tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post16382456365647952..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: उन्होंने अपशब्द तो नहीं कहे ......उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-2874389828184839012009-03-14T20:08:00.000+05:302009-03-14T20:08:00.000+05:30Pt.डी.के.शर्मा 'वत्स'जी सबसे पहले तो आपका आभार कि ...Pt.डी.के.शर्मा 'वत्स'जी सबसे पहले तो आपका आभार कि आप हमारे आलेख तक पहुंचे !आपको ज्ञात है कि पुराने समय में पशुओं की बलि मांस को फेंकने के लिए तो नहीं ही दी जाया करती थी ! यहाँ बस्तर में कुछ समय पूर्व तक , माई दंतेश्वरी के सम्मुख पशु बलि देने की परंपरा प्रचलित रही है !इस प्रसाद को अभक्ष्य तो नहीं कहेंगे आप ! मेरे द्वारा उद्धृत सन्दर्भ "महर्षि बाल्मिकी" से सम्बंधित है ! चूँकि आलेख में इसका उल्लेख जरुरी नहीं लगा ! इसलिए सकारण ऐसा नहीं किया !<BR/>वैसे भी मेरा आग्रह फ़ूड हैबिट्स की स्वीकार्यता और सामुदायिक रुचियों के सम्मान को लेकर है ! आलेख में मैंने निवेदन किया था कि मुझे स्वयं मांसाहार प्रिय नहीं है ! आशा है कि आप मेरी भावनाओं से सहमत होंगे कि हमें अपनी रुचियां दूसरों पर थोपने का यत्न नहीं करना चाहिए !<BR/><BR/>(अब आप मित्र हो गए हैं तो कहना ये है कि कभी व्यक्तिगत रूप से आपको ग्रन्थ,कांड,अध्याय और पदों का विवरण भी दे देंगे फ़िलहाल संकेत से काम चलाइयेगा)<BR/><BR/><BR/><BR/>और हाँ आप ज्योतिष पर लिखते हैं मुझे अच्छा लगता है कभी इस विषय पर आपसे संवाद ज़रूर करना चाहूँगा कृपया अनुमति दें !<BR/><BR/>शुभकामनाओं सहित !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-62691275906981947452009-03-14T18:03:00.000+05:302009-03-14T18:03:00.000+05:30वैसे तो आपने बिल्कुल सही लिखा है कि सब को अपने ढंग...वैसे तो आपने बिल्कुल सही लिखा है कि सब को अपने ढंग से जीवन जीने का अधिकार है....किन्तु आपने एक जगह कहा है कि "धार्मिक ग्रंथों और आख्यानों में शाकाहार तथा मांसाहार दोनों की ही संस्वीकृति मौजूद है!" अगर बता सके तो मुझे उस धर्मग्रन्थ के बारे में जानने की उत्सुकता हो चुकी है,जिसमें अभक्ष्य भक्ष्ण की स्तुती की गई है.....आभारPt. D.K. Sharma "Vatsa"https://www.blogger.com/profile/05459197901771493896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-48950367615751260872009-03-14T00:54:00.000+05:302009-03-14T00:54:00.000+05:30सही है ... दुनिया में हर तरह के लोग हैं और सबों को...सही है ... दुनिया में हर तरह के लोग हैं और सबों को अपने अपने ढंग से जीवन जीने का अधिकार है ... जबतक व्यक्तिगत तौर पर बाधा न उपस्थित हो ... हमें इसपर ध्यान नहीं देना चाहिए।संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.com