tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post1213185635673742481..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: मैं उसे चूम ही लेता पर ...उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-86661434024218577432012-01-18T16:44:14.395+05:302012-01-18T16:44:14.395+05:30मेरा ख्याल ये है कि मैं उसे चूम ही लेता पर ...
खुद...मेरा ख्याल ये है कि मैं उसे चूम ही लेता पर ...<br /><b>खुद के समेटे डैने... खुल ना सके</b>BS Pablahttps://www.blogger.com/profile/06546381666745324207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-89312914261257108342012-01-11T14:19:03.323+05:302012-01-11T14:19:03.323+05:30पर
डर है कि अहसास का वो तिलस्म ना टूट जाए कहीं.....पर <br /><br />डर है कि अहसास का वो तिलस्म ना टूट जाए कहीं...जो वजूद का एक हिस्सा...जीने का सबब बन बैठा है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-87582459766273873382012-01-11T11:25:08.042+05:302012-01-11T11:25:08.042+05:30.... पर क्या करें, कौन चाहता है अपने मुहब्बत को ....... पर क्या करें, कौन चाहता है अपने मुहब्बत को बदनाम होते देखना। <br />बहुत खूब लिखा है आपने। उर्दु अल्फाजों के इस्तेमाल का आपका अंदाज हमेशा ही नया सीखने का अवसर देता है।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-54248809145786898742012-01-10T19:57:07.836+05:302012-01-10T19:57:07.836+05:30'साहिर' की नज्म का एक टुकड़ा याद आ गया &...'साहिर' की नज्म का एक टुकड़ा याद आ गया 'तू बहुत दूर किसी अंजुमन -ए -नाज में थी <br />फिर भी महसूस हुआ कि तू आयी है<br />और नगमों में छुपा कर मेरे खोये हुए ख्बाब <br />मेरी रूठी हुई नींदों को मना लायी है' <br />इस घोर प्रतिस्पर्धात्मक युग के सांसारिक जीवन चक्र में संवेदनाओं की रूमानियत को बनाये रखना काबिल -ए- दाद है।रोहित बिष्टhttps://www.blogger.com/profile/00332425652423964602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-9015839569125879572012-01-10T13:53:30.324+05:302012-01-10T13:53:30.324+05:30छोडो जाने दो...
सिर्फ इसलिए ही शहीद होना कौन सा अ...छोडो जाने दो... <br />सिर्फ इसलिए ही शहीद होना कौन सा अच्छा हैSatish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-83912673283485891112012-01-10T11:58:39.985+05:302012-01-10T11:58:39.985+05:30बढ़ के उसको मैं चूम लेता, पर....
देख कर हाथ में रूम...बढ़ के उसको मैं चूम लेता, पर....<br />देख कर हाथ में रूमाल वो 'लाल',<br />फिर अचानक से रुक गया हूँ मैं,<br />बीती यादों में खो गया हूँ मै,<br />कुछ भी उसकी रविश नहीं बदली,<br />वो ही तारीखों-माहो-दिन* का हिसाब, [*मासिक अवधि]<br />कभी रूमाल, बैग, लाल किताब,<br />बात समझाने के अजब अंदाज़,<br />आज भी वो 'समय पे आजाना',<br />पास हो कर भी दूर रह जाना,<br /><br />aur....<br /><br />मैं , कि पतझड़ का एक पत्ता सा,<br />टूटने से क़ब्ल लरज़ता सा,<br />ख्वाहिशो की लपेट कर गठरी,<br />अपनी औकात में चला आया !<br /><br />http://aatm-manthan.comMansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-89892735715757174352012-01-09T18:34:26.374+05:302012-01-09T18:34:26.374+05:30अच्छे अच्छों को चकरा देती हैं आपकी बातें।
आपकी ...अच्छे अच्छों को चकरा देती हैं आपकी बातें।<br /><br />आपकी पोस्ट को पढने के लिए सचमुच दिमाग को कंसंट्रेट करना पडता है।<br /> लेकिन इसी के साथ यह भी सवाल उठता है कि जब पाठक को इतनी एकाग्रता लानी पडती है, तो आप कितना एकाग्र होकर लिखते होंगे।<br /><br />------<br /><b><a href="http://za.samwaad.com/2012/01/blog-post_09.html" rel="nofollow">मुई दिल्ली की सर्दी..</a></b><br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">... बुशरा अलवेरा की जुबानी।</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-16955131770814044292012-01-09T11:51:16.895+05:302012-01-09T11:51:16.895+05:30@ अरविन्द जी,
:)
@ देवेन्द्र जी ,
जब हमने उसे आप...@ अरविन्द जी,<br /> :)<br /><br />@ देवेन्द्र जी ,<br />जब हमने उसे आपकी मर्जी पर छोड़ दिया तो हमारा दिल तो दुखने से रहा :)<br />इशारा तो किसी और की तरफ है भाई :)<br /><br />@ राजपूत जी ,<br />आंख खुलने वाली संभावना तो है ही पर सोने के बाद वाली या जागते हुए... :)<br /><br />@ सलिल जी ,<br />आपने अदभुत विकल्प दिया है बेहद शाइस्ता /निहायत सलीकेमंद / सौजन्यता से भरपूर !<br /><br />@ स्मार्ट इन्डियन जी ,<br />नहीं , बिलकुल भी नहीं !<br /><br />@ संजय झा साहब ,<br />इस काम के लिए दस साल बहुत लंबा वक़्त होता है भाई :) <br /><br />@ आदरणीय सुब्रमनियन जी ,<br />आपने मेरी पोस्ट की इज्जत रख ली :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-19207023145882683352012-01-09T11:21:32.759+05:302012-01-09T11:21:32.759+05:30"पर" के आगे वही कस्तूरी वाली मृगतृष्णा स..."पर" के आगे वही कस्तूरी वाली मृगतृष्णा सी.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-33785660221473228382012-01-09T10:36:09.594+05:302012-01-09T10:36:09.594+05:30?????.......
