tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post2283605538052838742..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: लोक आख्यान के बहाने एक बार फिर से वर्जित विषय ...उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-26308408898929799842011-12-28T07:19:04.880+05:302011-12-28T07:19:04.880+05:30@ सतीश भाई ,
आपने कहा...दिलचस्प...शुक्रिया :)
@ प...@ सतीश भाई ,<br />आपने कहा...दिलचस्प...शुक्रिया :)<br /><br />@ प्रवीण त्रिवेदी जी ,<br />गुड़ और चींटियों के आशय से सहमत पर सवाल पहली पहल का है , जब स्त्री पुरुष अपनी देह रचना के इस आयोजन से सर्वथा अपरिचित रहे हों उस वक़्त प्रथम आयोजन कैसे ? <br /><br />यौन अराजकता से बचने की गरज से ही लाइसेंसिंग /वर्जनाओं का जुगाड़ किया गया होगा ! नि:संदेह तब समाज भी आज जैसा नहीं रहा होगा !<br /><br />मनुष्य जीवन की हर गतिविधि की अराजकता की रोकथाम एवं शांतिपूर्ण खुशहाल सहअस्तित्व के यत्न बतौर ही समाज अपने अस्तित्व में आया होगा ! व्यक्तिगत से सामूहिक जीवन की ओर प्रयाण ने ही वर्जनाओं और वरीयताओं की नीव रखी होगी !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-37868396234939384912011-12-28T06:00:04.328+05:302011-12-28T06:00:04.328+05:30गुड है तो चीटियाँ आयेंगी ही .....रास्ता /दूरी और उ...गुड है तो चीटियाँ आयेंगी ही .....रास्ता /दूरी और उसको तय करने में लगा समय एक अलग मुद्दा हो सकता है .......और यह वर्जित विषय क्यूंकर?...शायद वर्जना के चलते?<br /><br />सामाजिक नजरिये से क्यूं ?...क्या समाज का यह रूप तब रहा होगा...?प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-90435847080698105112011-12-27T23:04:10.824+05:302011-12-27T23:04:10.824+05:30दिलचस्प लेख है , आप जैसे समाज मनीषियों से स्पष्ट ल...दिलचस्प लेख है , आप जैसे समाज मनीषियों से स्पष्ट लेखों की अपेक्षा तो रहेगी ही खास तौर पर वर्जित विषयों पर ....<br />शुभकामनायें आपको !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-33889340573303720582011-12-27T17:02:51.632+05:302011-12-27T17:02:51.632+05:30@ देवेन्द्र जी ,
:)
@ डाक्टर दराल साहब,
ब्ल्यू लै...@ देवेन्द्र जी ,<br />:)<br /><br />@ डाक्टर दराल साहब,<br />ब्ल्यू लैगून भी एक निर्देशक , एक कथाकार का आख्यान थी ऐसे ही सवाल के जबाब में ! मसला सिंगल सेल से बहुत बाद का है फिर भी हम तो अपने ही बारे में नहीं जान पायें हैं !<br />हमें पता नहीं पर परिंदों की अपनी भाषा ज़रूर होगी और वे भी ऐसी किसी पहली पहल के जबाब खोजते होंगे ! अगर हम उनकी जुबान जानते तो यह पता कर लेते कि यह सवाल उनके जेहनों में है भी कि नहीं :)<br />जैसे हम कार मैकेनिक नहीं होते पर एक लाइसेंस की दम पे धड़ल्ले से कार वापरते हैं बस वैसे ही शारीरिक संरचना के जानकार ना होकर भी एक लाइसेंस की दम पे १२१ करोड़ मील चल लिये तो आश्चर्य कैसा :)<br /><br />@ संतोष जी ,<br />ये शेर को मांस के स्वाद वाला मुहावरा ज़रा डिटेल में समझाइये :)<br />बाकी टिप्पणी से सहमत !