वो बूढा लकड़हारा था, निर्धन लेकिन ईमानदार और मेहनती, उसका नाम ताके तोरी नो ओकिना था । वो अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ पहाड़ी पर
झोपड़ी बना कर रहता था । वे दोनों निःसंतान थे । ताके तोरी सुबह जल्दी उठता और जंगल
जाकर बांस काटता और शहर में बेच कर जैसे तैसे गुजर बसर किया करता था । एक सुबह वो
खड़ी पहाड़ी के ऊपर बांसों के जंगल में जा पहुंचा और अपनी नीली तौलिया से अपने माथे
का पसीना पोंछते हुए बडबडाया अब मैं बूढा हो चला हूं , मदद
के लिए कोई संतान भी नहीं । अचानक उसने हरे बांस के कोटर में चमकदार रोशनी देखी,
क्या यह सूरज है ? वह बुद्बुदाया । नहीं ये
सूरज नहीं हो सकता । ये तो जमीन से ऊपर आया है ।
ताके तोरी ने उत्सुक्तावश उस बांस को काट डाला, जल्द ही उसके हाथ में दो मुट्ठी के आकार का एक हरी रंगत चमकदार गहना था । ताके तोरी रोया, आश्चर्य मैं पिछले पैंतीस वर्षों से बांस काट रहा हूं पर मुझे पहली बार इतना बड़ा गहना मिला है । उसने गहने को अपने हाथों में उठाया तो वह जोर की आवाज़ के साथ दो हिस्सों में बंट गया । आप विश्वास करें या ना करें उसके अंदर से एक सुंदर और नन्हीं सी लड़की निकली जिसने रेशम का हरा लिबास पहना हुआ था । उसने कहा ताके तोरी, तुम्हें अभिवादन । ताके तोरी ने कहा, माफ करना तुम शायद एक परी हो ? उसने कहा, हाँ, मैं परी हूं और तुम्हारे तथा तुम्हारी अच्छी पत्नी के साथ कुछ समय रहने के लिए यहाँ आई हूं ।
लेकिन मेरा घर बहुत छोटा है, उसमें तुम जैसी अभिजात्य सुंदर लड़की आराम से नहीं रह पायेगी, ताके तोरी ने कहा, परी ने कहा, वो गहना कहाँ है ? ताके तोरी ने दोनों टुकड़े हाथ में उठाये और बोला, अरे ये तो सोने के टुकड़ों से भरें हैं। परी ने कहा, हाँ अब यही तुम्हारे काम आयेंगे, चलो घर चलें । घर पहुँच कर ताके तोरी चिल्लाया, देखो मेरे साथ एक परी है...और सोना भी । पत्नी भागते हुए दरवाजे पर पहुँची । उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ । ताके तोरी आश्चर्यचकित पत्नी को लगभग धकियाते हुआ झोपड़ी के अंदर पहुंचा । अगले कुछ ही दिनों में परी, लंबी ऊंची युवती में बदल गई । सुबह के जैसी तरोताजा और धवल, दोपहर के जैसी चमकदार, शाम के जैसी मृदु और रात की तरह से गहन शांत ।
ताके तोरी उसे शुभ्र दीप्ति कहता । क्योंकि वो एक गहने से निकली थी । हालांकि वो युवती, ताके तोरी और उसकी पत्नी की कुछ भी नहीं थी, फिर भी वो उनके साथ एक बेटी की तरह से रहती । सोने के टुकड़ों को बेचकर ताके तोरी दंपत्ति संपन्न हो गए थे और उन्होंने अपनी इस मुंह बोली पुत्री के लिए ऐशो आराम के तमाम प्रबंध कर दिए थे । ऐसे ही खुशहाल दो साल गुज़र गए, उस आकर्षक युवती को चाहने वाले युवकों की कमीं ना थी । स्वयं बहादुर राजकुमार मिकाडो, उस के पास आया और उसने झुक कर कहा ओ सुंदर शुभ्र दीप्ति, मेरा हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करो । क्या तुम मेरी रानी बनोगी ? परी ने एक आह भरी उसकी आँखों में आंसू थे, उसने अपनी बांहों में अपना चेहरा छुपा लिया और कहा, नहीं राजकुमार, मैं ऐसा नहीं कर सकती ।
नहीं कर सकतीं ? लेकिन क्यों ? मिकाडो ने कहा । परी ने कहा, राजकुमार, कारण जानने के लिए प्रतीक्षा करें । उस दिन से लगभग सातवें माह बाद, वो बेहद दुखी दिखाई देने लगी, उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था, वो ताके तोरी के नवनिर्मित और भव्य घर की टेरेस गार्डन पर ज्यादातर वक़्त गुज़ारती । दिन में बैठ कर सोचती रहती और रातों में गोया चाँद और तारों की दूरी नापती रहती । फिर पूर्ण चंद्रमा की एक रात, राजकुमार मिकाडो, ताके तोरी और उसकी पत्नी के साथ परी बैठी हुई थी । ताके तोरी ने कहा आज चन्द्रमा कितना चमकदार है । हाँ, ताके तोरी की पत्नी ने कहा, वो पीतल के चमकदार तवे जैसा दिख रहा है । लेकिन वो कितना थका हुआ और पीतवर्ण दिखाई दे रहा है, जैसे कि कोई निराश प्रेमी मिकाडो ने कहा ।
