tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post4763256849830499896..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: अखबार...सुर्खियाँ और पार्श्वनाद !उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-18392098387207008032011-09-13T01:47:08.900+05:302011-09-13T01:47:08.900+05:30अच्छी पोस्ट।
मीडिया पर अब बाजारवाद हावी हो गया ...अच्छी पोस्ट। <br />मीडिया पर अब बाजारवाद हावी हो गया है। <br />क्या करें.... दूसरी चीजों की तरह अखबार भी इससे अछूता नहीं रहा अब। <br />वैसे अली साहब एक जानकारी जो मुझे है वो मैं साझा करना चाहता हूं कि 16 से 20 पन्ने का रंगीन अखबार जो हम तक पहूंचता है, उसके कागज, प्रिटिंग कास्ट लगभग चार से पांच रूपए होती है.... पर फिर भी यह हमें डेढ से दो रूपए में मिल रहा है... तो बाकी के पैसे क्या अखबार मालिक लगाते हैं.... वो इसे विज्ञापनों से हुई कमाई में एडजेस्ट करते हैं...... लेकिन इसके बाद भी अब खबरों से ज्यादा महत्व विज्ञापन पर दिख जाने लगा है(जैसा कि आपने बताया खबरों के मुकाबले विज्ञापन का प्रतिशत अधिक होता है)<br />...... वैसे अब तो 'हिडन विज्ञापनों' का दौर भी आ गया है, कुछ चीजें आप अखबार में पढते हैं, खबरों की शैली में लिखी हुई और खबरों की तरह ही लगी हुईं पर दरअसल में ये होते विज्ञापन हैं.... इन 'खबरों' का भुगतान सेंटीमीटर कालम के हिसाब से होता है। <br />खासकर चुनावों के दौरान इस तरह के 'हिडन विज्ञापन' अखबारों की कमाई का बडा जरिया होते हैं। <br />बहरहाल, दैनिक जीवन में हम सब का हिस्सा बन चुके अखबारों को लेकर इस सार्थक पोस्ट के लिए आपका आभार। <br />और हां, आपके ब्लाग पर काफी दिनों बाद आया इसके लिए माफी चाहता हूं।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-3100304811199747672011-09-12T09:06:05.351+05:302011-09-12T09:06:05.351+05:30वैसे इस मामले में लखनऊ से शुरू हुआ जनसंदेश टाइम्स...वैसे इस मामले में लखनऊ से शुरू हुआ जनसंदेश टाइम्स फिलहाल नया अनुभव दे रहा है। उसे पढकर लगता है, जैसे सचमुच कुछ नया पढ रहे हों।<br /><br />------<br /><b><a href="http://za.samwaad.com/2011/09/blog-post_10.html" rel="nofollow">क्यों डराती है पुलिस ?</a></b><br /><a href="http://bm.samwaad.com/2011/08/blog-post_14.html" rel="nofollow">घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-17838410087470008422011-09-02T10:02:47.144+05:302011-09-02T10:02:47.144+05:30eo kehte hain na, jab tv serial ke bad ye aata he ...eo kehte hain na, jab tv serial ke bad ye aata he ki "this progrma spomserd by so & so compnay", but hota to theek iske ulat hi hai!<br /><br />"add sponserd by so & so serial"<br /><br />to yahi haal akhbaar ka bhi he!<br /><br />baise aapki "Geomtery" kafi strong hai! bakaul naap-tol !<br /><br />sundar paricharcha!Khare Ahttps://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-27568299673898514362011-08-30T16:16:15.191+05:302011-08-30T16:16:15.191+05:30akhbaar ek vyavasaay hai aur samachar uski mazboor...akhbaar ek vyavasaay hai aur samachar uski mazboori.शिक्षामित्रhttps://www.blogger.com/profile/15212660335550760085noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-86979744054355164552011-08-30T12:13:14.333+05:302011-08-30T12:13:14.333+05:30एक aadat si ho gai hai tu ,aur aadat kabhi nahin...एक aadat si ho gai hai tu ,aur aadat kabhi nahin jaati......kal dushyant ji kaa janm din hai ,badhaai aapko bhi . <br />सोमवार, २९ अगस्त २०११<br />क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?<br />http://veerubhai1947.blogspot.com/virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-14829856719752433322011-08-30T06:40:54.602+05:302011-08-30T06:40:54.602+05:30अच्छा विश्लेषण।
बाल साहित्य संगोष्ठी की वजह स...अच्छा विश्लेषण।<br /><br />बाल साहित्य संगोष्ठी की वजह से पन्द्रह दिन काफी व्यस्त रहे। इसीलिए इतनी लेट पहुंचा यहां तक।<br /><br />------<br /><b><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..</a></b><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-58374834833769558362011-08-21T20:14:27.214+05:302011-08-21T20:14:27.214+05:30अच्छा लेख और नजरिया।जब अख़बार प्ढना शुरू किया
