हेफ़िस्टोस को उसकी मां देवी हेरा ने देवलोक से नीचे फेंक दिया था, क्योंकि
देवी, अपंग पुत्र के जन्म से लज्जित महसूस कर रही थी । धरती पर फेंके जाने के समय हेफ़िस्टोस
को थेटिस और यूरिनोम द्वारा बचाया गया और ओकेनोस नदी के किनारे एक गुफा में रख दिया गया, जहां वह
एक शानदार लोहार के रूप में विकसित हुआ,
लेकिन उसे इस बात का दुख था कि, अपंग होने के कारण उसकी मां हेरा ने उसे देवलोक से
धरती पर बेसहारा फेंक दिया था । यह एक तरह से, उसकी हत्या के जैसा व्यवहार था चूंकि
वह एक कुशल लोहार हो गया था तो उसने अपनी मां हेरा के लिए कई उपहारों के साथ एक
स्वर्ण सिंहासन भी भेजा और जैसे ही देवी हेरा उस सिंहासन पर बैठी वह बेड़ियों में
जकड़ गई और उसकी मुक्ति संभव ना रही । यह देखकर देव पिता जिउस ने अपनी पत्नी हेरा
को बचाने के लिए अन्य देवताओं से सहायता मांगी और अफ़रोडाइट को देवलोक की व्यवस्था
को बनाए रखने के लिए, हेफ़िस्टोस से विवाह करने के लिए राजी कर लिया । हेफ़िस्टोस ने
रानी हेरा को उपहार में दिए गए, सिंहासन के बंदी के तौर पर दंड दे ही दिया था,
किंतु वह उसका इस्तेमाल अपने हित में करना चाहता था । अतः उसने संकेतों में देवलोक
को यह संदेश दिया कि अगर देवता, अफ़रोडाइट के साथ उसके ब्याह को राजी हो जायें तो
वह अपनी मां हेरा को स्वेच्छा से रिहा कर देगा और देवताओं ने उसकी यह शर्त मान ली ।
उसे नशे की हालत में देवताओं के सम्मुख लाया गया और कहा गया कि अगर वह अपनी मां को स्वतंत्र कर देता है, तो वह जो चाहेगा, देव लोक उसे देगा । उसने देव पिता जिउस से यह आश्वासन मांगा कि, यदि वो रानी हेरा को मुक्त कर देता है तो उसका ब्याह अफ़रोडाइट से कर दिया जाएगा । बस यही स्थिति थी कि, जिउस ने अपनी पत्नी हेरा की मुक्ति के लिए अफ़रोडाइट से सहायता मांगी और इस ब्याह के लिए अनिच्छुक, अफ़रोडाइट, देवलोक की व्यवस्था के नाम पर हेफ़िस्टोस से ब्याह करने के लिए राजी हो गई, हालांकि वह उससे प्रेम नहीं करती थी किंतु देवलोक की रानी और जिउस की पत्नी की सिंहासन में बंदी रहने जैसी स्थिति उसे भी स्वीकार नहीं थी, अतः उसने इस विवाह को स्वीकार कर लिया । हेफ़िस्टोस ने अपनी सगाई के समय एक विशाल, सुंदर, सुनहरा प्याला अपनी होने वाली दुल्हन अफ़रोडाइट को उपहार स्वरूप दिया था । उन दिनों युद्ध का देवता एरेस भी अफ़रोडाइट से विवाह करना चाहता था, किंतु देवताओं की वचनबद्धता के चलते वह हेफ़िस्टोस की तुलना में पिछड़ गया था ।
उसके सेनापति डीमोस और फोबोस तथा युद्ध के दिन के सहायक किदोइमोस यह जानते थे कि, एरेस की तुलना में हेफ़िस्टोस, अफ़रोडाइट से विवाह का अग्रणी दावेदार है और वह युद्ध के देवता एरेस से इसलिए नहीं डरता है, क्योंकि उसके साथ जिउस और अन्य देवताओं की वचनबद्धता मौजूद है । शादी के उपरांत अफ़रोडाइट के उस महल में, जिसे अपंग शिल्पी हेफ़िस्टोस ने स्वयं बनाया था, प्रवेश करने से पूर्व वह, जिउस के माध्यम से अफ़रोडाइट को पत्नी के रूप में स्वीकार करता है । अफ़रोडाइट इच्छा की देवी थी, तो वह विधवा महिलाओं की मदद के लिए महान शिल्पी हेफ़िस्टोस को खुश करने के लिए, मादकता युक्त प्रणय लीला प्रारंभ करती है । उसमें उत्तेजना है और पुराने दिनों के प्रेम तथा सहवास की स्मृतियां हैं । अतः हेफ़िस्टोस को उत्तेजित करते और संतुष्ट करते हुए वह चाहती है कि, हेफ़िस्टोस विधवा महिलाओं की मदद के लिए कुछ प्रभावपूर्ण सहायता करे, हालांकि हेफ़िस्टोस, काम क्रीडा के उपरांत, यानि कि, जिस इच्छा के लिए वह वर्षों से तड़प रहा था, उसके पूरा होते ही पत्नी के सीने में सिर रखकर सुखदायक नींद में डूब गया और फिर लगातार, दिन प्रति दिन ऐसा ही होता रहा । उसे यह कभी भी स्मरण नहीं रहा कि उसकी पत्नी, सहवास के अतिरिक्त भी उससे कुछ और सार्थक व्यवहार भी चाहती है । अतः यह ब्याह सहवास के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था । जहां हेफ़िस्टोस केवल सुख लेता है किंतु उस सुख से परे अपनी पत्नी की इच्छाओं का सम्मान नहीं करता ।
