tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post1292603010417806843..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: लोक कथा के बहाने : ईश्वर स्त्रियों का शोषण करता है ?उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-91273906111394911332009-06-18T14:30:22.607+05:302009-06-18T14:30:22.607+05:30जयंत भाई मेरे आलेख की सीमाये तय हैं ! आलेख को केवल...जयंत भाई मेरे आलेख की सीमाये तय हैं ! आलेख को केवल स्त्रियों की गरिमा को नकारात्मक शेड देने वाले आख्यानों का उल्लेख करना था ! इन्हें मैं लोककथा / पंक्चर जोड़ाई / क्षेपक कह सकता हूँ ! मैंने वो लिखा जो आलेख के दायरे में है ! बेहतर होता आप मेरे दोनों आलेख जोड़ कर पढ़ते ! धर्म के विषय में आप जो कह रहे हैं वह सब मेरे आलेख का कंटेंट नहीं है , आलेख की मूल भावना में सम्मिलित नहीं है ! आलेख में उल्लिखित ईश्वर मनुष्यों की तुलना में प्रतीकात्मक आदर्श मात्र है ! <br />"मैं किसी भी धर्म अथवा खुदा का यशोगान करने या फिर निंदा करने का इरादा नहीं रखता हूँ !" <br /><br />कृपया मुझे आलेख की मूल भावना तक ही सीमित रखें ! <br />मेरे आलेख के शीर्षक में प्रश्नवाची चिन्ह का मतलब ही है कि कोई भी मेरे आलेख से असहमत हो सकता है और स्त्रियों की गरिमा बढ़ाने वाले उदाहरण दे सकता है !<br /><br />आप सभी टिप्पणीकारों का ह्रदय से आभारी हूँ !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-80231999414014207122009-06-18T10:23:08.282+05:302009-06-18T10:23:08.282+05:30संदीप जी,
"तमाम तरह के बाबा भक्ति का बाजार ल...संदीप जी,<br /><br />"तमाम तरह के बाबा भक्ति का बाजार लगाकर कहते हैं कर्म करो फल की इच्छा न करो। मतलब मजदूर मेहनत करे और पगार, सुविधाओं की अपेक्षा न करे। "<br /><br />आपने तो सुना होगा... "कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा...... ने कुनबा जोड़ा..".<br />यह कहावत आपकी टिपण्णी पर बहुत सटीक है..<br />गीता के ज्ञान को आपने इतने गंदे तरीके से प्रस्तुत किया है... की क्या कहें.<br />और बाबा और संतों पर (सबको एक दायरे में रख) बाजार लगाने का गंभीर आरोप लगा दिया है.<br />गीता में जो परिपेक्ष है और जो उसका भाव है आपके समझ से बाहर है शायद.<br />और हो सकता है आपने कभी अच्छे बाबा और संतों के साथ का भाग्य ना पाया हो..<br />मानता हूँ कुछ जरूर स्वार्थी होते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं... किन्तु अधिकाँश ज्ञानी हैं और अच्छी बातें <br />सिखातें हैं. पर अफ़सोस, आप सिर्फ हिन्दुओं पर प्रहार की ही बात करते हैं.<br />आपके और भी लेख देख चुका हूँ..<br /><br />गीता में तो साफ़ साफ़ है की जो तुम्हारा हक़ है उसके लिए लड़ जाओ.. फिर चाहे सामने कोई भी हो.. जो भी परिणाम हो.<br />कर्म करना, यह ही तो मूल मन्त्र है.. क्रम प्रधानता... याने क्या होगा, क्या मिलेगा कर्म करके.. आदि ना सोचो.. <br />जो तुम्हारा कर्म है, जैसे एक सिपाही का कर्म है लड़ना, देश की रक्षा करना.. तब वो युद्ध के बीच में यह नहीं सोच सकता... मैं बचा नहीं तो क्या होगा? मैं आगे बढूँ या नहीं... आदि...