था ...अच्छा लेख और नजरिया।जब अख़बार प्ढना शुरू किया <br />था 1980 में तब कीमत 25 पैसे थे,आज 1.50 रु.।तुलना करें तो कीमत ज्यादा नहीं बड़ी,पर अब विज्ञापनों के बीच ख़बरें तलाशनी पड़ती हैं।रोहित बिष्टhttps://www.blogger.com/profile/00332425652423964602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-77316552681718602442011-08-18T00:22:06.987+05:302011-08-18T00:22:06.987+05:30हम तो सम्पादकीय पृष्ठ से ज्यादा कुछ भी गंभीरता से ...हम तो सम्पादकीय पृष्ठ से ज्यादा कुछ भी गंभीरता से नहीं पढ़ते , इसलिए हमारे भले से कुछ भी लिखे !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-84320489565841402292011-08-14T11:57:29.493+05:302011-08-14T11:57:29.493+05:30अब अख़बार वालों को पता है कि लोग ख़बरें टी.वी. देख...अब अख़बार वालों को पता है कि लोग ख़बरें टी.वी. देख लेते हैं इसलिए वे इनके लिए ज़्यादा स्थान बर्बाद नहीं करते :)Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-40375409686436336372011-08-14T10:31:32.305+05:302011-08-14T10:31:32.305+05:30Swatantrata Diwas kee anek mangal kamnayen!Swatantrata Diwas kee anek mangal kamnayen!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-48270130641021838242011-08-14T08:55:08.932+05:302011-08-14T08:55:08.932+05:30@ देवेन्द्र पांडेय जी ,
टिप्पणी का पहला पैरा :-
इस...@ देवेन्द्र पांडेय जी ,<br />टिप्पणी का पहला पैरा :-<br />इस दुनिया-ए- फानी में पढ़ने,सचेत और अद्यतन बने रहने की आदत से लाचार हैं ! रिएक्शन भी रोके रुक नहीं पाते ससुरे :)<br /><br />टिप्पणी का दूसरा तीसरा पैरा :-<br />आपसे सहमत ! सारा खेल पैसे और उसकी वज़ह से इंसान से छल का है और छलने वाला भी इंसान ही तो है !<br /><br />@ वीरू भाई ,<br />(१)<br />आपका आभार !<br />पर्व द्वय की अनंत शुभकामनायें !<br />(२)<br />इन प्रभु का प्रभु ही मालिक है :)<br /><br />@ आदरणीय सुब्रमनियन जी ,<br />माया महा ठगिनी हम जानी , कह तो दिया पर ... उसे छोड़ना इतना सहल है क्या :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-36889364771571050752011-08-13T19:08:48.285+05:302011-08-13T19:08:48.285+05:30१० दिनों के लिए अखबार पढना, टीवी देखना बंद कर देख...१० दिनों के लिए अखबार पढना, टीवी देखना बंद कर देखें.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-2082886748203534362011-08-13T15:24:40.113+05:302011-08-13T15:24:40.113+05:30अरे अली साहब अब बांचा है इस पोस्ट को पुर्सूकून ,तस...अरे अली साहब अब बांचा है इस पोस्ट को पुर्सूकून ,तसल्ली से ,तब जाते जाते टिपण्णी कर गया था .अखबार के शव परीक्षा ,सीरम जांच ,लिपिड प्रोफाइल ,सेहत और सीरत का पूरा जायज़ा ,पैमाइश दे गए आप .हाँ अब अखबार एक किशन नहीं ,निगम हैं ,कोर्पोरेट हाउस हैं जहां मालिक ही सम्पादक है .आपकी भाषा शैली और लहजे पर सम्मोहित हूँ .छा गए भाईसाहब इतना सुन्दर विश्लेषण ,अन्वेषण अखबार औ अखबारी लालों का .दूसरे छोर पर पराभू चायवाला जी हैं ,सीधी बात नहीं अपनी बात कहतें हैं ,सामने वाले के मुख में अपने शब्द रखतें हैं .<br />व्हाई स्मोकिंग इज स्पेशियली बेड इफ यु हेव डायबिटीज़ ? <br /><br />http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/ <br />रजोनिवृत्ती में बे -असर सिद्ध हुई है सोया प्रोटीन .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-12979221243752581722011-08-13T12:14:03.415+05:302011-08-13T12:14:03.415+05:30.अखबार एक मिशन...एक माध्यम जो दुनिया से खबरदार करे....अखबार एक मिशन...एक माध्यम जो दुनिया से खबरदार करे , उसे जानने बूझने का मौक़ा दे ! ज़मीन के एक टुकड़े पर सिमटी हुई ज़िन्दगी को ज़मीन के ज़र्रे ज़र्रे और हालात से रूबरू कराने वाले अखबार की हैसियत किसी दूधखोर बच्चे की धाई मां सी लगती , जो उसके जान लेने की कुदरती ख्वाहिश को हर हाल में पूरा करने का दम रखती !<br />बेहद सुन्दर लेखन की मिसाल हैं आप अली साहब -खबर वही जो अखबारी लाल बताएं .