tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post8531221083654319828..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: इक सवाल मैं करूं इक सवाल तुम करो हर सवाल का जबाब ही सवाल हो ?उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-30829669330775695272010-12-14T06:35:46.929+05:302010-12-14T06:35:46.929+05:30प्रेम के वषिभूत आदमी कुछ भी कर लेता है ! किसी हद त...प्रेम के वषिभूत आदमी कुछ भी कर लेता है ! किसी हद तक ये सही है ! पर सवाल आपका गम्भीर है ! बात समाज की भी है ! विचारना होगा !JAGDISH BALIhttps://www.blogger.com/profile/12672029642353990072noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-22288257704689170642010-12-13T13:58:44.175+05:302010-12-13T13:58:44.175+05:30jolog rishton ki maryada samajhte hi nahi unse isk...jolog rishton ki maryada samajhte hi nahi unse iski aasha bhi kyon ki jati hai ? maryada todne vale samaj ka samna nahi kar pate to maryada todte hi kyon hai ?yadi ve sahi hai to samaj ke samne datkar khade rahe jaise ye sab karte vaqt samaj ki maryada ko bhool gaye the ab bhi bhool jaye .Shikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-90703434296318215342010-12-13T11:57:32.923+05:302010-12-13T11:57:32.923+05:30जितेन्द्र जौहर साहब ,
'अगम्यागमन' बहुत अच्...जितेन्द्र जौहर साहब ,<br />'अगम्यागमन' बहुत अच्छा शब्द है पर ये सामाजिक नैतिकता के पक्ष का प्रतिनिधि शब्द है बस इसीलिये सवाल पूछते समय तटस्थ बने रहने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया ! अच्छे सुझाव के लिए आपका बहुत बहुत आभार !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-91429334322488214492010-12-11T23:07:26.116+05:302010-12-11T23:07:26.116+05:30सबसे पहले तो आपको सुन्दर व मर्यादित भाषा के प्रयोग...सबसे पहले तो आपको सुन्दर व मर्यादित भाषा के प्रयोग हेतु कोटिशः बधाई! आपने ‘जैविक पुकार’ जैसे प्रयोग करके मर्यादा निभायी!<br /><br />ऐसे देह-संबंध को हिन्दी में‘अगम्यागमन’ की संज्ञा दी गयी है...! जब यह अगम्यागमन है... तो अब इस पर क्या कहा जाए? किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गया हूँ...!<br /><br />जब हो ही गया यह सब, तो दो ज़िन्दगियों को बचाने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए था... मेरी सीमित बुद्धि में तो यही सबसे सही तरीक़ा धँस रहा है...अब समाज जो भी कहे!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-75512922372606039382010-12-10T18:25:15.803+05:302010-12-10T18:25:15.803+05:30सामाजिकता कहती है..वे सरासर गलत थे।
पिता का मन कह...सामाजिकता कहती है..वे सरासर गलत थे। <br />पिता का मन कहता है..जब मरना ही था तो शादी क्यों की ? लेकिन आत्मा कहती है ...<br />.. तू होता कौन है उनको गलत ठहराने वाला? जब कुछ समझ मे नहीं आता मैं आत्मा की ही बात सुनता हूँ।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-59979760896978587142010-12-05T23:21:35.513+05:302010-12-05T23:21:35.513+05:30ऐसी समस्याओं के मूल में अज्ञान है ....
