सुहैल के बारे में जो जानकारी मैंने अब तक जुटाई है उसे (फिलहाल) आपसे फोन पर ही शेयर कर पाऊंगा !

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  19. जब तक सुहैल जैसा किरदार इस कहानी में है तब तक मुझे कोई हल नहीं निकलता दिखाई देता। और लड़की भी इतनी मासूम नहीं दिखती क्योंकि उसने अहसान से संबंध होते हुए सुहैल से संबंध रखे। हो सकता है सुहैल से उसके संबंध पहले से हों……… आदमी कितना भी कबिलाई हो आंखो देखी मक्खी नहीं लील सकता………… इस कहानी का अंत मुझे भयानक ही लग रहा है।

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  20. लडकी और कहानी के भयानक अंत के विषय मे कह तो आप ठीकई रये हैं ललित जी ऐसा हमें भी लगता है !

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  21. एक ही साँस पूरी कहानी पढ़ डाला , अंत थोडा सा अलग जरूर रहा .आप द्वारा प्रयोग किये गए भीषण उर्दू शब्दों को समझने में थोड़ी दिक्कत हुयी.

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    1. @भीषण उर्दू शब्दों


      हाँ कई शब्द समझ नहीं आते, पर पढ़ने में अच्छे लगते है. कई बार इन शब्दों को समझने के चक्कर में लेख की मूल भावना को समझ नहीं पाते.

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    2. मुझे ऐसे शब्दों के अर्थ , आलेख के बाद लिख देने चाहिए थे !

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