आपकी पोस्ट बहुत ही सुन्दर सार्थक और प्रतीकों का नया ओढना लिए है .रक्षा के सूत्र मुबारक भाई साहब .<br />कृपया यहाँ भी दस्तक दें -<br />http://www.blogger.com/post-edit.g?blogID=232721397822804248&postID=५९१०७८२०२६८३८३४०६२१<br />HypnoBirthing: Relax while giving birth?<br />http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/<br />व्हाई स्मोकिंग इज स्पेशियली बेड इफ यु हेव डायबिटीज़ ?<br />रजोनिवृत्ती में बे -असर सिद्ध हुई है सोया प्रोटीन .(कबीरा खडा बाज़ार में ...........)<br />Links to this post at Friday, August 12, 2011<br />बृहस्पतिवार, ११ अगस्त २०११virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-316959265245083102011-08-13T10:35:00.934+05:302011-08-13T10:35:00.934+05:30विज्ञापन न मिले तो अखबार चले नहीं
हम अपना सर क्यों...विज्ञापन न मिले तो अखबार चले नहीं<br />हम अपना सर क्यों दुखायें<br />अच्छा न लगे तो पढ़ें नहीं<br />..अब कोई पेशा सेवा भाव वाला बचा नहीं। सभी पेशे को लोगों ने शुद्ध रूप से धंधा बना लिया है। धंधा है तो कंपटीशन है । अर्थ युग है जिसमें कंपटीशन अधिक कमाने का...अधिक पैर फैलाने का..लोभ जब अधिक हो तो धंधा गंदा हो ही जाता है। कलम बिकने लगी है..जो अधिक पैसा दे, उसकी तरफदारी में लिखने लगी है। डाक्टर वही दवा लिखते हैं जिसमे उन्हें कमीशन मिलता है..शिक्षक पैसा लेकर थिसिज लिख रहे हैं...नकल करा रहे हैं..पास कर रहे हैं..। सेवा भाव की कल्पना करना मुश्किल है। पहले कोई बेईमान मिलता था तो लोग अचरज करते थे अब कोई ईमानदार मिलता है तो दांतो तले उंगलियाँ दबाते हैं।<br />मैने सुना है कि अखबार के दफ्तरों में पत्रकारों का भी खूब शोषण होता है। कम तनख्वाह मिलती है। अपना लेख संपादक के नाम से छापना पड़ता है। उस पर आश्चर्य यह कि कहीं इस शोषण की खबर नहीं छपती। दुनियाँ के शोषण के खिलाफ लिखने वाले पत्रकार अपने शोषण के खिलाफ नहीं लिख पाते।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-44527737057811088982011-08-13T08:19:57.418+05:302011-08-13T08:19:57.418+05:30क्षमा जी,
शुक्रिया , रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस...क्षमा जी, <br />शुक्रिया , रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस के पुण्य अवसर पर हमारी ओर से अशेष शुभकामनायें स्वीकारिये !<br /><br /><br />@ अनुराग जी ,<br />दीपक बाबा के सामने तो मैं पहले ही सरेंडर कर चुका हूं अब पसंद अपनी अपनी पे और सही :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-71839953969430018262011-08-13T03:19:13.935+05:302011-08-13T03:19:13.935+05:30दीपक बाबा की बात पर वह छोटी बच्ची याद आ गयी जो विज...दीपक बाबा की बात पर वह छोटी बच्ची याद आ गयी जो विज्ञापनों के लिये चित्रहार देखने बैठती थी और बीच-बीच में गाने आने पर उठकर दूसरे कमरे में चली जाती थी। इसी प्रकार दिल्ली में एक समय में पत्रिकाओं के साथ मुफ़्त प्रोडक्ट बाँटने का समय चला था। एक सहकर्मी पत्रिका की सामग्री के बजाय संलग्न उत्पाद का मूल्य देखकर पत्रिका खरीदते थे। पसन्द अपनी अपनी ... लोकतंत्र में सबको चुनाव की आज़ादी है। कम्युनिस्ट राज में रहे लोगों से पूछिये जहाँ हर अखबार और चैनल को वही दोहराना पडता है जो महाराजाधिराज ने फ़रमाया हो।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-79906960876564297432011-08-12T23:34:39.447+05:302011-08-12T23:34:39.447+05:30Jis din akhbaar na aaye soona,soona to lagta hai! ...Jis din akhbaar na aaye soona,soona to lagta hai! Haan! Vigyapanon se to bhare rahte hain!<br />Raksha bandhan aur 15 august kee anek shubhkamnayen!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-48063138668798069652011-08-12T16:39:34.774+05:302011-08-12T16:39:34.774+05:30@ दीपक बाबा ,
अब आप की रिकमेंडेशन है तो विज्ञापन प...@ दीपक बाबा ,<br />अब आप की रिकमेंडेशन है तो विज्ञापन पढ़ने के लिए आठ फीसदी और सही :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-71777810502090164512011-08-12T16:34:16.023+05:302011-08-12T16:34:16.023+05:30@ संजय झा जी ,
आभार !