<br />परिणाम, ईश्वर के हाँथ में है.. कर्म अपने हाँथ में.. <br /><br />लेकिन आपसे क्या कहना.. आपके तो इतने दुराग्रही हैं और हिन्दुओं के विरूद्ध हैं कि...!!<br />क्या कहें..<br /><br />~जयंतजयंत - समर शेषhttps://www.blogger.com/profile/13334653461188965082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-86227020683864267172009-06-18T10:12:35.478+05:302009-06-18T10:12:35.478+05:30२) "अप्सराओं की बात"
>> हाँ आपकी ब...२) "अप्सराओं की बात"<br />>> हाँ आपकी बात तर्क संगत है.. बहुत हद तक... अब इसकी भी एक और व्याख्या है... स्वर्ग में (और आम तौर पर भी) सबकी एक मर्यादा है.. एक सीमा रेखा है... उसके उल्लंघन की सजा तो सबको मिलती ही है.... <br />बाकी जैसा एनी लोग भी कह चुके हैं, काफी बातें बाद में जोड़ी गयीं हैं...<br /><br />३) आपने केवल बुरे उदाहरण ही क्यों दिए? हिन्दू धर्म में सैकडों उदाहरण हैं जब स्त्री (शक्ति) ने देवों, मानवों, और भगवानों को भी बचाया है. माँ दुर्गा और काली के उदाहरण तो जग जाहिर हैं... यहाँ तक की पार्वती जी की शक्तियां भी (गणेश जी के प्रकरण में) विस्तार से बतायी गयीं हैं... <br />तो आपने केवल चुन चुन कर तीर क्यों चलाये?<br />कुछ मंशा समझा नहीं आयी...<br /><br />४) और एक आखिरी निवेदन... कृपया अपने धर्म के ही बारें में लिखे, जब दूसरे धर्म पर लिखें तो ज़रा ज्यादा संवेदनशील रहें... सच कहूँ, पहले अपना घर साफ़ करना चाहिए, फिर पडोसी को बोलने का हक़ होता है..<br /><br />धन्यवाद,<br />~जयंतजयंत - समर शेषhttps://www.blogger.com/profile/13334653461188965082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-72030766573010466162009-06-18T10:05:19.447+05:302009-06-18T10:05:19.447+05:30स्त्रियों के लिए मेरे विचार बहुत साफ़ हैं (जानना चा...स्त्रियों के लिए मेरे विचार बहुत साफ़ हैं (जानना चाहें तो मेरा ब्लॉग पढ़े..), यह बात प्रारंभ में लिख दी ताकि मेरी बातों का लोग गलत अर्थ ना निकालें.. मैं उन्हें बहुत मान और बराबरी का दर्जा देता हूँ... और पूर्ण स्वतन्त्रता का पक्षधर हूँ..<br /><br />अब आता हूँ आपके लेख पर.. आपका लेख थोडा एक पक्षीय लगा..<br /><br />१) <br />"आज उसी बात को आगे बढ़ते हुए कहता हूं कि ईश्वर स्त्रियों के प्रति भी सौतेला व्यवहार करता है ! जरा गौर करें इन्द्र ( अपनी पत्नी शचि को छोड़ कर ) ब्रम्हांड की अनन्यतम सुंदरियों का क्या हश्र करते है ! मेनका और अन्य अप्सराओं को , मनोरंजन के लिए नृत्य के , साथ ही साथ विश्वामित्र का तप भंग करने और इन्द्रासन के लिए खतरा बन रहे राजाओं को निपटाने , में इस्तेमाल करते हैं !"<br />>> प्रथम तो "इन्द्र" देवता थे... ईश्वर नहीं. कृपया ये जान लें की देव एक योनी मानी गयी है.. जैसे की वानर, नर आदि... इन्द्र देवताओं के राजा हैं, किन्तु ईश्वर नहीं हैं. तो उनके द्वारा किये गए करती भगवान के करती नहीं हैं.