tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post6174943244661611967..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: आधे अधूरे चांद को देखते हुए फिर वही दिन...उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-10653585269124091192011-01-01T23:51:43.719+05:302011-01-01T23:51:43.719+05:30अली सा! नये साल के आग़ाज़ पर आपके आशीर्वाद के मुस्तह...अली सा! नये साल के आग़ाज़ पर आपके आशीर्वाद के मुस्तहक़ हैं हम... साल मुबारक़ आपको!!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-89575186677255732882010-12-31T14:54:48.158+05:302010-12-31T14:54:48.158+05:30कुछ अधिक दिन हो गए आपको हमसे दूर रहते , नए साल पर ...<b><br />कुछ अधिक दिन हो गए आपको हमसे दूर रहते , नए साल पर कुछ तो हो जाए .....<br />नए वर्ष की अंतिम संध्या पर आपको शुभकामनायें भेज रहा हूँ !</b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-10000843651689637752010-12-28T20:04:46.122+05:302010-12-28T20:04:46.122+05:30उम्र के इस दौर मैं ऐसा ही होता है .उम्र के इस दौर मैं ऐसा ही होता है .एस एम् मासूमhttps://www.blogger.com/profile/02575970491265356952noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-2421954739861868752010-12-26T22:18:37.124+05:302010-12-26T22:18:37.124+05:30राहुल जी से सहमत . वाकई ,अक्सर चाँद आहें भरता है...राहुल जी से सहमत . वाकई ,अक्सर चाँद आहें भरता है और लोग दिल ...?Swarajya karunhttps://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-7264462484837362572010-12-26T14:11:01.767+05:302010-12-26T14:11:01.767+05:30इस छोटे से ख़त आपने जो सहेज रखा है बहुत अच्छा है ....इस छोटे से ख़त आपने जो सहेज रखा है बहुत अच्छा है . बरना यादें आजकल तो कम्प्यूटर में रहती है जहाँ कभी वायेरस लग सकता है......... निडर रहने की अदा भी निराली होती है... काबिलेतारीफ .<br /><a href="http://srijanshikhar.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html" rel="nofollow">फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी</a>उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-69239570867647042512010-12-26T13:55:26.882+05:302010-12-26T13:55:26.882+05:30khat mahaz khat nahee hote ,jeevan kee sachchai ko...khat mahaz khat nahee hote ,jeevan kee sachchai ko kagaz pe ukerate syahee kee bhasha ko padne ke liye chand se achchha madhyam ho hee naheen sakta kyokee chand ke gat-bad men khat ka mazboon chhupa hota hai.nature7speaks.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/12029741467871950637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-84536166200603876252010-12-21T07:08:42.343+05:302010-12-21T07:08:42.343+05:30जला दिए वो सारे खत, किसी का जी जलता था