वे तो ( कम ...ऐसी समस्याओं के मूल में अज्ञान है ....<br />वे तो ( कम से कम एक ) बच्चे थे , यहाँ बूढ़े भी अज्ञान के वशीभूत हो जाते हैं , जिसे प्रेम कहते हैं वह एक केमिकल लोचा भर है , वासना ही सत्य है , आगे समाज द्वारा जीवन जीने के लिए बनायी गयी मर्यादाएं हैं , व्यक्ति और समूह के बीच का समन्वय - विवाह संस्था ! बाकी तो तमाम बातें 'बम्बैया-सिनेमा' बताने सिखाने के लिए हैं ही . सेक्स एजूकेसन के प्रति हिकारत का भाव उम्र की शरीर-प्रिय नैसर्गिकता को नहीं पछाड़ सकता और अज्ञान-जनित ऐसी घटनाएं जारी रहेंगी ! आभार !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-8807024452155142462010-12-05T14:04:35.243+05:302010-12-05T14:04:35.243+05:30दोनों की मृत्यु दुर्भाग्यजनक और बहुत दुखद है . ले...दोनों की मृत्यु दुर्भाग्यजनक और बहुत दुखद है . लेकिन देश और दुनिया में कथित प्यार के नाम पर कोई अपने माता/पिता के भाई से या माता/ पिता की बहन से शादी करे, क्या यह नैतिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से उचित माना जाएगा ? अगर ऐसा होने लगा तो दुनिया में परिवार नामक संस्था का भविष्य क्या और कैसा होगा ? समाज की तस्वीर कैसी होगी ?Swarajya karunhttps://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-6529215010996893962010-12-03T16:40:46.598+05:302010-12-03T16:40:46.598+05:30आज ही लगभग दस दिनों के बाद नेट के सम्पर्क में आया...आज ही लगभग दस दिनों के बाद नेट के सम्पर्क में आया हूँ। शरीर और दिमाग दोनो बुरी तरह से पस्त हैं। फिरभी गिरिजेश जी और अरविंद जी ने लगभग मेरे मन की बातें कह दी हैं, इसलिए मैं क्या कहूं, समझ नहीं पा रहा हूँ।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-21192753323265541422010-12-03T08:50:52.732+05:302010-12-03T08:50:52.732+05:30sorry, no comments.sorry, no comments.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-42321117349590563132010-12-02T07:37:10.557+05:302010-12-02T07:37:10.557+05:30अब क्या कहा जाय विद्वान् लोग पहले ही कह चुके हैं -...अब क्या कहा जाय विद्वान् लोग पहले ही कह चुके हैं -मुझे तो लगता है सम्मान से जीना और मरना दोनों जायज है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-80844992178647598982010-12-01T07:27:44.474+05:302010-12-01T07:27:44.474+05:30अली साहेब,
नहीं मालूम क्या कहना चाहिए....
पर नहीं ...अली साहेब,<br />नहीं मालूम क्या कहना चाहिए....<br />पर नहीं मालूम ये भी कहना चाहिए! <br />आशीष.<br />---<br />नौकरी इज़ नौकरी!सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼https://www.blogger.com/profile/11282838704446252275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-893726867229817762010-11-29T21:56:59.974+05:302010-11-29T21:56:59.974+05:30.