ताके तोरी ने कहा उसकी किरणे, कितनी लंबी और चमकदार हैं जैसे कि हमारे बगीचे तक कोई गलियारा बना रही हों । परी, कातर स्वर में चीखी, ओ पालक पिता, तुम सही कह रहे हो । यह चन्द्र किरणों का गलियारा है, जिससे अनगिनत अलौकिक वस्तुएँ तीव्र गति से आती जाती रहती हैं । जैसे कि आज मुझे घर ले जाने के लिए । मेरे पिता चंद्रमा के राजा हैं । एक बार मैंने उनकी अवज्ञा की थी तो उन्होंने मुझे तीन साल के लिए धरती पर निर्वासित कर दिया था । पिछले तीन साल जो मैं आप लोगों के साथ गुज़ारे । अब मुझे मेरे देश जाना होगा । आह मैं जाते हुए कितनी दुखी हूं ।
धुंध उतर रही है ताके तोरी ने कहा । नहीं, मिकाडो ने कहा, ये चन्द्रमा के राजा का समूह है । वे सैकड़ों हजारों की संख्या में बागीचे में उतरे,चमकदार,जैसे हाथों में टार्च लिए हों । उन्होंने प्रकाश का एक गोल घेरा बना लिया था । बीच-ओ-बीच चन्द्रमा का राजा, अलौकिक पंखों वाली पोशाक पहने हुए । उन्होंने शुभ्र दीप्ति को ऊपर उठाया और उस पर वैसी ही एक अलौकिक पोशाक डाल दी । परी ने कहा, अलविदा पिता तोरी, प्रिय पालक मां अलविदा । स्मृति चिन्ह के तौर पर मेरा गहना सदैव आपके पास रहेगा, प्रियतम मिकाडो, तुम मेरे पास ज़रूर आना चाहोगे पर तुम्हारे पास मेरे जैसी पोशाक नहीं होगी । इसलिए मैं तुम्हारे लिए जीवन अमृत का एक अंश छोड़ रही हूं । इसे पी लो और अनश्वर हो जाओ ।
इसके बाद शुभ्र दीप्ति ने अपने पंख फैलाए और सहयोगियों के साथ उस धवल गलियारे से होकर चन्द्रमा की ओर चली गई । इसके बाद मिकाडो, जीवन अमृत लेकर ऊंचे पहाड़ की चोटी पर जा पहुंचा और वहाँ एक बड़ा सा अलाव जलाया ताकि जीवन अमृत को उस अग्नि में वाष्पित कर सके । उसने कहा, शुभ्र दीप्ति से पृथक रहकर, सदा सदा के लिए अनश्वर होकर मैं क्या करूँगा ? सो, जीवन अमृत, अग्नि में नील वाष्पित होकर ऊंचे स्वर्ग तक तिरने / तैरने लगा । मिकाडो ने कहा, प्रियतमा शुभ्र दीप्ति तक, मेरे संदेशे, इस नील वाष्प के साथ पहुँचने दो । सदा सर्वदा के लिए...
ये कथा स्वर्ग लोक के देवत्व, धरती में अभिजात्यता अर्थात राजशाही बनाम सामान्यता के पायदानों पर हिंडोले झूलती चलती है । कथा का ताना बाना भारतीय परीकथाओं सा है जहां दैवीय कुलीनता, भू-लोक के राजस तत्वों सह साधारण सामाजिक संस्तरण से गले मिलने को आतुर बनी रहती है । कदाचित देवताओं और धरती के वाशिंदों के दरम्यान अनेकानेक बंधन / बाधाओं / सशर्त प्रेम की गुंजायश सदैव बनी रहती है । बहरहाल यह कथा विशुद्ध भारतीय नहीं वरन पूर्वी एशियाई देश के जनगण को संबोधित है भले ही इसका कथानक / इसके कथा तत्व भारतीयता से अंतहीन साम्य रखते हैं ।
कथा सार ये है कि ताके तोरी निर्धन किन्तु मेहनतकश और ईमानदार लकड़हारा है, उसपे तुर्रा ये कि वो निःसंतान है,यदि उसके कोई संतान होती तो उसे कठिन शारीरिक श्रम करके आजीविका की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती । ताके तोरी के पास अपनी निर्धनता और बढ़ती उम्र का कोई तोड़ नहीं है । इसके आगे संयोग यह है कि चंद्रमा का राजा अपनी पुत्री से नाराज है और वो उसे तीन साल के लिए धरती पर निष्कासित कर देता है । देवता की पुत्री अलौकिक और आभामयी है । ताके तोरी उसे पुत्री के रूप में पाकर चमत्कृत है ।
फिलहाल ताके तोरी और उसकी पत्नि संतानहीनता के अभिशाप से मुक्त हैं और उनकी निर्धनता गोया छूमंतर हो गई है । सुकन्या से अल्प समय में युवती के रूप में बदल गई, परम सौन्दर्यवती शुभ्र दीप्ति, पर पूरे देश के नौजवान मुग्ध हैं और उससे ब्याह करने के लिए उत्सुक हैं । यहाँ तक कि राजकुमार मिकाडो भी शुभ्र दीप्ति के प्रेम बंधन में है किन्तु शुभ्र दीप्ति को पता है कि उसका वनवास / उसकी सजा के तीन वर्ष पूरे होते ही हालात बदल जाने वाले हैं, वो मिकाडो को पसंद करती है पर उसकी निगाहें / उसका सारा चिंतन चंद्रमा की ओर हैं ।
अंततः उसे अभिभावक ताके तोरी परिवार और प्रेमी
मिकाडो को छोड़ कर अपने पितृ देश जाना पड़ता है । वो पिछले तीन वर्षों के समय को भूल
नहीं सकती सो अपने प्रेमी मिकाडो की अनश्वरता की कामना के साथ अमृत अंश का उपहार
छोड़ जाती है और मिकाडो इहलौकिक अभिजात्यता/ अपने परिवार /स्वजनों को पीछे छोड़, प्रेयसी की दैवीयता को
स्वीकार कर लेता है। अब कौन जाने कि प्रेयसी की अभिलाषा में मृत्यु के उपरांत
मिकाडो ने क्या पाया ...
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