जमीं-ए-दिल ...जला दिए वो सारे खत, किसी का जी जलता था<br />जमीं-ए-दिल पर बचे हर्फ अब भी बाँचा करता हूँ।... <br /><br />अली सा! वाक्य भूल जाते हैं, कहने वाले खो जाते हैं लेकिन अक्षर शब्द पत्थर की लकीर से होते हैं, दिल पर पत्थर रख उन्हें सँजोना, बाँधना और बाँचना पड़ता है। अजीब बात है कि जितना ही बाँचो उतना ही सुकून मिलता है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-23269761724603655872010-12-20T22:50:06.349+05:302010-12-20T22:50:06.349+05:30इस बार तो मैं आजकल nostalgic हुए जा रहे अली साहब...इस बार तो मैं आजकल nostalgic हुए जा रहे अली साहब को 'बहुत खूब' कह कर गुज़रने ही वाला था कि 'मौसम कौन' और 'अरविन्द मिश्र जी' की शोख टिप्पणियों ने प्रेरित किया कि अली साहब की मिज़ाज पुरसी कर ही ली जाए. अली साहब ने भी उदारता पूर्वक इजाज़त प्रदान करदी . इस तरह संभावित Between The Lines जोड़ते हुए उस पत्र की पुनर्प्रस्तुती {brackets मे } , अली साहब से क्षमा याचना करते हुए , यदि 'चन्दा' की सोह्बत मे कोई डाय्लाग मर्यादा भंग कर गया हो तो. - M. Hashmi <br /><br /><br />नमस्ते , आप ऐसा मत कीजिये प्लीज { आज तो आपने हद ही कर दी ! वह बारीक महीन सा पर्दा भी आपने बीच मे से हटा लिया ! अगर धोने की खातिर भी हटाया है तो कोई चादर ही दाल दी होती खिड्की पर . आपने तो पूरा कमरा ही बेनक़ाब कर दिया है मैरी खिड्की के सामने , और तगाफुल [बे तवज्जही} एसी की जैसे मेरे वजूद से ही बे ख़बर है आप! मै रोज़ सुबह - सवेरे खिड्की के पास इस लिए थोड़ी ही खड़ी रह्ती हूँ कि वर्जिश करते हुए आपका कसरती जिस्म बारीक से पर्दे मे से देखू वह भी लगभग निवस्त्र सा !<br /> यह खिड्की तो मैरी मन-पसंद जगह है , बैथने की . आप को आए तो जुमा-जुम्मा आठ दिन हुए. कसरत करे ठीक है, कमरे मे रोशनी इतनी ज्यादा क्यों कर रखते है कि नामुराद पर्दे से सब कुछ उजागर हो जाए? कभी तो इतना गुस्सा आता है कि मैं भी मोटा पर्दा उतार कर कोई बारीक सा दुपट्टा ही टांग दूं अपनी भी खिड्की पर !<br /> और आप ही के अन्दाज़ मे; मैं भी कसरत शुरु कर दूं. फिर कैसे नही देखेंगे आप इस तरफ. रात के अन्धेरे मे "चाँद" धूँदने वाले साहब, दिन मे "सितारे" नज़र न आ जाए तो कहना ! } <br /> मैं अपने आप को बहुत कोशिश करके रोक रखी थी ,परन्तु आप ऐसा करने से मुझसे भी रहा नहीं जायेगा { एक चीज़ बडी समान सी है हमारे बीच- आप "चाँद" पर आसक्त दिखते है तो मुई "चन्दा" ,हमारे उस तरफ के पडौस की नौकरानी, मैरे पीछे हाथ धो कर पड़ी है. वही 'एसी-वेसी' बातें करके मैरे मन को गुद्गुदाती रहती है. फुर्सत मे मैरे यहाँ आ धमकती है. डाँटती हूँ तो कहती है कि हम तो केवल बात ही करते है. इस पर भी "आदमी" लोग हमे "छिनाल" तक कह देते है, और वे लोग तो सब कुछ कर गुज़रते है.<br /> ये चन्दा एक प्रोफेसर का बड़ा ज़िक्र करती है , अपने नज़्दीक के ही एक शहर का, जो आधी रात को बिना कुछ पहने ही दौड़ लगाते थे शहर की सडको पर , शायद साहस और आत्मविश्वास आर्जित करने के लिए .<br /> खैर, मुझे उससे कोई मतलब नही, मगर ये चन्दा छुप-छुप कर उसको देखती थी तब, और रोमान्चित होती थी. मुझे भी अब ये बाते ज्यादा बुरी नही लग्ती तभी तो मुझे अब आपको देखना भी अच्छा लग्ने लगा है. मगर पत्थर से सर टकराने से क्या फायदा.<br /> अपनी "हिमालयी नैतिकता" लेकर.........}. प्लीज आप कुछ दिनों के लिए देश चले जाइये** , मन में शान्ति मिलेगी ! आप मुझे गलत मत समझियेगा , मेरी मां नहीं है , {नही तो मैं उसके साथ् रिश्ते का पैगाम भेजती. माँ को मैं कैसे भी मना लेती. फिर अपने यहाँ "खाप पंचायत" जैसी बीमारी भी तो नही. लोग थोड़े दिन शौर मचा कर चुप हो जाते है.