tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post776968176942681009..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: कस्तूरी कुण्डल बसै...!उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-46963931553069742312012-09-23T08:43:47.454+05:302012-09-23T08:43:47.454+05:30सो तो है :)सो तो है :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-9147468522970958342012-09-22T23:01:20.452+05:302012-09-22T23:01:20.452+05:30समीक्षकों पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं :)समीक्षकों पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-88612925334827664152012-09-22T23:00:30.047+05:302012-09-22T23:00:30.047+05:30सतीश भाई ,
भिन्न कालखंडों के समाज की निहित विशिष्ट...सतीश भाई ,<br />भिन्न कालखंडों के समाज की निहित विशिष्टताओं में यदि कोई साम्य , इस कथा के माध्यम से अभिव्यक्त हो पाया हो तो यह कथा का सबसे मजबूत पक्ष कहलायेगा ! आपका ह्रदय से आभार !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-34939356419609638072012-09-22T22:54:49.902+05:302012-09-22T22:54:49.902+05:30उड़ान मतलब मुक्ति , असहज और निरुद्ध जीवन के विरुद्...उड़ान मतलब मुक्ति , असहज और निरुद्ध जीवन के विरुद्ध सहजता ! सुन्दर प्रतिक्रिया !<br />उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-27179019589444647172012-09-22T19:12:27.780+05:302012-09-22T19:12:27.780+05:30स्वयं को पहचानने , अपनी पहचान बनाने और स्वतंत्र हो...स्वयं को पहचानने , अपनी पहचान बनाने और स्वतंत्र होने के लिए नारियों को पहले स्वयं से लड़ना होगा , फिर पुरुष प्रधान समाज से . डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-91484147926829427462012-09-22T18:18:12.664+05:302012-09-22T18:18:12.664+05:30हे भगवान, ये समीक्षक लोग भी सीधी सादी बातों के कि...हे भगवान, ये समीक्षक लोग भी सीधी सादी बातों के कितने मतलब गढ़ देते हैं :)<br /><br />आपका यह लेख पढ़ कर मैं उन कला समीक्षकों की सोचता हूँ जो कला-दीर्घाओं के मालिकों को, मेरे जैसे मूढ़ लोगों द्वारा लगाई गई आड़ी-तिरछी रेखाओं के इतने मतलब बता डालते हैं कि खरीदने वाले उन चित्रों के लिए अंटी से करोंड़ों रूपये ढीले कर बैठते हैं.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-63325207196177811832012-09-22T16:41:17.900+05:302012-09-22T16:41:17.900+05:30देवेन्द्र भाई! मुझे तो वो लडकी उड़ने वाली लगती है....देवेन्द्र भाई! मुझे तो वो लडकी उड़ने वाली लगती है.. एक परी जिसके पर क़तर दिए गए हों पर उड़ान का हौसला बाक़ी हो.. नहीं तो दुर्भिक्ष के हालात में, गाँव में खाना जुटाने के एकमात्र साधन को ठुकराते हुए उसने परिंदे को आज़ाद कर दिया.. उसे उस परिंदे में कोई पहले का नाता दिखा होगा (आत्मा की आवाज़) और तभी तो अंत में वो उड़ गयी!! <br />आज की नारी के सन्दर्भ में भी सही है... वो सिर्फ उड़ना चाहती ही नहीं, उड़ने का हौसला भी रखती है.. और जिसने अपने अंदर के परिंदे को आज़ाद किया वो आज़ाद हुई खुले आसमां में उड़ने को!!<br /><br />चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-34451849801024086012012-09-22T09:40:54.554+05:302012-09-22T09:40:54.554+05:30@ वे निराशा की हद तक अपनी पोषण अनिवार्यताओं के लिए...@ वे निराशा की हद तक अपनी पोषण अनिवार्यताओं के लिए दूसरों से अपने रिश्तों पर निर्भर हो जाती हैं ! यही नहीं , रिश्तों के बाधित हो जाने के भय के प्रति सचेत होकर वे स्वयं के विचारों , मूल्यों और गीतों / सत्यों को त्यागने लगती हैं ...