पहले पहल वे एक
नृत्य आयोजन में मिले और इक दूजे के हो गये । ओहिया ऊंची मजबूत कद काठी का
खूबसूरत युवक था, जबकि लेहुआ, फूल सी नर्म-ओ-नाज़ुक जिसके सौंदर्य के
चर्चे पूरे द्वीप में हुआ करते । वो अपने पिता की इकलौती संतान थी । लेहुआ ने अलाव
के करीब ओहिया को देखा जो, उसके पिता से बात कर रहा था, शर्म से उसकी
पलकें झुक गईं । उसी वक्त ओहिया की नज़र लेहुआ पर पड़ी और वो अवाक, उसे देखता
रह गया । उन दोनों के दरम्यान अलाव था और पहली नज़र के आकर्षण की तपिश, बिखर
बिखर, नये रिश्ते की बुनियाद डाल रही थी ।
लेहुआ के पिता
ने ओहिया से बातचीत जारी रखने को कहा, सो वो लज्जित सा, टूट टूट गये, शब्दों
में, अपनी बात को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा, हालांकि वो, लेहुआ
के चेहरे से अपनी निगाहें फेर ही नहीं पाया। लेहुआ के आश्चर्यचकित पिता, माजरा
भांप गये और उन्होने ओहिया का औपचारिक परिचय, लेहुआ से करवाया क्योंकि वे खुद भी
ओहिया को पसंद करते थे । बहरहाल उस वक्त, एक झिझक सी थी, सो, दोनों, आपस
में बातचीत नहीं कर सके । कुछ अरसे बाद लेहुआ के पिता ने अपनी पुत्री को इजाजत दे
दी कि वो, ओहिया को अपने साथ रख सकती है । ओहिया ने अपने हाथों, पत्नी
के लिए इक घर बनाया और नवविवाहित युगल अगले कई महीनों तक आनंद पूर्वक वहां रहने
लगा ।
और फिर एक दिन, जब
देवी पेले, नवदंपत्ति के घर के करीब के जंगल से गुज़र रही थी, वहां उसने, ओहिया
को देखा और मुग्ध हो गई, उसने बातचीत में उलझा कर ओहिया को अपनी खूबसूरती से
प्रभवित करने की कोशिश की...हालांकि ओहिया, विनम्रतापूर्वक देवी पेले को जबाब
देता रहा पर, देवी पेले के हुस्न-ओ-जमाल से अनासक्त बना रहा, तभी लेहुआ अपने
पति के लिए दोपहर का खाना लेकर आ पहुंची, पत्नि को देखकर, ओहिया का
उदासीन चेहरा खिल उठा । यह देख, देवी पेले, ईर्ष्या की अग्नि में जल उठी, उसने
अपना मानवीय रूप त्याग दिया, वो आग के, आसमान छूते शोलों में तब्दील हो गई थी, उसने
ओहिया को नीचे गिरा दिया और बेहद बदसूरत दरख्त में बदल दिया ।
हतप्रभ लेहुआ, देवी
पेले के सामने घुटनों के बल झुक गई, उसका खूबसूरत चेहरा आंसुओं के सैलाब में
डूबा जा रहा था, उसने देवी से याचना की, मेरे पति को फिर से इंसान बना दो
या फिर मुझे भी बदसूरत दरख्त बना दो । उसने कहा मैं, अपने पति के बिना
जीवित नहीं रह सकती । मगर देवी पेले, लेहुआ को अनदेखा करते, ऊंचे ठंडे
पर्वत शिखरों की ओर चली गई,उसका बदला पूरा हो चुका था । महादेवता ने यह सब देखा, वो, देवी
पेले की इस हरकत से बेहद खफा हुए, महादेवता स्वर्ग से धरती पर उतरे, जहां
असहाय लेहुआ, धरती पर बिछ सी गई थी । महादेवता ने लेहुआ को
खूबसूरत लाल फूल में बदल दिया और उसे ओहिया के दरख्त पर रख दिया ताकि प्रेमी युगल
फिर कभी जुदा न हों ।
उस दिन से आज तक, ओहिया
के दरख्त पर खूबसूरत लाल फूल खिलते हैं और जब तक फूल, दरख्त पर मुस्कराते
रहते हैं, रूत, धूपदार और मौसम साफ, शफ़्फ़ाक बना रहता है, फिर जैसे
ही फूल, दरख्त से टूटकर गिरते है, मौसम बदलता है, बारिश तेजतर होती
जाती, पानी की बूंदें दरख्त की टहनियों को छूकर धरती पर यूं टपकती हैं,गोया
लेहुआ,ओहिया से जुदाई बर्दाश्त न कर पा रही हो...
ये कथा पहले पहल प्रेम होने और फिर अभिभावक की सहमति से
दाम्पत्य जीवन के आरम्भ तक जा पहुंचती है । ओहिया ख़ूबसूरत और बलशाली कबीलाई / आदिवासी
युवा है, उसकी भेंट, सौन्दर्यवती लेहुआ से किसी नृत्य आयोजन के समय हुई थी ।
आगे की कथा में देवत्व का प्रवेश कुछ ऐसा है, जैसे कोई
अभिशाप हो, जो नवदंपत्ति के सुख छीन लेने के लिए अवतरित हुआ हो ।
कथा को ध्यान से पढ़ें तो, देवी पेले का व्यवहार एक सामान्य और
दुष्ट स्वभाव वाले मनुष्य सा है, वो अस्वीकृति के विरुद्ध अत्यंत असहिष्णु है और बदले की भावना
रखती है, और अपने दैवीय गुणों को भूल कर लेहुआ की क्षमा याचना / प्रार्थना को
अनदेखा करती है ।