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" प्रेम उन्हें हुआ ? हो गया होगा ? ....<br />.<br />.<br /><br />" प्रेम उन्हें हुआ ? हो गया होगा ? देह के आगे किसकी चलती है ? लेकिन पहले शादी और फिर मृत्यु का वरण उन्होंने स्वयं ही किया ! सवाल ये कि क्या मृत्यु के सिवा अन्य कोई विकल्प शेष नहीं था ? और था तो आखिर क्या ...? "<br /><br />अली सैय्यद साहब,<br /><br />जाने दीजिये... ज्यादा सिर खपा सोचने वाला मामला नहीं है यह... बस यूं समझ लीजिये कि वो जो कहते हैं न 'प्यार में साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाना'... अब हर दौर में कुछ सरफिरे ऐसे होते हैं जो 'जीने' को तो बिल्कुल नजरअंदाज कर देते हैं और 'मरने' को हाईलाइट, या यों कहें कि ध्येय ही मान लेते हैं ... अब ऐसे तो मरेंगे ही... <br /><br />विकल्प तो अनेकों थे, हैं और रहेंगे... पर विकल्प होते तो उसी के लिये हैं न जिसने कोई और रास्ता खाली छोड़ा हो... जब प्रेम की पूर्णता ही शादी करने के बाद साथ मरने में मान रहा हो वह युगल... तो फिर हर बात बेमानी है, और हर चिंता भी...<br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-1935573232963637072010-11-28T18:24:58.851+05:302010-11-28T18:24:58.851+05:30सवाल नि:संदेह बहुत मुश्किल है पर सच ये भी है कि ऐस...सवाल नि:संदेह बहुत मुश्किल है पर सच ये भी है कि ऐसे किस्सों की परिणति सुखांत इसलिए नहीं होती कि कहीं ये किस्से बार-बार दोहराये न जाने लगें...समाज के नियमों को बनाए रखने का बस यही एक रास्ता दिखाई देता है लोगों को...Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-7057836849216510302010-11-28T12:04:24.443+05:302010-11-28T12:04:24.443+05:30मुझे ऐसा लगता है कि incest और suicide दोनों अलग ...मुझे ऐसा लगता है कि incest और suicide दोनों अलग मुद्दे हैं....कच्ची उम्र थी....परिपक्वता आई नहीं थी...उस समय प्रेम के नाम पर कुर्बान हो जाने , अपना बलिदान दे देने की भावना ही प्रबल रहती है...कई युवा एक ही जाति के होते हुए भी या कोई रिश्ता ना होने पर भी सिर्फ अलग जाति के होने के कारण ...अपने परिवारजनों के विरोध के तहत बिलकुल फ़िल्मी अंदाज़ में मौत को गले लगा लेते हैं. यहाँ भी समाज का डर तो था ही...पर साथ में बलिदान की भावना भी थी..वरना दूर-दराज़ जाकर जीवन यापन कर सकते थे.<br /><br />भले ही दक्षिण में मामा-भांजी के विवाह को मान्यता है...पर मेरा व्यक्तिगत विचार है कि इसे किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. समाज की कुछ मर्यादाएं होती हैं..अगर उन्हें नहीं निभाना...फिर समाज का निर्माण ही क्यूँ...जंगल राज में ही लौट जाएँ...और प्रेम की परिणति दैहिक आकर्षण के सम्मुख समर्पण में ही क्यूँ हो....लेकिन सच यह भी है कि इसी समाज में लुके-छिपे ऐसे कितने रिश्ते चलते रहते हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-31200902207092745712010-11-27T16:22:53.481+05:302010-11-27T16:22:53.481+05:30दुखद प्रसंग..
ऐसी शादियों को ना सिर्फ़ भारत में...य...दुखद प्रसंग..<br />ऐसी शादियों को ना सिर्फ़ भारत में...यहाँ भी प्रतिष्ठा नहीं मिलती...<br />एक ऐसा गन्धर्व विवाह यहाँ भी हुआ है...लड़की लड़के की मौसी है, और उम्र में भी बड़ी है...ख़ैर भारत से भाग कर वो यहाँ आ गए शायद इसलिए सुरक्षित रह गए...लेकिन बात यहाँ तक पहुँच ही गई...अब उन्हें जान का तो ख़तरा नहीं लेकिन उनसे मिलते हुए मन में कहीं कुछ खटक ही जाता है...<br />ये खटका क्या है... अविश्वास तो नहीं..!<br />कई बार सोचती हूँ....स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-1293449301680585122010-11-26T21:44:51.111+05:302010-11-26T21:44:51.111+05:30ali bhaayi aadaaab aek sval or uskaa dukhd jvab bh...ali bhaayi aadaaab aek sval or uskaa dukhd jvab bhut khub zindgi kaa sch byaan kiya he yhi schchayi bhi he mubark ho apa ko bhayi dinesh ji ki post pr dekha achcha to chota shbd he lekin bhut bhut achcha lgaa mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthanआपका अख्तर खान अकेलाhttps://www.blogger.com/profile/13961090452499115999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-64778549492619902622010-11-26T18:10:51.210+05:302010-11-26T18:10:51.210+05:30आपके पोस्ट और गिरिजेश जी की टिप्पणी से प्रेम और ...