<br /><br />ये आज भी सच है ...Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-73674768631407610892012-09-22T09:07:40.415+05:302012-09-22T09:07:40.415+05:30उड़ने की चाहत सबसे अधिक उसमे हो सकती है जो कैद में...उड़ने की चाहत सबसे अधिक उसमे हो सकती है जो कैद में हो। लड़की कैद में है, होती भी है फिर चाहे जेल छोटा सा कमरा हो या पूरा समाज। ईश्वर ने परिंदों की उड़ने की शक्ति दी है। वे उड़ते हैं। अतः यह स्वभाविक लगता है कि उड़ना चाहने वाला, उड़ते जीव को देखकर मुग्ध हो जाय। परिंदों को प्रतीक बनाकर कथा कहने के पीछे यही कारण लगता है। देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-91871666423350805872012-09-22T08:45:40.285+05:302012-09-22T08:45:40.285+05:30वाणी जी,
मेरा ख्याल है कि 'पोषण' को 'न...वाणी जी,<br />मेरा ख्याल है कि 'पोषण' को 'निर्भरता' के आशय में कहा गया है ! आत्मनिर्भरता बनाम पर-आश्रितता ,स्वतंत्र अस्तित्व बनाम छाया अस्तित्व , आज़ादी बनाम गुलामी के न्यूक्लियस पर घूमती हुई कथा है ये !<br /><br />निर्भरता उर्फ पोषण के पार्श्व में प्रेम की संभावनायें भी हों तो कोई हर्ज़ नहीं बशर्ते ये प्रेम , सुदीर्घ पुरुषोन्मुखी सोशल कंडीशनिंग का उत्पाद ना होकर नैसर्गिक हो ! ज्ञात रहे कि सोशल कंडीशनिंग की जबरदस्ती / दबाब , अंतर्निहित / अप्रत्यक्ष हुआ करती / करते हैं !<br /><br />बहरहाल सामाजिक परिदृश्यों और हालातों की पृष्ठभूमि में संभावनायें एकाधिक हो सकती है ,इस अर्थ में आपसे पूर्ण सहमति ! उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-44157543496777755952012-09-22T08:33:07.788+05:302012-09-22T08:33:07.788+05:30धन्यवाद !धन्यवाद !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-42751264966895495152012-09-22T08:32:12.088+05:302012-09-22T08:32:12.088+05:30रश्मि जी ,
वो वाक्य मुझे भी खटका था , क्योंकि आदिम...रश्मि जी ,<br />वो वाक्य मुझे भी खटका था , क्योंकि आदिम समाजों में वज़न घटाने का शौक प्रायः देखा नहीं गया अब तक ! मेरा ख्याल है कि , आदिम समाज की कथा की व्याख्या करते हुए , अनजाने में ही डाक्टर अनिता पर उनके स्वयं के समाज का प्रभाव परिलक्षित हो गया है ! अतः इसे व्याख्या करने वाले की चूक अथवा किसी अन्य आरोपण मान लेने के बजाये व्याख्याकार के स्वयं के समाज के आलोक में पढ़ा जाना उचित होगा !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-64039652230797959372012-09-22T08:24:05.928+05:302012-09-22T08:24:05.928+05:30देवेन्द्र जी ,
शीर्षक मैंने अंतिम क्षणों में बदला...देवेन्द्र जी , <br />शीर्षक मैंने अंतिम क्षणों में बदला वर्ना पहले ख्याल था 'स्त्रियां' ! शायद वो भी दुरुस्त होता !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-83779641632162722302012-09-22T08:22:20.224+05:302012-09-22T08:22:20.224+05:30सलिल जी ,
विनम्रता कोई आपसे सीखे ! बेहद खूबसूरत प्...सलिल जी ,<br />विनम्रता कोई आपसे सीखे ! बेहद खूबसूरत प्रतिक्रिया , अस्तु साधुवाद !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-34885650764436271592012-09-22T07:51:55.567+05:302012-09-22T07:51:55.567+05:30रिश्तों की मजबूती उनके पोषण में ही तो अन्तर्निहित ...रिश्तों की मजबूती उनके पोषण में ही तो अन्तर्निहित है . यह दबाव/जबरदस्ती/सोशल कंडिशनिंग के कारण नहीं बल्कि प्रेम के कारण हो तो क्या हर्ज़ है !!! <br />लोक आख्यानो में ही स्त्रियों की आज़ादी के अनेक प्रतीक , बिम्ब अथवा सुझाव दिख जाते हैं , जो वास्तव में कथाओं जितने ही सुहाने हो भी सकते हैं और नहीं भी !