prem gali ati sankari......so kabhi
...?????.......<br /><br />prem gali ati sankari......so kabhi<br />jahmat nahi li....<br /><br />lekin pichle 10 salon se ek chat ke andar ek saath rahte aisa kuch ho jane ki sambhavna banti ja rahi hai.....<br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-64500607554955748682012-01-09T06:40:44.421+05:302012-01-09T06:40:44.421+05:30आज भले ही वह किसी और ग्रह की प्राणी है लेकिन यादें...आज भले ही वह किसी और ग्रह की प्राणी है लेकिन यादें क्या किसी सीमा में बन्धी हैं कभी?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-64289704863655096422012-01-08T23:10:01.093+05:302012-01-08T23:10:01.093+05:30सुबह से कई बार पढ़ा.. कई बार कोशिश की कि उस खाली ज...सुबह से कई बार पढ़ा.. कई बार कोशिश की कि उस खाली जगह को मुकम्मल करूँ.. लेकिन रुक गया.. जानते हैं क्यों?? जैसे ही मैंने लिखने की कोशिश की मुझे ऐसा लगा मानो मेरे माज़ी के <b>सदियों जैसे लंबे सालों के बाद , उसे वाक़ई में छू पाने से पहले के लम्हों की गिरफ्त से आज़ाद होकर भी...आज जब वो मेरे , ठीक सामने खड़ी है</b> और मुझसे कह रही है... प्लीज़! उस खाली जगह को खाली ही रहने दो न!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-2848614424456377272012-01-08T23:02:29.040+05:302012-01-08T23:02:29.040+05:30सुना है तकदीर के उस पार वाले आसमान में परवाज़ करते...सुना है तकदीर के उस पार वाले आसमान में परवाज़ करते हुए उसने , कई मर्तबा मुझ पर मेहरबान होने की कोशिश में अपने डैने समेटे भी पर वो बीच में ही घात लगाये हुए बाजों की बस्ती से गुज़रने का हौसला ना जुटा सकी !<br />(बहुत गहरी और अर्थपूर्ण बात )<br /><br /> मैं उसे चूम ही लेता पर ... ( आँख खुल गई ) और क्या ? :) :)<br />अब बता भी दीजिये .Rajputhttps://www.blogger.com/profile/08136572133212539916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-14669906635826365492012-01-08T21:40:40.518+05:302012-01-08T21:40:40.518+05:30जब आपने इस पोस्ट की महबूबा को पाठकों के हवाले कर द...जब आपने इस पोस्ट की महबूबा को पाठकों के हवाले कर दिया है तो यह उनकी मर्जी हो जाती है न कि वे क्या कयास लगाते हैं..! दिल दुखने की बात लिख कर आप हमें भी संजिदा कर रहे हैं जनाब। यह तो आपको पहले ही सोचना था। पाठक के तसव्वुर में तो कुछ भी ख्याल आ सकते हैं। अब आप ही बताइये कि वाकई हुआ क्या था.... :(देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-3320692241952072582012-01-08T20:59:48.821+05:302012-01-08T20:59:48.821+05:30आगाज यह है अंजाम खुदा जाने ...आगाज यह है अंजाम खुदा जाने ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-10283056757346777112012-01-08T20:48:46.417+05:302012-01-08T20:48:46.417+05:30@ राहुल सिंह जी ,
आज फिर से... :)
@ संतोष जी ,
(...@ राहुल सिंह जी ,<br />आज फिर से... :) <br /><br />@ संतोष जी ,<br />(१)<br />पहला पैरा उसके ख्याल को संबोधित है इसलिए मामला आपके इशारे वाले पुल्लिंग का नहीं है :)<br />आपके आकर्षण के खात्मे वाली बात से सहमत !<br />कल्पना में आदमी क्या क्या नहीं कर गुज़रता :)<br />(२)<br />मामला दोतरफा मानकर बाद वाली सिचुएशन सुझाइये :)<br /><br />@ देवेन्द्र जी ,<br />सिगरेट की राख की मानिंद उसके थरथराते लब मेरे <br />...की मार सह ना पाते :) <br />अंगुलियों से आरिजों को छूने भी ना दिया और माजी बना दिया आपने उसे :)<br />जिंदगी का बेनूर कतरा कहके किसी का दिल दुख रहे हैं आप :)<br /><br />@ काजल भाई ,<br />हिस्से के आगे की उम्मीद थी :)<br /><br />@ सलिल जी ,<br />जी जरुर हाज़िर होउंगा ! शुक्रिया !