<br />>> द्वितीय, उन्होंने किसी भी राजा जैसा ही कार्य किया (मैं उसे उचित नहीं ठहरा रहा हूँ), और छल का प्रयोग किया. आप यह भी जान ले की उनके इन कृत्यों को महिमा मंडित नहीं किया गया है, और कई स्थानों पर इन्द्र को लज्जित भी किया गया था..<br />>> तृतीय, इसकी एक और व्याख्या है... जैसे श्री कृष्ण ने इन्द्र की पूजा रुकवा कर और उसे बाद में ज्ञान भी दिया था की उन्हें देव जैसा आचरण करना चाहिए... तो इसका यह भी अर्थ है की कभी कभी देव भी असुर जैसा (और आज भी सच है) कार्य करते हैं, जैसे की लालच, झूठा अभिमान और राज की लालसा (तामसिक/आसुरिक प्रवृतियां) आदि दिखा सकतें हैं.. मतलब, हर व्यक्ति में किसी भी समय ऐसे भाव आ सकतें हैं... जब देव भी इनसे परे नहीं तो हम कैसे होंगे.... यानी, हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए और अपने आप को गिरने से बचाना चाहिए.जयंत - समर शेषhttps://www.blogger.com/profile/13334653461188965082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-80230032307166027392009-06-18T09:44:24.283+05:302009-06-18T09:44:24.283+05:30सही कहा अली... सदैव दोयाम दर्जा क्यों?सही कहा अली... सदैव दोयाम दर्जा क्यों?रंजनhttp://aadityaranjan.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-76852772163290704642009-06-18T01:27:56.455+05:302009-06-18T01:27:56.455+05:30अली जी, बहुत सही पोस्ट लिखी है। बेचारा भगवान शायद ...अली जी, बहुत सही पोस्ट लिखी है। बेचारा भगवान शायद तो है ही नहीं, होता भी तो अत्याचार करने में अपने नाम के दुरुपयोग से बहुत दुखी ही होता।<br />अपने लाभ के लिए व अपने किए को सही ठहराने के लिए मनुष्य कोई न कोई बहाना ढूँढ ही लेता है।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-62864994212790324332009-06-17T22:22:29.216+05:302009-06-17T22:22:29.216+05:30हम तो कहेंगे किईसापूर्व की, ७ वीं, सदी की, १० वीं,...हम तो कहेंगे किईसापूर्व की, ७ वीं, सदी की, १० वीं, सदी की या १४ वीं सदी की मान्यताओं को हम क्यों ढो रहे हैं. एक बात तो है -इश्वर सत्य है- अब आप पर निर्भर है कि उसे कैसा देखना चाहते हैं . हम आप सभी जानते हैं कि बाकी सब मनगढ़ंत कहानियां है. हम उतने ही अंश को स्वीकार करें जो सन्मार्ग दिखाता हो.वह भी आज की नजरिये से.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-90818155096264568042009-06-17T17:59:59.196+05:302009-06-17T17:59:59.196+05:30बिल्कुल, वैसे ईश्वर स्त्रियों को शोषण ही नहीं कर...बिल्कुल, वैसे ईश्वर स्त्रियों को शोषण ही नहीं करता बल्कि, निचली जातियों का उत्पीड़क, दूसरे धर्म के अनुयायियों का दुश्मन और कुल मिलाकर हर प्रगति का विरोधी भी होता है। किसानों-मजदूरों का शोषण किया जाता है, आम जनता को निचोड़ा जाता है और तमाम तरह के बाबा भक्ति का बाजार लगाकर कहते हैं कर्म करो फल की इच्छा न करो। मतलब मजदूर मेहनत करे और पगार, सुविधाओं की अपेक्षा न करे। वैसे इस पर हरिशंकर परसाई जी ने बहुत अच्छा व्यंग्य लिखा है। और आपने भी ठीक मुद्दा बेबाक तरीके से उठाया है।संदीपhttps://www.blogger.com/profile/01871787984864513003noreply@blogger.com