}<br /> कुछ करने के पहले मुझे सौ बार सोचना पड़ता है , परिवार का पूरा बोझ मेरे सिर पर , खैर ये बात छोडिये , आप नहीं समझेंगे , मां रहने से कुछ भी कर सकती थी ! लिखने को बहुत कुछ है ! पर मैं ना बोल सकती हूं ना लिख सकती हूं ! बहुत ज़ल्दी में लिख रही हूं ! मुझे थोड़ी भी तन्हाई नहीं मिलती ! ढेर सारा प्यार , चलती हूं , मुझे गलत मत समझियेगा !...<br /><br />{** ये आपको चले जाने का भी इस लिए कह रही हूँ कि कोई मुझे देखने आने वाला है.....पता नही क्या होगा. आप जिसे देखते है वह चाँद तो आजकल बादलो मे छुपा हुआ है , इसलिए कुछ दिन के लिए गांव चले ही जईये .}<br /><br />-mansoorali hashmiMansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-80810451526799156852010-12-20T18:13:26.415+05:302010-12-20T18:13:26.415+05:30ये कुछ लाइनें काफी हैं खींच कर आभासी दुनिया में ले...ये कुछ लाइनें काफी हैं खींच कर आभासी दुनिया में ले जाने के लिए ... <br />कल्पना की दुनिया में उदा ले जाती पोस्ट है आपकी ... बहुत खूब अली जी ..दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-3185715645099715702010-12-20T10:01:06.162+05:302010-12-20T10:01:06.162+05:30पहले के [यहीं कोई५०-६० साल] के लोगों की आदत थी कि ...पहले के [यहीं कोई५०-६० साल] के लोगों की आदत थी कि कुछ कहते (लिख कर) ही नही थे. कभी-कभी ज़िन्दगी गुज़र जाती थी. अगले दौर में यानी कि २६-२७ बरस पहले जबकि ये खत आपको लिख गया, कुछ कहने कि हिम्मत जुटा ली गयी थी , मगर उसमे भी सांकेतिक भाषा का प्रयोग अधिक ही दिखता है. 'अर्थ' निकालने में कभी-कभी तो 'अनर्थ' ही हो जता था. अब आपको आया हुआ खत [प्रेम-पत्र] ही ले; Fill in the Blanks जैसा प्रश्न -पत्र ही लगता है. आप इजाज़त दे तो कुछ रिक्त स्थानो की पूर्ति कर दूँ? अतिशयोक्ति होने का डर है, टाईम-मशीन से २६-२७ साल पहले पहुँच कर एसे मजमूँ से छेड़ -छाड़ करना खतरे से खाली न होगा! <br /><br />"एस. कार" साहब कि सलाह "बेकार" गई, अच्छा ही हुआ, आपकी शख्शियत कि कुछ और परते तो उधड़ेगी ! <br /><br />mansoorali hashmiMansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-36983822358653046972010-12-19T13:02:49.437+05:302010-12-19T13:02:49.437+05:30करैक्टर से बाहर निकलने पर न जाने किन-किन खतरों का ...करैक्टर से बाहर निकलने पर न जाने किन-किन खतरों का सामना करना पडे. बस यही वजह है कि आपकी पोस्ट पर टिप्पियाते हुए भी तनिक डर सा लगा रहता है :)Pt. D.K. Sharma "Vatsa"https://www.blogger.com/profile/05459197901771493896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-40257948272259138932010-12-19T10:02:20.384+05:302010-12-19T10:02:20.384+05:30@ रश्मि रविज़ा ,
संभावनाओं पे कोई बंदिशे तो हैं नह...@ रश्मि रविज़ा ,<br />संभावनाओं पे कोई बंदिशे तो हैं नहीं :)<br /><br />@ ज़ाकिर भाई ,<br />बंद कमरों की घटनाओं में 'शामिलों' का नाम तो ठीक है पर 'घटवाने वाले' के लिए कुछ बुरी बुरी संज्ञायें सुनी हैं :) <br /><br />@ दीपक भाई ,<br />एकदम सही निष्कर्ष पे पहुंचे हैं 'बढ़ती' के दौर में खोने को बचता ही क्या है :)<br /><br />@ राहुल सिंह जी ,<br />:)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-61739304786581868242010-12-19T06:55:27.348+05:302010-12-19T06:55:27.348+05:30सम प्रकास तम पाख दुहुं,
नाम भेद बिधि कीन्ह.