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-2180688799232447082011-12-27T10:59:11.083+05:302011-12-27T10:59:11.083+05:30जिस तरह मानव ने अन्य जीवन-शैलियों को प्रकृति के सा...जिस तरह मानव ने अन्य जीवन-शैलियों को प्रकृति के सामीप्य से सीखा है,उसी तरह यौन-संसर्ग भी.अदम और हव्वा के ज़माने में इन्हीं प्राकृतिक संकेतों और अचानक आई परिस्थितियों का संज्ञान मनुष्य को हुआ होगा और बस...एक बार जब शेर को मांस का स्वाद लग जाये तो....आप जानते ही हैं !<br /><br />अभी भी हमारे जैसे कुछ लोग हैं जो विवाह के पहले तक इस पूरी प्रक्रिया और तरीकों से अनजान रहते हैं !<br /><br />अब तो खुल्ला-खेल फर्रुखाबादी है !पक्षियों को हमें बताने की कोई ज़हमत नहीं उठानी पड़ती है.शुरुआती फिल्मों में ज़रूर ऐसे संसर्ग के समय पक्षी या फूल का सहारा लेकर सन्देश दिया जाता था !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-7257447634027518102011-12-27T09:24:06.177+05:302011-12-27T09:24:06.177+05:30पहले मुर्गी पैदा हुई या अंडा -यह तो आज तक कोई नहीं...पहले मुर्गी पैदा हुई या अंडा -यह तो आज तक कोई नहीं जान पाया । यह ज़रूर पता है कि जीवन पहले एक सिंगल सेल के रूप में शुरू हुआ था जो बढ़ता बढ़ता इतना विशाल रूप ले सका ।<br /><br />यौन संबंधों के मामले में दूर क्यों जाएँ , पशुओं और पक्षियों को देखिये --उन्हें कौन सिखाता है । विकास की सीढ़ी में ये इन्सान से आगे भी हैं ।<br /><br />द ब्ल्यू लैगून में भी प्राकृतिक घटना को कुछ ऐसा ही दिखाया गया था ।<br />वैसे अभी भी ९९ % लोगों को शारीरिक संरचना के बारे में कुछ भी न जानते हुए भी हम १२१ करोड़ बनाने में कामयाब हो गए हैं । :)डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-11113621807698272562011-12-27T09:10:44.625+05:302011-12-27T09:10:44.625+05:30भावना में बहक कर लिखने वाले हैं सर जी..करने वाला त...भावना में बहक कर लिखने वाले हैं सर जी..करने वाला तो वो ससुर था:)देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-45260764168604194462011-12-27T08:47:44.596+05:302011-12-27T08:47:44.596+05:30@ प्रवीण शाह जी,
( फिलहाल सवालों से ईश्वरीय एलिमें...@ प्रवीण शाह जी,<br />( फिलहाल सवालों से ईश्वरीय एलिमेंट डिलीट करके बात करें )<br /><br />ब्रम्हांड की दैहिक पड़ताल और इंसान की जिस्मानी गतिविधियों के सवाल में अस्वाभाविक कुछ भी नहीं है ! यह जानने की कोशिश करना कि पहले पहल क्या हुआ एक सहज आकर्षण भी है और मजबूरी भी ! आकर्षण इसलिए कि उस वक़्त हम मौजूद नहीं थे जो चश्मदीद होते और मजबूरी इसलिए कि संभवतः यह पड़ताल भविष्य में काम आने वाली है / हो !<br />इस कथा में मुद्दा निष्कलंकता और निष्पाप होने का नहीं है किन्तु किसी अनुभवहीन जोड़े के प्रथम प्रयास अथवा अदक्ष ही सही यौन व्यवहार की इस पहली घटना के प्रेरक / कारणों की पहचान करने की फ़िक्र अनैसर्गिक नहीं है ! भले ही ब्रम्हांड की उत्पत्ति से जुड़े हुए प्रयोगों की तर्ज़ पर ऐसा कर पाना संभव नहीं हो किन्तु वाचिक परम्परा से इसके संकेत तो ढूंढें ही जा सकते हैं !