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-48639411705717288582012-09-22T07:46:10.636+05:302012-09-22T07:46:10.636+05:30शब्द वही सच्चे, जिनसे भाव की नजाकत बनी रह सके. शब्द वही सच्चे, जिनसे भाव की नजाकत बनी रह सके. Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-44206146723994486412012-09-21T23:29:52.052+05:302012-09-21T23:29:52.052+05:30दुख तो ये है कि ये एक लोक आख्यान है...अब तक स्थिति...दुख तो ये है कि ये एक लोक आख्यान है...अब तक स्थितियाँ बदल जानी चाहिए थीं...पर ऐसा हुआ नहीं...आज भी स्त्रियाँ अपने मन से कोई निर्णय ले लें तो उन्हें उसकी सजा भुगतनी पड़ती है.<br /><br />पर अनीता जॉन्सन का ये कथन कुछ सही प्रतीत नहीं हुआ,," और इसीलिये ( अनभिज्ञता के कारण ) वे खाने और वज़न घटाने के आनंद में लीन बनी रहती हैं ! "<br />अगर उन्हें इसमें ही सुख मिलता है और अपनी मर्जी से ऐसा करती हैं...तो इसकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए .rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-55730190541234421962012-09-21T22:24:58.207+05:302012-09-21T22:24:58.207+05:30कथा की व्याख्या का सार तो आपने शीर्षक में ही लिख द...कथा की व्याख्या का सार तो आपने शीर्षक में ही लिख दिया! यही सत्य है, यही शिव है, यही सुंदर है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-64446245381808998162012-09-21T21:10:42.431+05:302012-09-21T21:10:42.431+05:30अली सा.
जिस आख्यान पर डॉ. अनीता जॉनसन की व्याख्या...अली सा. <br />जिस आख्यान पर डॉ. अनीता जॉनसन की व्याख्या के बाद आप ने अपनी बात कहना मुनासिब न समझा हो, उसपर मेरा कुछ भी कहना "fools rush in, where angels fear to tread" की तरह होगा.. वैसे भी जितना खूबसूरत आख्यान है उतनी ही खूबसूरत व्याख्या है.. <br />मुझे तो फिल्मों के ही उदाहरण सूझते हैं (आपकी तरह पढ़ा-लिखा नहीं):).. तो मुझे एक फिल्म बहुत पसंद है "गृह-प्रवेश" जो मुझे भी उतनी ही प्यारी है जितना आपको ये आख्यान.. और लगभग वही बात कहती है जो यह किस्सा बयान कर रहा है.. फर्क इतना है कि इसमें चिड़िया का रोल खुद उस औरत के अंदर की औरत ने निभाया है.. और चूँकि हिन्दुस्तानी फिल्म है, इसलिए अंत इस किस्से से मुख्तलिफ..<br />उसका एक गाना है गुलज़ार साहब का जो शायद इस चिड़िया के रोल की व्याख्या करता है:<br />पहचान तो थी पहचाना नहीं <br />मैंने अपने आप को जाना नहीं<br />पहचान तो थी<br /><br />जब धूप बरसती है सर पे<br />तो पानी में छाँव खिलती है<br />मैं भूल गई थी छाँव अगर<br />मिलती है तो धूप में मिलती है<br />इस धूप और छाँव की खेल में क्यों<br />दिन का इशारा समझा नहीं<br />पहचान तो थी... <br />/<br />मुझे लगता है कि वह चिड़िया वास्तव में उस स्त्री के अंतर्मन को दर्शाता है.. उसकी छिपी शख्सियत, उसके मन में दबा संगीत, उसका अपना आप.. उस स्त्री ने खुद को पहचाना, खुद से उसकी पहचान हुई, तभी उसने खुद को मुसीबत में डालकर जाल से उस परिंदे को आज़ाद किया, न करती तो एक आम स्त्री बनी रहती, उसे ख़ास बनाया उस परिंदे ने, खुद उसी स्त्री ने..<br />और कैद में रहकर जैसे-जैसे वह स्त्री गुलामी के बंधन को भूलती जाती है, उसे अपनी आज़ादी का फल मिलता है.. और आखिरकार आज़ादी और उसका जश्न.. <br />यही वज़ह भी रही होगी कि वे गायब हो गए, फिर कभी नहीं दिखे.. एक नए पड़ाव की ओर!!<br />चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.com