ससि स...सम प्रकास तम पाख दुहुं,<br />नाम भेद बिधि कीन्ह.<br />ससि सोषक पोषक समुझि,<br />जग जस अपजस दीन्ह.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-49351807882873001152010-12-18T20:00:14.662+05:302010-12-18T20:00:14.662+05:30अली साहेब........
"..बेगम से ज़र्रा बराबर डर...अली साहेब........<br /><br />"..बेगम से ज़र्रा बराबर डरे बिना"<br /><br />उम्र के साथ हिम्मत भी बढती चली जाती है...... ये निष्कर्ष आज निकला.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-68549100723295274382010-12-18T15:49:51.819+05:302010-12-18T15:49:51.819+05:30बंद कमरों में क्या क्या घटता है, इसकी परवाह तो घ...बंद कमरों में क्या क्या घटता है, इसकी परवाह तो घटवाने वाले को भी नहीं होती। :)<br />---------<br /><a href="http://bm.samwaad.com/" rel="nofollow">छुई-मुई सी नाज़ुक...</a> <br /><a href="http://hr.samwaad.com/" rel="nofollow">कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो। </a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-21158131599228322442010-12-18T15:41:09.281+05:302010-12-18T15:41:09.281+05:30वर्ना चांद को क्या ? उसे तो घटते बढते अपना फेरे...वर्ना चांद को क्या ? उसे तो घटते बढते अपना फेरे पूरे ही करना हैं <br /><br />ऐसे कैसे....चाँद के बहाने ही तो वो पुरानी हरारत फिर से यूँ उभर आई......या क्या जाने इस आधे-अधूरे चाँद के अँधेरे उजाले ने ही अब तक ,यह हरारत जिंदा रखी हो..:)rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-57430190915532723492010-12-18T10:48:54.172+05:302010-12-18T10:48:54.172+05:30@ प्रवीण शाह जी ,
बहुत पहले ,आपकी किसी पोस्ट पर मै...@ प्रवीण शाह जी ,<br />बहुत पहले ,आपकी किसी पोस्ट पर मैंने थोड़ी सी छेड़छाड की थी भूला नहीं हूं :)<br /><br />@ मो सम कौन ?<br />पुरानी लैंड माइंस अगर डिफ्यूज करके रखी जाएँ तो रिस्क नहीं होता :)<br />चांद पीड़ित बिरादरों में राहुल सिंह साहब को भी गिन लिया है कि नहीं :)<br /><br />@ अरविन्द जी ,<br />वाले-कुम-अस्सलाम !<br />इस उम्र में नए नीड़ की सोचने का जोखिम लेने से बेहतर है कि हरारतों से काम चला लिया जाए ! आज आपके तेवर बड़े शायराना लग रहे हैं :)<br /><br />@ मजाल साहब ,<br />शुक्रिया !<br /><br />@ काजल भाई , <br />लगता तो यही है कि संदेशों की तर्ज़ पर ताल्लुकात की उम्र भी छोटी होती जायेगी !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-36900917590543638132010-12-18T09:50:54.818+05:302010-12-18T09:50:54.818+05:30अच्छा है कि एक ज़माने में लोग यूं खत-किताबत किया क...अच्छा है कि एक ज़माने में लोग यूं खत-किताबत किया करते थे कि सदियों बाद भी उन्हें खोल कर यूं पढ़ा और जिया जा सकता है... आज की क़ौम के बारे में सोचता हूं कि क्या इनके SMS इतने दिन चल पाएंगे (!)... पता नहींKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-78298385497182014232010-12-18T09:40:10.354+05:302010-12-18T09:40:10.354+05:30पुराना ख़त हाथ में,
फिर से आँखें तर कर गया,