<br /><br />@ डाक्टर दराल साहब ,<br />(१)<br />ऑटो एक्सपो से लौट कर बीच वाली जंजीर ,हा हा हा , अरे नहीं :)<br />(२)<br />खालिस स्त्री का मामला है पर उसके ख्याल को पुल्लिंग की तरह से संबोधित किया जाना संतोष जी को भी नहीं भाया था :)<br />किसी मर्ज़ की दवा हम भी हुए :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-51801914795219313042012-01-08T19:14:40.717+05:302012-01-08T19:14:40.717+05:30यह स्त्रीलिंग / पुल्लिंग का मामला इरादतन है या लिख...यह स्त्रीलिंग / पुल्लिंग का मामला इरादतन है या लिखते समय दिमाग का कंप्यूटर एक पल के लिए हैंग हो गया था --यही ख्याल बैरी खाए जात है ।<br /><br />वैसे अच्छा टेस्ट लिया है । इस पोस्ट को पढने और समझने की कोशिश करने वाले को कभी Alzheimer disease nahi ho sakti .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-55009963044414659712012-01-08T19:07:47.597+05:302012-01-08T19:07:47.597+05:30आज जब वो मेरे , ठीक सामने खड़ी है तब ...मेरा ख्याल...आज जब वो मेरे , ठीक सामने खड़ी है तब ...मेरा ख्याल ये है कि , मैं उसे चूम ही लेता पर ... क्या करूँ , बीच में ज़ंजीर गडी है ।<br />क्या ऑटो एक्सपो हो कर आए हैं भाई जी !डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-62372457199579733162012-01-08T17:04:13.486+05:302012-01-08T17:04:13.486+05:30अरे ये तो किसी हिन्दी उपन्यास का हिस्सा सा लगता है...अरे ये तो किसी हिन्दी उपन्यास का हिस्सा सा लगता है...Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-27699856416334960312012-01-08T09:36:32.805+05:302012-01-08T09:36:32.805+05:30..मेरे ख्याल से जुदा, अधजले सिगरेट के राख की मानिं.....मेरे ख्याल से जुदा, अधजले सिगरेट के राख की मानिंद उसके थरथराते लब मेरे बोशे की मार को सहन कर पाने की स्थिति में नहीं थे। मैने अपनी दोनो बाहें फैलाकर अपनी उंगलियों से जैसे ही हौले-हौले उसके आरिजों को छूना चाहा, फिसल कर बन गयी वो फिर एक माजी। आह! जिंदगी का वह एक बेनूर कतरा, मेरे बाहों की पनाह पाता तो आँसू होता।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-67563826266316081802012-01-08T08:11:37.377+05:302012-01-08T08:11:37.377+05:30दुबारा गौर से ख़याल किया तो पाया कि पहले पैरे में ...दुबारा गौर से ख़याल किया तो पाया कि पहले पैरे में आपने ख्याल को ही संबोधित किया है.इसलिए वह पुल्लिंग में आ गया.<br /><br />बाद वाले पैरे में आखीर में जब वो बड़ी जहमत से सामने आ पति है,इस ज़ालिम दुनिया से बच-बचाकर तो आपका उसे छूने में फिर 'ख्याल' आड़े आता है.<br /><br />अगर इस तरह का बेइन्तहा इंतज़ार होता है तो कोई उस वक़्त ख्याल में नहीं रहता,अपने-आप उसी के आगोश में समा जाता है,बशर्ते यह दुतरफा मामला हो !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-15042437019080307652012-01-08T07:52:47.271+05:302012-01-08T07:52:47.271+05:30शुरू में लगता है कि आप का प्यार सांसारिक या शारीरि...शुरू में लगता है कि आप का प्यार सांसारिक या शारीरिक नहीं है.पहले पैरा में पुल्लिंग का बोध कराकर आखिरी पैरा में स्त्रीलिंग डाल कर आपने क्या जताने की कोशिश की है.यही कि कोई भी चाहत किसी भी आकर्षण से शुरू हो मगर उसका खात्मा सहज स्त्री-प्रेम से ही होगा.<br /><br />आप उसे चूम तो लेते ...मगर आपको अपने से ज़्यादा उसकी फ़िक्र है !<br /><br />या फिर कल्पना है जो आपके रूबरू है,पर छू नहीं सकते !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-42305499287452957392012-01-08T06:51:28.554+05:302012-01-08T06:51:28.554+05:30हमें तो बात यहीं पूरी होती लगती है.हमें तो बात यहीं पूरी होती लगती है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.com