@ अफलातून साहब ,
आज सुबह ही...@ संजय झा जी ,<br />आभार !<br /><br />@ अफलातून साहब ,<br />आज सुबह ही महादेव देसाई की रिपोर्ट के विषय में राहुल सिंह जी से चर्चा हो रहे थी ! आपका बहुत बहुत शुक्रिया !<br /><br />@ रश्मि जी ,<br />हे ईश्वर , हम तो उस ना कुछ को कई कई बार पढते हैं :)<br /><br />@ घुघूती बासूती ,<br />बाजारवाद से इतर पेड़ वाला मुद्दा भी चिंतनीय है !<br /><br />@ मित्र ,<br />:)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-33024456334694398062011-08-12T16:31:10.230+05:302011-08-12T16:31:10.230+05:30अली सर,
ख़बरों और विज्ञापन का रेशो अगर ४०:६० है त...अली सर,<br /><br />ख़बरों और विज्ञापन का रेशो अगर ४०:६० है तो ठीक है ........नहीं तो अखबार बंद हो जाते है.<br /><br />ये प्रिंट मीडिया की सच्चाई है.... आप कड़वी कह सकते है - पर वर्तमान पीडी के लिए यही सत्य है...<br />वो मात्र विज्ञापन के लिए ही तो अखबार देखते हैं.:)<br /><br /><a href="http://deepakmystical.blogspot.com/2010/11/blog-post_24.html" rel="nofollow">ये नए लोकतंत्र की बयार है</a>दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-15240106130800595562011-08-12T16:26:18.420+05:302011-08-12T16:26:18.420+05:30@ फोन पर प्राप्त टिप्पणी ,
एक रुपया पचास पैसे में ...@ फोन पर प्राप्त टिप्पणी ,<br />एक रुपया पचास पैसे में क्या पेपर वालों की जान ले लीजियेगा :)मित्रnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-63415720583650479542011-08-12T16:08:33.250+05:302011-08-12T16:08:33.250+05:30इस डिजाइनर कोट से मैं बहुत परेशान रहती हूँ विशेषकर...इस डिजाइनर कोट से मैं बहुत परेशान रहती हूँ विशेषकर तब जब पहला पन्ना एक चौथाई, एक तिहाई या आधा ही हो। बहुत बार तो पहले कोट उतारकर रख देती हूँ फिर अखबार पढ़ती हूँ।<br />विज्ञापन तो हम मुम्बई आकर देख रहे हैं। छोटे शहरों और कस्बों के हिस्से तो यह अलग से १२ सोलह पन्नों की विज्ञापन वाली(और सिनेमा वाली) रद्दी आती ही नहीं। कमी है तो मैं यह सोच सोच दुखी होती हूँ कि न जाने कितने पेड़ हमें यह विज्ञापन (और सिनेमा वाली खबरें) दिखाने पढ़ाने के लिए काटे जाते होंगे़।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-57887439362565407332011-08-12T15:54:41.675+05:302011-08-12T15:54:41.675+05:30इतने ध्यान से तो हमने देखा ही नहीं....
पर इतना जरू...इतने ध्यान से तो हमने देखा ही नहीं....<br />पर इतना जरूर है कि कभी दो दिन अखबार नहीं देख पायी {आप पुरुषों के साथ शायद कभी ऐसा ना हुआ हो...हम महिलाओं के साथ होता है :)}.....और जब दो दिन बाद....एक साथ छः अखबार लेकर बैठी..तो पता चला...हमने कुछ भी मिस नहीं किया था...पढ़ने लायक कुछ था ही नहीं...:(rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-5031529350318073912011-08-12T11:22:18.113+05:302011-08-12T11:22:18.113+05:30’अखबारों में विज्ञापन (१९३६) : ले. महादेव देसाई ’ ...<a href="http://kashivishvavidyalay.wordpress.com/2007/11/11/adsnewspaperdesai/" rel="nofollow">’अखबारों में विज्ञापन (१९३६) : ले. महादेव देसाई ’</a> कुल १६ भागों में पत्रकारिता पर १९३६ की यह रपट है , देखने लायक ।अफ़लातूनhttp://samatavadi.wordpress.comnoreply@blogger.com