अफ़रोडाइट हेफ़िस्टोस को प्रेम तो नहीं करती किंतु देवलोक की व्यवस्था के नाम पर उससे अपने विवाह और तदनुसार शारीरिक संबंधों के लिए सहमत हो जाती है, भले ही इन संबंधों की पृष्ठभूमि में, देवता जिउस की पत्नी देवी हेरा को उसके अपंग पुत्र हेफ़िस्टोस की बदले की भावना से बचा लेने का ख्याल भी रहा हो । वह इस अनचाहे विवाह के समय युद्ध के देवता एरेस को चाहती थी, किंतु देवलोक के व्यवस्थागत कारणों से, उसने महान शिल्पी हेफ़िस्टोस से ब्याह कर लिया । हेफ़िस्टोस इस ब्याह से प्रथम दृष्टया संतुष्ट था और उसे सहवास के अतिरिक्त और कुछ सूझ भी नहीं रहा था, लेकिन अफ़रोडाइट इस समय में भी देवता एरेस से अपने प्रेम संबंध, यहां तक कि, शारीरिक संबंध बनाए हुई थी, जोकि देवलोक में चर्चा का विषय रहे और कालांतर में हेफ़िस्टोस ने इस ब्याह को, दहेज में दिए गए अपने उपहारों को वापस लेकर और व्यभिचारी एरेस को देवलोक में जलील करके, संबंध विच्छेद में बदल दिया, किंतु यह एक दर्दनाक कथा है, जिसमें हेफ़िस्टोस की मां हेरा, अपंग बच्चे के रूप में पैदा हुए हेफ़िस्टोस को देवलोक से धरती लोक पर बेसहारा फेंक देती है । जिसे अन्य व्यक्तियों द्वारा जीवन दिया जाता है , जो गुफा में रहते हुए लोहा और अन्य धातुओं के शिल्पकार के रूप में दक्ष हुआ ।
कालांतर में उसे शिल्पियों का देवता मान लिया गया, वह जन्म के समय अपनी मां हेरा के अपमानजनक व्यवहार का बदला चुकाना चाहता था और उस समय सौंदर्य की देवी अफरोडाइट यानि वीनस को अपनी पत्नी के रूप में भी प्राप्त करना चाहता था। उसने कुशल शिल्पी के तौर पर एक योजना बनाकर, अपनी मां को एक सिंहासन भेंट किया, जिसमें बैठते ही उसकी मां उसकी योजना का शिकार हो गई और लौह बंधनों में बंध गई, जिनसे मुक्त होना, तभी संभव था, जब हेफ़िस्टोस इस बात के लिए राजी होता, और हुआ भी यही । हेफ़िस्टोस की योजना के मुताबिक देवताओं ने उस से अनुरोध किया कि, वह देवी हेरा को मुक्त करने की एवज में जो भी चाहेगा, देवलोक उसे देने के लिए सहमत होगा, यहां तक कि उसके पिता जिउस भी अपनी पत्नी हेरा को बंधन मुक्त कराने के लिए उसकी मांग मान लेने पर सहमत हो गए । अतः एक दिन उसे देवलोक लाया जाता है, जहाँ वह अफ़रोडाइट के साथ ब्याह की मांग करता है और कहता है कि, इसके बाद ही वह अपना तिरस्कार करने वाली मां हेरा को बंधन मुक्त करेगा ।
देवताओं और जिउस के दबाव में अफ़रोडाइट, हेफ़िस्टोस से ब्याह करने के लिए राजी हो जाती है । जिसने अफरोडाइट लिए अनेक उपहार तैयार किए हुए थे और एक शानदार महल भी, हालांकि उस महल में उसके सुखदाई, सहवास का प्रसंग तो मिलता है, लेकिन अफ़रोडाइट और एरेस के विवाहेत्तर संबंधों का घटनाक्रम भी सार्वजानिक रूप से प्रकटित हो जाता है । इससे दुखी होकर अफ़रोडाइट का परित्याग करने से पूर्व हेफ़िस्टोस, एरेस को बंदी बना लेता है और अफ़रोडाइट तथा एरेस के विवाहेत्तर संबंधों के अपमान के बदले में, विवाह के समय दिए गए सभी उपहारों को वापस मांग लेता है और अपने पिता जिउस को यह भी कहता है कि, उनका आशीर्वाद निष्फल हुआ है, क्योंकि उन्होंने उसे ऐसी पत्नी दी थी जोकि वैवाहिक संबंधों के बाहर अपने प्रेमी एरेस के साथ रंगरेलियां मना रही थी । तो यह स्पष्ट होता है कि यह कथा अपंग शिल्पी हेफ़िस्टोस की योजना की आधी सफलता और आधी असफलता कथा है, जिसमें वह अपनी मां से बदला लेता है, किंतु अफ़रोडाइट की बेवफाई को बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसका परित्याग कर देता है ।
कथा में अफ़रोडाइट से उसके प्रेम प्रसंग को मौलिक रूप से शैया सुख के साथ, जोड़कर कहा गया है, क्योंकि इसी समय अफ़रोडाइट तन मन से अपने प्रेमी एरेस के प्रति भी समर्पित हो गई थी । अतः यह कथा अनैतिक विवाहेत्तर संबंधों के समानांतर पति से सुखद सहवास की, कथा है , जिसका अंत दु:खद है ।