बची ख...पुराना ख़त हाथ में, <br />फिर से आँखें तर कर गया,<br />बची खुची जो कसर थी,<br />वो चाँद पूरा कर गया ;)Majaalhttps://www.blogger.com/profile/08748183678189221145noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-25976803439902220032010-12-18T08:29:07.733+05:302010-12-18T08:29:07.733+05:30पुराने धुराने प्यार को छोडिये कुछ नयी दास्तान हो ज...पुराने धुराने प्यार को छोडिये कुछ नयी दास्तान हो जाय! एक नए नीड़ की तजवीज हो जाए ...इक नयी अंगडाई पे दिल आ जाय ...मौसम ये कुछ फिर खुशनुमा हो जाए ...हरारत आखिर क्यों हो जब हर रात इक नयी शरारत हो जाए ....सलाम आले कुम.....Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-39038184997751796112010-12-18T08:01:17.731+05:302010-12-18T08:01:17.731+05:30अली साहब,
ये पुरानी फ़ाईलें\डायरियां पुरानी लैंडमा...अली साहब,<br />ये पुरानी फ़ाईलें\डायरियां पुरानी लैंडमाईंस से कम नहीं होतीं। खामोश रहें तो जमानों तक खामोश रहें, और अपनी पर आ जायें तो...।<br />कद में बहुत फ़र्क है हमारे, लेकिन बिरादर कहने से शायद एक कैटेगरी में रखे जा सकें। चाँद पीडि़त कैटेगरी, हा हा हा।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-46422436755189988532010-12-18T07:47:53.180+05:302010-12-18T07:47:53.180+05:30.
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अब आप को लिखे गये हैं और आपने सहेज कर रखे भी....<br />.<br />.<br />अब आप को लिखे गये हैं और आपने सहेज कर रखे भी हैं यह प्यारे-प्यारे खत... हम इतने खुशकिस्मत कहाँ... हमें खत कौन लिखता, दो मीठे बोलों के लिये तक तो तरसते रहे हम... :(<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-48282005707023787872010-12-18T07:26:17.619+05:302010-12-18T07:26:17.619+05:30@ राहुल सिंह जी,
क्या मैं आहों को भुक्त भोगी की गा...@ राहुल सिंह जी,<br />क्या मैं आहों को भुक्त भोगी की गाथा समझने का साहस कर सकता हूं ? :)<br /><br />@ देवेन्द्र भाई,<br />शुक्रिया ! <br />ये हादसात मुहब्बत जहाँ जहाँ गुज़रे <br />बहुत करीब से गुज़रे कि हम जहाँ गुज़रे <br /><br />@ क्षमा जी ,<br />'जा तन लागे सो तन जाने'... बड़ी बात कह दी आपने !<br /><br />@ अदा जी ,<br />:) शुक्रिया !<br /><br /><br />@ सतीश भाई,<br />हौसले से काम लीजिए ,भाभी जी से कोई भी बात छुपाना क्यों ? :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-29187962387440840062010-12-18T05:32:43.182+05:302010-12-18T05:32:43.182+05:30जल्दी जल्दी लिखा एक जिम्मेवार और बहुत प्यारा ख़त ज...<b>जल्दी जल्दी लिखा एक जिम्मेवार और बहुत प्यारा ख़त जो अपनी चार लाइनों में सब कुछ समेटे है ....<br />भाभी जी से न डरने के लिए मुबारक बाद....हमारी तो आज तक हिम्मत न हुई </b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-75115748073808504262010-12-18T02:48:22.004+05:302010-12-18T02:48:22.004+05:30हाय राम..!
ये चाँद भी न..!हाय राम..!<br />ये चाँद भी न..!स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.com