आपके पोस्ट और गिरिजेश जी की टिप्पणी से प्रेम और मृत्यु के सुसुप्त पहलुओं से रूबरू हुआ.<br /><br />धन्यवाद.36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-16311886901106969382010-11-26T16:14:01.625+05:302010-11-26T16:14:01.625+05:30मानव मन ...एक जटिल गुत्थी जो उस परिवार के संस्कारो...मानव मन ...एक जटिल गुत्थी जो उस परिवार के संस्कारों पर अधिक निर्भर करती है ! क्या कहें ...Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-74230336999840793072010-11-26T14:08:56.627+05:302010-11-26T14:08:56.627+05:30प्रेम तो प्रेम है ... कोई भी कारन हो सकता है ... प...प्रेम तो प्रेम है ... कोई भी कारन हो सकता है ... पर मन है जो फिर भी मानने को तैयार नहीं होता ऐसे रिश्ते को ... पता नहीं शायद दकियानूसी हूँ ... परिस्थिति समझ नहीं प् रहा .... या कुछ और ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-89916603748267366482010-11-26T12:15:13.978+05:302010-11-26T12:15:13.978+05:30वैयक्तिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्वतंत्रता हमेशा एक...वैयक्तिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्वतंत्रता हमेशा एक दूसरे के विरोध में हैं। एक ओर जहाँ समाज हमेशा नियम-कायदों की कभी न खत्म होने वाली श्रंखला सरीखा है तो दूसरी ओर व्यक्ति को अपने होने का पता ही तभी लगता है, जब वो इन नियम-कायदों का अतिक्रमण करने का प्रयास भर करता है। वरना किसी मशीन का एक पुर्जा भर है आदमी! <br /><br />व्यक्ति के प्रयास जब भी सार्थक होते हैं तो समाज उन्हें स्वीकार कर लेता है और थोड़ा बदल जाता है। यही सिलसिला है शायद सभ्यता की इस कहानी का। <br /><br />प्रेम के सन्दर्भ में इतना ही कि प्रेम सनातन है और विवाह एक समाजिक व्यव्स्था जो समाजिक बदलाव के साथ बदलती रही है, बदलती रहेगी।सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-87827759634829280792010-11-26T09:12:32.187+05:302010-11-26T09:12:32.187+05:30मसले की तो हमें पूरी जानकारी नहीं है. ये कोई अखबार...मसले की तो हमें पूरी जानकारी नहीं है. ये कोई अखबारी खबर है या आपके आँखों देखी बात है ? उन्होंने आत्महत्या करी या परिवार वालों ने मार दिया ?<br />फलसफे तो कई सुना दें, पर अब जब वो मर ही गए तो क्या बच गया कहने को .... क्या कहें, भगवान् उनकी आता को शान्ति देMajaalhttps://www.blogger.com/profile/08748183678189221145noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-77989767734241432182010-11-26T08:51:59.524+05:302010-11-26T08:51:59.524+05:30Biology और Sociology अलग-अलग discipline हैं, इनमें...Biology और Sociology अलग-अलग discipline हैं, इनमें Chemistry शामिल हो जाय तो इनके बीच कभी तालमेल बैठता है, कभी नहीं. इस पर मंथन से विश्लेषण हो पाता है और निष्कर्ष आता भी है तो सुविधाजनक और विषयगत ही. .Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-21879710962442378672010-11-26T07:50:02.887+05:302010-11-26T07:50:02.887+05:30... dukhad va afsosjanak ... dono premee pankshiyo...... dukhad va afsosjanak ... dono premee pankshiyon ko ek daal se doosare daal ki aur udh jaanaa chaahiye thaa ...!!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-68158195799938204942010-11-25T23:38:51.078+05:302010-11-25T23:38:51.078+05:30आपका यह ’इक सवाल’ खुद में मानव मन-तन मंथन, सामाजिक...आपका यह ’इक सवाल’ खुद में मानव मन-तन मंथन, सामाजिक मान्यतायें और बहुत कुछ समेटे है। कभी इंगलिश की बोल्ड समझी जाने वाली मैगज़ीन में incest टापिक पर बहस पढ़ी थी। पढ़ते समय बहुत बार थू कहने का मन होता था, लेकिन पक्ष-विपक्ष के तर्क पढ़कर उन्हें अनदेखा करना उसके साथ न्याय भी नहीं लगा था। मेरी नजर में इस दुनिया की सबसे जटिल मशीन यदि कोई है तो वो है इंसान का मन, इंसान का मस्तिष्क।<br />लेकिन ऐसी घटना में हमारे जैसे समाज में आखिरी विकल्प मृत्यु के अलावा कुछ और भी हो सकता है, मुझे नहीं लगता।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-71081166163459703382010-11-25T22:21:22.573+05:302010-11-25T22:21:22.573+05:30Incest is aberration.