<br />नि:संदेह आख्यान अपनी लंबी सामाजिक यात्रा के दौरान कल्पनाशीलता की पर्त दर पर्त जुड़ते जाने से अपना मूल स्वरुप खोने लगते हैं पर हमारे पास सामाजिक / दैहिक घटनाओं की प्रयोगशालानुमा पुनरावृत्ति के मौके नहीं है इसलिए हमें इन धुंधलाते छोरों से ही काम चलाना पड़ेगा ! विश्लेषण अपने / निष्कर्ष अपने / स्वीकार्यता अपनी !<br />इस कथा के एक रोचक पहलू पर आपने गौर नहीं किया और मैंने लिखा भी नहीं कि ससुर से पुत्रवधु के दैहिक सम्बन्ध में कोई नैतिकता ,कोई वर्जना, कोई अपराध बोध कहां है !<br />इंसानी मूलप्रवृत्तियों की भरपाई को लेकर अपराध बोध की शुरुवात उन शर्तों से हुई जिनका जिक्र मैंने इस आलेख में किया... <br /><br />" ये रिश्ते भी मुतवातिर बे-रोक टोक , ज्यादातर शर्तों के हिसाब के अंदर और कभी कभार शर्तों से बाहर भी ! इस मुकम्मल अहसास की शर्ते किन लोगों ने , कब और कैसे बनाई ? ये जानने से पहले मानना होगा कि ज़रूर , इसकी ज़रूरत रही होगी कि लोग देह के सम्मोहन की अराजकता से महफूज रहें , आबाद रहें...और कायम रहे उनके दरम्यान एक सुचिंतित निजाम के अधीन जिस्मों की खूबसूरत यकज़हती और नस्लों की निरंतरता भी...अपनी लय में बनी रहे "<br /><br />मेरे ख्याल से शर्तों की ज़रूरत अराजकता को लेकर थी पर शर्तों ने सुदीर्घ अवधि तक इंसानी जेहनों पे हुकूमत की है ( इसे हम सोशल कंडीशनिंग भी कह सकते हैं ) देह यात्राओं में अगर कोई अपराधबोध आभासित होता है तो निश्चय ही इन शर्तों की छाया में , इनके कारण से ! <br />आप तो देह संबंधों /सुख के अपराध बोध की बात कर रहे हैं ! आप मुझे ही लीजिए ! मेरे आलेख के टाइटिल से अपराधबोध नहीं झलकता आपको :)<br /><br />@ देवेन्द्र जी ,<br />सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार अब इससे आगे...कविता मैंने पहले ही पढ़ रखी थी शायद कमेन्ट नहीं किया होगा ! दर दूदू को धर दुधु के निकट देखना ज्यादा उचित प्रतीत होता है :) बाकी दूर हट हरामी वाले आशय तो जोड़े की ट्यूनिंग पर निर्भर करते हैं :) आपकी मनगढंत ध्वनि करो किसी से भी यही स्पष्ट होता है प्रकृति सब सिखला देती है ! आप भावना प्रधान हैं यह तो ठीक है पर गौर कीजिये वह ससुर भी भावनाओं में बहक गया था :)<br /><br />@ काजल भाई ,<br />पक्षी अकेले नहीं तेंदुआ भी :)<br /><br />@ राहुल सिंह जी ,<br />:)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-86777786825434918972011-12-27T08:29:46.704+05:302011-12-27T08:29:46.704+05:30न जाने कितने श्रृंगी ऋषि और ब्लू लगून.न जाने कितने श्रृंगी ऋषि और ब्लू लगून.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-1822796865206140862011-12-27T06:54:44.592+05:302011-12-27T06:54:44.592+05:30मंडला के पक्षी तो बड़े बदमाश निकले.मंडला के पक्षी तो बड़े बदमाश निकले.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-28596179250429800242011-12-26T22:18:39.159+05:302011-12-26T22:18:39.159+05:30मैने एक कविता लिखी थी उसके कुछ अंश...