विवाह समाज की व्यवस्था है। उ...Incest is aberration.<br />विवाह समाज की व्यवस्था है। उसी समाज की व्यवस्था है कि incest घोर पाप है।<br /> एक व्यवस्था को सम्मान और दूजे का तिरस्कार! क्यों? समझ का फेर है। दोनों अविवाहित साथ रहते। जैविकता निभाते और बाद में अलग अलग शादी हो जाने पर भी शरीर की भूख की व्यवस्था हो जाती!<br />ऐसे जाने कितने उदाहरण थे, हैं और रहेंगे। शायद ही कोई गाँव, क़स्बा, शहर बचा हो! <br />अनैतिक लग रहा हूँ?<br />प्रेम शरीर की जैविकता से आगे की चीज है<br />। हाँ उसमें शरीर भी रहता है।<br />केवल भूख ही मिटानी है तो प्रेम की क्या आवश्यकता? <br />कुछ अनैतिकताएँ (मिश्रित सी, कुछ आज के मानकों से अनैतिक नहीं हैं। देश काल के अंतर भी हैं):<br />- मुगलों की अविवाहित बेटियाँ। शाहजहाँ-जहाँआरा<br />- कृष्ण और रुक्मिणी का विवाह<br />- दक्षिण में सगे मामा के साथ कन्या का विवाह। उत्तर में असम्भव!<br />...लम्बी सूची दी जा सकती है। <br />प्रेम नियोजित नहीं होता। बस होता है<br />। <br />और समाज नियोजित होता है। <br />दो विपरीत टकरायेंगे तो किसी न किसी को झेलना ही होगा। दोनों दूर अनजान जगह जा कर कमा खा सकते थे(क्या पता हमारे आप के पड़ोस में ही ऐसे जन रहते हों?) लेकिन दिमाग में ठूँसी गई नैतिकता और अपराधबोध, पापबोध का क्या करते? ...कुछ लोग थेथर नहीं हो पाते। <br />कुछ बातें 'अतिनैतिक' श्रेणी में आती हैं। सुना है कि कृष्ण की उत्तरपीढ़ी के एक लाल का किसी राक्षसी ने अपहरण कर लिया था-बालपन में ही<br />। पहले माता बन कर पालन पोषण किया और बाद में अंकशायिनी प्रेमिका/पत्नी बनी<br />!<br />...हाँ, मृत्यु हमेशा बुरी नहीं होती। जाने क्यों कुमारिलभट्ट का स्वयं को तुषाग्नि में जला देना याद आया। पता नहीं प्रासंगिक है कि नहीं लेकिन उन्हों ने गुरुद्रोह के पाप का दण्ड शास्त्रोक्त तरीके से स्वेच्छा से चुना। एक व्यवस्था को सम्मान दिया<br />।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.com