नीम बहुत उद...मैने एक कविता लिखी थी उसके कुछ अंश...<br /><br />नीम बहुत उदास था<br />फिज़ाओं में धूल है, धुआँ है<br />न बावड़ी है न कुआँ है<br />पीपल ने कहा...<br />आजा मेरी गोदी में बैठ जा !<br /><br />नीम हंसा...<br />फुनगियाँ लज़ाने लगीं<br />कौए ने कलाबाजी करी<br />वक्त ने पंख फड़फड़ाये<br />पीपल की गोद में <br />नन्हां नीम किलकारी भरने लगा<br />............... <br /><br />मैं जब भी<br />उस वृक्ष के पास से गुजरता हूँ<br />तो लगता है इसकी शाखें बुदबुदाती रहती हैं <br />करोरम किसी से करो।<br />...................................................<br />कविता पढ़ाने से आशय यह कहना है कि मनुष्य ही नहीं पकृति से सभी प्रभावित होते हैं। 'करोरम किसी से करो' भी मेरे मन की एक मनगढ़ंत ध्वनी है जो प्रस्फुटित होती रहती है फिजाओं में। जिसका अर्थ मैने लगाया 'प्यार किसी से करो' मतलब प्यार तो किसी से भी हो सकता है। जीव का मन जैसा करने का होता है वैसे ही उस ध्वनी का अर्थ भी लगा लेता है। करता जीव अपने मन का है, ध्वनी उसे अर्थ देते हैं। प्रस्तुत लेख में दर दूदू दर दूदू का अर्थ लगाने वाले यह भी लगा सकते हैं कि 'दर हरामी दूर रह'.. 'दर हरामी दूर रह'। लेकिन कामदेव जब अपने तीर चलाते हैं तो ध्वनियों के अर्थ बदल जाते हैं। <br /><br />आगे आपके इस विचारोत्तेजक लेख को पढ़कर सामाज शास्त्री क्या अर्थ देते हैं उसको पढ़ने की जिज्ञासा रहेगी । हम तो ठहरे भावनाओं में बहक कर लिखने वाले...देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-50363085278084916642011-12-26T22:11:19.392+05:302011-12-26T22:11:19.392+05:30.
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अली सैयद साहब,
दुनिया में मर्द और औरत के दर....<br />.<br />.<br />अली सैयद साहब,<br /><br /><b>दुनिया में मर्द और औरत के दरम्यान पहले पहल जिस्मानी रिश्ता किस तरह पनपा होगा ! ठीक पहला , किस की पहल पर और कैसे ?</b><br /><br />अब यह सवाल भी कुछ इसी तरह का है कि दुनिया बनाई किसने ?... अगर मर्द और औरत मौजूद हैं तो इतना तो निश्चित है कि कि वह अपने से पहले के किसी जोड़े के जिस्मानी रिश्ते का नतीजा ही हैं... पर सब कुछ जानते बूझते हुऐ भी इंसान की दुनिया भर में फैली नस्ल यह सवाल करती है और ज्यादातर जगह लोक आख्यान में भी और पुरानी किताबों में भी यह माना जाता है कि पहला जोड़ा कुछ नहीं जानता था जिस्मानी रिश्ते व जिस्म के आनंद के बारे में...निर्दोष, निष्पाप व निष्कलंक था यह जोड़ा... यह सब तो उस जोड़े ने मजबूरी में या देखादेखी सीख लिया... <br /><br />देह और देह सुख को लेकर यह अपराधबोध क्यों है इंसान में ?... इस पर भी आपके लिखे का इंतजार रहेगा...<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.com